बिहार : “ललका झंडा दिल्ली में जाईके धूम मचईते अबरी हो!”
“ललका झंडा दिल्ली में जाईके धूम मचईते अबरी हो…”- जन सांस्कृतिक मंडली के कलाकारों द्वारा गाये जा रहे ऐसे कई चुनावी लोक जनगीत इन दिनों बिहार के उन इलाकों में काफी प्रभाव डाल रहें है जहाँ से वाम दलों के प्रत्याशी चुनावी टक्कर दे रहें हैं।
सनद रहे कि इस बार गैर भाजपा विपक्षी दलों-राजद, कांग्रेस तथा वीआईपी सहित सभी वाम दलों (सीपीआई, सीपीआई-एम व भाकपा माले) द्वारा बनाए गए ‘INDIA गठबंधन’ के सीट बंटवारे के समझौते के तहत वामपंथी दलों को बिहार में पांच संसदीय सीट मिली हैं। जिनमें से अब तक सम्पन्न हुए चार चरण के मतदान में खगड़िया (तीसरा चरण) और बेगूसराय (चौथा चरण) से इंडिया गठबंधन के साझा प्रत्याशी के रूप में सीपीआई-एम और सीपीआई के उम्मीदवारों के सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका हैं। शेष तीन सीटों- आरा, नालंदा और काराकाट पर जहाँ INDIA प्रत्याशी के रूप में भाकपा माले के उम्मीदवार खड़े हुए हैं, मतदान होना बाकी है।
इस बार बिहार में हो रहे लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के ‘INDIA गठबंधन’ में वाम दलों को पांच सीटें देने को लेकर बहस रही, लेकिन उसे बिहार के मतदाताओं पर छोड़कर फिलहाल सभी पूरी एकजुटता के साथ चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं।
गौरतलब है कि जिन सीटों से वाम दल के उम्मीदवार इस चुनाव में खड़े हुए हैं, वो सभी सीटें दशकों से वामपंथी संघर्ष के सघन इलाके के रूप में जानी जाती हैं। जहाँ एक मजबूत आन्दोलनकारी सामाजिक जनाधार आज भी अपने प्रभाव के साथ के साथ सक्रिय है।
अलबत्ता इस बार की एक नयी व सार्थक स्थिति ये ज़रूर बनी है कि INDIA गठबंधन के तहत राजद तथा कांग्रेस के साथ साथ सभी वाम दल गठबंधन के साझा प्रत्याशियों की जीत की गारंटी के लिए ज़मीनी रूप से सक्रिय दीख रहे हैं।
जिन संसदीय क्षेत्रों से वाम दलों के प्रत्याशी नहीं हैं और वहां से INDIA गठबंधन के अन्य दलों के साझा प्रत्याशी हैं, वाम दल के कार्यकर्त्ता-जनाधार अपनी पूरी उर्जा के साथ महागठबंधन प्रत्याशी के लिए ज़मीनी स्तर पर डटे हुए हैं। उसी तरह से वाम दलों के प्रत्याशियों वाली सीटों पर गठबंधन के सभी दलों के कार्यकर्त्ता-समर्थक पूरी मुस्तैदी से उतरे हुए हैं।
ध्यान देने की बात यह भी है कि अब जबकि लोकसभा 2024 के चुनाव के अंतिम चरण, 1 जून के मतदान के लिए भी नामांकन कार्य इत्यादि पूरा हो चुका है, बिहार की जिन भी संसदीय सीटों पर भाजपा-NDA गठबंधन के खिलाफ ‘INDIA गठबंधन’ ने भी प्रदेश की सभी संसदीय सीटों पर अपने साझा उम्मीदवार खड़े किये हैं, वहां ज़मीनी रूप से एकजुट सक्रियता साफ़ दीख रही है।
इसका ही सकारात्मक परिणाम है कि इस बार बिहार में हो रहे संसदीय चुनाव की स्थिति 2019 के चुनाव से बिल्कुल भिन्न है। चार चरण के मतदान के बाद “चार सौ पार” का राग अलापने वाले “धुरंधर चुनावी विश्लेषक” भी भाजपा गठबंधन की एकतरफा जीत कहने से अब कतराने लगे हैं।
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि इस बार बिहार के लोकसभा चुनाव में INDIA-गठबंधन की ज़ोरदार स्थिति की पृष्ठभूमि 2020 में बिहार के विधानसभा चुनाव के समय ही तैयार की गयी थी। जब उस चुनाव में महागठबंधन के तहत राजद व कांग्रेस समेत सभी वाम दलों ने आपसी सहमती से साझा उम्मीदवार खड़े किये थे। वाम दलों की प्रभावकारी भागीदारी ने असर दिखाया और उसका सार्थक परिणाम सामने भी आया।
उसी आपसी साझापन की निरंतरता को आगे बढ़ाते INDIA गठबंधन के साझा प्रत्याशियों के नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार और गोलबंदी में सभी घटक दलों के प्रमुख नेताओं तक की सक्रिय भागीदारी दिख रही है।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार का महागठबंधन मॉडेल, देश की मौजूदा सत्ता-राजनीति में एक नए चरित्र के ध्रुविकरण को सामने लाया है। जिसमें समाजवादी-सामाजिक न्याय की धारा और वाम धारा की बन रही ज़मीनी एकता, देश में लोकतान्त्रिक बहुदलीय राजनीति पर मंडरा रहे आसन्न खतरे के कारगर मुकाबले के लिए एक नए किस्म के विकल्प निर्माण की राह प्रशस्त रही है। जिसमें दशकों से बिहार के गरीब-गुरबों, दलित-वंचित समुदायों तथा मजदूर-किसानों-महिला-छात्र-युवाओं समेत समाज के सभी वर्गों के सवालों को लेकर बड़े बड़े जनांदोलन खड़ा करनेवाले वामपंथी की प्रभाकरी भूमिका गैर भाजपा विपक्षी एकता को ‘एक नयी दिशा’ दे रही है।
यही वजह है कि इस बार बिहार में हो रहे लोकसभा चुनाव में राजद के साथ साथ वाम दलों के भी सभी आन्दोलनकारी प्रत्याशी भाजपा गठबंधन को कड़ी चुनावी टक्कर देते हुए साफ़ दीख रहें हैं। “गोदी मीडिया” द्वारा इन्हें कमतर बताने या चर्चा से भी बाहर रखने की हरकतों को भी करारा जवाब मिल रहा है।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजद के साथ भाकपा माले समेत सभी वाम दलों के सामाजिक जनाधारों की ‘लाल-हरे’ की बन रही ज़मीनी एकता ही बिहार के गाँव-समाज से लेकर व्यापक सामाजिक दायरे में भाजपा-आरएसएस और “मोदी सेना” के लिए हर स्तर पर ज़ोरदार चुनौती दे रही है । जिसका सकारात्मक परिणाम भी अवश्य सामने आयेंगे।
वर्तमान बिहार विधानसभा में वाम दलों के 14 विधायकों की दमदार उपस्थिति भी इसी का एक संकेत है। जिसमें विशेष रूप से पहली बार भाकपा माले के 12 विधायकों की उपस्थिति एक अहम् पहलू है। जो कि निशचय ही आनेवाले दिनों में देश की गठबंधन राजनीति में एक नया और सार्थक प्रभाव डालने वाला साबित होगा।
ध्यान देने योग्य पहलू यह भी है कि भाकपा माले, सीपीआईएम और सीपीआई के प्रत्याशी जहाँ जहाँ भी खड़े हैं, उन सभी इलाकों में दशकों से प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों के साथ साथ देश स्तर के चुनौतीपूर्ण मुद्दों को लेकर निरंतर ज़मीनी जन आन्दोल व अभियान संचालित होते रहें हैं। ’70-80 के दशक में तो सीपीआई एमएल के नेतृत्व में संचालित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन और इंडियन पीपुल्स फ्रंट की आन्दोलनकारी सक्रियता का ही सामाजिक प्रभाव ही था कि अरसे तक पूरे मध्य बिहार क्षेत्र को ‘धधकते खेत-खलिहान’ के नाम से जाना जाता रहा। वहीं बेगूसराय क्षेत्र को सीपीआई के ‘लेनिनग्राद’ नाम से जाना जाता रहा।
बहरहाल, लोकसभा के चुनाव परिणाम आना अभी बाकी हैं लेकिन प्राप्त हो रहे प्रारंभिक राजनीतिक संकेतों से इतना तो साफ़ परिलक्षित हो रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार से निकलने वाले जनादेश में ‘वामपंथ का लाल झंडा’, गोदी मीडिया द्वारा चीख़ चीख़कर गढ़े गए “हाशिये पर वामपंथ” के नैरेटिव को धता बताकर अपनी प्रभावी उपस्थिति अवश्य ही दर्ज़ करेगा।
ये सर्वविदित है देश के लोकतंत्र और संविधान पर बढ़ते खतरे-हमले व सांप्रदायिक-उन्माद की फासीवादी राजनीति के खिलाफ सदन से लेकर सड़कों की ज़मीनी सक्रियता विकसित व संगठित करने के मामले में वाम दल ही अभी तक सबसे अधिक सक्रिय देखे गए हैं। सारे वामदलों का मानना है कि देश सत्ता में काबिज़ राजनीति और उसका शासन पूरी तरह से कॉर्पोरेटपरस्त है, इसीलिए वे मौजूदा केंद्र की सरकार को हर लिहाज से जनविरोधी मानते हैं। जिसके महत्व को कहीं से कम करके नहीं आँका जा सकता है।
कुलमिलाकर उक्त विशेष सन्दर्भों में इतना तो साफ़ नज़र आता है कि बिहार के जरिये इस देश में प्रभावी जनविरोधी सत्ता-सियासत के खिलाफ बिहार के सभी वाम दल एक नया दिशा निर्देश देने की भूमिका बखूबी निभा रहें हैं। जिसका सार्थक परिणाम अवश्य ही सामने आयेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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