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बिहार : कॉस्टेबल स्नेहा को लेकर पुलिस सवालों के घेरे में, 6 जुलाई को पूरे राज्य में प्रदर्शन

मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग लेकर परिवार 25 जून से भूख हड़ताल पर था। परिवार का आरोप है कि पुलिस ने उनकी भूख हड़ताल भी जबरन तुड़वा दी।
Munger

बिहार में लगातार कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में है। महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं लगातार आ रही है। ज़्यादातर मामलों में पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे  में रहती है। इस बार तो एक महिला पुलिसकर्मी की तलाश को लेकर ही पुलिस गैरज़िम्मेदारना रवैया अपना रही है।

मामला है कॉस्टेबल स्नेहा का। स्नेहा काफी समय से लापता है। लेकिन पुलिस के मुतबिक उसकी मौत हो गई है। पुलिस ने एक लाश भी उसके परिवार को देने की कोशिश की। लेकिन परिवार के मुताबिक वो लाश स्नेहा की नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे लेने से मना किया। उसके बाद पुलिस ने उनके साथ मारपीट भी की। इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग लेकर परिवार और अन्य लोग 25 जून से भूख हड़ताल पर थे। इस बीच विपक्षी दल के नेता भी उनके समर्थन में आए। लेकिन आरोप है कि 30जून को पुलिस प्रशासन ने इन लोगों का अनशन जबरन खत्म करा दिया। 

अनशनकारियों का कहना है कि वो अपने लोकतंत्रिक अधिकार के तहत शांतिपूर्ण ढंग से अनशन कर रहे थे। लेकिन सरकार अब हमारे इस अधिकार को भी छीनना में लगी हुई है। 

30 जून को भाकपा-माले विधायक सत्यदेव रामराज्य कमेटी के सदस्य उमेश सिंह व ऐपवा की नेता संगीता सिंह की तीन सदस्यों की टीम  मुंगेर गई और आंदोलनरत लोगों से मुलाकात की व उनके आंदोलन को अपना समर्थन दिया। माले विधायक सत्यदेव राम ने न्याय की मांग कर रहे अनशनकारियों व अन्य आंदोलनकारियों पर झूठे मुकदमे थोपने की कड़ी निंदा की और उसे अविलंब वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस सवाल को विधानसभा के अंदर भी मजबूती से उठाया जाएगा।  

इस जांच दल के मुतबिक कि सिवान में तैनात आरक्षी (कॉस्टेबल) स्नेहा कांड के संबंध में जो घटनाक्रम उभरकर सामने आया है उससे प्रतीत होता है कि स्नेहा का लंबे समय से यौन शोषण किया जा रहा था और फिर उसकी हत्या कर दी गई। मामले को रफा-दफा करने के लिए उसके लाश को भी गायब कर दिया गया। इसमें पुलिस के उच्च अधिकारी तक शामिल हैं। जब इस कांड की सीबीआई जांच की मांग उठी तो आनन-फानन में उसे खारिज कर दिया गया और सीआईडी जांच बैठा दी गई। 

कॉस्टेबल स्नेहा के पिता मुंगेर निवासी विवेकानंद मंडल बताते हैं कि सिवान पुलिस को क्लीन चिट दिया जाना उच्च अधिकारियों को बचाने की कवायद है। यदि मामले की सही से जांच हो तो सिवान पुलिस के उच्च अधिकारी की सहभागिता स्पष्ट हो जाएगी।

29 मई को विवेकानंद मंडल को स्थानीय चौकीदार के माध्यम से पता चला कि उनकी बेटी की तबीयत खराब है। वे सिवान अपनी बेटी को देखने पहुंचे लेकिन उन्हें अपनी बेटी से मिलने नहीं दिया गया। कहा गया कि हॉस्पीटल में भर्ती है। सिवान पुलिस इधर-उधर की बात करते रही। फिर बताया गया कि उनकी बेटी की मौत हो गई। उसके बाद भी बेटी की लाश विवेकानंद मंडल को नहीं दिखलाई गई। सिवान में पोस्टमार्टम की बजाय स्नेहा का पोस्टमार्टम पीएमसीएचपटना में कराया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि सिवान के डॉक्टरों ने जब गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने से इंकार कर दियातो सिवान पुलिस ने उनकी जमकर पिटाई भी कर दी।

पीपीएमसीएच में बिना शव को दिखाए उसके पिता विवेकानंद मंडल का सुपुर्द किया गया और शव को घर ले जाने के लिए मजबूर किया गया। विवेकानंद मंडल का कहना है कि शव उनकी बेटी का था ही नहींउसकी जगह 20-25 दिनों का सड़ा-गला लाश उन्हें सुपुर्द किया गया। जब लाश लेने से परिजनों ने इंकार कर दिया तब मुंगेर एसपी गौरव मंगला और एसडीओ खगेशचंद झा के द्वारा नौवागढ़ी के लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की धमकी दी गई। पुलिस प्रशासन ने अपनी मौजूदगी में उस लाश का अंतिम संस्कार करवाया। इसके खिलाफ जून को आक्रोशित समुदाय ने सड़क जाम किया तो प्रशासन ने सबके ऊपर मुकदमा दायर कर दिया गया।

इस बर्बर घटना के खिलाफ मुंगेर में 24 जून से धरना व 25 जून से  अनशन चल रहा था लेकिन अब यह खत्म हो गया है। इस दौरान स्नेहा के पिता विवेकांनद की हालत बेहद खराब हो गई थी और वे अस्पताल में भर्ती हैं। 

जांच दल ने कहा है कि इस सवाल को प्रमुखता से विधानसभा में उठाया जाएगा। इसके 6 जुलाई को पूरे प्रदेश में प्रदर्शन किया जाएगा। हमारी मांग है कि बिहार सरकार दोषी पुलिस अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करे और पूरे मामले की सीबीआई जांच कराये। इसके पहले भी पटना में महिला आरक्षियों के आक्रोश का विस्फोट हम सब देख चुके हैं। यह बेहद शर्मिंदगी की बात है कि पुलिस विभाग में महिला आरक्षियों का यौन शोषण हो रहा है। महिला सशक्तिकरण का दावा करने वाली भाजपा-जदयू सरकार का असली महिला विरोधी चेहरा हर दिन बेनकाब हो रहा है।

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