यूपी: निशाने पर मदरसे, बार-बार जांच, मानदेय भी रुका, लखनऊ में प्रदर्शन
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मदरसों में पढने वाले छात्र और पढ़ाने वाले अध्यापक दोनों संकट का सामना कर रहे हैं। मदरसा परिषद की परीक्षाओं से पहले जाँच से परीक्षाएं, जिसमें क़रीब एक लाख 30 हज़ार छात्र शामिल होंगे, प्रभावित होने की आशंका है। इसके अलावा लगभग 21,000 से अधिक आधुनिक मदरसा शिक्षकों को पिछले 6 वर्षों से मानदेय मिला है।
आज 18 दिसम्बर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के मौक़े पर सरकार की मदरसों के प्रति उदासीनता का दर्द उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद और आधुनिक मदरसा शिक्षकों से छलकता नज़र आया। बोर्ड ने सरकार को एक पत्र लिखाकर कहा कि जाँच के लिए कम से कम परीक्षाएं समाप्त होने का इंतज़ार किया जाये। वहीं आधुनिक मदरसा शिक्षकों ने कहना है अगर आम चुनाव 2024 तक उनका बाक़ी मानदेय नहीं मिला तो वह अध्यापन कार्य त्यागने पर मजबूर होंगे।
उत्तर प्रदेश में 2017 में जब से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार सत्ता में आई है तब से चौथी बार मदरसों की जाँच होने जा रही है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार से मिलने वाला मानदेय रुकने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने आधुनिक मदरसा शिक्षकों का “अतिरिक्त राज्यांश” रोक भी दिया है।
प्रदेश के मदरसा परिषद ने सरकार को एक पत्र लिखकर कहा है कि अधिकारी अनुमति के बिना मदरसों की जाँच कर उत्पीड़न कर रहे हैं। परिषद के चेयरमैन डॉ. इफ़्तेख़ार अहमद जावेद ने अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ़ व हज मंत्री, धर्मपाल सिंह से कहा है कि जाँच को लेकर स्पष्ट आदेश जारी नहीं होने के कारण “असमंजस” की स्थिति है और परीक्षाओं से पहले मदरसों में अफरा तफरी का महौल पैदा हो गया है।
डॉ. जावेद का कहना है की मदरसों का डाटा मदरसा शिक्षा के “पोर्टल” पर उपलब्ध है और मदरसा परिषद की परीक्षाएं 13 फ़रवरी से होनी हैं, ऐसे में अगर जाँच करना है आवश्यक है तो वार्षिक परीक्षाओं के बाद की जाये। उनका कहना हो यह चौथी बार जाँच की बात सामने आई है, लेकिन परीक्षाओं को देखते हुए इसको स्थगित करना आवश्यक है।
डॉ. जावेद ने बताया कि परिषद से अनुमति लिए बगैर ही, रजिस्ट्रार मदरसा परिषद के पत्र पर निदेशक, अल्पसंख्यक कल्याण के आदेश से, अनुदानित और ग़ैर-अनुदानित मदरसों की जांच की कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई।
परिषद के चेयरमैन डॉ. इफ़्तेख़ार जावेद ने संबंधित मंत्री को 5 दिसम्बर को एक पत्र संख्या 2884/म.शि.प./2023 को पत्र भेजा था। डॉ. इफ़्तेख़ार जावेद के अनुसार मंत्री, धर्मपाल सिंह ने उनके पत्र को संज्ञान में लेते हुए विभागीय उच्च अधिकारियों के साथ बैठक में जांच की कार्यवाही को रोकने हेतु “मौखिक” आदेश जारी किए हैं।
लेकिन आदेश के बावजूद विभागीय उच्च अधिकारियों द्वारा जांच की कार्यवाही को रोकने हेतु जनपदों को कोई आदेश जारी नहीं किए गए। परिषद के चेयरमैन मानते हैं कि जिसके कारण संपूर्ण प्रदेश के जनपदीय अधिकारियों के बीच में असमंजस और असहजता की स्थिति पैदा हो गई है।
डॉ. इफ़्तेख़ार जावेद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके संज्ञान में आया है कि अनेकों जनपदों में जांच की कार्यवाही बड़ी तेजी से प्रारंभ कर दी गई है। जबकि मदरसा शिक्षा परिषद की परीक्षा समिति में लिए गए निर्णय के अनुसार 13 फ़रवरी 2024, से परिषद की वार्षिक परीक्षाएं प्रारंभ हो जाएंगी।
उनके अनुसार इस समय बोर्ड की परीक्षाओं हेतु छात्रों के फॉर्म भरने का कार्य तेजी से चल रहा है और छात्र-छात्राएं तथा शिक्षक परीक्षा की तैयारी में व्यस्त हैं। अभी तक एक लाख 30 हज़ार छात्र फॉर्म भर भी चुके हैं। वह आगे कहते हैं कि ऐसे समय में की जांच से मदरसों के प्रबंधन में अनावश्यक तनाव और दबाव पैदा हो गया है, और जिससे परीक्षा फॉर्म भरने तथा परीक्षा की तैयारी प्रभावित हो रही हैं।
उल्लेखनीय है कि 2017 से लेकर अब तक अनुदानित/ ग़ैर अनुदानित मदरसों की जांच तीन बार हो चुकी है। मदरसों तथा उनमें कार्यरत समस्त शिक्षक/ कर्मचारियों से संबंधित समस्त रिकॉर्ड व पत्राजात परिषद के पोर्टल पर अपलोड हैं। डॉ. इफ़्तेख़ार जावेद का कहना है कि इसके अतिरिक्त यदि उनकी चौथी बार भी जांच कराया जाना आवश्यक है तो भी इस समय जांच की कार्यवाही को स्थगित करके, परीक्षा के पश्चात जांच करा ली जाए। यह परीक्षा की दृष्टि से छात्रों हित में यह बेहतर होगा।
बता दें कि वर्ष 2022 में मदरसा परिषद के प्रस्ताव पर शासन द्वारा प्रदेश स्थित ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराया गया। सर्वे में यह पाया गया कि प्रदेश में ऐसे 8449 मदरसे संचालित हो रहे हैं जो उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद या किसी विभाग से मान्यता प्राप्त नहीं हैं।
सर्वे की रिपोर्ट 15 नवंबर, 2023 को आए एक साल पूरे हो गया है। आपको यह भी बता दें कि लेकिन परिषद द्वारा विगत आठ वर्षों से प्रदेश के किसी भी मदरसे को मान्यता प्रदान नहीं की गयी है।
ऐसी स्थिति में डॉ. इफ़्तेख़ार जावेद भी मानते है कि ग़ैर मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे अनुमानत साढ़े 7 लाख बच्चों का भविष्य अंधेरे में है। इन मदरसों में 90-95 प्रतिशत बच्चे पसमांदा समाज के हैं। जिसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी निरंतर अपने पक्ष में लेने का प्रयास कर रही है। इस जाँच का “नकारात्मक” असर यह पड़ा कि सामाज का बड़ा हिस्सा “ग़ैर-मान्यता प्राप्त” मदरसों को “अवैध” भी कहने लगा है।
उधर केंद्र सरकार मदरसों व अल्पसंख्यकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीईएमएम) के अंतर्गत काम करने वाले 21546 मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों के अनुबंधन का न नवीनीकरण हुआ है और न विगत करीब 6 वर्षों से उनके बकाया वेतन का भुगतान हुआ। अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पर इन शिक्षकों का कहना है कि इस बीच उन्होंने प्रदेश सरकार सरकार द्वारा पत्र भेज कर भारत सरकार से केन्द्रांश भुगतान की मांग की है लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नही हुई है।
यह शिक्षक जो मदरसों में इंग्लिश, हिंदी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और कंप्यूटर जैसे विषय पढ़ाते हैं, मांग कर रहे हैं कि मदरसा आधुनिकीकरण योजना का तत्काल नवीनीकरण कराते हुए मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों का 2017-2018 से लेकर अब तक का समस्त बकाया वेतन का भुगतान तत्काल कराया जाये। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षकों को दिये जाने वाले “अतिरिक्त राज्यांश” की जून 2023 से बकाया धनराशि को शिक्षकों को तत्काल जारी किया जाये।
आज राजधानी लखनऊ के ईको गार्डन में आपनी माँगों को लेकर प्रदर्शन करने राज्य भर से आये शिक्षकों ने बताया कि मदरसा आधुनिकीकरण योजना की गाइडलाइन के अनुसार शिक्षकों का मनोदय केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मिलकर क़रीब 60:40 अनुपात में क्रमशः दिया जाता था।
मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक के प्रदेश अध्यक्ष, अशरफ अली उर्फ सिकंदर बाबा ने न्यूज़क्लिक से कहा कि “यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ जहाँ प्रधानमंत्री मोदी जी ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास सबका प्रयास’ की बात करते हैं, लेकिन वहीं उनका ही अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय मदरसों में बच्चों को शिक्षा देने वाले उत्तर प्रदेश के 21546 मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों को, पिछले छः सालों से अधिक समय से मानदेय/वेतन नहीं दिया है। जिससे हजारों की संख्या में परिवार आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। इस समय इस विभाग की मंत्री स्मृति ईरानी हैं।
सिकंदर दावा करते हैं मनोदय के इस आन्दोलन में शामिल क़रीब 200 शिक्षकों की पिछले 6 वर्षों में मौत हो चुकी है।
मुस्लिम मामलों के जानकार कहते हैं कि ऐसा लगता है की बीजेपी का पसमांदा मुसलमानों से स्नेह केवल एक ढकोसला है।
पत्रकार हुसैन अफसर कहते हैं कि मदरसों के मुद्दों को सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए है, क्योंकि इस से लाखों आर्थिक कमज़ोर बच्चो का भविष्य और हजारों अध्यापकों की जीविका जुडी है। उन्होंने कहा कि लगातार मदरसों की जाँच और अध्यापकों को मनोदय न देना बीजेपी सरकार की मदरसों के प्रति उदासीनता को दिखता है।
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