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WFI की सदस्यता रद्द: इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में न तिरंगा होगा, न राष्ट्रगान, कौन ज़िम्मेदार?

सियासत में फंसकर आख़ि‍रकार भारतीय कुश्ती संघ का बेड़ा गर्क हो ही गया। यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने इसे बैन कर दिया है। ऐसे में अब खिलाड़ियों को बग़ैर तिरंगा प्रतियोगिताओं में उतरना पड़ेगा।
WFI

जिस बात का डर था आख़िर वही हुआ। एक यौन शोषण के आरोपी को बचाने में हमारी सरकार इतनी मशगूल हो गई कि भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव की गुत्थी सुलझा ही नहीं पाई। इस उलझन का नतीजा ये निकला कि यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने भारतीय कुश्ती संघ की सदस्यता ही रद्द कर दी।

जिसके बाद मौजूदा सरकार से ये सवाल पूछना बहुत ज़रूरी हो जाता है कि इतनी भी क्या सियासत करना जो बात तिरंगे तक आ जाए। अब हमारे पहलवान ‘न्यूट्रल एथलीट’ बनकर टूर्नामेंट में शामिल हो सकेंगे यानी उनके सिर पर भारतीय तिरंगा नहीं लहराएगा।

दरअसल भारतीय पहलवान 16 से 22 सितंबर के बीच सर्बिया में होने वाली पुरुषों की वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने वाले हैं लेकिन विडंबना है कि ये पहलवान भारतीय झंडे के तले नहीं खेल पाएंगे। भारतीय पहलवानों को इस ओलिंपिक-क्वालिफाइंग चैंपियनशिप में यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग के बैनर तले ही खेलना होगा। इन्हें ‘ऑथोराइज्ड न्यूट्रल एथलीट' की कैटेगरी में गिना जाएगा।

इस बहुत बड़ी लापरवाही के बाद सरकार से सवाल इसलिए भी वाज़िब हैं क्योंकि यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग की ओर से भारतीय कुश्ती संघ के नाम 30 मई को ही पत्र भेज दिया गया था, जिसमें साफ शब्दों में ये कहा गया था कि अगले 45 दिन यानी 15 जुलाई तक भारतीय कुश्ती संघ का चुनाव नहीं किया गया तो सदस्यता सस्पेंड कर दी जाएगी।

इस पूरे मसले पर बात करने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि ऑथोराइज़्ड न्यूट्रल एथटील कैटेगरी क्या होती है?

ये कैटेगरी तब अप्लाई होती है, जब किसी देश में चल रहे किसी विवाद के बीच खिलाड़ी इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। इस कैटेगरी के अप्लाई हो जाने के बाद खिलाड़ी अपने देश के झंडे के तले नहीं बल्कि प्रतियोगिता कराने वाली इंटरनेशनल संस्था के बैनर तले खेलते हैं।

सिर्फ इतना ही नहीं, प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले न्यूट्रल एथलीट कैटेगरी के खिलाड़ी अगर कोई पदक जीतते हैं, तो ये उनके देश के मेडल्स में काउंट नहीं किया जाएगा। इसके अलावा मेडल जीतने की सूरत में होने वाली अवॉर्ड सेरेमनी में उनके देश का राष्ट्रगान भी नहीं बजाया जाता है।

दरअसल ऐसे किस्सा पहले भी हो चुका है, जब साल 2017 में आईआईएफ यानी इंटरनेशन एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन वर्ल्ड चैंपियनशिप में रूस के 19 एथलीटों को न्यूट्रल एथलीट के रूप में खेलने की मज़ूरी मिली थी। 2018 की इंटरनेशन एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन वर्ल्ड इंडोर चैंपियनशिप में 8 और 2018 की ही इंटरनेशन एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन वर्ल्ड अंडर 20 चैंपियनशिप में कुल 9 एथलीटों ने न्यूट्रल एथलीट के रूप में हिस्सा लिया।

2019 की यूरोपीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कुल 30 और 2019 में ही दोहा में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में कुल 29 एथलीटों ने बतौर न्यूट्रल एथलीट भाग लिया था।

हालांकि ऐसे किस्से देश के लिए अक्सर शर्म का विषय होते हैं। क्योंकि इतने महत्वपूर्ण वक्त में खिलाड़ी के पास अपना झंडा नहीं होता और तो और राष्ट्र गान भी नहीं बजता।

फ़िलहाल हम बात भारत की करेंगे और जानेंगे कि चुनाव क्यों नहीं हो पाया?

पिछले दिनों कुछ भारतीय महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख‍िलाफ यौन शोषण के आरोप लगाए थे। इसके बाद खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती संघ के पदाधिकारियों को सस्पेंड कर एक एडहॉक कमेटी बना दी थी। और कुश्ती महासंघ के नए चुनाव के लिए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के पूर्व जज एमएम कुमार को चुनाव अधिकारी नियुक्त कर दिया। चुनाव की तारीख रखी गई 11 जुलाई, लेकिन, असम रेसल‍िंग एसोस‍िएशन अपनी मान्यता को लेकर असम हाईकोर्ट से चुनाव पर स्टे ले आया। इसके बाद एडहॉक कमेटी ने असम रेसल‍िंग एसोस‍िएशन को मान्यता दे दी। फिर चुनाव अधिकारी एमएम कुमार ने चुनाव करवाने के लिए एक दूसरी तारीख की घोषणा की, ये तारीख थी 12 अगस्त। लेकिन, इस दिन भी चुनाव नहीं हो पाए क्योंकि 11 अगस्त को हरियाणा कुश्ती एसोसिएशन के कुछ अधिकारी हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गए और चुनाव पर स्टे ले लिया।

चुनाव नहीं हो पाने का ये एक पहलू है। लेकिन इसका दूसरा पहलू हरियाणा बनाम बृजभूषण शरण सिंह का वर्चस्व भी है, कैसे? दरअसल तीन बार से लगातार भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक् बृजभूषण शरण सिंह हैं, ऐसे में वे अब चुनाव लड़ नहीं सकते तो उन्होंने अपने वर्चस्व का इस्तेमाल करते हुए अपने करीबी संजय सिंह को मैदान में उतार दिया। जिनका मुकाबला 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स की चैंपियन अनीता श्योराण से था।

अनीता श्योराण महिला पहलवानों के यौन शोषण वाले मामले में बृजभूषण के खिलाफ अहम गवाह हैं। भिवानी की रहने वाली अनीता श्योराण भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव में उतरने वाली अकेली महिला उम्मीदवार हैं। उन्हें केंद्रीय खेल मंत्रालय और बृजभूषण के खिलाफ धरना देने वाले पहलवानों का समर्थक माना जाता है।

अनीता के अलावा बृजभूषण सिंह हरियाणा से आने वाले देवेंद्र सिंह कादियान और प्रेमचंद्र लोचब के नाम पर भी असहमति जता चुके हैं। बृजभूषण चाहते थे कि उत्तराखंड कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष सतपाल सिंह या फिर हरियाणा के अलावा किसी दूसरे राज्य का शख्स अध्यक्ष बने। अब क्योंकि सतपाल सिंह बृजभूषण सिंह के खास माने जाते हैं। ऐसे में मंत्रालय और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारी नहीं चाहते थे कि बृजभूषण का कोई करीबी अध्यक्ष का पद संभाले। जिसके ।बाद आखिर में संजय सिंह का नाम आगे किया गया। लेकिन दावा किया जाता है कि संजय सिंह भी बृजभूषण के खास ही हैं।

नया अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का क़रीबी क्यों नहीं होना चाहिए?

दरअसल इस चुनावी उठापठक के पीछे सबसे बड़े खलनायक भाजपा के बाहुलबली सांसद बृजभूषण शरण ही हैं, जिनपर उन महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम कई बार रोशन किया है। इसके बावजूद इन महिलाओं को न्याय तो नहीं मिला लेकिन लाठी-डंडे पुलिस की मार और बेइज़्जती ज़रूर हाथ लगी। ये महिलाएं उस जगह और उस वक्त घसीटी गईं जहां से नई संसद की दूरी चंद कदमों पर थी और वहां प्रधानमंत्री नई संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे। जिसमें सबसे अचंभे की बात ये रही है कि आरोपी बृजभूषण शरण सिंह प्रधानमंत्री के ठीक पीछे बैठकर लगातार मुस्कुराते रहे।

बृजभूषण शरण सिंह और पीड़ित पहलवानों के बीच हुई खींचातानी की पूरी टाइमलाइन इस प्रकार है-

18 जनवरी एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली विनेश फोगाट, रियो ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज जीतने वाली साक्षी मलिक और टोक्यो ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज जीतकर भारत का सीना गर्व से चौड़ा करने वाले बजरंग पुनिया दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन के लिए बैठ गए, और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए।

21 जनवरी विवाद बढ़ता देख खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों से मिलकर जांच कमेटी बनाई, और धरना प्रदर्शन खत्म करवा दिया।

23 अप्रैल पहलवानों ने फिर से जंतर-मंतर पर प्रदर्शन शुरु कर दिया और कहा कि बृजभूषण की गिरफ्तारी तक प्रदर्शन जारी रहेगा।

28 अप्रैल पहलवानों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह पर छेड़छाड़ और पॉक्सो एक्ट में 2 एफआईआर दर्ज कर लीं।

3 मई पहलवानों और पुलिसकर्मियों के बीच जंतर-मंतर पर झड़प हो गई, इसमें कई लोग घायल भी हुए।

7 मई जंतर-मंतर पर हरियाणा, यूपी और राजस्थान समेत पंजाब के खापों की महापंचायत हुई जिसके बाद बृजभूषण की गिरफ्तारी के लिए केंद्र सरकार को 15 दिनों का अल्टीमेटम दिया गया।

21 मई इस दिन भी महापंचायत हुई, इसमें इंडिया गेट पर कैंडल मार्च और 28 मई को नई संसद भवन पर महिला महापंचायत का फैसला किया गया।

26 मई पहलवानों ने एक प्रेस कॉन्फेंस की और बताया कि वो लोग 28 मई को नई संसद भवन की ओर पैदल मार्च करेंगे।

28 मई पहलवानों ने महिला महापंचायत के लिए नई संसद भवन की ओर कूच किया तो पुलिस ने उनके साथ मारपीट की और हिरासत में ले लिया गया।

29 मई पहलवान हरियाणा लौट गए और अपने सारे मेडल हरिद्वार जाकर गंगा नदी में बहाने और इंडिया गेट पर आमरण अनशन का ऐलान कर दिया।

30 मई साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया के साथ कुछ और पहलवान हरिद्वार में हर की पौड़ी पहुंच गए। वहां किसान नेता नरेश टिकैत के समझाने पर केंद्र सरकार को 5 दिनों का अल्टीमेटम दिया और मेडल बहाने का फैसला टाल दिया।

31 मई मीडिया रिपोर्टस में दावा किया गया कि दिल्ली पुलिस के पास बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त सुबूत नहीं है। दिल्ली पुलिस ने ट्वीट कर इसका खंडन किया और जांच जारी रहने की बात कही। बाद में दिल्ली पुलिस ने अपना ही ट्वीट डिलीट कर दिया।

2 जून कुरुक्षेत्र में महापंचायत हुई और 9 जून तक बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार करने का अल्टीमेटम दिया गया।

3 जून दिल्ली पुलिस को चार गवाह मिले जिन्होंने बृजभूषण पर लगे आरोपों की पुष्टि की।

4 जून साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया की दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मीटिंग हुई।

5 जून विनेश, साक्षी और बजरंग ने रेलवे में अपनी-अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली।

6 जून किसानों और खापों ने 9 जून को जंतर-मंतर पर प्रस्तावित अपना प्रदर्शन स्थगित कर दिया।

फिलहाल इस पूरे सियासी खेल में नुकसान हमारे देश का हुआ है। उन खिलाड़ियों के आत्मविश्वास का हुआ है जो मेडल जीतकर तिरंगा पूरे विश्व के सामने लहराते थे। मग़र फिलहाल ऐसा नहीं होगा।

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