तमिलनाडु का बेहतर बजट, पर कुछ उल्लेखनीय चूक
इस साल 20 मार्च को पेश किये गये तमिलनाडु राज्य बजट ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी। इसका एक कारण था राज्य में गृहिणियों के चुनिंदा वर्गों को हर महीने 1000 रुपये की प्रत्यक्ष नकद सहायता देने के लिए इसमें किए गए 7000 करोड़ रुपये का आवंटन। यह कदम, एक ही झटके में, राज्य को लैंगिक न्याय प्राप्त करने की दिशा में बहुत आगे ले जाता है। कई मीडिया टिप्पणीकारों ने इसे भारत में भविष्य की सार्वभौमिक बुनियादी आय (universal basic income) का अग्रदूत भी बताया है।
महिला सशक्तिकरण
एक अंतराल के बावजूद, एमके स्टालिन की डीएमके सरकार अपने चुनावी वायदे पर कायम रही और उसे पूरा भी किया। DMK शासन के राजनीतिक-सामाजिक समीकरण में मदद करने के साथ-साथ, इस कदम का प्रमुख विकासात्मक प्रभाव होना तय है। लैटिन अमेरिकी देशों में महिलाओं को प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण (direct cash transfers) के विषय में 2021 के एक अध्ययन में महिलाओं के पोषण की स्थिति में सुधार, बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य और परिवार में लड़कियों के लिए बेहतर शिक्षा के मामले में अतिरिक्त लाभ का पता चला था; निश्चित तौर पर इसका लाभ मिलता है यदि महिलाएं उन्हें हस्तांतरित नकद संसाधनों पर नियंत्रण बनाए रखें।
हालांकि तमिलनाडु ने 20वीं शताब्दी में राजनीतिक आंदोलनों के माध्यम से सामाजिक न्याय के मामले में अपनी पहचान बनाई थी, लेकिन दलितों, आदिवासियों और गरीब मेहनतकश वर्गों की महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिहाज़ से समान रूप से लाभ नीचे तक नहीं पहुंचा। उम्मीद है, यह कदम इस स्थिति में कुछ सुधार करेगा।
लेकिन तमिलनाडु में इस साल के बजट का यही एकमात्र मजबूत बिंदु नहीं है। कुछ अन्य सकारात्मक पक्ष भी हैं - जैसे राजकोषीय स्थिरता बनाए रखना और स्कूली बच्चों के लिए नाश्ता योजना। समस्याग्रस्त महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नई योजनाओं के साथ आने में भी कुछ प्रमुख भूल-चूक दिखाई पड़ती है। चूंकि बजट ने पहले ही व्यापक प्रशंसा प्राप्त कर ली है, इसलिए इस बेहतर बजट की और अधिक प्रशंसा करने के बजाय, आइए हम इन कमियों और आधे-अधूरे उपायों पर ध्यान केंद्रित करें।
यह सर्वविदित है कि तमिलनाडु औद्योगिक विकास के मामले में भारत के शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है। औद्योगीकरण के वर्तमान पैटर्न में संरचनात्मक विकृतियां क्या हैं और राज्य में औद्योगिक विकास में गुणात्मक छलांग लगाने के लिए विशेष रूप से बजट में किन ठोस कदमों की आवश्यकता है, यह समझना आवश्यक है।
औद्योगीकरण सफलता की कहानी में गड़बड़ियां
यह सच है कि तमिलनाडु टेस्ला के 10,000 करोड़ रुपये के इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग और फॉक्सकॉन की 1000 करोड़ रुपये की मोबाइल फोन इकाई जैसे कुछ बड़े निवेश को आकर्षित कर रहा है। डीएमके सरकार इस तरह के बड़े पैमाने वाले निवेश को आकर्षित कर पाने का जश्न मनाती है, पर तब वह मूकदर्शक बनी रही जब राज्य में नोकिया और फोर्ड जैसे बड़े उद्योग बंद हो गए थे। बंद उद्योगों के मुख्य प्लांट के मजदूर भले ही कंपनी से मुआवजा लेकर चले गए, सहायक उद्योगों के श्रमिकों को केवल कच्चा सौदा हाथ लगा। राज्य सरकार भी उनके बचाव में नहीं आई।
2022 में, तमिलनाडु राज्य देश में कुल एफडीआई (FDI) का केवल 5.10% आकर्षित कर चौथे स्थान पर रहा, जबकि पड़ोसी राज्य कर्नाटक ने 37.55%, महाराष्ट्र ने 26.26% और दिल्ली (केवल दिल्ली; समग्र रूप से एनसीटी क्षेत्र नहीं) ने एफडीआई प्रवाह का 13.93% प्राप्त किया था। इसलिए, हम कह सकते हैं कि तमिलनाडु के लिये संतोष की कोई वजह नहीं है।
इसके अलावा, औद्योगिक विकास की स्पष्ट रूप से सुनहरी तस्वीर कुछ संदेहास्पद क्षेत्रों (grey areas) को छिपाती है। कपड़ा उद्योग तमिलनाडु के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में से एक है। यदि चेन्नई को 'भारत के डेट्रायट' के रूप में जाना जाता है, तो कोयम्बटूर को परंपरागत रूप से 'भारत के मैनचेस्टर' के रूप में जाना जाता है। हाल ही में, तिरुप्पुर और कोयंबटूर के कपड़ा उद्योग ने न केवल चीन से, बल्कि बांग्लादेश, श्रीलंका और वियतनाम से भी सस्ते कपड़ा और परिधान आयात के खिलाफ संरक्षणवादी उपाय लागू करने के लिए केंद्र से गुहार लगाने नई दिल्ली तक प्रतिनिधिमंडल भेजा था। 40,000 करोड़ रुपये से अधिक के संयुक्त कारोबार वाले इन दो वस्त्र उद्योग शहरों (textile cities) की 560 से अधिक कपड़ा इकाइयों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक उद्योग मंडल इंडियन टेक्सप्रेनर्स फेडरेशन (ITF) ने जून 2019 में ही केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिख कर अधिक संरक्षणवाद हेतु हस्तक्षेप की गुहार लगाई थी। दूसरे शब्दों में, तमिलनाडु के कपड़ा उद्योगपति घरेलू भारतीय बाजार में बांग्लादेशी और श्रीलंकाई उद्योगपतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं।
भारतीय राज्यों में कपड़ा निर्यात के मामले में तमिलनाडु सबसे ऊपर है, यह एक छोटी सांत्वना ज़रूर है। तमिलनाडु ने 2019-20 में 6.766 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कपड़ा उत्पादों का निर्यात किया, जबकि बांग्लादेश, जिसे कभी एशिया का गरीब देश माना जाता था, ने 27.311 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कपड़ा निर्यात किया, वहीं वियतनाम का कपड़ा निर्यात 2022 में 37.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
कपड़ा संकट किया गया नज़रंदाज़
तिरुपुर, (कपड़ा उद्योग का शहर) से निर्यात, जो देश के कुल कपड़ा निर्यात का 54.2% है, 2019-20 में लगभग 25,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में 35,535 करोड़ रुपये हो गया, 2022-23 में तिरुपुर से निर्यात ने करीब 40 फीसदी की तेज गिरावट दर्ज किया। कुमारपालयम, पल्लीपालयम और करूर के पावरलूम बेल्ट में संकट और भी गंभीर था, 2022 में लाखों करघे शांत हो गए और लाखों श्रमिक बिना काम के रह गए। कारण था मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध की वजह से यार्न की कीमतों में बढ़ोतरी और पश्चिम में मंदी के चलते ऑर्डर्स में कमी। पर बजट में इस संकट के निवारण के लिए कोई प्रस्ताव नहीं है।
तमिलनाडु में वस्त्र उद्योग के अलावा ऑटोमोबाइल उद्योग प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है। राज्य में ऑटो उद्योगों पर भी नुकसान का खतरा है। इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में पूर्ण परिवर्तन के लिए केंद्र ने 2030 को लक्ष्य वर्ष बनाया है। लेकिन तमिलनाडु में ऑटो उद्योग मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन आधारित है और संक्रमण एक बड़ी उथल-पुथल का कारण बनेगा, जिससे लाखों श्रमिकों के लिए रोज़गार का नुकसान होगा। बजट में इस आसन्न संकट की कोई अनुभूति नहीं है।
कम आय, कम उत्पादकता का ट्रैप
2019-20 में, तमिलनाडु में देश के एमएसएमई (MSMEs) का 15.07% (राज्यों में सबसे अधिक हिस्सा) था, जिसमें 6.89 लाख पंजीकृत इकाइयां थीं, जिनमें 32,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश था और लगभग 40 लाख लोगों को रोजगार दिया गया था। पंजीकृत एमएसएमई के अलावा, राज्य में लाखों गैर-पंजीकृत अनौपचारिक इकाइयां भी हैं। यही तमिलनाडु की ताकत है और शायद यही राज्य अर्थव्यवस्था की कमजोरी भी। विशाल मानव संसाधन निम्न-प्रौद्योगिकी, निम्न-उत्पादकता और निम्न-आय वाले उद्यमों में फंसा हुआ है। ऐसी औद्योगिक संरचना वाला तमिलनाडु 'भारत का कारखाना' नहीं बल्कि 'भारत का कुटीर उद्योग' जैसा प्रतीत होता है!
उच्च वेतन व गुणवत्ता वाली नौकरियां देने वाले संगठित क्षेत्र में जाने के लिए श्रमिकों का तकनीकी उन्नयन और सहवर्ती कौशल विकास महत्वपूर्ण है। यह डिजिटल परिवर्तन के युग में और भी अधिक सच है, जहां विनिर्माण क्षेत्र में भी डिजिटलाइज़ेशन चलन में है, जहां सूक्ष्म इकाइयों को वित्त/ऋण और विपणन सहायता की आवश्यकता होती है। दोनों के लिए, उन्हें राज्य द्वारा सहायता की आवश्यकता है।
तमिलनाडु ने MSMEs के तकनीकी उन्नयन के लिए तमिलनाडु लघु उद्योग विकास निगम लिमिटेड (TANSIDCO) की स्थापना की है। हाल के दिनों में TANSIDCO का प्रदर्शन कैसा रहा है? वित्तीय वर्ष 2020-21 में, TANSIDCO ने कुल 14.85 करोड़ रुपये टर्म लोन के रूप में और 21.36 करोड़ रुपये पूंजी ऋण के रूप में राज्य में कार्यशील एसएमई को आवंटित किये। लेकिन यह लगभग 7 लाख पंजीकृत इकाइयों के आधुनिकीकरण के लिए एक नगण्य राशि है।
पर्याप्त आवंटन के संग नई पहल के अभाव में, निम्न-प्रौद्योगिकी इकाइयां राज्य में निष्क्रिय पड़ी रहेंगी और कम गुणवत्ता वाली नौकरियों में कम आय देती रहेंगी। बजट इस समस्या की भी पहचान क्यों नहीं करता?
अत्यधिक बेरोज़गारी और कौशल अभाव के सह-अस्तित्व का विरोधाभास
तमिलनाडु में, हम एक विरोधाभास देखते हैं। एक ओर, तमिलनाडु में कुशल श्रम और अकुशल श्रम दोनों की भारी कमी है। इसने मुख्य रूप से बिहार, पूर्वी यूपी से प्रवासी श्रमिकों के बड़े पैमाने पर आगमन की परिघटना को जन्म दिया है। संदिग्ध लोग नकली समाचार वीडियो बनाकर विपक्षी राजनीतिक ताकतों के बीच वैमनस्य पैदा करने के उद्देश्य से बिहार और तमिलनाडु के बीच दुश्मनी पैदा करने की कोशिश करते हैं।
दूसरी ओर, हम देखते हैं कि तमिलनाडु में 73,65,800 लोगों ने खुद को बेरोजगारी एक्सचेंजों में पंजीकृत कराया था, जिसमें 38.7 लाख महिलाएं शामिल थीं। यह इस बात के सबूत है कि तमिलनाडु की महिलाएं भारत में फैक्टरी रोज़गार का लगभग आधा हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, हम देखते हैं कि भारी मात्रा में कम वेतन वाले न्यूनतम रोजगार के साथ भीषण श्रम अभाव सह-अस्तित्व में हैं। बड़े पैमाने पर कौशल विकास कार्यक्रम चलाकर ही इस विरोधाभास को दूर किया जा सकता है।
केंद्र की कुशल विकास योजना के तहत तमिलनाडु में मार्च 2018 से 160 निजी भागीदारों के साथ संयुक्त रूप से संचालित 385 प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से केवल 39,150 उम्मीदवारों ने प्रशिक्षण पूरा किया है। हालांकि, अखिल भारतीय लक्ष्य के तहत 2020 तक 10 मिलियन युवाओं को प्रशिक्षित करना था! सकारात्मक पक्ष यह है कि बजट में 2877 करोड़ रुपये की लागत से 71 सरकारी आईटीआई (ITIs) और 2783 करोड़ रुपये की लागत से 54 सरकारी पॉलीटेक्निक के उन्नयन का प्रस्ताव है। यह एक अच्छी पहल है लेकिन सरकार के 71 आईटीआई और 54 पॉलिटेक्निक राज्य के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। इस खाई को पाटने के लिए कम से कम 300 और आईटीआई और पॉलिटेक्निक की आवश्यकता है।
सकारात्मक पहल के बारे में भी कुछ संदेह
DMK सरकार ने हर महिला 'पात्र' को 1000 रुपये मासिक भुगतान जैसी बड़ी महिला सशक्तिकरण योजना के बावजूद वित्तीय स्थिरता बनाए रखी है, यह सकारात्मक पक्ष है। तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने दावा किया कि 2 करोड़ महिलाओं की पहचान लाभार्थी 'पात्र' के रूप में की गई है। हालांकि, बजट में आवश्यक 24,000 करोड़ रुपये में से केवल 7000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि वे शेष राशि कैसे जुटाना चाहते हैं। साथ ही उम्मीद है कि 'पात्रता' मानदंड को इस तरह से परिभाषित नहीं किया जाएगा जिससे कि कई महिलाएं छूट जाएं।
वैसे भी, इस बजट में लक्षित तमिलनाडु का राजकोषीय घाटा GSDP (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) का केवल 3.25% है, हालांकि 15वें वित्त आयोग ने 3.5% तक राजकोषीय घाटे की अनुमति दी है। लगभग 7 लाख करोड़ रुपये का कुल बकाया ऋण GSDP का 25.63% है और वह भी निर्धारित सीमा के भीतर है। इसलिए, राज्य के पास अभी भी उधार लेने के लिए पर्याप्त अवसर है, हम आशा कर सकते हैं कि वे महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक धन जुटाएंगे, भले ही उन्हें उधार लेना पड़े।
सामाजिक क्षेत्र की अनिश्चितताएं
तमिलनाडु ने पिछले साल बहुत धूमधाम से एक नई स्वास्थ्य योजना की घोषणा की जिसका नाम इल्लम थेडी मारुथुवम (healthcare at doorstep) है। परंतु यह बजट मक्कलाई थेडी मारुथुवम (healthcare in search of people) की बात करता है। क्या यह केवल एक नाम परिवर्तन है या क्या मूल रूप से कल्पना की गई योजना अब छोटी हो गई है, यह स्पष्ट नहीं है। इस नए लेबल के तहत भी बजट केवल उद्योगों में होने वाले स्वास्थ्य जांच की बात करता है और यह स्पष्ट नहीं है कि यह ईएसआईसी (ESIC) द्वारा किए गए कार्यों का दोहराव है या नहीं।
तमिलनाडु में एक प्रमुख स्वास्थ्य योजना मुख्यमंत्री व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजना (CMCHS) है, जिसके तहत प्रत्येक कवर किए गए परिवार को प्रति वर्ष 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर मिल सकता है। यह दावा किया जाता है कि CMCHS ने जनवरी 2022 तक 1.37 करोड़ परिवारों को कवर किया था। इस योजना में 800 सरकारी अस्पतालों और 900 सूचीबद्ध निजी स्वास्थ्य केंद्रों के तहत 1090 प्रक्रियाओं और 8 अनुवर्ती प्रक्रियाओं और 52 नैदानिक प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है। देखने में, यह आयुष्मान भारत समेत सभी मौजूदा सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की तुलना में सबसे उन्नत माना जाता है। इसने कितना वितरित किया है, इस पर एक रिपोर्ट कार्ड देते हुए, 2023-24 के लिए तमिलनाडु के बजट में कहा गया है कि चालू वर्ष में (यानी, 2022-23 में) केवल 11.82 लाख रोगियों ने 993 करोड़ रुपये के इलाज का लाभ उठाया था, जो योजना की स्थापना के बाद से उच्चतम है। पर नामांकित लोगों में से 10% भी इसका लाभ क्यों नहीं उठा रहे हैं यह एक रहस्य है।
हालांकि तमिलनाडु में GSDP का कृषि हिस्सा केवल 13% है, राज्य में 51% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है (2011 में) और 65% ग्रामीण आबादी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यह अनुपात कम आय और कम उत्पादकता अभिशाप की ओर भी इशारा करता है और इस स्थिति को दूर करने के लिए बजट में कुछ न कुछ होना चाहिये था।
तमिलनाडु का बजट विभिन्नता का मिश्रण (Mixed Bag) है। अपने लाभ को एकीकृत करते हुए, राज्य को अपनी कमजोरियों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
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