Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

भगतसिंह की साझी विरासत और शहादत से क्यों भयभीत हैं भारत और पाकिस्तान के शासक वर्ग 

भारतीय शासक वर्ग भगतसिंह पर सीधा हमला करने के बजाय उनकी झूठी तस्वीर रचता और प्रचारित करता आया है। उधर पाकिस्तान का शासक वर्ग आज़ादी के पूरे ही संघर्ष को ख़ारिज करता दिखता है। 
bhagat singh and politics

भगतसिंह ने अपनी फांंसी से पहले लिखा था कि “संकट के समय देश को हमारी बहुत याद आएगी।”आज दुनिया भर में आर्थिक संकट बढ़ रहा है,जिसके कारण भिन्न भिन्न रंग-रूप के फासीवादी तथा दक्षिणपंथी पार्टियां सत्ता में आ रही हैं। भारतीय महाद्वीप में भी यही प्रवृत्ति देखी जा रही है। भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश और श्रीलंका में भी दक्षिणपंथी फासीवादी प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं, इसलिए इन देशों की मेहनतकश जनता को भगतसिंह की शहादत की याद पुनः आना स्वाभाविक है। 

भगतसिंह का सम्बन्ध भारत और पाकिस्तान दोनों ही से था। उनका जन्म पश्चिमी पंजाब के ‌बंगा‌ गांव में हुआ था,जो इस समय पाकिस्तान में है,बाद में उनका परिवार भारत चला आया। भगतसिंह को फांसी भी लाहौर में 23 मार्च 1931 को शादमान चौक पर दी गई थी। आज भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी भगतसिंह की लोकप्रियता बढ़ रही है। अनेक यूट्यूबर्स ने उनके ऊपर कार्यक्रम बनाए। उनकी साझी शहादत पर अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेख भी लिखे गए। 

लेखक और उपन्यासकार विभूति नारायण राय अपने लेख ‘पाकिस्तान में भगतसिंह’ में लिखते हैं, “भगतसिंह का गांव बंगा लाहौर से बहुत दूर नहीं है। विभाजन के बाद भगतसिंह का परिवार भारत चला आया, तो उनका मकान किसी वकील के हिस्से में आ गया था। 1947 तक हर साल उनकी शहादत दिवस 23 मार्च के अवसर पर यहां पर एक मेला लगा करता था,जिसे फिर से शुरू करने की कोशिश कुछ साथी कर रहे हैं। बाद में मैंने पढ़ा कि कुछ वर्षों से मेला फिर से शुरू हो गया है और कम संख्या में ही सही हर साल लोग यहां जुटते हैं। कुछ सालों से कुछ संगठन यह मांग कर रहे हैं कि लाहौर के शादमान‌ इलाक़े के उस चौराहे का नाम भगतसिंह चौक रख दिया जाए,जहां से लाहौर सेंट्रल जेल दिखता है। पहले तो यह चौराहा भी जेल का हिस्सा था और फांसीघर जिसमें भगतसिंह समेत उनके साथियों को सूली पर चढ़ाया गया था,इसी चौक पर था। 

पिछले दिनों दो बार सरकार ने मांग मान भी ली,पर दोनों बार कट्टरपंथियों के दबाव में उसे पीछे हटना पड़ा। प्रतिवर्ष 23 मार्च को शादमान चौक पर लेखक,कलाकार और बुद्धिजीवी इकट्ठा होते हैं और इस मांग को दोहराते हैं। अब कुछ सालों से हाफ़िज़ सईद के जेहादी चेले लश्कर-ए-तैयबा के बैनर तले उनके विरोध में जमा होने लगे तथा यह लक्ष्य और मुश्किल लगने लगा है।” 

अभी हाल में यह मामला लाहौर हाईकोर्ट में चला गया,लेकिन लाहौर हाईकोर्ट के भगतसिंह चौक रखने के पक्ष में दिए गए आदेश को मानने से पंजाब सरकार और लाहौर प्रशासन ने इंकार कर दिया।‌ 

वास्तव में भगतसिंह की क्रांतिकारी विरासत भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक वर्ग को आज भी भयभीत करती है। 

भारतीय शासक वर्ग भगतसिंह पर सीधा हमला करने के बजाय उनके सहित पूरी क्रांतिकारी विरासत और इतिहास को ही विकृत करते हुए उनकी झूठी तस्वीर रचता और प्रचारित करता आया है। कांग्रेस शासन के दौर में उनकी इंकलाबी वैचारिक राजनीतिक विरासत को छिपाकर मात्र उनकी वीर बलिदानी गर्मदलीय युवाओं की हथियारबंद टोली वाले देशभक्तों की छवि गढ़ने की कोशिश की गई,फिर संघ बीजेपी पूरे जोर-शोर से उनके फ़र्ज़ी हिन्दूकरण के छद्म दुष्प्रचार में जुट गए। इस प्रकार उन्होंने इतिहास के हर तथ्य को विकृत किया,उन्हें केसरिया पगड़ी पहनाकर यह सिद्ध करने की कोशिश की गई कि वे सिक्ख-हिन्दूधर्म के रक्षक थे,वे नास्तिक नहीं थे। यहां तक कि संघ की पत्रिका ‘पांचजन्य’ में उनके ऊपर विशेषांक निकालकर इन ग़लत तथ्यों को सामाजिक मान्यता देने की कोशिश की गई। पंजाब में खालिस्तान आंदोलन के समय तो उन्हें खालिस्तान राष्ट्र का समर्थक तक बताने की कोशिश की गई थी। इस ग़लत इतिहास दृष्टि के ख़िलाफ़ आज भी प्रतिरोध जारी है।

उधर पाकिस्तान के शासक वर्ग द्वारा पहले तो आज़ादी के पूरे ही संघर्ष को नकारते हुए ऐसा दिखाने की‌ कोशिश की गई जैसे कि उनका मुल्क 14 अगस्त 1947‌ को अचानक किसी जादुई यथार्थ की तरह पैदा हो गया हो। अपने अतीत और इतिहास को नकारने के कारण ही आज पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता और कठमुल्लापन पैदा हो गया है। नयी पीढ़ी अब इस चीज़ को भली-भांति समझ रही है,यही कारण है कि वहां की वैचारिक विरासत को पाकिस्तान की परिवर्तनकामी शक्तियों ने न सिर्फ़ जीवित रखा,बल्कि वहां के शासक वर्ग के‌ ज़ुल्म और फ़ौजी तानाशाही वर्गों से लड़ने के लिए भगतसिंह प्रेरणा बन रहे हैं। इसी क्रम में जहां‌ उन्हें फांसी दी गई थी,उस जेल के साथ वाले शादमान चौक पर उनका स्मारक बनाने और चौक को भगतसिंह का नाम देने की मांग लगातार होती रही और आख़िर में एक जनहित याचिका पर लाहौर हाईकोर्ट ने भी 2018 में इसके पक्ष में फैसला सुना दिया,लेकिन पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डान के अनुसार पंजाब सरकार और लाहौर प्रशासन ने इसे लागू करने से इंकार कर दिया और अब उनके ख़िलाफ़ अदालत की मानहानि का मुकदमा दायर किया गया है।

अब लाहौर प्रशासन ने इसमें 16 पृष्ठ का जवाब दायर करते हुए कहा कि “भगतसिंह के इंकलाबी होने का झूठा दुष्प्रचार किया जा रहा है, जबकि असल में वो एक आतंकवादी और क़त्ल का मुजरिम था,जिसके लिए उसे दो साथियों समेत फांसी दी गई थी,फिर वह नास्तिक था। उसके विचार इस्लाम विरोधी हैं और उसने इस्लाम के दुश्मनों गुरु गोविन्दसिंह और शिवाजी से प्रेरणा ली थी। अतः पाकिस्तान में उसकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने वाले इस्लाम विरोधी हैं और इन पर पाबंदी लगाई जाए।” हाईकोर्ट ने अब 17 जनवरी 2025 को इस पर सुनवाई की अगली तारीख दी है। 

ज्ञातव्य है कि भगतसिंह मेमोरियल फाउण्डेशन के बैरिस्टर इम्तियाज़ कुरैशी ने भगतसिंह और उनके साथियों को सेशन कोर्ट द्वारा दंडित किए जाने के ख़िलाफ़ लाहौर हाईकोर्ट में एक अपील दायर कर रखी है। कोर्ट ने एक बड़ी बेंच को निर्णय के लिए मामला सौंप दिया है। कुरैशी ने हाईकोर्ट से गुजारिश की है कि उनकी अपील जल्द सुनी जाए। उन्हें पूरा विश्वास है कि वे भगतसिंह और उनके साथियों को सांडर्स हत्याकांड में निर्दोष साबित कर देंगे। जो एफआईआर दर्ज की गई थी,उसमें कोई नामजदगी नहीं थी और एम जी नूरानी और चमन लाल द्वारा इकट्ठी की गई मुकदमे से संबंधित सामग्री का विश्लेषण करें,तो कुरैशी की बात में दम लगता है। सुनवाई के दौरान जज इतनी जल्दी में लगता है कि उसने नैसर्गिक न्याय की धज्जियां उड़ा दी थीं। प्रतीकात्मक ही सही भगतसिंह के निर्दोष साबित होने के ख़ास मायने होंगे। 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest