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नए आदेश से जम्मू-कश्मीर अपनी सीमित कृषि भूमि भी गंवा देगा

कृषि भूमि को गैर-कृषि गतिविधियों के लिए बदलने की अनुमति देना विनाशकारी साबित होगा।
Farmer
दक्षिण कश्मीर में अपने सेब के पेड़ों की ओर देखता किसान 

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम 1939 (संवत 1996) में बदलाव करते हुए एक हैरतअंगेज फरमान जारी किया है। पूर्ववर्त्ती राज्य जम्मू-कश्मीर का यह कानून कश्मीर के डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के समय में ही  लागू किया गया था। डोगरा शासन के बाद, और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद भी इस कानून का पालन किया जाता रहा है। भारत सरकार ने राज्य के कई अन्य कानूनों की तरह इसे निरस्त नहीं किया। इसकी बजाय सरकार ने इस कानून में कुछ संशोधन किए जिससे कि कृषि भूमि को गैर-कृषि गतिविधियों के लिए परिवर्तित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया। ऐसा करने के लिए, सरकार ने जिला कलेक्टर को भूमि के उपयोग को परिवर्तित करने का अधिकार दिया, जो पहले कभी मंत्री स्तर से निष्पादित किया जाता था। जम्मू-कश्मीर के राजस्व मंत्री ही विशेष मामलों में भूमि परिवर्तन की अनुमति दे सकते थे। 

गृह मंत्रालय द्वारा 26.10.2020 को जारी किए गए अनुकूलन आदेश-SO 3808 (ई)-के अनुसार 133-A जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम संवत 1996 में समाविष्ट किया गया था, जो कृषि भूमि के रूपांतरण को प्रतिबंधित करता है और गैर-कृषि उपयोग की अनुमति के लिए आवश्यक प्रक्रिया शुरू करता है। संशोधन कहता है: 

'उपधारा (4) में अधिसूचित प्रक्रिया के अधीन, कृषि प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाने वाली किसी भी भूमि का उपयोग जिला कलेक्टर की अनुमति के बिना किसी भी गैर-कृषि प्रयोजनों के लिए नहीं किया जाएगा।' 

राजस्व विभाग द्वारा 28 दिसम्बर 2021 को ताजा जारी आदेश संख्या: 174- जेके (रेव) 2021के तहत सरकार ने जिला कलेक्टरों को मानक 12½ एकड़ से अधिक यानी 100 कनाल से अधिक की कृषि भूमि के उपयोग में बदलाव की अनुमति न देने का निर्देश दिया है। इसका मतलब है कि कलक्टर पैमाइश में 100 कैनाल से कम की भूमि के उपयोग में बदलाव की अनुमति दे सकते हैं। 

जम्मू-कश्मीर में जोत की भूमि पहले से ही कम 

यह आदेश महज दिखावा है,जिसमें सरकार यह धारणा बनाना चाहती है कि वह जम्मू-कश्मीर की कृषि भूमि के संरक्षण को लेकर बहुत फिक्रमंद है। हालांकि ऐसा है नहीं। यदि जम्मू-कश्मीर मध्य प्रदेश या राजस्थान की तरह होता, तो स्थानीय निवासी सरकार की चिंता की सराहना करते। लेकिन हमारा एक छोटा राज्य है, जो अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हो गया है। इस तरह उसका रकवा कम हो गया है। इसलिए, मानक12½ एकड़ या 100 कनाल (पांच हेक्टेयर) भूमि का कम नहीं होता है। जम्मू-कश्मीर के किसान तो दो एकड़ कृषि भूमि को भी गैर-कृषि गतिविधियों के लिए बदलने का जोखिम भी नहीं उठा सकते क्योंकि हमारी कृषि भूमि पहले से ही बहुत कम है। इसमें पिछले 20 वर्षों और पिछली पांच कृषि जनगणनाओं में जम्मू-कश्मीर में कृषि भूमि के क्षेत्रफल में बहुत तेज गिरावट देखी गई है। यह दर लगातार नीचे आ रही है।

2010-11 की कृषि जनगणना के अनुसार भारत में जोत की भूमि का औसत आकार 1.15 हेक्टेयर था। यह आंकड़ा जम्मू-कश्मीर में बहुत कम 0.62 हेक्टेयर था और कश्मीर घाटी के जिलों : अनंतनाग (0.39 हेक्टेयर), कुलगाम (0.39), शोपियां (0.56 ), पुलवामा (0.48), श्रीनगर (0.31), बडगाम (0.43), बारामूला (0.51), गांदरबल (0.37), बांदीपोरा (0.48) और कुपवाड़ा (0.51) में तो औसत भूमि उससे भी कम थी। 2015-2016 की कृषि जनगणना के अनुसार, औसत जोत की जमीन में और कमी आई है। 2010-11 की जनगणना मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 46 फीसदी सीमांत किसान थे और 2015-16 में यह सीमा बढकर 47.5 फीसदी हो गई थी। 

जम्मू-कश्मीर राजस्व विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में उपलब्ध 24.16 लाख हेक्टेयर भूमि में सिर्फ नौ लाख हेक्टेयर से कुछ ही अधिक बोआई क्षेत्र है, जो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के कुल क्षेत्रफल का 37 फीसदी है। इसके साथ-साथ, जम्मू-कश्मीर का 6.58 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन आच्छादित है, जो कुल भूमि क्षेत्र का 27 फीसदी है। 

जब गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू-कश्मीर के कई भूमि कानूनों में बदलाव के लिए 26 अक्टूबर 2020 को अनुकूलन आदेश SO 3808 (ई) जारी किया गया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम 1939 (संवत 1996), जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम 1970, जम्मू-कश्मीर कृषि सुधार अधिनियम 1976, जम्मू-कश्मीर भूमि अनुदान अधिनियम-1960 और कुछ अन्य कानूनों को शामिल किया गया था, तब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और उनके नौकरशाहों ने लोगों की कृषि भूमि की रक्षा करने के लिए कई आश्वासन दिए थे। 

कानून में संशोधन से पहले, कृषि भूमि को विशेष मामलों को छोड़कर गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए परिवर्तित नहीं किया जा सकता था, और इसके लिए अनुमति राज्य के राजस्व मंत्री ही दे सकते थे या देते थे। असंशोधित जम्मू और कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम 1996 की असंशोधित धारा 133 A कहती है:-

'कोई भी भूमि जो पिछले दो वर्षों के भीतर तीन फसलें [शाली (धान) की फसल, सब्जियां, या केसर की लुल्ली] उपजाई जाती हैं या उपजाई जाती रही हैं, उनका उपयोग कृषि उद्देश्य के अलावा, किसी अन्य उद्देश्य के लिए बिना राजस्व मंत्री की लिखित अनुमति के नहीं किया जाएगा]।'

उस कानून में परिवर्तन करने के बाद गैर-कृषि गतिविधियों के लिए भूमि का उपयोग करने की अनुमति देने का अधिकार जिला कलेक्टर को दी गई है, जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि यह नीति का मकसद कृषि भूमि के संरक्षण के बजाय उसका रूपांतरण करना है। 

जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व (संशोधित) अधिनियम, 1996 का अनुभाग 133-A  कहता है:

'कृषि प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाने वाली किसी भी भूमि के उपयोग में बदलाव जिला कलेक्टर की अनुमति के बिना किसी भी गैर-कृषि प्रयोजनों के लिए नहीं किया जाएगा।'

उपधारा 2 धारा के 113-ए की उप-धारा 2 कहती है कि भूमि के स्वामी या उस पर निवास करने वाला व्यक्ति जो, उस क्षेत्रीय योजना, विकास योजना या मास्टर प्लान, जो भी योजना हो, उनमें अपनी कृषि भूमि को गैर-कृषि उपयोग के लिए प्रदान करना चाहता है तो, वह 'ऐसा करने के लिए बोर्ड द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए रूपांतरण शुल्क अदा करने के बाद ही ऐसा करेगा।' 

इससे स्पष्ट है कि या तो जिला कलेक्टर की अनुमति से या परिवर्तन शुल्क के भुगतान के माध्यम से कृषि भूमि का उपयोग गैर-कृषि कार्यों में किया जा सकता है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने पिछले साल अगस्त में पहले ही राजस्व बोर्ड का गठन कर दिया था, जिसका नेतृत्व वित्तीय आयुक्त राजस्व करते हैं, जिसमें दो अफसर और इसके सदस्य होते हैं। जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम 1996 के तहत बोर्ड एक मुख्य नियंत्रण प्राधिकरण है। यह भी इंगित करता है कि सरकार जम्मू-कश्मीर के भूमि कानूनों के साथ सभी शक्तियों को अपने पास रखना चाहती है ताकि किसी भी समय कृषि भूमि रूपांतरण की सुविधा के लिए कोई भी परिवर्तन किया जा सके या राज्य की भूमि को गैर-जम्मू-कश्मीर के उद्योगपतियों और निवेशकों को लीज पर जमीन दी जा सके? 

जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम 1970 में बदलाव

2020 में भारत सरकार के निर्देश पर केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम 1970 और जेके कंट्रोल ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशंस एक्ट-1988 में संशोधन किया। अन्य परिवर्तनों के अलावा, विकास अधिनियम में सुरक्षा क्षेत्र के निर्माण का प्रावधान शामिल किया गया था। यह संशोधित कानून अब सरकार को जम्मू-कश्मीर सरकार के किसी भी विकास प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित भूमि के भीतर किसी भी क्षेत्र को रणनीतिक क्षेत्र के रूप में नामित करने का अधिकार देता है। इस प्रकार निर्दिष्ट रणनीतिक क्षेत्र सशस्त्र बलों के प्रत्यक्ष संचालन और प्रशिक्षण आवश्यकताओं के लिए आरक्षित क्षेत्र होंगे। यह परिवर्तन एक अधिकारी के लिखित अनुरोध पर किया जाएगा, जो कम से कम कोर कमांडर के स्तर का या उससे ऊपर का अधिकारी होगा। जब ये बदलाव किए गए, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों ने अपनी कड़ी नाराजगी व्यक्त की थी। नेकां ने तब कहा था कि यह पूरे जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को एक "सैन्य प्रतिष्ठान" में बदलने जैसा है।

गुलमर्ग में पर्यटन भूमि सेना को दे दी 

जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम 1970 में और भवन संचालन अधिनियम 1988, में किए गए परिवर्तनों का लाभ उठाते हुए सरकार ने प्रसिद्ध हिल स्टेशन गुलमर्ग के पास की लगभग 130 एकड़ (1,034 कनाल) भूमि हाल ही में सेना को स्थानांतरित कर दिया है। यह भूमि वास्तव में गुलमर्ग विकास प्राधिकरण (जीडीए) की थी, जो जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करता है। 

भूमि का यह बड़ा हिस्सा 1991 के पहले से ही सेना के कब्जे में है। 2012 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने गुलमर्ग में राज्य की जमीन हड़पने के लिए सेना की खिंचाई की थी। 

जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग 2012 ने दावा किया था कि सेना ने भूमि सौदे की "तीनों शर्तों" का पालन नहीं किया था।

नवम्बर 2011 में तात्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में नागरिक सैन्य संपर्क सम्मेलन (सीएमएलसी) की बैठक के ब्योरे में पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव के हवाले से कहा गया है कि सेना ने जमीन के सौदे की किसी भी शर्त का पालन नहीं किया है। 

समझौते के अनुसार, सेना द्वारा 53 एकड़ जमीन में कोई नया निर्माण नहीं किया जाना था, जिसे जम्मू-कश्मीर सरकार को सौंप देने पर सहमति हुई थी। 

अनुबंध कहता है,'सेना शेष 77 एकड़ भूमि पर उपनियमों के तहत नए निर्माण करेगी। इसके अलावा, राज्य सरकार को किराए का भुगतान करेगी और जीर्ण-शीर्ण भवनों की मरम्मत या जीर्णोद्धार नहीं किया जाना चाहिए।’ 

‘सीएमएलसी में यह निर्णय लिया गया था कि सेना इस क्षेत्र में निर्माण की गतिविधियों की अनुमति मांगने के लिए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर करने पर विचार कर सकती है। इसके अलावा, जो जमीन सेना के कब्जे में है, उसके लिए सेना द्वारा किराये के मुआवजे का भुगतान किया जाएगा,’ यह जानकारी 2012 में सीएमएलसी की बैठक के मिनट्स के हवाले से श्रीनगर के एक स्थानीय अंग्रेजी दैनिक ने प्रकाशित की थी। 

समाचार रिपोर्ट के अनुसार, सेना के कब्जे में 300 एकड़ से अधिक भूमि थी, जिसमें से 130 एकड़ जमीन राज्य पर्यटन विभाग द्वारा 22 नवम्बर 1991 को जारी आदेश (संख्या 107-TSH of 1991) के तहत रक्षा मंत्रालय को हस्तांतरित कर दी गई। जम्मू-कश्मीर सरकार के अनुसार लगभग 176 एकड़ जमीन सेना के "अनधिकृत कब्जे" में है। यह माना जाता है कि 176 में से 130 एकड़ भूमि एक नए सौदे के जरिए सेना को हस्तांतरित कर दी गई है। गांदरबल जिले के सोनमर्ग क्षेत्र में 354 कनाल भूमि आधिकारिक तौर पर सेना को हस्तांतरित कर दी गई है, जो कि बहुत लंबे समय तक उनके कब्जे में थी।

सीमांत से नीचे के किसान

जम्मू-कश्मीर में आधिकारिक तौर पर अधिकांश किसानों को सीमांत किसानों के रूप में मान्यता प्राप्त है क्योंकि उनके पास बहुत कम 0.55 हेक्टेयर कृषि भूमि है। कृषि जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में औसत कृषि भूमि बहुत कम है। अनौपचारिक सूत्रों का कहना है कि औसत भूमि इससे काफी कम है। एक हेक्टेयर से कम कृषि भूमि वाले किसानों को सीमांत किसान के रूप में नामित किया गया है। भले ही हम कहें कि जम्मू-कश्मीर कृषि भूमि 0.55 हेक्टेयर जोत के बराबर है। इसका मतलब है कि हमारे किसान 'सीमांत से नीचे' किसानों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे समय में जब कृषि भूमि दिन-ब-दिन सिकुड़ती जा रही है, सरकार की योजना मानक 12 ½ एकड़ से कम कृषि भूमि को जम्मू-कश्मीर में शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, कारखानों, उद्योगों आदि की स्थापना जैसी गैर-कृषि गतिविधियों के लिए दिया जाना पूरी तरह से अवास्तविक है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर में खासकर सेब की खेती का क्या भविष्य है? 

भूमि उपयोग नीति का उल्लंघन

सरकार द्वारा कृषि भूमि परिवर्तन की अनुमति का निर्णय राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति 2013 का उल्लंघन करते हैं। राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति की प्रस्तावना स्पष्ट करती है कि भूमि लोगों के जीवन समर्थन प्रणाली की सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है। उपशीर्षक भूमि के उपयोग के तहत प्रस्तावना का सक्रिय भाग विवेकपूर्ण होना चाहिए, जिसे इस प्रकार पढ़ा जाए: 

'भूमि संसाधनों के इष्टतम उपयोग की आवश्यकता है। देश अब सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन भूमि की उपेक्षा नहीं कर सकता, जिससे कि स्थायित्व सुनिश्चित किया जा सके और प्रतिकूल भूमि-उपयोग संघर्षों से बचा जा सके। औद्योगीकरण के लिए और आवश्यक बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए और शहरीकरण के लिए भूमि को संरक्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही, प्राकृतिक संसाधन आधार से आने वाले पारिस्थितिक तंत्र की सेवाओं की उच्च गुणवत्ता वाली डिलीवरी सुनिश्चित करने और खाद्य सुरक्षा को सक्षम करने वाले किसानों की जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता है, जो दोनों ही संपूर्ण राष्ट्र के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।' 

निष्कर्ष

अगर सरकार वास्तव में ईमानदार है और जम्मू-कश्मीर में विकास चाहती है, तो उसे जम्मू-कश्मीर की कृषि अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में भूमि बहुत उपजाऊ है और यहां तक कि छोटी जोत भी बेहतर उपज देती है। एक सेब किसान की आधा एकड़ भूमि से वार्षिक आय 7 लाख की ज्यादा होती है, जो अन्य राज्यों में असंभव है। इटली से आयातित नए अल्ट्रा-हाई-डेंसिटी सेब के पौधे शानदार परिणाम दिखा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के किसानों, विशेषकर सेब उत्पादकों की आय पिछले 10 सालों में न केवल दोगुनी हुई है, बल्कि कई जगहों पर तीन गुनी बढ़ गयी है। सरकार को जम्मू-कश्मीर की सीमित कृषि भूमि के संरक्षण और संरक्षण के लिए अपने सभी प्रयास करने चाहिए। उन्हें वन भूमि की भी रक्षा करनी चाहिए, जो पर्यावरण के लिए आवश्यक है। वन क्षेत्रों में भूमि के बड़े हिस्से को रक्षा प्रतिष्ठानों को हस्तांतरित करना लंबे समय में विनाशकारी होगा। सरकार की वर्तमान नीतियों के कारण, जो कृषि भूमि परिवर्तन की अनुमति देती है, जम्मू-कश्मीर के सीमांत किसान अगले 10-15 वर्षों में भूमिहीन हो जाएंगे। 

(राजा मुजफ्फर भट एक्युमेन फेलो हैं। श्रीनगर में रहने वाले भट सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। वे क्लाइमेट एक्शन के अनंत फेलो भी हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)

मूल अंग्रेजी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीच दिए गए लिंक पर क्लिक करें

With Fresh Order, Jammu & Kashmir Will Lose Its Limited Farmlands

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