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आख़िर क्यों ट्रांस खिलाड़ियों को एक के बाद एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं से बाहर किया जा रहा है?

ट्रांस खिलाड़ियों के लिए एक खेल में सख़्ती का नियम बाक़ी खेलों की गवर्निंग बॉडी को भी बैन के लिए प्रेरित करता दिखाई दे रहा है।
ICC Transgender

“यह स्पष्ट रूप से अविश्वसनीय और निराशाजनक है। मुझे उम्मीद है कि यह किसी को भी उसके सपनों का पीछा करने से हतोत्साहित नहीं करेगा। ट्रांस महिलाएं खेल में भी हैं और क्रिकेट में भी हैं।”

ये शब्द अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाली पहली ट्रांस महिला खिलाड़ी डेनियल मैकगेही के हैं। कनाडा की ओर से खेलने वाली मैकगेही ने इसी साल की शुरुआत में यह उपलब्धि हासिल की थी। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आईसीसी के नियम के बदलाव के बाद उनके संन्यास की खबरें सुर्खियों में हैं। क्योंकि नए नियम के मुताबिक आईसीसी ने उन क्रिकेटरों को अंतरराष्ट्रीय महिलाओं के खेल में प्रतिस्पर्धा करने से रोक दिया जो मेल प्यूबर्टी ( पुरुष में किशोरावस्था में होने वाला शारीरिक/लैंगिक बदलाव) हासिल कर चुके हैं। इसमें सर्जरी या लिंग परिवर्तन के मामले भी शामिल हैं।

बता दें कि महिलाओं के खेल में ट्रांसजेंडर महिलाओं को शामिल करने की डिबेट पुरानी है, जो हाल ही में आईसीसी के नए नियम को लेकर एक बार फिर चर्चा में आ गया है। हाल ही में आईसीसी ने कुछ नीतिगत फैसले लिए, जिसमें ट्रांसजेंडर प्लेयर्स पर अंतरराष्ट्रीय वूमेंस क्रिकेट में भाग लेने पर प्रतिबंध का फैसला अहम रहा। इस नए फैसले के पीछे आईसीसी ने भले ही महिलाओं के खेल की अखंडता, सुरक्षा, निष्पक्षता और समावेशन का आधार बताया हो, लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बीते लंबे समय से ट्रांस खिलाड़ी बहिष्कार और समावेशन के समीकरण के बीच जूझ रहे हैं।

आईसीसी का ये नया नियम सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में होगा लागू

हालांकि आईसीसी का ये नया नियम सिर्फ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लागू होगा और घरेलू क्रिकेट बोर्ड अपने नियम खुद स्थापित कर सकते हैं। लेकिन इस बीच एक बड़ा सवाल ये भी है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैन के बाद जेंडर पात्रता क्या घरेलू क्रिकेट बोर्डों के लिए एक चुनौती का विषय नहीं बनेगी। क्या घरेलू क्रिकेट बोर्ड ट्रांस खिलाड़ियों को इस खेल में शामिल कर, उन्हें एक समान संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध करवाएंगे, जबकि उन्हें पता है कि इनका विश्व स्तर के मैचों में कोई योगदान नहीं होने जा रहा है। बहरहाल, आईसीसी के इस नियम की 2 साल के भीतर समीक्षा की जाएगी। हालांकि इससे क्या बदलेगा ये तो भविष्य में ही पता लगेगा, फिलहास ये ट्रांस क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए एक बड़ा झटका जरूर है।

गौरतलब है कि बीते साल 2022 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैराकी के बाद रग्बी के अधिकारियों ने भी ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसे लेकर भी तीखी बहस हुई थी। तब पूरी दुनिया में चली इस बहस ने रूढ़िवादी विचार रखने वालों और कुछ चोटी की महिला खिलाड़ियों को ट्रांस एक्टिविस्टों और उनका समर्थन करने वाले खिलाड़ियों के खिलाफ खड़ा कर दिया था। अमेरिका के दर्जनों राज्य पहले ही ट्रांसजेंडर्स को महिलाओं के खेलों में भाग लेने से पूरी तरह से प्रतिबंधित कर चुके हैं। ऐसे में अब ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से बाहर करने का अभियान आगे बढ़ता जा रहा है। हालांकि कई खेल संस्थाओं ने ट्रांसजेंडर महिलाओं को सामान्य महिला कैटेगरी में भाग लेने की अनुमति दी है, अगर उनके शरीर में टेस्ट्रोन की मात्रा एक तय पैमाने से कम है।

प्रतिस्पर्धी खेलों में ट्रांस महिलाओं की उपस्थिति कठिन

ध्यान रहे कि साल 2021 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने ट्रांसजेंडर एथलीट्स के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए थे। इसमें आईओसी ने इस नियम को हटा दिया था कि ट्रांसजेंडर एथलीट की पात्रता टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर आधारित होगी। इसके अलावा लिंग के आधार पर किसी खिलाड़ी के साथ भेदभाव किए बिना आईओसी ने हर खेल से जुड़ी संस्थाओं को अपने हिसाब से योग्यता के पैमाने तय करने की छूट दी थी। इसी के तहत बीते साल वॉटर स्पोर्ट्स की गवर्निंग बॉडी फिना ने नई नीति बनाकर ट्रांस खिलाड़ियों को इससे बाहर कर दिया था। इसके लिए संस्था का दावा था कि उसने कानूनी, मेडिकल और खिलाड़ियों की समितियों से इस विषय की जांच कराई थी। जिसके बाद ये नीति 19 जून 2022 को सबके सामने आई थी।

एक पुरानी कहावत है कि खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है और कुछ यही हाल ट्रांस खिलाड़ियों के साथ खेलों में देखने को मिल रहा है। एक के बाद एक कई खेलों से उन्हें बाहर किया जा रहा है। एक खेल में सख्ती का नियम बाकी खेलों की गवर्निंग बॉडी को भी बैन के लिए प्रेरित करता दिखाई दे रहा है। बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रतिस्पर्धी खेलों में ट्रांस महिलाओं की उपस्थिति कठिन है। इसे तोड़ना मुश्किल है क्योंकि नुकसान के समीकरण दोनों तरह से झूलते हैं। एक ओर जहां बहिष्कार ट्रांस एथलीटों को नुकसान पहुंचाता है, तो वहीं दूसरी ओर समावेशन संभावित रूप से सिजेंडर महिला एथलीटों को नुकसान पहुंचाता है, और सबसे जरूरी वैचारिक विरोध उन दो शिविरों के बीच अंतर विरोध को प्रोत्साहित करता है जो हर जगह महिलाओं को चोट पहुंचाता है। 

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