विवान सुंदरमः जिनकी कला, काल से होड़ में जीतेगी
राजधानी दिल्ली के लोधी शवदाहगृह के बाहर गाड़ी खड़ी करने, गाड़ी से उतरने, पैदल अंदर घुसने की जगह नहीं थी। लोग जल्दी-जल्दी अपनी गाड़ियों-ऑटो से उतर कर भागे जा रहे थे। अभी 12 बजने में कम से कम 25-30 मिनट बाकी थे। ऑटो चालक (सुरेश) ने मुझसे पूछा, कौन मरा है, इतने लोग क्यों भाग रहे हैं, मैंने भी हड़बड़ी में जवाब दिया, भइया, देश के बहुत बड़े कलाकार, पेंटर विवान सुंदरम जी को अंतिम सलाम देने लोग आ रहे हैं। उधर से आवाज आई, अच्छा एक पेंटर के लिए इतने बावले हो रहे हैं लोग, मैंने तो सोचा था कि...
वाकई 30 मार्च 2023 को देश की राजधानी दिल्ली के लोदी शवदाहगृह में उमड़ी भीड़ और उनके चेहरों पर गहरी बेचैनी से इस बात की हल्की झलक मिल रही थी कि देश के अलहदा-बेमिसाल चित्रकार, चिंतक व वाम-प्रगतिशील विचारक विवान सुंदरम (1943-2023) ने अपनी पीछे कभी न मिटने वाली विरासत छोड़ी है। अलग-अलग दुनिया-पेशों से जुड़े लोग कला जगत के इस दिग्गज शख्स को सलाम करने पहुंचे थे। शायद सबके साथ एक ख़ला (शून्य) चल रहा था। वजह साफ थी। विवान जिन मूल्यों-जिस जीजिविषा और जिस गहरी-पैनी राजनीतिक समझ के साथ रंगों-इंस्टालेशन्स (संस्थापन) को धार देते थे, वह खाली हो गई। उस जगह को भरना तो दूर—वहां तक पहुंच पाना और उनकी विरासत को आगे बढ़ाना ही आज के दौर में बड़ी चुनौती थी। कला के क्षेत्र में विवान के गुरु रहे गुलाम शेख़ की मौजूदगी ने उनकी कला यात्रा की लंबी लकीर को और गहरा कर दिया। उनके साथ आईं चित्रकार-विजुअल आर्टिस्ट नीलिमा शेख़ विवान की कला विरासत और लोक से उसके गहरे रिश्तों की छाप का अहसास करा रही थी।
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विवान सुंदरम का कला जगत में योगदान एक सघन विषय है, जिस पर नजर दौड़ाए बिना भारतीय कला यात्रा पर कभी चर्चा नहीं हो सकती। सबसे खूबसूरत बात यह लगी मुझे कि विवान सुंदरम की अंतिम यात्रा में भी उनकी विचारधारा-उनकी प्रतिबद्धता की धार को उनके परिजनों, उनको चाहने वालों, उनके मुरीदों ने कायम रखा।
अचानक ही लगा जैसे विवान सुंदरम की अनेका-अनेक कलाकृतियां भी जैसे अपने कलाकार को आखिरी सलाम पेश करने आई हों। खास तौर से 2017 का उनका इंस्टालेशन Meaning of failed action Insurrection 1946, जो उन्होंने आजादी के पहले हुए जबर्दस्त नौसैनिक विद्रोह पर किया था।
Meaning of failed action Insurrection 1946
आज 2023 में उनका यह इंस्टालेशन हम सबकी स्थिति पर सबसे जीवंत टिप्पणी है। ठीक उसी भाव को उकेरती है हिंदी के बड़े जनकवि नागार्जुन की कविता की कुछ पंक्तियां...
जो नहीं हो सके पूर्ण-काम
मैं उनको करता हूं प्रणाम ।
...दृढ़ व्रत औ’ दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति-मन्त ?
पर निरवधि बन्दी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अन्त !
उनको प्रणाम !
जिनकी सेवाएं अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर-चूर!
उनको प्रणाम!
नागार्जुन की इस कविता की ध्वनि और विवान सुंदरम के इस इंस्टालेशन के भाव और संदेश एक ही है। जिन लोगों ने स्थिति को बदलने की कोशिश की, विपरीत परिस्थतियों से टकराए, उनके हौसले-जज़्बे को समझना, प्रणाम करना क्यों जरूरी है। जो सारे लोग विवान को याद कर रहे हैं, वे सब, देश और लोकतंत्र को बचाने की इस तरह की सफल-असफल लड़ाइयों के या तो सैनानी रहे हैं, अभी भी हैं या कम से कम साक्षी तो रहे ही हैं। वर्ष 2023 में इस भाव में लैस भारतीय नागरिकों की संख्या भी कम तो नहीं हैं। अनगिनत-असंख्य लोग रोजमर्रा के जीवन को चलाने की जद्दोजेहद से लेकर जीने के हक, गरिमामय रोजगार, संस्थानों की रक्षा, नागरिकों की संप्रभुता, जन-जंगल-जमीन पर हक जैसे मुद्दों पर बिगुल फूंके हुए हैं। वे सब किसी न किसी रूप में कला-संस्कृति को ऊर्जावान बनाते हैं। विवान की कला को भी दरअसल इन्हीं लोगों ने सींचा। विवान सुंदरम का भारतीय कला की पुरखिन अमृता शेरगिल से जो रिश्ता है वह पारिवारिक तो है ही, लेकिन उससे भी बढ़कर एक सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भी है। अपनी मौसी अमृता शेरगिल की बोल्डनेस का बखूबी निर्वाह विवान अपने कला संसार में करते रहे और इसे कैनवास पर भी उतारा—रिटेक ऑफ अमृता (Re-take of Amrita) में। अपने परिवार के सघन-पेचीदा रिश्तों को द शेर-गिल फैमिली ( The Sher-Gil Family) (1983-1984) में ऑयल पेंटिंग में उतारा। इसमें खुद को एक छोटे बालक के तौर पर दिखाया, जो नाना की गोद में बैठा हुआ है। जड़ों की यह तलाश विवान की अंतिम विदाई में भी लोगों के चेहरों पर नजर आ रही थी।
Amrita shergil family painting
30 मार्च 2023 को विवान को अंतिम सलाम देने लोग पहुंचे। उनका निधन 29 मार्च 2023 को हुआ। 30 मार्च को रामनवमी थी। देश का जो नया नार्मल है—उसमें सारे त्योहार नफ़रती ब्रिगेड के हवाले सौंप दिये जाते हैं। रामनवमी पर हिंसा-मुसलमानों का दानवीकरण...सब बदस्तूर चल रहा था। और, नेपथ्य से विवान सुंदरम का इंट्सालेशन हाउस (House) सजीव हो रहा था, वहां से कराह रही थी मानवता। यह इंस्टालेशन 1994 में बनाया था, इसमें 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद मुंबई में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मंजर को समेटा था। घर में आग, कटा हाथ, ध्वस्त फर्नीचर...ढहता लोकतंत्र। यही जलन- तपिश-क्रूर दौर की मार को झलकाता है उनका मेमोरियल (Memorial)एक मरा हुआ आदमी सड़क के बीचों-बीच...। इसी तरह से उनका इंस्टालेशन जूते के तल्ले और पलंग, हल्की पीली रोशनी...पूरा तबाही का मंज़र...12 बेड वार्ड (12Bed ward) 2005 नाजी जर्मनी की यातना को वर्तमान में ले आता है...वही वेदना तो हम आज झेल रहे हैं।
Guddu-mathura rape case
एक सवाल जो विवान सुंदरन की कला यात्रा पर नज़र दौड़ाते हुए ज़ेहन में लगातार कौंधता रहता है, वह उनकी विचार यात्रा और बिंबों की यात्रा के बीच अद्भुत समन्वय को लेकर है। चाहे वह मथुरा बलात्कार कांड को लेकर बनाई गई उनकी झकझौर देने वाली पेंटिंग हो—गाढ़े-सख्त रंगों का चुनाव हो या फिर खाड़ी युद्ध में साम्राज्यवादी विभीषका को बेपर्द ढंग से उतारने वाली उनकी कलाकृति हो (engine oil drawing 1992), सबमें घटना की विभीषिका को जीते हुए ही कलाकार उसे कैनवास पर उतार सकता है। खाड़ी युद्ध वाली कलाकृति के लिए तो बकायदा विवान ने इंजन के तेल का इस्तेमाल किया, जिसे देखकर लगता है जैसे मानो खून रिस रहा है।
ENGINE OIL
पाब्लो नेरूदा और उनकी रचनाएं -माच्चु-पिच्चु के शिखर को अपने कला संसार में उतारने वाले विवान आजीवन संगठित वाम प्रतिरोध से संबद्ध रहे। इसी क्रम में वह सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) से संस्थापक सदस्य के रूप में जुड़े। यही वैचारिक शक्ति शायद उन्हें अनगिनत रूपों में अन्याय के खिलाफ रंग, कलम, इंजन का तेल, खूबसूरत इंस्टालेशन करने की प्रेरणा देता रहा। एक साझी विरासत-साझे प्रतिरोध और उसके प्लेटफॉर्म ने ही विवान को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। वर्ष 1981 में गीता कपूर द्वारा क्यूरेट की गई कला प्रदर्शनी प्लेस फॉर पीपुल ऐसा ही पहला मंच बना, जिसमें शिरकत करना विवान की कला यात्रा में बड़ा परिवर्तन लाया।
लंबा, सृजनशील जीवन जीने वाले विवान सुंदरम ने निश्चित तौर पर अनगिनत आयामों-क्षेत्रों को छुआ होगा, प्रभावित किया होगा और कौन उनकी विरासत से खुद को जुड़ा हुआ पाते हैं—इसकी एक बहुत ही छोटी सी झलक लोदी शवगृहदाह में देखने को मिली थी। उनके परिजनों गीता व अनुराधा कपूर के साथ खड़े होने वाले लोगों की कतार इतनी लंबी थी, इतनी विविध थी, जितना की भारतीय लोकतंत्र और उसमें चमकती विवान की पेंटिग्स और बेजोड़ इंस्टालेशंस। पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, इतिहासकार मुकुल केसवन, एस. इरफान हबीब, थियेटर की दुनिया की अंबा सान्याल, माला हाश्मी, एम.के. रैना, फिल्म की दुनिया की मधुश्री दत्ता, शोहिनी घोष, कथाकार गीता हरिहरन, अशोक वाजपेयी, कुलदीप कुमार, शेहला हाशमी, सुधनवा देशपांडे, सुहैल हाशमी, गौहर रजा, रजनी, ऋतु मेनन, उर्वशी भुटालिया, प्रबीर पुरकायस्थ...और....और...इनके अलावा माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी और नेता बृंदा कारत का नाम भी है।
विवान सुंदरमः एक प्रयोगधर्मी कलाकार, एक जनसरोकारों से लैस चित्रकार-चिंतक, निर्भीक-निडर नागरिक—जिसके पास इतिहास के ताने-बाने से वर्तमान के विद्रूप समय को मल्टी-डायमेंशन में सामने रखने का कैनवास था, इंस्टालेशन का वितान था...उन्हें हम ही नहीं समय याद रखेगा, क्योंकि सच्ची कला, काल से होड़ में हमेशा जीतती है।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(सभी पेंटिंग्स सोशल मीडिया/गूगल से साभार)
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