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टी सेल और हर्ड इम्यूनिटी: हम इन पर कितना भरोसा कर सकते हैं?

टी सेल इम्यून अनुक्रिया (immune response) और इसके साथ जुड़े हर्ड इम्युनिटी (herd immunity) का ज़्यादा से ज़्यादा ऐसे व्यवस्थित अध्ययन करने की ज़रूरत है, जिसमें दुनिया भर के अलग-अलग भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थलों की आबादी का बड़ा समूह शामिल हो।
टी सेल और हर्ड इम्यूनिटी: हम इन पर कितना भरोसा कर सकते हैं?

मौजूदा महामारी का कारण बन रहे वायरस, SARS-CoV-2 के ख़िलाफ़ हमारे शरीर द्वारा बनाये जा रहे एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने की प्रक्रिया को कई मामलों में बहुत कम, यानी कुछ ही महीनों तक बने रहते हुए पाया गया है। इससे उसी वायरस से फिर से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि यह बहुत हैरतअंगेज़ बात नहीं हैक्योंकि SARS (2002-03 प्रकोप) के लिए उत्पादित एंटीबॉडी में भी यही ख़ासियत पायी गयी थी।

एंटीबॉडी को निष्क्रिय किये जाने की प्रक्रिया शरीर की इम्युनिटी की एक ऐसी स्वाभाविक अनुक्रिया है,जिससे हम किसी भी हमलावर रोगाणु से लड़ने की उम्मीद करते हैं। किसी भी तरह के रोगाणु के लिए शरीर एंटीबॉडीज बनाता हैकुछ लंबे समय तक सक्रिय रहते हैं,जबकि अन्य आसानी से कमज़ोर होकर ख़त्म हो सकते हैं।

लेकिनइस प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) में एंटीबॉडी कोई आख़िरी चीज़ नहीं होती है। SARS का व्यवस्थित अध्ययन हमें बताता है कि एंटीबॉडी के कमज़ोर होने के बाद भी कुछ लोग प्रतिरक्षा कोशिकाओं (immune cells) को बनाये रख सकते हैं, जो वायरस को प्रभावी रूप से चिह्नित कर सकते हैं। अगर ऐसा ही SARS में भी होता हैतो प्रतिरक्षा अनुक्रिया के समान तरीक़े और इसलिएसार्स-कोव-2 के लिए वैक्सीन की परिकल्पना भी मज़बूत हो सकती है।

एंटीबॉडीज ऐसे प्रोटीन होते हैं,जो वायरस पर हमला करते हैं और इसे कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकते हैं। लेकिन, जहां तक किसी रोगणु के ख़िलाफ़ प्रतिरक्षा प्रदान करने का सम्बन्ध है, तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा होता हैयानी प्रतिरक्षा कोशिकाओं की एक पूरी क़िस्म एक साथ आ जाती है। टी कोशिकायें और बी कोशिकायें इन कोशिकाओं की मंडली के ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं,जो किसी रोगाणु के ख़िलाफ़ किसी की लड़ाई की अनुक्रिया में मदद पहुंचाने का आधार बन जाती हैं। बी कोशिकायें रोगाणु विशिष्ट एंटीबॉडी को अस्तित्व में लाने में मदद करती हैंदूसरी ओर टी कोशिकाएं दो क़िस्मों की होती हैं- मारने वाली टी कोशिकायें (Killer T cells) और मददगार टी कोशिकायें(Helper T cells); मारने वाली टी कोशिकायें  इस वायरस को ख़त्म करना सीखती हैं,जबकि मददगार टी कोशिकायें इस पूरी प्रक्रिया को बनाये रखने में मदद करती हैं।

हाल ही में टी और बी कोशिकाओं पर हुए व्यवस्थित अध्ययन ने SARS-CoV-2 के ख़िलाफ़ प्रतिरक्षा प्रदान करने के तरीक़ों को लेकर कुछ पैटर्न को समाने लाना शुरू कर दिया है। ला जोला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इम्यूनोलॉजी के अल्बा ग्रिफ़ोनी के नेतृत्व में सेल नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि SARS-CoV-2 से संक्रमित होने वाले रोगियों में से ठीक हो जाने वाले सभी रोगियों ने मददगार टी कोशिकायें विकसित की थींजबकि उनमें से 70% में मारने वाली टी कोशिकायें थीं। जैसा कि उनके अध्यायन में पाया गया कि टी सेल अनुक्रिया का स्तर लगभग एंटीबॉडी की निष्क्रियता स्तरों के साथ जुड़ा हुआ होता है। ब्रिटेन और चीन के विश्वविद्यालयों द्वारा संयुक्त रूप से किये गये एक हालिया अध्ययन में भी इसी तरह के निष्कर्ष सामने आये हैंजिनके निष्कर्ष को प्रकाशन से पहले बायोरेक्सिव के सर्वर पर अपलोड किया गया था।

इस अध्ययन की सबसे दिलचस्प बात यह थी कि ला जोला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इम्यूनोलॉजी समूह ने टी कोशिकाओं की मौजूदगी को पायाजो उन लोगों में नोवल कोरोनवायरस को चिह्नित कर पाते हैं, जो कभी भी इस वायरस के संपर्क में नहीं रहे हैं। इस बारे में और भी अध्ययन हैं,जो बताते हैं कि नोवल कोरोनोवायरस के सम्पर्क में नहीं आने वाले 20-50% लोगों ने इसे लेकर महत्वपूर्ण रूप से संवेदनशीलता दिखायी थी।

अन्य अध्ययनों के साथ-साथ हालिया ला जोला अध्ययन से निकला निष्कर्ष यह है कि नोवल कोरोनोवायरस के संपर्क में नहीं आने वाले लोगों की अनुक्रियाशील टी कोशिकायें परस्पर संवेदनशीलता (cross reactive) के कारण हो सकती हैं। कई स्थानों पर मौसमी सर्दी और स्थानीय बुखार होते हैं, ,जो अन्य कोरोनावायरस के कारण होते हैं। इस प्रतिरक्षा प्रणाली ने इन वायरसों की पहचान विकसित कर ली है और अब वे अन्य कोरोनवारसों के विषक्त संक्रामक पदार्थ के प्रोटीन के साथ अपने पिछले अनुभव के आधार पर इस वायरस को भी पहचान सकते हैं। महत्वपूर्ण रूप से इस वायरस के संपर्क में नहीं आने वाले लोगों में टी सेल की संवेदनशीलता इस कोरोनोवायरस के स्पाइक प्रोटीन के ख़िलाफ़ भी पायी जाती हैजो विकसित किये जा रहे टीकों के बुनियादी मक़सद में से एक है। स्पाइक प्रोटीन वह बुनियाद है,जिसका इस्तेमाल यह वायरस कोशिका पर चिपकने के लिए करता है और आख़िरकार कोशिका में प्रवेश कर जाता है।

बायोरेक्सिव में अपलोड की गयी एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि संपर्क में नहीं आने वाले लोगों में क्रॉस रिएक्टिव टी सेल्स होते हैं। यह भी बताया जाता है कि SARS-CoV-2 के संपर्क में  आने वाले लोगों में टी सेल्स की व्यापक अनुक्रिया देखने को मिलती हैजिसका मतलब है कि टी कोशिकायें इस वायरस के विभिन्न क्षेत्रों के ख़िलाफ़ अनुक्रिया कर सकती हैं। उन्हें यह अनूठी टी सेल की अनुक्रिया तो मिलीलेकिन जिन लोगों ने महामारी के दौरान और कोविड-19 रोगियों के घर के सदस्यों के लिए रक्तदान किया थाउनमें कोई एंटीबॉडी नहीं मिली। अब तक कुछ ही ऐसे अध्ययन हैं,जो बताते हैं कि एंटीबॉडी की ग़ैर-मौजूदगी में भी टी सेल अनुक्रिया करते हैं।

ऐसे में यहां महत्वपूर्ण सवाल यह हो जाता है कि क्या ये सभी लोग वायरस से सुरक्षित हैं। फ़िलहाल, यह एक स्थापित तथ्य से बहुत दूर की बात है। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि उस मामले में क्या हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) को हासिल करने की दिशा में टी कोशिकाओं को लेकर एक उपाय के रूप में सोचा जा सकता है खैरयह भी स्थापित तथ्य से दूर की कौड़ी ही है।

हर्ड इम्यूनिटी क्या है?

हर्ड इम्यूनिटी वह स्थिति होती है, जब आबादी एक बड़ा हिस्सा एक निश्चित रोगाणु को लेकर प्रतिरक्षित हो जाती है और इस तरहयह स्थिति रोगाणुओं को आगे और लोगों को संक्रमित होने से रोकती है। हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने का सबसे असरदार तरीक़ा तो टीकाकरण ही होता हैलेकिन प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी भी तब पायी जा सकती है, जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा संक्रमित होने के बाद किसी बीमारी को लेकर प्रतिरक्षित हो जाता है।

माना जाता है कि कोविड-19 के लिए यह हर्ड इम्युनिटी क़रीब 60% आबादी के संक्रमित होने पर हासिल होती हैइसका मतलब यह है कि संक्रमित होने के बाद जब 60% आबादी प्रतिरक्षित हो जाती हैतब वायरस शायद आगे संक्रमित नहीं कर पाता है। यह गणना एक सूत्र से की जती हैयह सूत्र है: 1-1 / R0 । R0 मान प्राथमिक प्रजनन संख्या हैजो इस बात को दर्शाता है कि किसी एक संक्रमित व्यक्ति से कितने लोग संक्रमित होते है। मोटे तौर पर कोविड-19 के मामले में R0 मान 2.5 है।

हालांकिकोरोनावायरस से बुरी तरह से संक्रमित यूरोपीय देशों की कहानियां हमें यही बताती हैं कि 60% इम्युनिटी के ज़रूरी लक्ष्य को हासिल कर पाना हक़ीक़त से बहुत दूर की बात है। स्पेन जैसे देश, जहां इस बीमारी ने बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है, वहां भी महज़ 6%  थोड़ी ही ज़्यादा की आबादी इम्युनिटी हासिल कर पायी। इसके अलावेवैज्ञानिक समुदाय का एक ऐसा वर्ग भी हैजिसका विचार है कि हर्ड इम्यूनिटी शायद बिल्कुल भी हासिल नहीं की जा सकती है।

इसके अलावा साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि हर्ड इम्यूनिटी सीमा (60% का अनुमान) कम हो सकती हैजनसंख्या की विविधता को देखते हुए यह 43% तक हो सकती है।

लेकिनइस हर्ड इम्यूनिटी पर किये गये इन अध्ययनों के ज़्यादातर आकलन एंटीबॉडी की मौजूदगी पर आधारित हैं। टी सेल की इम्यून अनुक्रिया और इससे जुड़ी हर्ड इम्यूनिटी को लेकर ज़्य़ादा से ज़्यादा व्यवस्थित अध्ययन किये जाने की ज़रूरत है। संक्रमित लोगों में टी सेल की अनुक्रिया और कोरोनावायरस के कभी संपर्क में नहीं आने वाले लोगों में क्रॉस रिएक्टिव टी सेल अनुक्रिया,दोनों को देखते हुए ख़ास तौर पर कुछ निर्णायक निष्कर्ष निकालने के लिए इन अध्ययनों को दुनिया भर के विभिन्न भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थानों की आबादी के बड़े समूह को शामिल करना होगा।

 

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