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देश भर में सुनी जा रही है किसान आंदोलनों की गूँज

 सीकर  के आंदोलन  से ये साफ़ होता है कि किसानों की  एकता सरकारों को झुका  सकती है। सरकारें भी ये बात समझती हैं और इसीलिए इन  आंदोलनों का इस  तरह का दमन लगातार  जारी है। किसानों की बढती बेचैनी लगातार किसानों  को लामबंध होने के लिए प्रेरित कर रही है।
किसान आंदोलन

19 सितम्बर को  छत्तीसगढ़ में  कुछ किसानों  को पुलिस द्वारा  हिरासत  में लिया गया। ये गिरफ्तारियां छत्तीसगढ़ में किसानों के बड़े आंदोलन से पहले की गयी ।  सरकार  का कहना है कि उनके पास ये सूचना  थी कि ये प्रदर्शन हिंसक हो सकता है , इसीलिए गिरफ्तारियां की गयी हैं ।  दूसरी तरफ किसानों का कहना  है कि ये  सरकार द्वारा उनके लोकतान्त्रिक अधिकारों  का हनन  है। मज़दूर  किसान महासंगठन और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने छत्तीसगढ़ के राजनन्द  गांव  से 3  दिन की किसान यात्रा निकालने का आव्हान किया था। ये यात्रा छत्तीसगढ़ 19  सितम्बर  को  शुरू होकर छत्तीसगढ़ के 3 ज़िलों से गुज़ारनी थी । किसान नेता आलोक शुक्ला का कहना  है कि  "हम अपनी यात्रा राजनन्द गांव से शुरू करने वाले थे और 21 तारीख तक रायपुर पहुंचकर वहां प्रदर्शन करने वाले थे। हमारी मांग है  कि किसानों को सरकारी वादे के मुताबिक 3 साल का बोनस मिले , स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट लागू की की जाये और किसानों  के बाक़ी मुद्दे भी सुलझाए  जायें।  हमने प्रशासन को हमारी यात्रा मार्ग की भी जानकारी दी थी। पर सोमवार रात को वो किसान नेताओं को गिरफ्तार  करने लगे।पुलिस ने किसानों को राजनंद गांव जाने  से रोकने के भी  इंतेज़ाम किये । ये  पूरी तरह अलोकतांत्रिक है। "

पुलिस  का कहना है कि उन्होंने 26 लोगों को निवारक हिरासत में लिया है और 36 लोगों को धारा 144 के उलंघन करने के लिये गिरफ्तार किया है। इसके ठीक विपरीत छत्तीसगढ़ किसान मज़दूर संघ के कन्वीनर साकेत ठाकुर का कहना  है कि करीबन 500 किसान नेताओं को गिरफ्तार  किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार अपना किया  हुआ वादा निभाने में नाकाम रही है,  इसीलिए किसान नाराज़ हैं। इस डर  से कि  किसान कोई बड़ा आंदोलन ना करें , सरकार ये गिरफ्तारियां कर रही है।  

छत्तीसगढ़ के आलावा पंजाब में भी इसी  तरह  की  घटना  देखने  को मिली हैं । पंजाब के ही लाथोवाल गांव में सोमवार  को किसानों ने सरकार  के खिलाफ एक प्रदर्शन  शुरू  किया।  उनका  कहना है कि सरकार  ने गन्ने के  फसल की  कीमतें अब  नहीं  चुकाई  है। किसानों  का ये भी कहना  है कि उनको अपना  आंदोलन  बीच  में ही रोकना पड़ा क्योंकि उन्हें पुलिस  हिरासत में ले लिया गया था ।  किसानों  की  योजना  थी  कि  वो चीफ़ मिनिस्टर अमरिंदर  सिंह के घर के सामने  प्रदर्शन करेंगे।  पर पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया , इसके विरोध में किसानों ने मोहाली सडकों  पर आलू फेंक दिए।  किसानों  का कहना है  कि  उन्हें  आलू की  फसल के सही दाम  नहीं मिल रहे हैं , इसी लिए वो प्रदर्शन  करने  के लिए मजबूर हैं । किसान नेताओं  का कहना  है कि  ये प्रदर्शन  आगे  जारी रहेगा और जब तक उनकी  मांगे  नहीं मानी जाएँगी। इस प्रदर्शन  के दौरान पुलिस और किसानों के बीच झड़प हुई जिसमे 5 गांव वाले और 2 पुलिस कर्मी घायल हुए।  किसानों  का आरोप है कि  इससे पहले   करीबन 300 किसान नेताओं को गिरफ़्तार किया गया था।  किसान नेताओं  का कहना  है कि सरकार द्वारा किसानो के लोकतान्त्रिक अधिकार छीने जा रहे हैं , और इन गिरफ्तारियों  के बावजूद वो भारी संख्या में पटियाला में इक्कठा होंगे।  गौरतलब है कि सभी किसान  22 से 26  अक्टूबर को पटियाला में प्रदर्शन  करने वाले हैं।  

इसके अलावा  पंजाब में ही  करीबन 50 किसान संगठनो ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ  किसान जनजागृति यात्रा निकालने की  घोषणा की  है। दो दिन की  किसानों की  इस मुलाकात  में ये तय किया गया  कि  वो ये यात्रा 24 नवंबर से कुरुक्षेत्र  में शुरू करेंगे  और 28 फरवरी तक दिल्ली  पहुंचेंगे।  किसान कर्ज  माफ़ी  और उपज के सही  दामों  की  मांग कर रहे हैं।  

इन घटनाओं को सीकर के हाल में हुए किसान आंदोलन से जोड़कर देखा जाना चाहिए। सीकर में किसानों की एकता के चलते सरकार को उनकी सभी मांगें माननी पड़ी  हैं ।  पर आंदोलन की इस  जीत के बाद सरकार ने इन्ही घटनाओं की तरह वहां भी करीबन 1500 किसानों पर बेबुनियाद आरोपों पर मुकदमें दर्ज किये हैं।  इन सभी मामलों  से केंद्र और राज्य  सरकारों की किसानों के प्रति असंवेदनशीता ज़ाहिर होती है।यहाँ  यूपी  का उदाहरण भी दिया जा सकता है जहाँ बहुत से गरीब किसानो के साथ कर्ज माफ़ी के नाम पर मज़ाक हो रहा है। वहां एक किसान चिन्धि का 1 रूपया कर्ज  माफ़ हुआ है , जबकी उनका  कहना  है कि ये रकम कम से कम एक लाख होनी चाहिए थी। इनके अलावा किसान शंभूनाथ  के 12  रुपये  और शाहजहांपुर के राम प्रसाद  के 1 रुपये  50  पैसे माफ़ हुए हैं। इन्ही  की  तरह उत्तर प्रदेश  के लगभग 10,000 किसान हैं जिनके साथ ये भद्दा मज़ाक हुआ है।यूपी प्रशासन का कहना  है कि  ये टेक्नीकल वजहों से ये गलती हुई है।  पर ध्यान से देखने  पर ये किसानों के दर्द और सरकारों द्वारा उनके शोषण  की कहानी बयां  करता है। 

वरिष्ठ पत्रकार प साईनाथ के मुताबिक ये कृषि संकट  काफी गहरी  समस्या है और ये सिर्फ कर्ज माफ़ी से सुलझायी नहीं जा सकती। उनके हिसाब से 1991 की नव उदारवादी नीतियां इसके लिए ज़िम्मेदार हैं।  इन नीतियों के चलते बड़ी निजी कंपनियों ने बीज और फ़र्टिलाइज़र बाज़ार पर कब्ज़ा कर लिया है, जिससे  कृषि उत्पादन की लागत बहुत बढ़ गयी है, लेकिन किसानों की आय नहीं बढ़ी है।  किसानों की आय और उत्पादन की कीमत के बढ़ते दायरे की वजह से ये समस्या इतनी गहरी हुई है। इसके अलावा पिछले साल बुआई के समय हुई नोटबंदी ने आग में घी का काम किया है।

इस प्रसंग  में सीकर का हाल में हुआ किसान  आंदोलन और उसकी  जीत एक नयी उम्मीद की किरण जगाती  है। सीकर  के आंदोलन  से ये साफ़ होता है कि किसानों की  एकता सरकारों को झुका  सकती है। सरकारें भी ये बात समझती हैं और इसीलिए इन  आंदोलनों का इस  तरह का दमन लगातार  जारी है। किसानों की बढती बेचैनी लगातार किसानों  को लामबंध होने के लिए प्रेरित कर रही है।  इससे आने  वाले दिनों में एक देश व्यापी  किसान आंदोलन होने की  उम्मीद की जा सकती है।  

 

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