आधी आबादी के साथ मज़ाक : 5 राज्यों ने 10 फीसदी से भी कम महिला विधायक चुनीं
मंगलवार 11 दिसम्बर, को पांच राज्यों के चुनावी नतीजे घोषित हुए। आंकड़ों की उठापटक के बाद अब तस्वीर आईने की तरह साफ़ हो चुकी है। राजनीतिक नजरिये से बात करें तो पाँचों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव प्रचार के दौरान कई मुद्दे चर्चा का विषय रहे- महिला सशक्तिकरण उनमें से एक था। सब बात करते हैं कि महिलाओं की राजनीति में भागेदारी बढ़े लेकिन ज़मीन पर हक़ीक़त क्या है ये चुनाव परिणामों के विश्लेषण से साफ होता है। राजनीतिक दल पहले तो ज़्यादा महिलाओं को टिकट देते ही नहीं और जितनी महिलाएं चुनाव में खड़ी होती हैं उनमें भी बेहद कम ही जीत पाती हैं। यानी आम लोग भी उनका बहुत साथ नहीं देते।
चुनाव आयोग और एडीआर से मिले आंकड़ों के मुताबिक पांच राज्यों में सिर्फ छत्तीसगढ़ के अलावा हर जगह महिला विधायकों की संख्या में कमी आई है। छत्तीसगढ़ में ये आंकड़ा बढ़ा है लेकिन उसे भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।
राजस्थान : 2013 से घट गई महिला विधायकों की संख्या
सबसे पहले बात करते हैं देश के सबसे बड़े राज्य (क्षेत्रफल के हिसाब से) राजस्थान की। राजस्थान की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 199 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें 2211 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई। महिला भागीदारी की बात करें तो 2211 उम्मीदवारों में मात्र 183 महिला उम्मीदवारों ने अपना नामांकन कराया, जो कुल उम्मीदवारों का महज़ 8 फीसदी था। दलवार अगर देखें तो महिलाओं को टिकट देने के मामले में कांग्रेस ने बाजी मारी हालांकि इसे भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस ने 25 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया। भाजपा ने 22, बसपा ने 13, और आप ने 9 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतरा। 51 महिला उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस तरह 183 महिला उम्मीदवारों में से 23 महिला प्रत्याशियों की जीत हुई। सबसे ज्यादा कांग्रेस की 11 महिला प्रत्याशियों की जीत हुई, भाजपा की 10, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की एक व एक निर्दलीय महिला प्रत्याशी विधायक चुनकर सामने आईं।
चुनाव परिणामों के बाद स्पष्ट हो गया की राजस्थान की नई चुनकर आई विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी 12 फीसदी रहेगी जो पिछली विधानसभा की तुलना में कम है | 2013 विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 27 (14%) थी जो वर्तमान में घटकर 23 रह गयी।
मध्य प्रदेश में 21 महिलाएं जीतीं
मध्य प्रदेश की बात करें तो कुल 230 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में 2738 उम्मीदवारों ने नामांकन दर्ज कराया, जिसमें 238 महिला उम्मीदवार थी। जो कुल उम्मीदवारों का महज 9 फीसदी है। सबसे ज्यादा कांग्रेस ने 26 महिला उम्मीदवारों को अपने चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ाया। भाजपा ने 24, आप ने 23, बसपा ने 22 और 68 निर्दलीय महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरीं। 238 महिला उम्मीदवारों में से 21 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव जीता, जिसमें भाजपा की 11, कांग्रेस की 9 और बसपा की 1 महिला उम्मीदवार चुनकर विधानसभा में आई।
यहां भी 2013 विधानसभा की तुलना में महिला विधायकों की संख्या में गिरावट आई है। पिछली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 29 थी जो वर्तमान में घटकर 21 रह गयी है।
छत्तीसगढ़ : भागीदारी बढ़ी लेकिन प्रतिशत अब भी कम
हिंदी पट्टी के एक और राज्य छत्तीसगढ़ को देखें तो महिला उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है मगर यह बढ़ोतरी ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं। 90 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में 1256 उम्मीदवारों ने नामांकन किया, जिसमें 125 महिला उम्मीदवार शामिल रहीं। सबसे ज्यादा भाजपा ने 14 महिला उम्मीदवारों को अपने चिह्न पर चुनाव लड़ाया। कांग्रेस ने 13, आप ने 6, बसपा ने 4 और 50 निर्दलीय महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरीं | 125 महिला उम्मीदवारों में से 13 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव जीता, जिसमें कांग्रेस की 10, भाजपा की 1, बसपा की 1 और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की 1 महिला उम्मीदवार चुनकर विधानसभा में आईं।
यहां 2013 विधानसभा की तुलना में महिला विधायकों की संख्या में 3 विधायकों की बढ़ोतरी हुई है। पिछली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 10 थी जो वर्तमान में बढ़कर 13 हो गयी है। इस तरह इस बार छत्तीसगढ़ विधानसभा में 14 फीसदी विधायक महिलाएं हैं।
तेलंगाना में सिर्फ़ 6 महिलाएं जीतीं
आंध्र प्रदेश से अलग होकर बने नए राज्य तेलंगाना में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। 119 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में 1781 उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमाई, जिसमें 136 महिला उम्मीदवार भी शामिल थीं। तेलंगाना के पहले मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) ने महज 4 महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा। भाजपा ने 13, कांग्रेस ने 10 और 37 महिलाओं ने निर्दलीय नामांकन कराया। 136 महिला उम्मीदवारों में से सिर्फ 6 महिला प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई, जिसमें कांग्रेस और टीआरएस की 3-3 महिला उम्मीदवार जीतीं।
मिज़ोरम में एक भी महिला विधायक नहीं
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को उत्तर भारत की तुलना में महिलाओं के लिए ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। जहाँ समाज में महिला-पुरुष के बीच असमानता कम नज़र आती है मगर मिज़ोरम के चुनावों पर नजर डाले तो आंकड़े कुछ और ही तस्वीर दिखाते हैं। यहां चुनावों में महिला भागीदारी न के बराबर नजर आती है। मिज़ोरम के सामाजिक ढांचे की इसे असफलता ही कहा जायेगा कि चुनाव जीतकर सरकार बनाने वाली मिज़ो नेशनल फ्रंट ने महिला प्रतिनिधित्व के नाम पर एक भी महिला को टिकट नहीं दिया। ऐसा नहीं है कि महिलाएं चुनाव मैदान में नहीं उतरीं। 40 विधानसभा सीटों के लिए 18 महिलाओं ने नामांकन कराया था मगर एक भी महिला को मिज़ोरम की जनता ने नहीं चुना। मिज़ोरम विधानसभा के इतिहास में ऐसा दो ही बार हुआ है कि किसी महिला विधायक को चुना गया हो।
चुनावों के दौरान महिलाओं को बराबर के मौके मिलें उनकी सभी क्षेत्रों में सामान भागीदारी हो ऐसी बात सभी राजनीतिक दल करतें हैं लेकिन टिकट बंटवारें में वे इस सिद्धांत का पालन नहीं करते और न जनता चुनते समय इसका कोई ख़्याल रखती है। इन पांच राज्यों का अगर जीत का औसत निकाला जाए तो महिलाओं की विधानसभा में हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम 9.27 फीसदी है। कुल 679 सीटों में महिलाओं के हिस्से आईं कुल 63। इस तरह चुनावी राजनीति में बराबरी का इंतज़ार देश की आधी आबादी (महिलाएँ) अभी भी कर रही है।
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