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यूपी : कड़ाके की ठंड में ठिठुरता आम इंसान

पूर्वांचल में पिछले तीन-चार दिनों से कड़ाके की ठंड के बीच धुंध नकाब सरीखी हो गई है। कोहरे ने सूरज को भी अपने आगोश में छिपा लिया है। नतीजतन सड़कों पर जिंदगी सिमट-सी गई है।
cold wave

बनारस के विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल सारनाथ स्थित हवेलिया चौराहे के पास कड़ाके की ठंड से ठिठुरती 15 साल की शर्मीली के बदन पर सिर्फ एक टी शर्ट और पैजामा है। खुला आसमान और पेड़ के साये में थर-थर कांपते हुए रात गुजारनी पड़ रही है। रहने के लिए न कोई घर है और न ही आसपास कोई रैन बसेरा। शर्मीली का अपना कोई नहीं। न मां हैं और न ही पिता। साल 2021 में पिता की मौत हुई तो मां ने दूसरे से शादी रचा ली। इस छोटी सी लड़की के ऊपर दो छोटे भाइयों-धर्म (10) व बीरू (12) की जिम्मेदारी है। पास के स्कूल में उसने दाखिला भी करा रखा है ताकि उसे दोपहर में मिड डे मील का भोजन मिल सके।

रात ढलने पर शर्मीली सर्दी से बचने सड़क के किनारे चादर ओढ़कर सो जाती है। साथ ही उसके भाई भी। न्यूजक्लिक ने जानकारी ली तो उसने कहा, "बनारस की सरकार ने रैन बसेरा कहां बना रखा रखा है इसकी जानकारी नहीं है। सुबह जब गाड़ियों का रेल-पेल बढ़ जाता है तो चादर सड़क के किनारे लगी ग्रिल पर रखकर काम पर निकल जाती हूं। शादी-विवाह का सीजन शुरू होने पर औरतों के साथ खाना बनाने में सहयोग करती हूं। वहां से कुछ पैसे मिल जाते हैं तो किसी तरह से दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है। बाकी समय में लोगों के घरों में थोड़ा-बहुत काम कर लेती हूं।"

शर्मीली कहती है, "हमारे पिता जब जिंदा थे तक दिक्कत नहीं थी। साल 2021 में कोरोना के वक्त उनकी मौत हो गई। कुछ ही दिनों बाद हवेलिया चौराहे के पास हमारी झुग्गी-झोपड़ी सरकार ने उजाड़ दी। हमें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। दोबारा पालिथीन डालकर रहना शुरू किया तो फिर बुल्डोजर चल गया। तीसरी मर्तबा जी-20 के समय हमें खदेड़ा गया। तब से अब तक हम सड़क के किनारे ही किसी तरह से वक्त काट रहे हैं।"

कुछ ऐसी ही कहानी 17 वर्षीय करन की है। इसके पिता सिकंदर की मौत उस समय हो गई थी जब उसकी उम्र पांच साल की थी। बाद में मां हमें छोड़कर चली गई। उसने किसी और से शादी रचा ली। करन सीवर की सफाई का काम करता है। रहने के लिए जगह नहीं है तो वह भी सड़क के किनारे गुदड़ी-चादर लपेटकर खुले आसमान के नीचे सो जाता है। वह कहता है, "इस दुनिया में हमारा कोई अपना नहीं है। पहले हर साल रात में लोग कंबल दे दिया करते थे और इस साल तो कोई आया ही नहीं।"

पूर्वांचल में पिछले तीन-चार दिनों से कड़ाके की ठंड के बीच धुंध नकाब सरीखी हो गई है। कोहरे ने सूरज को भी अपने आगोश में छिपा लिया है। नतीजा, सड़कों पर जिंदगी सिमट-सी गई है। सर्द हवाओं ने गरीबों और वंचित तबके के लोगों की ख्वाहिशों को कुल्फी जैसा जमा दिया है। बेहद सर्द मौसम उन लोगों के अरमानों को झुलसा रहा है जो सालों से सड़कों पर जीवन बसर कर रहे हैं। खासतौर पर वो लोग जो हर रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं। उनके जीने का और कोई दूसरा साधन नहीं है। पिछले तीन दिनों से धुंध और कोहरा कहर बरपा रहा है। सर्दी का सितम ऐसा है कि बनारस ही नहीं, पूर्वांचल के सभी जिलों में जिंदगी सिमटकर रह गई है। कुछ लोग नर्म-नर्म रजाइयों और गद्दों में दुबक रहे तो आम आदमी सड़कों पर ठंडी हवाओं के झोंको से ठिठुरता नजर आ रहा है।

30 वर्षीय मधु भी खुले आसमान के नीचे जिंदगी गुजारने पर विवश है। सारनाथ में पहले इसकी भी झोपड़ी हुआ करती थी जिसे बुल्डोकर लगाकर सरकार ने ढहा दिया। मधु का पति राकेश किराये पर ई-रिक्शा चलता है। रहने को घर नहीं। बारिश और ठंड से बचने के लिए कभी-कभी वह एक सरकारी इमारत के बारजे के नीचे रात गुजारने के लिए चादर लपेटकर सो जाते हैं।

मधु कहती हैं, "कड़ाके की सर्दी व कोहरे के चलते धंधा जाम हो गया है और हमारी ख्वाहिशें भी। हम जहां भी जाते हैं, सरकार उजाड़ देती है। जी-20 में बाहर से आने वाले मेहमान हमारी बदहाली और बदनसीबी न देख सकें इसलिए हमारी झोपड़िया उजाड़ी गईं। हमें आज तक नहीं बताया गया कि सरकार ने गरीबों के लिए कहीं कोई रैन बसेरा बना रखा है। सारनाथ रेलवे स्टेशन के के पास गए तो वहां से पुलिस ने हमें खदेड़ दिया। समझ में यह नहीं आ रहा है कि सर्दी के मौसम में हम कहां जाएं?"

60 वर्षीय राजू सारनाथ स्थित म्युजियम परिसर में पिछले 18 सालों से झाड़ू लगाने का काम करते थे। उम्र ढलने लगी तो अफसरों ने यह कहकर उन्हें काम से हटा दिया कि अब उससे सफाई का काम नहीं हो पाता। वह कहते हैं, "हमारी जगह किसी नौजवान को नौकरी दे दी गई। हमें हमेशा के लिए हटा दिया गया। मेरी पत्नी का नाम डीजल बत्ती था वह भी कोरोना के समय चल बसी। 17 वर्षीय बेटा बादल झाड़ू लगाता है जिससे मुश्किल से दो वक्त भोजन मिल पाता है। कई बार तो सिर्फ पानी पीकर रात गुजारनी पड़ती है।"

62 वर्षीय हीरालाल बनारस के विश्वेश्वरगंज में ट्राली पर सामान ढोने का काम करते हैं। रहने के लिए कोई घर नहीं है। लाचारी में वो भी सड़क के किनारे ट्राली खड़ी कर सो जाते हैं। पूरी रात ठिठुरते हैं लेकिन कोई दूसरा चारा नहीं है। इन्हें यह पता नहीं है कि सरकार ने बेसहारा लोगों के लिए रैन-बसेरा बनवा रखा है। 30 वर्षीया हिना अपनी बहन रेशमा के साथ रहती है। झाड़ू-पोछा लगाती है। संजय मजूरी करते हैं। शाम को सड़क के किनारे ईंट का चूल्हा बनाकर लकड़ी पर भोजन पकाते हैं। ठंड हो या गर्मी, रात में सड़क के किनारे ही सो जाते हैं।

सारनाथ स्टेशन रोड के किनारे 40 लोगों का परिवार झोपड़ी डालकर रहता था। विकास के नाम पर इनकी झोपड़ियां उजाड़ दी गईं तो इनका पता भी छिन गया। इन्हीं में एक हैं गोविंद और शांति जो एक नाले के ऊपर पालिथीन डालकर कड़ाके की ठंड में रात गुजारने को विवश हैं। सारंगनाथ मंदिर पर भीख मांगने वाली मुच्चन कहती हैं, "जब तक आंखें थी, लोगों के घरों में काम करते रहे। रोशनी चली गई तो काम छूट गया। दान के पैसे से जिंदगी कट रही है। कड़ाके की ठंड ने हमारी दुश्वारियां बढ़ा दी है। गीता, मंगरू और फूलकली की जिंदगी सर्द रातों में सड़क के किनारे गुजर रही है।"

आम आदमी झेलता है ठंड की मार

ठंड की मार आम आदमी ही झेलता है। जैसे-जैसे बदलताहै मौसम का मिजाज, अपने आप धीमी होने लगती है गरीबों की धड़कन। केवल धड़कन ही नहीं, धंधा भी जाम होने लगता है। सोशल एक्टिविस्ट सौरभ सिंह कहते हैं, "धन कुबेरों के लिए सर्दी मन बहलाव का मौसम क्यों न हो लेकिन बनारस के हजारों रिक्शा चालक और सड़कों पर जीवनयापन करने वाले करीब पांच लाख लोग इन दिनों मुश्किल में हैं। इन्हें प्रकृति की मार झेलनी पड़ रही है। बनारस के भिखारियों को इस शहर से खदेड़ दिया गया है। जाड़े में इनकी जिंदगी और भी ज्यादा कष्टकर हो गई है। विकास के नाम पर बनारस में घाटों के आसपास की कई मलिन बस्तियां तोड़ी गईं। आजादी के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि गरीबों को यहां लावारिश हाल में छोड़ दिया गया है।''

सौरभ कहते हैं, "पिछले एक हफ्ते से शीतलहर चल रही है। ठंडी हवाओं के झोकों से आम आदमी जमता हुआ नजर आ रहा है। खुले आसमान के नीचे गुदड़ी लपेटकर लोग गुजारा कर ही रहे हैं। रैन बसेरों में बदइंतजामी गरीबों का सिर्फ इम्तिहान ही नहीं, जान भी ले रही है। कड़ाके की ठंड से ठिठुर कर मरने वाले लोगों की गिनती सरकार भी नहीं करती है। वाराणसी कैंट, सिटी, काशी और मंडुआडीह (बनारस) रेलवे स्टेशनों के बाहर रात में चले जाइए। खुले आसमान के नीचे ठिठुरते हुए रात गुजार रहे सैकड़ों लोग मिल जाएंगे। तमाम लोगों की मजबूरी यह होती है कि उन्हें गंतव्य तक जाने के लिए वाहन नहीं मिलते। सुबह वाहन जाते है। इसलिए रातें भी कांपते हुए गुजारनी पड़ती है। किसी को पता नहीं होता कि रैन बसेरे कहां बने हैं? "

कड़ाके की सर्द रात में पारा लुढ़कते हुए छह डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंच गया है। सिर पर प्लास्टिक और एक पतला सा कंबल ओढ़े 65 वर्षीय मंगरू रेलवे स्टेशन के बाहर सोया नजर आया। बात करने पर उसकी पीड़ा भी खुलकर सामने आ गई। रोडवेज बस स्टैंड और बनारस के गंगा घाटों के किनारे सर्द रात में ठिठुरते हुए तमाम लोग पड़े रहते हैं। ऐसे लोग प्रशासन के उस दावे की पोल खोल रहे हैं जिसमें जरूरतमंद लोगों को ठंड से बचाने के लिए सारे उपाए किए जाने की दलील दी जाती है।

बनारस में रिक्शा चालकों का हाल अभी अजीब है। 55 वर्षीय कल्लू कहते हैं, "हजूर पेट की आग और परिवार की जरूरतों को पूरी करने की मजबूरी है। इस वजह से घने कोहरे के बीच सड़कों पर रिक्शा वाले निकल आए हैं। पूरे दिन रिक्शा चलाने के बाद किराए के पैसे अदा करने के बाद जो पैसे बचते हैं उसी से दो वक्त की रोटी और अन्य जरूरी सामानों की खरीदारी करता हूं। अगर मैं किसी दिन रिक्शा नहीं चलाऊंगा तो उसका किराया भी नहीं भर पाऊंगा। ऐसे में रोटी का इंतजाम मुश्किल हो जाएगा। हमारे पास सिर छुपाने के लिए छत नहीं है। जब थककर अपने ठिकाने (फुटपाथ) पर पहुंचते हैं तो बनारस की सर्दी में रात में ठिठुरते हुए किसी तरह रात काटकर सुबह का इंतजार करते है"

बेसहारों को कौन देगा सहारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में काम-धंधे की तलाश में बड़ी तादाद में आकर लोग रहते है। किसी के पास कोई स्थायी रोजगार नहीं होता। कभी भीख मांगकर तो कभी मेहनत मजदूरी कर जीवनयापन करने वाले ऐसे बेसहारा और आवासहीन लोगों के सामने सर्द रात गुजारना सबसे बड़ी चुनौती होती है। दिन तो किसी तरह गुजर जाता है लेकिन रात इनके लिए बेहद कष्टकारी होती है। बहुत से लोग सरकारी भवनों के बरामदों और शेड के नीचे रात गुजारते नजर आते हैं। कभी किसी की नजर पड़ी तो फटा पुराना एकाध कंबल मिल जाता है।

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "ठंड का मौसम सरकारी नुमाइंदों के लिए सौगात लेकर आता है। राहत के नाम पर नगर निगम लाखों की लकड़ियां हर साल खरीदता है फिर भी आम आदमी ठंड से ठिठुरता हुआ दिखता है। गरीबों को ठंड से बचाने के लिए कागजों में आदेश जारी होते हैं लेकिन धरातल पर ठिठुरते हुए जरूरतमंद लोगों को राहत देने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं सालों से नहीं हुई। कहने को तो शहर में कई स्वयंसेवी संस्थाएं हैं लेकिन जरूरतमंद लोगों के लिए ये संस्थाएं कभी आगे नहीं आतीं। साधन संपन्न कुछ लोग कंबल बांटने का दिखावा करते हैं। कुछ संस्थाएं भी ऐसा ही करती हैं जिससे उनका नाम अफसरों और नेताओं तक पहुंच जाए। उनका निजी स्वार्थ पूरा होता रहे।"

पत्रकार विनय कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को आदेश दे रखा है कि सर्दियों में बेघर लोगों के लिए रैन बसेरों का पुख्ता इंतज़ाम किया जाए। इसके बावजूद मोदी के बनारस में कैंट रेलवे व बस स्टेशन समेत शहर के प्रमुख स्थानों पर अभी तक रैनबसेरा अथवा शेल्टर होम नहीं बनाए जा सके हैं। कहीं अलाव भी नहीं जल रहे हैं। इस वजह से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन ने जिन स्थानों पर रैन बसेरा बनवा रखा है वहां इंतजाम नाकाफी हैं। कहीं भी अलाव और पेयजल की व्यवस्था नहीं है। सिर्फ सोने व शौचालय की व्यवस्था है। ऐसे में ठंड व गलन में लोगों के लिए रात काटना मुश्किल हो जा रहा है। कैंट स्टेशन पर हमेशा यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन नगर निगम प्रशासन की ओर से यहां अलाव नहीं जलवाया जा रहा है। यहां यात्रियों को स्टेशन पर खुले में समय काटना पड़ रहा है। लोग कागज और गत्ते जलाकर रात गुजारने को मजबूर हैं।"

काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए निकले नियमित दर्शनार्थी वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "बनारस पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। बीजेपी के लोग दावा करते हैं कि इस शहर के लोगों की जिंदगी बदल गई है। लोग ज़्यादा और बेहतर खाने लगे हैं। इसलिए खाद्य पदार्थों की क़ीमतें बढ़ रही हैं। मुफ्त राशन योजना लोगों को काहिल बना रही है। सरकार के पास कोई ऐसी योजना नहीं है जो गरीबों को बेहतर जीवन दे सके। महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी क़ानून (मनरेगा) के अंतर्गत गांवों में लोगों को रोज़गार नहीं मिल पा रहा है। महंगाई का हाल देखिए। दाल, चावल से लेकर दूध और सब्जियों के दाम कहां से कहां पहुंच गए हैं?"

"विश्व गुरु बनने का ख्वाब दिखाने वालों ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि इस महंगाई में रोज़ कमाने वाले परिवार की थाली में क्या परोसा जाता होगा और कड़ाके की ठंड में उनकी रातें कैसे गुजरती होंगी? देश की 40 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है। 9.3 करोड़ लोग आज भी झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। 12.8 करोड़ लोगों साफ़ पानी नहीं मिलता और 70 लाख बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं। फिर भी दावा किया जा रहा है कि सरकार ने सभी को छत दे दिया है और भोजन भी।"

बदरंग हो रहा मौसम

सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, समूचा उत्तर प्रदेश कोहरे की घनी चादर में लिपटा हुआ है। धुंध और कोहरे के चलते मौसम विभाग ने सूबे के 29 जिलों में कोल्ड डे का अलर्ट जारी किया है। अबकी दिसंबर के अंत में लोगों को गलन भरी ठंड का अहसास हुआ है। सूबे के ज्यादातर इलाकों में घने कोहरे की मार झेलनी पड़ रही है। कम दृश्यता के चलते पिछले चौबीस घंटों में जगह-जगह हुए हादसों में 16 लोगों की जान चली गई है जबकि 24 से ज्यादा घायल हैं।

कोहरे के चलते गुरुवार को यातायात व्यवस्था इस कदर चरमराई कि लखनऊ और बनारस से आने-जाने वाली तमाम फ्लाइटें निरस्त करनी पड़ीं। कई फ्लाइटों को डायवर्ट करना पड़ा। ट्रेनों की चाल ऐसी बिगड़ी कि शताब्दी व तेजस जैसी वीआईपी ट्रेनों का संचालन रद्द करना पड़ा। लखनऊ से गुजरने वाली 40 से ज्यादा ट्रेनें एक से आठ घंटे तक की देरी से चलीं। सबसे ज्यादा मार दिल्ली, पंजाब व जम्मू रूट की ट्रेनों पर पड़ी है। लखनऊ समेत आसपास के कई इलाकों में तो दृश्यता शून्य तक पहुंच गई। लखनऊ, हरदोई, नजीबाबाद व हमीरपुर में पहली बार कोल्ड डे रहा।

आईएमडी के अनुसार, "ठंडा दिन" तब होता है जब न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम होता है और अधिकतम तापमान सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस कम होता है। एक "गंभीर" ठंडा दिन वह होता है जब अधिकतम तापमान सामान्य से कम से कम 6.5 डिग्री नीचे होता है। मैदानी इलाकों में यदि न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है तो आईएमडी शीत लहर की घोषणा करता है। शीत लहर की घोषणा तब भी की जाती है जब न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे हो और सामान्य से 4.5 डिग्री कम हो।

"गंभीर" शीतलहर तब होती है जब न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है या सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। जब कोहरे के कारण दृश्यता 0 से 50 मीटर के बीच हो जाती है तो उसे "बहुत घना" कोहरे, 51 से 200 मीटर के बीच दृश्यता को "घना" और 201 से 500 मीटर के बीच "मध्यम" कोहरे की श्रेणी में रखा जाता है। यदि दृश्यता 501 और 1,000 मीटर के बीच है तो इसे "उथला" माना जाएगा

थम गए विमान व ट्रेनों के पहिए

बनारस और प्रयागराज में भी ट्रेन के पहिए जैसे थम गए। विमान सेवा पूरी तरह से बाधित है। प्रयागराज में बेंगलुरु और मुंबई के विमान रनवे पर ही खड़े रहे। एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से विमानों के उड़ान की अनुमति नहीं मिली। गुरुवार को भोपाल से प्रयागराज आ रही विमान को प्रयागराज एयरपोर्ट पर उतरने की अनुमति नहीं मिली जिससे कुछ देर तक विमान हवा में उड़ता रहा और फिर उसे बाद में वापस भेजा गया। यही स्थिति भुवनेश्वर से आने वाले विमान के साथ भी हुई। मौसम में खराबी के चलते करीब 20 फ्लाइटें निरस्त कर दी गई हैं। वंदेभारत व हमसफर जैसी ट्रेनें 10 से 17 घंटे की देरी से पहुंच रही हैं। कोहरे के चलते लगभग सभी ट्रेनें कई घंटे विलंब से चल रही हैं। कुछ ट्रेनें दूसरे दिन पहुंच रही हैं।

काफी घने कोहरे के चलते बनारस में विजिबिलिटी शून्य है। सड़कों पर एंबुलेंस और स्कूल बसों के अलावा गाड़ियां नहीं दिख रहीं हैं। बच्चे ठंड से कंपकंपाते हुए आते-जाते दिख रहे हैं। घाटों पर भी काफी सन्नाटा पसरा हुआ है। बनारस प्रशासन ने धुंध और कोहरे के चलते नौकायन पर रोक लगा दी है। दस दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस वंदेभारत एक्सप्रेस ट्रेन को लोकार्पित किया था वह छह से आठ घंटे विलंब से चल रही हैं। भयानक धुंध के चलते इस ट्रेन की स्पीड120 किमी प्रति घंटा से घटकर 20 किलोमीटर हो गई है। बाकी दूसरी सभी ट्रेने भी घंटों विलंब से चल रही हैं।

मौसम विभाग के अनुसार, वाराणसी में अगले तीन-चार दिनों तक काफी घना कोहरा होने का अनुमान है। ऐसे में तापमान और ज्यादा नीचे जा सकता है। मौसम विभाग ने उत्तर प्रदेश में कड़ाके की ठंड और घने कोहरे के चलते 29 जिलों और आसपास के इलाकों में चेतावनी जारी की है। कहा गया है कि बहराइच, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, कासगंज, एटा, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, संभल, बदायूं, जालौन, हमीरपुर, महोबा और झांसी में दिन में लोगों को भारी गलन महसूस होगी। हादसों में गोंडा, सुल्तानपुर, प्रयागराज में दो-दो, रायबरेली, फिरोजाबाद, गाजियाबाद और सोनभद्र में एक-एक की मौत हो गई। आगरा में खेत में काम कर रहे एक किसान ने ठंड से दम तोड़ दिया। फिलहाल ठंड और कोहरे का सितम जारी है और समाज का वंचित तबका शीतलहर में झेलने को मजबूर है।

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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