तिरछी नज़र: एक चिट्ठी चीफ जज खन्ना साब के नाम
खन्ना साब उच्चतम न्यायलय के चीफ जस्टिस बन गए हैं। मैं इस देश का एक अदना सा नागरिक हूँ। मैं चीफ जज जी से दरख्वास्त करना चाहता हूँ। इसलिए ये चिट्ठी, ये प्रार्थना पत्र, चीफ जज साब की खिदमत में पेश कर रहा हूँ।
आदरणीय चीफ जस्टिस खन्ना साब,
आप देश के इक्यावनवें (51) चीफ जस्टिस बने हैं, आप को बहुत बहुत बधाइयाँ। वो क्या कहते हैं, दिल से बधाई। मतलब हार्दिक बधाई। ये जो इक्यावन की संख्या होती है ना, बड़ी शुभ होती है। आप इक्यावनवें चीफ जज बने हैं इसलिए और भी अधिक बधाई।
आप नए नए चीफ जज बने हैं, अभी अनुभव नहीं है। मतलब अनुभव तो है पर देश के चीफ जज का नहीं है। वकालत का अनुभव है, जजी का अनुभव है पर चीफ जजी का नहीं है। और मुझे आजाद भारत के एक नागरिक के रूप में लम्बा अनुभव है। सच कहूँ तो आपकी उमर से भी ज्यादा अनुभव है। इसी अनुभव के नाते, आजाद देश के आजाद नागरिक के अनुभव के नाते, सतहत्तर (77) साल के अनुभव के नाते। क्योंकि, देश को आजाद हुए सतहत्तर साल ही तो हुए हैं ना। मेरा अनुभव सतहत्तर साल का ही हुआ ना। तो इसी सतहत्तर साल के नाते मैं आपको यह एक छोटा सा प्रार्थना पत्र लिख रहा हूँ।
देश के चीफ जज साब, पहली बात तो यह कि आप हिन्दू हों या मुसलमान, सिख हों या ईसाई, या फिर आपका धर्म कोई भी हो या आप धर्म को नहीं ही मानते हों, आप इसे अपने तक ही रखना। अपने आप तक रखना, अपने परिवार तक रखना। धार्मिक काम को व्यक्तिगत ही रखना, पारिवारिक ही रखना। मेरी समझ में हमारा संविधान भी यही चाहता है। पूजा के काम में किसी बाहर वाले को मत बुलाना। किसी फोटोजीवी को तो हरगिज नहीं। नहीं तो कोई फोटोजीवी पहुंच गया और फोटो या रील वायरल कर दी तो बहुत भद्द पिटेगी। आगे आप खुद समझदार हैं।
साब जी, दूसरी बात ये कि आप जो भी फैसला सुनाना, कानून की किताब पढ़ कर ही सुनाना। संविधान का अध्ययन कर के ही सुनाना। जब कभी कठिनाई आए, दुविधा हो, तो संविधान की शरण में जाना। भारतीय न्याय संहिता को पढ़ना। साब जी, एक बात और। अगर भगवान से, अल्लाह से, गॉड से पूछना हो तो हम किसी बड़े पुजारी, मौलवी या पादरी को ही आपकी सीट पर नहीं बैठा देते?
साब जी, एक बात और। आप ना, जो कहना वो करना। कहना कुछ और करना कुछ, बहुत ही गलत बात है। कथनी करनी एक ही होनी चाहिए। अब देखो, पिछले चीफ जज साब 'बेल रूल है' कहते रहे। और साब जी वे सचमुच में ही बहुत अच्छे थे। उन्होंने ऐसा कहा ही नहीं, किया भी। अर्नब के मामले में तो आधी रात को अदालत बिठा बेल दे दी। पर साब जी, यह 'बेल रूल है' वे सेमिनारों में ज्यादा बोले, अदालत में कम। साब जी, आप चाहे 'बेल रूल है' मत बोलना पर जो सेमिनार में बोलना, वही अदालत में करना। यह जो बोलना कुछ, करना कुछ, छोटी अदालत के जज के साथ तो चल सकता है, देश के चीफ जज को शोभा नहीं देता है।
देश के चीफ जज, जो अभी गए हैं ना, वे एक बहुत अच्छा काम कर गए हैं। न्याय की देवी की आंख की पट्टी खोल गए हैं। देवी वादी-प्रतिवादी दोनों को अच्छी तरह देख ले और फिर न्याय करे। कितनी सामयिक बात है। जहाँ सरकार जी लोगों को कपड़े देख कर पहचान लेते हों वहाँ न्याय की देवी आंख पर पट्टी बांधे रहें, कितना बड़ा अन्याय है। अब देवी सब कुछ देख सकती है। न्याय मांगने आया व्यक्ति कितना अमीर है या कितना गरीब? अम्बानी अडानी है या गंगू तेली या फिर भीखू किसान। देवी को दिख जाता है कि सवर्ण है या दलित या फिर उससे भी पिछड़ा? हिन्दू है या फिर किसी और धर्म का है? देवी अब सबकुछ देख कर न्याय कर सकेगी। अब अन्याय नहीं होगा!
साब जी, न्याय की देवी की आँखों की पट्टी खोल दी गई, यहाँ तक तो ठीक है। पर सरकार जी और उनके साथी, बड़े बड़े उद्योगपति, वे सभी जिनके पास सत्ता है या जिनके साथ सत्ता है, वे सभी तो चाहेंगे कि न्याय की देवी से आँखों की पट्टी तो छीन ही ली है, रीढ़ की हड्डी भी छीन ली जाये। वह उनके सामने खड़ी भी नहीं रह सके। उनके सामने रेंगे। नए चीफ जज जी, आप यह मत होने देना, यह आपसे गुजारिश है।
साब जी, मैं देश का नागरिक हूँ। आप भी देश के नागरिक हैं। आप देश के चीफ जज इसीलिए हैं कि आप देश के नागरिक हैं। आप देश के नागरिक पहले हैं फिर चीफ जज हैं। यह सच है कि देश के नागरिक एक सौ चालीस करोड़ हैं और देश के चीफ जज सिर्फ आप हैं। इसलिए भी आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। बस आपसे यही प्रार्थना है कि आप अपनी इस जिम्मेदारी को जिम्मेदारी से निभाएं।
आपका अपना
एक नागरिक
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक है।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।