डीयू: शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ छात्रों का प्रदर्शन
हरियाणा में छात्र और अन्य जन संगठन जब कॉलेजों में 2 से 3 गुना फ़ीस वृद्धि व शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ हरियाणा में अलग अलग जगह पर प्रदर्शन कर रहे थे, उस दौरान सरकार द्वारा कई छात्रों को हिरासत में लिया गया और कई पर मुक़दमे हुए थे।
छात्रों का आरोप है कि कई छात्र जिनको गिरफ़्तार गया उनकी अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली है।
टाटा इंस्टीटूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़(TISS) में भी छात्र लगातार आंदोलन कर रहे हैं। भूख हड़ताल के चलते 2 छात्रों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा है।
हरियाणा और हैदराबाद में हो रहे छात्र आंदोलनों की इन सब मांगों के समर्थन में व छात्रों पर पुलिस के बर्बर दमन और बेबुनियाद मुक़दमों के खिलाफ़ आज दिल्ली विश्विधायालय के छात्रों ने सयुंक्त रूप से प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन में आइसा ,एसएफ़आई, दिशा, केवाईएस सहित कई अन्य संगठनों ने भाग लिया और छात्रों पर सरकारों के इन हमलों की निंदा की।
छात्र संगठनों के मुताबिक़- "14 जुलाई को सोनीपत में हरियाणा के मुख्यमंत्री को इसके संबंध में ज्ञापन देने के लिए 100-150 से भी ज़्यादा लोग इकट्ठा हुए, पर उनको सीएम से मिलने नहीं दिया गया और पुलिस ने बहुत बर्बर तरीक़े से उन पर लाठीचार्ज किया।
इसके बाद 14 छात्र नामज़द किये गए और 100-150 अन्य लोगों पर मुक़दमे दर्ज किए गए। 14 छात्रों को पुलिस हिरासत में रखा गया और उन पर 3rd डिग्री टॉर्चर किया गया। एक छात्र जिसकी उम्र 17 वर्ष है, उसको भी हिरासत में लिया गया है। अगले ही दिन रोहतक से 4 छात्रों को अलग-अलग स्थानों से उठाया गया जिनके बारे में अभी तक कोई सूचना नहीं है। इसके बाद भी 2 साथियों को ग़ैर-क़ानूनी रूप से गिरफ़्तार किया गया।"
छात्रों ने पुलिस की इस कार्यवाही को बहुत निंदनीय और शर्मनाक कहा है। उन्होंने कहा, "पुलिस और सत्ता द्वारा बुनियादी मांगों को लेकर लड़ रहे छात्रों के प्रति ऐसा बर्ताव बहुत निंदनीय है। तथाकथित लोकतंत्र में प्रदर्शन करने के कारण छात्रों पर मुक़दमा दर्ज करना और प्रताड़ित करना घोर शर्मनाक है। इसका विरोध करना आज ज़रूरी है नहीं तो यह हमारे बुनियादी जनवादी अधिकार को ख़त्म कर देगा।"
निजीकरण से शिक्षा को आम जन से दूर करने की साज़िश!
शिक्षा प्राप्त करना हर व्यक्ति का बुनियादी एवं मूलभूत अधिकार है। छात्रों का सवाल था- "क्यों लगातार शिक्षा को ख़रीदने-बेचने वाली वस्तु बनाना सरकार की नीतियों का केन्द्र बन गया है? जिससे बहुत बड़ा और वंचित वर्ग (मेहनतकश, दलित, आदिवासी और किसान) शिक्षा से बाहर होता जा रहा है।"
आगे वो कहते हैं, "इससे स्पष्ट ज़ाहिर होता है कि इन तबकों से शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों को शिक्षा से बाहर करने का और पूंजीपति वर्ग को मुनाफ़ा पहुंचाने का सरकारों द्वारा रचा गया एक गहरा षडयंत्र है।
सरकार देश की अधिकांश जनता को वैज्ञानिक एवं लोकतांत्रिक शिक्षा से वंचित करके उन्हें धर्म एवं जाति के नाम पर लड़ाना चाहती है ताकि पूंजीपतियों को शिक्षा का निजीकरण करके ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा पहुंचाया जा सके।"
एसएफआई दिल्ली राज्य उपाध्यक्ष सुमित कटारिया का कहना है कि "एसएफआई दिल्ली विश्वविद्यालय फीस वृद्धि के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हरियाणा के संघर्षशील छात्रों को क्रांतिकारी सलाम पेश करता है। उनके संघर्ष के फलस्वरूप उच्च शिक्षा के लिए फीस में की गई मनमानी बढ़ोतरी को वापस ले लिया गया है। प्रशासन द्वारा छात्रों पर किए गए क्रूर हमलों की मैं निंदा करता हूँ। फीस वृद्धि की वजह से समाज के गरीब तबको को उच्च शिक्षा प्राप्ति में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। भारत की सामाजिक परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए लोकोपकारी नीतियां अधिकारियों द्वारा बनाई जानी चाहिए।"
प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने सरकार से मांग की -
1. सोनीपत और रोहतक में 100-150 लोगों पर दर्ज झूठे केस वापिस लिए जाएं। और 14 साथियों को प्रताड़ित करने के ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही की जाए।
2. रोहतक में पुलिस द्वारा अगवा किए 4 छात्रों के बारे में जवाब दिया जाए और उनको वापिस छोड़ा जाए।
3. बढ़ाई गई फ़ीस तुरंत वापस ली जाए। शिक्षा का निजीकरण करना बंद किया जाए और प्राईवेट स्कूलों मे नियम 158ए लागू किया जाए।
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