उच्च शिक्षा में महिलाओं के लिए लक्षित समर्थन बेहद ज़रूरी
किसी भी राष्ट्र की समृद्धि एक तय कार्यबल पर निर्भर करती है। ज्ञान और कौशल से लैस व्यक्ति नए-नए विचारों को जन्म देते हैं, जिससे बेहतर नौकरी के अवसर, उत्पादकता में वृद्धि और अंततः आर्थिक विकास हो सकता है। शिक्षा इन तात्कालिक लाभ से परे है, क्योंकि यह समाज में सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव का ज़रिया बन जाती है। थियोडोर शुल्ट्ज़ (1961) द्वारा किए गए अभूतपूर्व शोध और उसके बाद के आर्थिक अध्ययनों से पता चला है कि शिक्षा केवल एक लागत नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से इसके ज़रिए भविष्य में मिलने वाले लाभ का एक निवेश है।
शिक्षा का सकारात्मक प्रभाव व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास से कहीं आगे निकल जाता है। और खासतौर पर महिलाओं को शिक्षित करने से महत्वपूर्ण सामाजिक लाभ मिलते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं की उच्च शिक्षा का संबंध कम जन्म दर, बेहतर बाल स्वास्थ्य और अगली पीढ़ी के लिए बेहतर शैक्षिक परिणामों से है। ये सभी कारक सामूहिक रूप से एक मजबूत अर्थव्यवस्था और अधिक समृद्ध समाज बनाने में योगदान करते हैं। इसलिए, शिक्षा में लैंगिक असमानता न केवल महिलाओं की क्षमता को सीमित करती है बल्कि समाज की पूरी की पूरी प्रगति में भी बाधा उत्पन्न करती है।
आर्थिक, सामाजिक और मानव विकास में उच्च शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका समझते हुए, इसे लिंग की परवाह किए बिना सभी नागरिकों के लिए सुलभ होना चाहिए। इस संदर्भ में, यह लेख भारत सरकार द्वारा प्रकाशित उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) रिपोर्ट के आंकड़ों का इस्तेमाल करके उच्च शिक्षा, विशेष रूप से स्नातकोत्तर (PG) और डॉक्टरेट (Ph.D.) कार्यक्रमों में लड़कियों के नामांकन की प्रवृत्ति पर ध्यान केंद्रित करता है। इस विश्लेषण का उद्देश्य उन्नत शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी की वर्तमान स्थिति को समझना है।
भारत में उच्च शिक्षा तक पहुंच
जीईआर (सकल नामांकन अनुपात) उच्च शिक्षा तक पहुंच का एक बेहतरीन माप है, जिसकी गणना उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिल हुए छात्रों के अनुपात के रूप में 18-23 आयु वर्ग की कुल आबादी के रूप में की जाती है। अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) की रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों के लिए जीईआर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जो 2012-13 में 22.7 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 28.3 फीसदी हो गया है।
इससे भी ज़्यादा उत्साहजनक बात यह है कि महिला छात्रों के लिए जीईआर में काफ़ी प्रगति हुई है, जो इसी अवधि के दौरान 20.1 फीसदी से बढ़कर 28.5 फीसदी हो गई है। यह प्रवृत्ति 2019-20 में एक ऐतिहासिक पल में तब दिखाई दी थी, जब भारत में पहली बार महिला छात्रों के लिए जीईआर पुरुषों से ज़्यादा हो गया था। निम्नलिखित हिस्से पिछले दशक में जीईआर रुझानों का अधिक विस्तार से विश्लेषण किया जाएगा।
उपर दिए गए आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले दशक में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नामांकन में अधिक वृद्धि हुई है। 2012-13 में, पुरुष जीईआर 22.7 फीसदी था और महिलाओं जीईआर 20.1 फीसदी था, जो कुल जीईआर 21.5 फीसदी था। 2021-22 तक, ये आंकड़े पुरुषों के लिए 28.3 फीसदी और महिलाओं के लिए 28.5 फीसदी तक बढ़ गए दिखते हैं, जो उच्च शिक्षा नामांकन में लैंगिक समानता का संकेत देते हैं। इस प्रकार, ऊपर उल्लिखित जीईआर डेटा समग्र रूप से एक सकारात्मक तस्वीर पेश करता है।
यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि उपर्युक्त जीईआर डेटा उच्च शिक्षा के कुल नामांकन को दिखाता है, लेकिन यह स्नातक, स्नातकोत्तर या पीएचडी कार्यक्रमों के बीच अंतर नहीं करता है। चूंकि इस लेख का फोकस पीजी और डॉक्टरेट नामांकन पर है, खासकर महिलाओं के मामले में इसलिए इसे अधिक सटीकता से नापने की जरूरत है। इसलिए, यह लेख भारत में उच्च शिक्षा में महिलाओं के नामांकन की स्थिति, विशेष रूप से पीजी और डॉक्टरेट स्तरों की गहराई से चर्चा करता है। नीचे दिया गया आंकड़ा 2012-13 से 2021-22 तक भारत में विभिन्न शैक्षिक स्तरों पर महिलाओं के नामांकन की प्रगति को दर्शाता है।
उपर दिए गए आंकड़ों भारत में उच्च शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं के नामांकन के मामले में एक आशाजनक तस्वीर नज़र आती है। 2012-2013 शैक्षणिक वर्ष की तुलना में उच्च शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं में लगभग 5 फीसदी (विशेष रूप से, 4.72 फीसदी) की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि उच्च शिक्षा में दाखिला पाने वाले सभी छात्रों में से लगभग आधी (47.82 फीसदी) महिलाएं हैं, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
यह रुझान विशेष रूप से पीजी कार्यक्रमों में उत्साहजनक है, जहां महिलाओं के नामांकन में 6.75 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। इससे पता चलता है कि यूजी डिग्री के बाद विशेष अध्ययन चुनने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। जबकि यूजी कार्यक्रमों में भी वृद्धि देखी गई है, यह 1.78 फीसदी की थोड़ी अधिक मामूली दर पर है।
डॉक्टरेट कार्यक्रमों में भी महिलाओं की भागीदारी में उछाल देखा जा रहा है, उनके दाखिले में 4.72 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह महिलाओं में शोध करने और अपने चुने हुए क्षेत्रों में सार्थक योगदान देने की बढ़ती महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। कुल मिलाकर, डेटा भारतीय उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता पाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रवृत्ति को उजागर करता है।
भारत में पाठ्यक्रमों में लिंग आधारित हिस्सेदारी
कुल छात्रों की तुलना में महिला छात्रों का समग्र अनुपात जानकारीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह पूरी कहानी नहीं बताता है। पाठ्यक्रम के अनुसार हुए दाखिले से मिले डेटा से हमें गहराई से जानने का मौका मिलता है, जिससे पता चलता है कि व्यक्तिगत कार्यक्रमों में कितनी महिलाओं का दाखिला हुआ है। यह उन क्षेत्रों को भी उजागर करता है जिनमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व मजबूत है और जिनमें सुधार की गुंजाइश है। नीचे दिया गया आंकड़ा पीएचडी और पीजी स्तर के पाठ्यक्रमों में कुल छात्रों में महिला छात्रों का अनुपात दर्शाता है।
2012-13 से 2021-22 तक के विश्लेषण से भारत में विभिन्न शैक्षणिक स्तरों और विषयों में महिलाओं के दाखिले में दिलचस्प पैटर्न का पता चलता है। 2021-22 में, पीजी स्तर पर सामाजिक विज्ञान सबसे आगे आता है, जिसमें महिला छात्रों का अनुपात सबसे अधिक (11.93 फीसदी) है, इसके बाद विज्ञान (9 फीसदी), भाषाएं (8.45 फीसदी), वाणिज्य (6.24 फीसदी) और प्रबंधन (5.97 फीसदी) हैं। हालांकि, पीएचडी स्तर पर, विज्ञान महिला छात्रों के उच्चतम प्रतिनिधित्व (10.68 फीसदी) के साथ उभरता नज़र आता है, इसके बाद इंजीनियरिंग/प्रौद्योगिकी (8.44 फीसदी) और सामाजिक विज्ञान (5.82 फीसदी) का स्थान आता है।
यह असमानता, महिला छात्रों के बीच शैक्षणिक प्राथमिकताओं और करियर आकांक्षाओं में आए गतिशील बदलावों को उजागर करती है। जबकि सामाजिक विज्ञान पीजी स्तर पर अधिक महिला छात्रों को आकर्षित करते हैं, विज्ञान और इंजीनियरिंग/प्रौद्योगिकी पीएचडी स्तर पर महिलाओं की अधिक भागीदारी देखते हैं, जो संभवतः करियर की महत्वाकांक्षाओं और शोध के अवसरों को दर्शाता है। उल्लेखनीय रूप से, 2012-13 से महिला पीएचडी छात्रों का कुल अनुपात 4.79 फीसदी बढ़ा है, जो शोध में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की ओर एक सकारात्मक रुझान को दर्शाता है।
2012-13 से 2021-22 के आंकड़ों की तुलना करें तो इंजीनियरिंग/टेक्नोलॉजी, चिकित्सा, कानून और प्रबंधन जैसे विषयों में महिला पीएचडी नामांकन में वृद्धि देखी गई है, जो पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में महिलाओं की अधिक भागीदारी का संकेत है। पीजी स्तर पर, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, वाणिज्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में भी महिला छात्रों के नामांकन में वृद्धि देखी गई है, जो संभवतः सामाजिक परिवर्तनों और करियर की संभावनाओं से प्रभावित है।
ये विपरीत रुझान भारत में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और करियर के अवसरों के उभरते परिदृश्य को रेखांकित करते हैं। संस्थागत नीतियां, शोध संभावनाएं और सहायता प्रणाली जैसे कारक इन प्रवृत्तियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो महिला छात्रों द्वारा अपनाए गए शैक्षिक और पेशेवर रास्ते को प्रभावित करते हैं। इन गतिशीलता को समझना शैक्षिक रणनीतियों को तैयार करने के लिए आवश्यक है जो विविध आकांक्षाओं के साथ मिलती हों और राष्ट्रीय विकास में प्रभावी रूप से योगदान करती हो।
निष्कर्ष
भारतीय उच्च शिक्षा में सकारात्मक रुझान देखने को मिल रहा है, जिसमें अधिक संख्या में महिलाएं दाखिला ले रही हैं, खास तौर पर पीएचडी स्तर पर यह सराहनीय है। पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों जैसे कानून, चिकित्सा और प्रबंधन में पीजी स्तर पर महिला छात्रों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि, ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें सुधार की जरूरत है। इंजीनियरिंग/प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों में महिलाओं के पीजी नामांकन में मामूली गिरावट देखी गई है, और सामाजिक विज्ञान ने अभी तक पीएचडी कार्यक्रमों में लैंगिक समानता हासिल नहीं की है।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग (STEM) में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना नवाचार के लिए महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों ने उच्च शिक्षा में लड़कियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए कई नीतियां लागू की हैं, जिनमें वित्तीय सहायता योजनाएं, वंचित लड़कियों के लिए छात्रवृत्तियां शामिल हैं। उदाहरण के लिए, केंद्र विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग (STEM) अनुसंधान और शिक्षा में महिलाओं का समर्थन करने के लिए "विज्ञान और इंजीनियरिंग में महिलाएं-किरण" और "विज्ञान ज्योति" जैसी पहलों के साथ इसका समाधान कर रहा है। इसके अतिरिक्त, वित्तीय सहायता कार्यक्रम और महिला विश्वविद्यालय पहुंच को सुविधाजनक बना रहे हैं और सहायक शिक्षण वातावरण बना रहे हैं।
हालांकि, इन कोशिशों के बावजूद, सामाजिक मानदंड और अन्य सामाजिक-आर्थिक कारक अभी भी लड़कियों को उच्च शिक्षा दाखिला लेने रोकते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति खराब है। इसलिए, सामाजिक मानदंडों को संबोधित करने और लक्षित सहायता प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है, जैसे कि मेंटरशिप कार्यक्रम, ताकि महिलाओं को विविध शैक्षिक और व्यावसायिक रास्तों को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त बनाया जा सके, खासकर इंजीनियरिंग/प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में जहां महिलाओं की भागीदारी कम है।
लेखिका, एल.एस. कॉलेज, मुजफ्फरपुर, बिहार में सहायक प्रोफेसर हैं। विचार निजी हैं।
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