सिक्किम बाढ़: बादलों ने मचाई तबाही या तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर हैं बड़ी वजह?
भारत के पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम की तीस्ता नदी में 03 अक्टूबर 2023 की रात बादल फटने के बाद आई विनाशकारी बाढ़ से हुई तबाही ने सूबे के लोगों के सामने भीषण आपदा खड़ी कर दी है। राज्य के चार जनपद मंगन, गंगटोक, पाक्योंग और नामची में बाढ़ से सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है। इस आपदा में जान गवाने वालों की तादाद 65 तक पहुंच गई है। सिक्किम में बाढ़ से 33 लोगों की जान गई हैं, जबकि पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से 35 शव बरामद किए गए हैं। सिक्किम के बुरदांग इलाके से लापता हुए सेना के 23 जवानों में से एक को बचा लिया गया है। सात जवानों के शव नदी के निचले इलाकों से बरामद किए गए हैं। 15 जवानों के अलावा करीब 143 लोग अभी लापता हैं, जिन्हें ढूंढने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। राज्य सरकार ने इस तबाही को प्राकृतिक आपदा घोषित किया है।
सिक्किम में ल्होनक झील के ऊपर अचानक बादल फटने से तीस्ता नदी में बाढ़ आई और तबाही मचाती चली गई। बर्बादी और तबाही का आलम यह है कि बाढ़ ने तीस्ता नदी पर बने 1200 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाले चुंगथांग बांध को तोड़ दिया, जिसकी निवेश लागत क़रीब 25 हज़ार करोड़ रुपये है। आफत की बारिश ने मुंशीथांग (चुंगथांग के ऊपर) में सेना के गोला-बारूद डिपो को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। इसके चलते तीस्ता नदी का बेसिन हथियारों, गोला-बारूद और विस्फोटकों से भर गया है। मलबे और कीचड़ को साफ करना मुश्किल है। खासकर तौर पर नदी किनारे बसे घरों को विनाशकारी बाढ़ ने भीषण खतरे की ज़द में ला दिया है।
चुंगथांग बांध से पानी छोड़े जाने के कारण नीचे की ओर अचानक 15 से 20 फीट की ऊंचाई तक जल स्तर बढ़ गया। इससे सिंगताम के पास बारदांग में खड़े सेना के वाहन प्रभावित हो गए। जल विद्युत परियोजना स्थल के अलावा आवासीय कॉलोनी के कुछ हिस्सों से जुड़ने वाली सभी सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं हैं। सिक्किम राज्य आपदा विभाग की ओर से जारी बुलेटिन में कहा गया है कि उत्तरी सिक्किम में लोनाक झील के ऊपर बादल फटने से आई बाढ़ ने राज्य में 11 पक्के पुलों को नष्ट कर दिया है। सिर्फ मंगन ज़िले में आठ पुल बह गए हैं, जबकि नामची में दो और गंगटोक में एक पुल को विनाशकारी बाढ़ ने बर्बाद कर दिया है। आपदा से प्रभावित चार ज़िलों में पानी की पाइप लाइनें, सीवेज लाइनें और इसके अलावा कच्चे व कंक्रीट दोनों तरह के क़रीब 325 मकान नष्ट हो गए हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग के अलावा सिक्किम की तमाम सड़कें तहस-नहस हो गई हैं, जिसके चलते राजधानी गंगटोक से कई इलाक़ों का संपर्क टूटा हुआ है। गंगटोक से 135 किमी दूर स्थित लाचेन वैली की शाको चू लेक गंभीर हालत में है। जिला प्रशासन ने इमरजेंसी जारी करते हुए खतरे वाले इलाकों से लोगों को हटाना शुरू कर दिया है।
तबाही की निशान छोड़ गई तीस्ता
सिक्किम में तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ तबाही के ढेरों निशान छोड़ गई है। एक सप्ताह गुजर जाने के बावजूद मलबे में शवों की बरामदगी का सिलसिला जारी है। सिक्किम और पश्चिम बंगाल में अब तक 65 शव बरामद किए गए हैं। सिक्किम सरकार के मुताबिक, मंगन से चार शव और गंगटोक से छह शव और पाकयोंग जिले से भारतीय सेना के जवानों के सात शवों समेत 16 लाशें बरामद की गई हैं। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी और कूच बिहार स्थित तीस्ता नदी के बेसिन से कई लोगों के शव बरामद किए गए हैं। बरदांग इलाके से लापता हुए सेना के 23 जवानों में से सात के शव निचले इलाकों से बरामद किए गए हैं, जबकि एक को बचा लिया गया है। सिक्किम व उत्तर बंगाल में बाकी लापता जवानों की तलाश जारी है। सेना के सभी वाहनों को कीचड़ से निकाल लिया गया है।
सिक्किम और पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल ही में बाढ़ से हुई तबाही के ताज़ा आंकड़े जारी किए हैं। एसएसडीएमए के मुताबिक सिक्किम के चार जिलों मंगन, गंगटोक, पाक्योंग और नामची के 86 गांवों में रह रहे करीब 42 हज़ार से ज़्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। सर्वे के मुताबिक, 1,507 घरों को नुकसान पहुंचा है। अब तक 2,563 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। करीब 22 हज़ार से अधिक लोग सीधे बाढ़ की चपेट में आए, जिन्हें राहत शिविरों में ठहराया गया है और उन्हें ज़रूरी सामान मुहैया कराए गए हैं। विनाशकारी बाढ़ में मंगन के लाचेन और लाचुंग की सड़क बह जाने से 3220 से अधिक टूरिस्ट फंसे हुए थे, जिन्हें रेस्क्यू ऑपरेशन कर निकाला जा रहा है। उत्तरी सिक्किम में संचार सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। लापता लोगों को ढूंढने के लिए सर्च अभियान में खोजी कुत्तों की मदद ली जा रही है। साथ ही राडार का इस्तेमाल किया जा रहा है।
सेना संभाल रही मोर्चा
सेना के जवान दुर्गम इलाकों से गुज़रते हुए चुनौती चुनौतीपूर्ण अभियान चला रहे हैं। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता विंग कमांडर हिमांशु तिवारी कहते हैं, "भारतीय सेना पिछले एक हफ्ते से बाढ़ प्रभावित इलाकों में बचाव और राहत का काम कर रही है। कटे हुए इलाकों को जोड़ने का काम चल रहा है। उत्तरी सिक्किम के चाटेन, लाचेन, लाचुंग और थांगु के इलाकों में पर्यटकों और स्थानीय लोगों को हर संभव राहत पहुंचाई जा रही है। सेना स्थिति पर नज़र बनाए हुए है। जहां-तहां फंसे पर्यटकों को चिन्हित कर लिया गया है। उनके लिए भोजन, चिकित्सा, आवास आदि सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। एक हेल्पलाइन भी जारी की गई है जिसके ज़रिए पर्यटकों के परिजनों तक सूचना पहुंचाई जा रही है।"
"आईटीबीपी और इलाकाई लोगों की मदद से चुंगथांग को पेंगोंग से जोड़ने वाले लाचेन चू पर एक लॉग ब्रिज बनाया गया है। सेना, आईटीबीपी और बीआरओ के जवान चुंगथांग की ओर से इसी पुल से आ-जा रहे हैं। लाचुंग और लाचेन तक ओएफसी आधारित संचार बहाल करने के प्रयास चल रहे हैं, जिसके बाद बीएसएनएल के बीटीएस काम करना शुरू कर सकते हैं। उत्तरी सिक्किम में मोबाइल संचार सेवा बहाल करने की कोशिश तेज़ कर दी गई है। इस बीच सेना के चिकित्सकों ने करीब डेढ़ हज़ार से अधिक लोगों का उपचार किया है।"
बचाव-राहत कार्य में जुटे राज्यपाल
सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य अपने पूर्व निर्धारित दौरों को रद्द करते हुए तीस्ता नदी में आई बाढ़ से तबाह हुए इलाकों का दौरा कर रहे हैं। बाढ़ग्रस्त इलाकों में फंसे पर्यटकों को बचाने के लिए राज्यपाल देर रात तक हालात की समीक्षा कर रहे हैं। चार अक्टूबर 2023 को सिक्किम की राजधानी गंगटोक में बनारस के बाबतपुर स्थित सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल के 45 छात्र-छात्राओं का एक दल उफनाई तीस्ता नदी के बाढ़ में फंस गया। बनारस के स्कूली बच्चों के गंगटोक में होने की सूचना मिलते ही राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने उनसे मुलाकात की और उनका हालचाल जाना। साथ ही सभी को बनारस पहुंचाने में मदद की।
दूसरी ओर, बनारस के पत्रकारों के एक समूह के साथ 28 पर्यटकों का एक जत्था पश्चिम सिक्किम के पेलिंग शहर में फंस गया। राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य के निर्देश पर प्रशासनिक अफसरों ने पत्रकारों और पर्यटकों के दल को रेस्क्यू कर गंगटोक के होटल तक पहुंचाने में मदद की। सिक्किम भ्रमण पर निकले पत्रकारों के समूह में शामिल वाराणसी ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष सीबी तिवारी (राजकुमार) ने बताया, "सिक्किम में हमारा ट्रिप तीन से आठ अक्टूबर 2023 तक था। तीन अक्टूबर को हम न्यू जलपाईगुड़ी से शाम आठ बजे पेलिंग पहुंचे। उसी रात तेज़ बारिश ने समूचे सिक्किम का मंज़र ही बदल दिया। घनघोर बारिश के चलते चार अक्टूबर को हमें होटल से बाहर निकलने में डर लग रहा था। चारों ओर पानी ही पानी नजर आ रहा था। हम जहां रुके थे, उसके आसपास के सभी इलाके बाढ़ से घिर गए थे। कोई उपाय नहीं सूझा तो पत्रकारों के समूह ने सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य से संपर्क किया तो उन्होंने सभी को ढांढस बंधाया। बाद में राज्यपाल ने पेलिंग इलाके के जिलाधिकारी से वार्ता की। पत्रकारों के समूह को गंगटोक पहुंचाने के लिए डुगा के एसडीएम संतोष कुमार आले मौके पर पहुंचे। उनके प्रयास से हम सभी आगे बढ़े और गंगटोक के लिए रवाना हुए। हाईवे पूरी तरह टूट गया था और बाकी रास्ते भी तहस-नहस हो गए थे। किसी तरह से नामची तक पहुंचे। फिर कई घुमावदार पहाड़ी रास्तों से होकर चार अक्टूबर 2023 को देर रात हम सिक्किम की राजधानी गंगटोक पहुंचे।"
सिक्क़िम टूअर में शामिल वरिष्ठ पत्रकार नागेश्वर सिंह के मुताबिक, "राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने 28 लोगों के भोजन और आवास की व्यवस्था कर रखी थी। हालांकि गंगटोक में पहले से ही हमारा होटल बुक था, जहां हम ठहरे। अगले दिन राज्यपाल ने राजभवन में बनारस के पत्रकारों और उनके परिजनों से मुलाकात की और सभी का कुशलक्षेम जाना। उन्होंने गंगटोक के पर्यटन स्थलों पर घूमने के लिए आवश्यक संसाधन भी मुहैया कराया।"
राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने ‘न्यूज़क्लिक’ से बात करते हुए बताया, "विनाशकारी बाढ़ और प्राकृतिक आपदा के चलते गंगटोक से नाथू-ला दर्रा तक सड़क यात्रा रोक दी गई है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 14,150 फीट (4,200 मीटर) ऊपर स्थित संरक्षित क्षेत्र है। यहां कोई स्थायी मानव बस्ती नहीं है। नाथू-ला दर्रा भारत और चीन के सुरक्षा कर्मियों का मीटिंग पॉइंट भी है। वैध पहचान-पत्र और परमिट (पीएपी) के आधार पर सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही नाथु-ला दर्रे तक जाने की अनुमति दी जाती है। सिक्किम आने वाले पर्यटक यहां ज़रूर जाते हैं। नाथू-ला दर्रा तक जाने वाली सड़क सिक्किम को सीमा के दूसरी ओर चुम्बी वैली (तिब्बत) से जोड़ती है। रास्ते में त्सोमगो झील (चांगु झील) और बाबा मंदिर दर्शनीय स्थल हैं। नाथुला दर्रा भारत और चीन के बीच तीन व्यापार मार्गों में से एक है। साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इस मार्ग को बंद कर दिया गया था। साल 2006 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के साथ इसे फिर से शुरू किया गया। राज्य के सुरक्षा बलों को बाढ़ग्रस्त इलाकों में बचाव और राहत कार्य में लगाया गया है, जिसके चलते नाथु-ला यात्रा के लिए परमिट जारी नहीं किया जा रहा है।"
मुआवज़े का ऐलान
सिक्किम सरकार के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, अब तक 145 लोग लापता हैं और 25,000 से अधिक लोग इस आपदा से प्रभावित हुए हैं। खराब मौसम के चलते सेना के जवानों को हवाई रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने में दिक्कतें आ रही हैं। सार्वजनिक संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचा है। जिन लोगों के लापता होने की सूचना है उन्हें ढूंढने की कोशिशें जारी हैं। सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग और सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) के सभी विधायक बाढ़ से तबाह हुए हिमालयी इलाकों में बचाव, राहत और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष (सीएमआरएफ) में अपना एक महीने का वेतन देंगे। सिक्किम की 32 सदस्यीय विधानसभा में 19 विधायक एसकेएम के हैं।
मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने कहा है, "राज्य में अचानक आई बाढ़ में जान गंवाने वाले हर व्यक्ति के परिजनों को चार-चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि मुहैया कराई जाएगी। इसके अलावा राहत शिविरों में शरण लेने वाले लोगों को ज़रूरी सामान के अलावा दो-दो हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है। चुंगथांग में लोगों के भोजन की व्यवस्था के लिए गुरुद्वारे को राशन मुहैया कराया गया है।"
सिक्किम के विपक्षी दल एसडीएफ ने इस हादसे के लिए सूबे के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग पर आरोप लगाया है। एसडीएफ ने कहा है कि "चुंगथांग बांध के घटिया निर्माण के चलते सिक्किम में आफत और तबाही एक साथ आई। अब इस बांध को तोड़ दिया जाना चाहिए, अन्यथा आने वाले दिनों में स्थिति और भी ज़्यादा भयावह हो सकती है।"
कौन बोल रहा सच: वैज्ञानिक या सरकार?
सिक्किम सरकार का दावा है कि ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने की वजह से तीस्ता नदी उफान पर आ गई। हालांकि जलवायु वैज्ञानिक इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। दरअसल, ल्होनक झील समुद्र तल से करीब 5200 मीटर की ऊंचाई पर है। आमतौर पर 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर बारिश नहीं, बल्कि बर्फबारी होती है। मौसम विभाग की सूचना के मुताबिक, सितंबर महीने में सिक्किम में ज़्यादा गर्मी पड़ी, जिससे ग्लेशियर तेज़ी से पिघले और ल्होनक झील में पानी बढ़ गया। फिर मूसलधार बारिश और बादल फटने की घटना हुई। ल्होनक में क्षमता से ज़्यादा पानी भर जाने की वजह से झील टूट गई।
सेटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि 17 सितंबर 2023 को ल्होनक झील का आकार 162.7 हेक्टेयर था। अगले दिन 28 सितंबर को इसका आकार बढकर 167.5 हेक्टेयर हो गया। झील टूटने के बाद उसका आकार 60.4 हेक्टेयर हो गया है। ल्होनक झील का करीब सौ हेक्टेयर क्षेत्र का पानी 50 किलोमीटर नीचे तीस्ता नदी पर बने चुंगथांग हाइड्रो बांध तक आया और उसे तोड़ते हुए आगे बढ़ गया। झील का आकार इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की झील से छह गुना से ज़्यादा बताया जा रहा है। जिस रात यह हादसा हुआ उस रात समूचे सिक्किम में ज़बरदस्त बारिश हो रही थी। राज्य के मंगन, गंगटोक, पाक्योंग और नामची में 03 अक्टूबर 2023 की शाम बारिश का जो सिलसला शुरू हुआ, वह दो दिन तक थमा ही नहीं।
दो दशक पुराना चुंगथांग बांध
सिक्किम का चुंगथांग बांध करीब दो दशक पुराना था। 03 अक्टूबर, 2023 की रात 12 बजकर 40 मिनट पर बादल फटने के बाद तीस्ता नदी में आई बाढ़ ने इस कदर तबाही मचाई कि सिक्किम की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना (1200 मेगावाट) तीस्ता-तीन के 60 मीटर ऊंचे बांध को तहस-नहस कर दिया। झील के फटने से अचानक आई बाढ़ ने सिक्किम में तीस्ता नदी किनारे बने घरों से लोगों को निकलने का मौका तक नहीं दिया और सब कुछ तबाह हो गया। दरअसल, उत्तरी सिक्किम के दो ग्लेशियरों की तलहटी में बनी झीलें आगे चलकर तीस्ता नदी बनाती है। तीस्ता नदी सिक्किम से पश्चिम बंगाल होते हुए बांग्लादेश में जाती है।
चुंगथांग में तीस्ता नदी पर साल 2005 में तीस्ता-III हाइड्रो पावर परियोजना का निर्माण शुरू हुआ था। जल विद्युत परियोजना शुरू करने के लिए तीस्ता नदी पर जो बांध बनाया गया वह मंगन ज़िले के चुंगथांग और मंगन के बीच में है। साल 2017 में यहां बिजली का उत्पादन भी शुरू हो गया था। यह सिक्किम राज्य की सबसे बड़ी नदी जल विद्युत परियोजना थी।
सिक्किम में पूर्ववर्ती सरकार ने सूबे में दो दर्जन से अधिक जलविद्युत परियोजनाओं को स्वीकृति दी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सिक्किम और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय जलविद्युत विकास निगम की 47 परियोजनाएं तीस्ता नदी पर बनाई जा रही हैं, जिनमें नौ परियोजनाओं में विद्युत उत्पदन शुरू हो गया है। सिक्किम में 15 बांधों पर काम चल रहा है। तीस्ता नदी की तलहटी में 313 हिमनदी झीलें हैं, जिनसे हर वक्त खतरा बना रहता है। सिक्किम में चुंगथांग बांध के टूटने की घटना नई नहीं है। बाढ़ और भूस्खलन के चलते राज्य में आए दिन तबाही होती रही है। जल विद्युत परियोजनाओं पर हमेशा खतरे के बादल मंडराते रहते हैं। यहां बादल फटने से बांधों को नुकसान पहुंचने की आशंका हमेशा बनी रहती है।
बांध सुरक्षा संगठन के अध्ययन के मुताबिक साल 1960 और 2010 के बीच देश में 23 प्रमुख बांध ढह गए थे, जिससे बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि हुई थी। सर्वाधिक तबाही 1979 में गुजरात के मोरबी में मच्छु बांध बहने से हुई, जिसकी वजह से करीब 2,000 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। यह स्थिति तब है जब भारत के 293 बांध बेहद पुराने हो चुके हैं और उनकी मियाद पूरी हो चुकी है। ये बांध इसलिए भी ज़्यादा खतरनाक साबित हैं क्योंकि पुराने बांधों को बनाते समय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ठीक ढंग से नहीं समझा गया था।
भारत सरकार ने 30 दिसंबर, 2021 को बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 लागू किया था। इसके बाद देश में 29 'राज्य बांध सुरक्षा संगठन' बनाए गए जो केंद्र सरकार के अधीन काम करते हैं। मानसून आने से पहले और बाद में ये संगठन स्थिति का जायजा लेते हुए अलर्ट जारी करते हैं। सिक्किम में आई बाढ़ की तबाही ने बांध सुरक्षा संगठन की सक्रियता पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया है। विनाशकारी बाढ़ ने जिस तरह से सिक्किम में तबाही मचाई है, उसी तरह का मंज़र चार अक्टूबर 1968 को देखने को मिला था।
कितना सच है सीडब्ल्यूसी का दावा?
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लेशियल झील में बादल फटने से बाढ़ ने तबाही मचाई थी, लेकिन पर्यावरण वैज्ञानिक इस दावे सच नहीं मान रहे हैं। सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और सिक्किम के विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं जलवायु परिवर्तन विभाग का दावा है कि स्थिति नियंत्रण में है। सिक्किम के जाने-माने पर्यावरण वैज्ञानिक हिमांशु ठक्कर कहते हैं, "झीलों की निगरानी और बाढ़ से निपटने के लिए जो इंतज़ाम होना चाहिए था, वह नहीं था। आपदा के पूर्वानुमान के लिए स्थापित सीडब्ल्यूसी का स्टेशन लाचेन घाटी पर बने चुंगथाग बांध से फकत 20 किमी दूर था, लेकिन उसे एलर्ट जारी करने का वक्त ही नहीं मिला। सीडब्ल्यूसी ने अगर वक्त पर अलर्ट जारी किया होता तो न हालात भयावह होते और न ही जन-धन की हानि ज़्यादा होती।"
साल 2013 में उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद केंद्र सरकार ने ग्लेशियर पर बनी झीलों की सुरक्षा के बाबत हालात का अध्ययन करने के लिए जलवायु वैज्ञानिकों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में विख्यात ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. अनिल वी. कुलकर्णी को भी शामिल किया गया था। डॉ. कुलकर्णी भारतीय विज्ञान संस्थान, दिवेचा स्थित जलवायु परिवर्तन केंद्र के वैज्ञानिक हैं। उन्होंने सिक्किम के दक्षिणी लोनाक झील की स्थिति का लंबे समय तक अध्ययन किया और केंद्र व सिक्किम सरकार को संभावित खतरों से आगाह करते हुए त्वरित उपाय करने के बारे में जानकारी दी थी। डॉ. कुलकर्णी कहते हैं, "सिक्किम की बाढ़ से लगता है कि सरकार ने वैज्ञानिकों के सुझाए गए उपायों पर कोई ठोस काम नहीं किया।"
डॉ. कुलकर्णी के मुताबिक, "लोनाक झील भारत की एक महत्वपूर्ण झील है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण फैलती जा रही है। तापमान बढ़ने से ग्लेशियर सिकुड़ते जा रहे हैं। हिमालय की चोटियों के ग्लेशियर जब सिकुड़ते हैं, तो वह खाली जगह छोड़ देते हैं, जिससे झीलों का निर्माण होता है। ये झीलें समय के साथ बढ़ जाती है। साथ ही बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। कुछ ऐसा ही लोनाक झील में भी हुआ। साल 1990 में लोनाक झील में पानी भरना शुरू हुआ था। इसके बाद से झील का आकार बढ़ गया। लोनाक झील के अंदर बर्फ, मिट्टी और पत्थर होते हैं। जब बर्फ पिघलती है तो सारा मोरंग नीचे बह जाता है और नदी में बने बांधों को तोड़ते हुए तबाही की पटकथा लिखती चली जाती है।"
"ग्लेशियर पिघलने से हुआ हादसा"
प्रख्यात पर्यावरण वैज्ञानिक एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएययू) स्थित महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन प्रो. वीडी त्रिपाठी 'न्यूज़क्लिक' से कहते हैं, "सिक्किम में जिस स्थान पर यह हादसा हुआ वह पांच हज़ार मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित है और वहां बादल फटने की संभावना बहुत कम होती है। सिक्किम में तबाही मचाने वाली बाढ़ दक्षिण लोनाक झील के टूटने से आई है। लोनाक एक हिमनद झील है, जिसकी हालत पहले से ही काफ़ी नाज़ुक थी। पर्यावरण विशेषज्ञों ने पहले ही इस झील को खतरनाक बताया था। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने सिक्किम में विनाशकारी बाढ़ की आशंका पहले ही जता दी थी। हिमालय पर ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से सिक्किम राज्य में कई झीलें हैं जो खतरे के मुहाने पर हैं। खासतौर पर 14 झीलें ऐसी हैं जो काफी संवेदनशील हैं। इनमें लोनाक झील की स्थिति सबसे ज़्यादा खतरनाक थी।"
पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो.त्रिपाठी कहते हैं, "ग्लेशियर बर्फ का एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है जो उस इलाक़े के तापमान के बढ़ने पर पिघलने लगता है। लिहाजा इस प्रकार की बाढ़ आमतौर पर ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने या पिघले पानी के प्रवाह के कारण झील में पानी जमा होने के कारण होती है। ग्लेशियर झील पर जो भी बांध बने होते हैं उन्हें तोड़ती हुई चली जाती है। सिक्किम की घटना एक प्राकृतिक आपदा है। वातावरण गर्म हो रहा है। इस वजह से जितने भी ग्लेशियर हैं वो पिघलने लगे हैं। इससे झीलें पर पानी का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। चिंता की बात यह है कि जितनी संस्थाएं वहां निर्माण कार्य में लगी हैं वो आपदाओं को लगातार नज़रंदाज़ कर रही हैं।"
प्रो. त्रिपाठी कहते हैं, "हिमालय की तलहटी में बांध बनाने के लिए बड़ी परियोजना आरंभ करने से पहले जलवायु की गहन पड़ताल ज़रूरी है। आमतौर पर सभी बड़ी नदियों पर बांध 100-150 साल के लिए बनाए जाते हैं। ऐसे में जलवायु परिवर्तन को नज़रअंदाज़ किया जाना जोखिम भरा कदम होता है। ग्लेशियर की तलहटी में जोखिम वाली झीलों के नीचे बड़े बांध हमेशा तबाही का सबब बनते हैं। भारत के खतरनाक इलाकों में फिलहाल ऐसी प्लानिंग नहीं हो रही है। खासतौर पर उन इलाकों में जहां ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। ग्लेशियर की बेसिन में बनी झीलें वाटरबम की तरह काम करती हैं। हैरत की बात यह है कि केदारनाथ में हुई घटना से भी सीख नहीं ली गई। समुद्रतल से 4500 मीटर और उससे अधिक ऊंचाई पर बर्फबारी होती है, बारिश नहीं। करीब 5200 मीटर ऊंचाई पर ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने की घटना की जांच और ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए इको प्लानिंग ज़रूरी है। सरकार को चाहिए कि हिमालय की तलहगटी वाले इलाकों का अध्ययन कर आने वाले तीस-चालीस सालों के भविष्य को देखते हुए इको-प्लानिंग बनाए। हिमालय के बेसिन की झीलों पर सेटेलाइट के ज़रिए निगरानी रखने की पुख़्ता व्यवस्था की जानी चाहिए, तभी ऐसी आपदा से बचा जा सकता है।"
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं, इस प्राकृतिक आपदा के समय लेखक सिक्किम में मौजूद थे।)
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