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कश्मीर फिर निशाने पर

जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए जो नया परिवार पहचानपत्र प्रस्तावित किया गया है, उसका मकसद साफ़ है— नागरिकों को सरकारी निगरानी/जासूसी के दायरे में ले आना और उन पर सरकारी शिकंजे को और कसना।
jammu and kashmir
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : विकिमीडिया कॉमन्स

अगर गुजरात हिंदुत्व की प्रयोगशाला है, तो भारत के हिस्से वाला कश्मीर भी, दूसरे ढंग से, हिंदुत्व की प्रयोगशाला है—ज़्यादा आक्रामक सैनिक तैयारी के साथ। यह प्रक्रिया कई सालों से चल रही है।

केंद्र में हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से इस प्रक्रिया ने ख़ासा ज़ोर पकड़ लिया है।

केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए जो नया परिवार पहचानपत्र (आइडेंटिटी कार्ड) प्रस्तावित किया गया है, वह इसी दिशा में है।

इसका मक़सद है, जम्मू-कश्मीर की जनता को, ख़ासकर कश्मीर घाटी के बाशिंदों को (जो नब्बे प्रतिशत से ज़्यादा मुसलमान हैं), सरकारी निगरानी/जासूसी के दायरे में ले आना और उन पर सरकारी शिकंजे को और कसना।

ध्यान देने की बात है कि यह प्रस्तावित परिवार पहचानपत्र आधार कार्ड के अलावा होगा। आठ अंकों का यह पहचानपत्र परिवार की/के मुखिया के आधारकार्ड और बैंक खाते से जुड़ा होगा।

कुछ दिन पहले जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पहचानपत्र लागू करने की योजना की घोषणा की।

प्रस्तावित परिवार पहचानपत्र से हर परिवार और उसके सदस्यों की पहचान की जायेगी—परिवार की/के मुखिया के माध्यम से। पहचानपत्र में हर परिवार के सभी सदस्यों का ब्यौरा दर्ज़ होगा—नाम, उम्र, योग्यता, शादी, नौकरी, वग़ैरह। सरकार के पास एक-एक व्यक्ति से जुड़ी सारी जानकारियां होंगी।

सरकारी तौर पर बताया गया है कि परिवार पहचानपत्र से नागरिकों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ तुरंत और ‘पारदर्शी’ तरीक़े से मिलने लगेगा।

कहा गया है कि यह पहचानपत्र परिवार की रज़ामंदी से मिलेगा/दिया जायेगा। लेकिन जो परिवार इसके लिए रज़ामंद नहीं होंगे, वे कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं (जैसे, सरकारी राशन, वृद्ध/विधवा पेंशन, परिवार पेंशन, स्कॉलरशिप, आदि) से वंचित हो जायेंगे, क्योंकि ये सारी सुविधाएं परिवार पहचानपत्र से जुड़ी होंगी। ऐसी स्थिति में परिवार की सहमति/असहमति का कोई मतलब नहीं रह जाता।

इस परिवार पहचानपत्र के माध्यम से सरकार के पास एक-एक व्यक्ति के बारे में सारी जानकारियां होंगी। सरकार जो चाहे, इन जानकारियों का इस्तेमाल कर सकती है। कश्मीर जैसे इलाक़े में इन जानकारियों का क्या इस्तेमाल हो सकता है, इसकी कल्पना की जा सकती है।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने परिवार पहचानपत्र योजना की तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार कश्मीरी जनता को गहरे अविश्वास व संदेह की निगाह से देखती है।

महबूबा मुफ़्ती का कहना है कि यह योजना कश्मीरी जनता की जासूसी करने और उनकी ज़िंदगियों पर और कड़ा सरकारी नियंत्रण क़ायम करने का एक और औज़ार है। इसी तरह नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस योजना के मक़सद पर सवाल उठाया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मोहम्मद यूसुफ़ तारागामी ने भी इस पर चिंता जताई है।

कश्मीर में परिवार पहचान पत्र लागू करने का असल मक़सद क्या है, इस बारे में इन दलों और नेताओं के विचार से असहमत होना मुश्किल है।

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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