अमेरिकी विदेश नीति में यथार्थवादियों का अंततः उदय
संयुक्त राज्य अमेरिका ने विगत वर्ष 2020 के शरद ऋतु के दौरान ही अपने सबसे शानदार, तीक्ष्ण, अभी तक अघोषित अनछुए विचारकों में से एक शर्ले आर. श्वेनिंगर में को खो दिया था।
श्वेनिंगर के कई अवदानों में से एक अग्रिम प्रवृत्तियों का सटीक अनुमान लगाने की उनकी जबरदस्त क्षमता थी, जो आने वाले दिनों में अमेरिकी विदेश नीति और वैश्विक राजनीतिक अर्थव्यवस्था को एक आकार देगी। वे उन पहले विचारकों में से एक थे, जिन्होंने वाशिंगटन में विदेश नीति-विमर्श पर हावी रहने वाले घिसे-पिटे उदारवादी अंतर्राष्ट्रीयवाद और नव-रूढ़िवाद के विकल्प को बढ़ावा दिया था।
श्वेनिंगर के अनुसार, "प्रगतिशील यथार्थवादी समालोचना...अंतरराष्ट्रीय कानून के इर्द-गिर्द; गैर-हस्तक्षेप; निरस्त्रीकरण; और 9/11 के उत्तरार्ध की अवधि की सबसे खराब ज्यादतियों को खत्म करने पर केंद्रित है।" हालांकि, दुख की बात है कि वे इसे व्यवहार में साकार होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे, पर जहां तक अमेरिकी विदेश नीति का संबंध है, शायद इतिहास अंततः श्वेनिंगर की अभीष्ट दिशा में ही गतिमान हो रहा है।
श्वेनिंगर का विचार प्रगतिशील यथार्थवाद पर ही केंद्रित था, जिसे उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प के जनवरी 2017 में राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण के पहले ही हफ्ते के दौरान विदेश नीति पर आधारित दि नेशन के अंक के संपादन में विशेष रूप से रखा था।
श्वेनिंगर ने इस अंक के लिए बिना हस्ताक्षर के एक परिचयात्मक नोट में लिखा कि आने वाले वर्षों में "प्रगतिशील लोग कम से कम दो प्रवृत्तियों से बचने में बुद्धिमानी दिखाएंगे"। उन्होंने आगे कहा:
“पहली प्रवृत्ति प्रगतिशील विदेश नीति को परिभाषित कर रही है कि ट्रम्प जो कुछ भी कहते हैं या करते हैं, वह उसे केवल खारिज कर देती है। बेशक, उन्होंने पहले ही कुछ खतरनाक चरमपंथियों को महत्वपूर्ण विदेश-नीति के पदों पर नियुक्त कर दिया है, और ट्रम्प स्वयं भी सबसे अधिक अनिश्चित व्यवहार वाले राजनेता हैं।… लेकिन उनके कुछ बयान-जैसे कि, रूस के साथ काम करने, अमेरिका के जारी विनाशकारी युद्धों को समाप्त करने, और दूसरे देशों के साथ किए गए व्यापार समझौते को अधिक से अधिक न्यायसंगत बनाने के उनके आह्वान-उन वक्तव्यों से इतने दूर नहीं हैं, जिन्हें हमने खुद ही अपनाया हुआ है। हमें इन्हें सीधे तौर पर खारिज कर देने की बजाय हमें स्वयं ही इन स्थितियों के प्रगतिशील संस्करण के एक चैंपियन बनने की आवश्यकता होगी।
“दूसरी प्रवृत्ति, ओबामा-युग की पुरानी यादों के प्रति व्यामोह में पड़ने की है, जिनसे हमें बचना चाहिए।”
श्वेनिंगर ने यह सलाह अमेरिकी उदारवादियों और प्रगतिवादियों को दी थी-जिसकी तरफ अब शायद ही इंगित करने की जरूरत है- पर उस सलाह को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था।
वास्तव में, 2017 के बाद, एक व्यवहार्य वैकल्पिक प्रगतिशील विदेश नीति बनाने के महत्त्वपूर्ण काम को ट्रम्प के प्रति उदार भाव रखने वाले बचकाने उन्माद ने लगभग असंभव बना दिया था। इसी बीच, कैपिटल हिल पर पूरे डेमोक्रेटिक कॉकस में से, केवल तीन, रो खन्ना और बारबरा ली और ओरेगन सेन ही बे एरिया के रिप्रेजेंटेटिव हैं। वहीं, जेएफ मर्कले-ऐसी नीति के आग्रही लग रहे थे, लेकिन उनके अलावा, शायद कोई वैकल्पिक प्रगतिशील नीति के प्रति उत्साह दिखा रहा है। श्वेनिंगर और अन्य द्वारा हितधारकों के साथ पैरवी करने की कोशिश को, जिन्हें 2016 में ऐसी नीति अपनाने के लिए बर्नी सैंडर्स अभियान का स्वाभाविक सहयोगी होना चाहिए था, उसे घोर निराशा हाथ लगी है।
कहने की जरूरत नहीं है कि वाशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अग्रणी थिंक टैंक और ग्रेजुएट स्कूलों में प्रगतिशील यथार्थवादी विचारों के लिए वर्षों तक शायद ही किसी उत्साह का वातावरण था। यह न्यू अमेरिका फाउंडेशन के संबंध में विशेष रूप से सच था, जिसकी स्थापना श्वेनिंगर ने 1990 में माइकल लिंड, टेड हैल्स्टेड और वाल्टर रसेल मीड के साथ मिल कर की थी, जिसे अब न्यू अमेरिका के नाम से जाना जाता है।
हाल के वर्षों में न्यू अमेरिका ने जिस दिशा में अपना कदम बढ़ाया था, वह एक अन्य अर्थ में समभाव वाले विचारक श्वेनिंगर के लिए एक दुखद जगह थी। इस संस्था पर बाद के वर्षों में ऐनी-मैरी स्लॉटर का दखल हो गया था, उनके कार्यकाल में हैरान करने वाले बदलाव हुए थे। स्लॉटर पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के कार्यकाल में विदेश मंत्रालय में सलाहकार रही थीं। यह ऐनी स्लॉटर ही थीं, जिन्होंने इस संगठन को सभी तरह के बुद्धिजीवियों के लिए भली-भांति वित्त-पोषित मंच बना दिया था, जिन पर श्वेनिंगर सबसे ज्यादा अविश्वास करते थे: वे उन्हें अगले युद्ध की तलाश में उदारवादी मानते थे।
जब तक वे और मैं आपस में दोस्त बने, तब तक वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में विचार के मुख्य अवयवों में से कुछ आश्चर्यजनक रूप से हम में से कतिपय लोगों के प्रति वैमनस्य रखने लगे थे, जिन्होंने खुलेआम उनके इस विचार का प्रतिवाद किया था कि अमेरिका को न केवल नौ अवैध और असंवैधानिक युद्ध ठान देना चाहिए, बल्कि रूस और चीन के साथ भी दो मोर्चों पर शीत युद्ध छेड़ देना चाहिए। श्वेनिंगर अब केवल उस तमाशे पर अपना सिर ही हिला सकते थे जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विरोधियों ने पलक झपकते ही अपने को उनके सबसे मुखर चीयरलीडर्स में बदल दिया था, जब उन्होंने सीरिया पर बमबारी करने का फैसला किया।
उसी समय, श्वेनिंगर ने सिलिकॉन वैली, पेंटागन और वॉल स्ट्रीट के बीच उभरते गठबंधन के रूप में एक और परेशान करने वाली प्रवृत्ति देखी। जब भी विदेश नीति पर बात होती है तो श्वेनिंगर को वामपंथियों को "प्रगतिशील अधिनायकवादी" कहे जाने पर लगातार पश्चाताप होता है; ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान, जो कोई भी यह सुझाव देने की हिम्मत करता कि रूस के साथ अमेरिका का अच्छा संबंध एक समझदार नीति हो सकती है, या सीरिया में युद्ध कॉर्पोरेट मीडिया (विशेष रूप से सीएनएन और वाशिंगटन पोस्ट) द्वारा प्रचारित इस्लाम समर्थक नैरेटिव की तुलना में थोड़ा अधिक जटिल था, तो उन्हें तुरंत पुतिन और/ अथवा असद की तरफ से माफी मांगने वालों या उनके समर्थक होने का लेबल चस्पां कर दिया जाता था...या उनके खिलाफ इससे भी बदतर आरोप लगा दिए जाते।
ये हमले उदारवादी और प्रगतिशील लोगों की ओर से हो रहे थे, जो मैकार्थीवाद विरोध की अपनी परंपरा से जान-बूझकर मुंह मोड़ रहे थे, जिसने इस तमाशे को और भी दयनीय बना दिया था।
लेकिन पिछले एक साल में कुछ बदल गया है, जिस कारण मेरा मानना है कि ट्रम्प के जाने से वाशिंगटन में "वायुमंडल" में बदलाव आया है। अचानक, अब ऐसा लगता है कि एक तरह की "श्वेनिंगेरियन" विदेश नीति को बढ़ावा देने के इच्छुक लोगों के लिए जगह खुल गई है। ऐसा करने के लिए तैयार दिखाई देने वाला पहला मुख्यधारा समूह चार्ल्स कोच और जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित क्विंसी इंस्टीट्यूट फॉर रिस्पॉन्सिबल स्टेटक्राफ्ट संगठन था, जिसे 2019 में स्थापित किया गया था। बाद के वर्षों में, कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस और अटलांटिक काउंसिल जैसे लंबे समय से स्थापित थिंक टैंक ने इन-हाउस प्रोग्राम किए हैं, जो एक अधिक यथार्थवादी और संयमित अमेरिकी विदेश नीति को बढ़ावा देते हैं।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने भाषण में और भी अधिक उत्साहजनक तरीके से अफगानिस्तान में 20 वर्षों से जारी अमेरिकी दखल के अंत की घोषणा करते हुए इस फैसले के बचाव में बार-बार "राष्ट्रीय हित" का आह्वान किया। बाइडेन के लिए यह "दूसरे देशों के रिमेक के मकसद से किए जाने वाले प्रमुख सैन्य अभियानों के युग" का एक अंत था।
बाइडेन ने 31 अगस्त को दिए गए अपने भाषण में आगे कहा:
“अफगानिस्तान में युद्ध के तीसरे दशक की मांग करने वालों से मैं यह सवाल पूछता हूं: देश का महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय हित क्या है?…
“मैं सम्मानपूर्वक आप को खुद से यह प्रश्न पूछने की सलाह देता हूं : यदि 11 सितंबर 2001 को अफगानिस्तान की बजाए यमन ने हम पर हमला किया होता तो क्या हम कभी अफगानिस्तान में युद्ध के लिए जाते-भले ही वहां तालिबान हुकूमत कर रहा होता? मेरा मानना है कि इसका ईमानदार उत्तर 'नहीं' है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका को अपनी मातृभूमि और अपने दोस्त देशों पर किए जाने वाले हमले को रोकने के अलावा अफगानिस्तान में हमारा कोई महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय हित था ही नहीं।
“मेरी राय में एक राष्ट्रपति का मौलिक दायित्व अमेरिका का बचाव करना और उसकी हिफाजत करना है।…
“मैं बस यह नहीं मानता कि अफगानिस्तान में हर साल हजारों अमेरिकी सैनिकों को तैनात करने और इस पर अरबों डॉलर खर्च कर देने से अमेरिका के बचाव और सुरक्षा में कोई बढ़ोतरी हुई है।”
ऐसा करते हुए मालूम होता है कि बाइडेन ने एक साथ विदेश नीति की कई थीमों को अपनाया है, जिनकी श्वेनिंगर जैसे विद्वान लंबे समय से वकालत करते रहे हैं।
हालांकि, दुख की बात है कि वे इसे परिघटित होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे लेकिन जहां तक अमेरिकी विदेश नीति का संबंध है, शायद इतिहास अंततः श्वेनिंगर की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
(जेम्स डब्ल्यू कार्डेन संप्रति ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो हैं और इसके पहले वे अमेरिकी विदेश विभाग में सलाहकार रहे हैं।)
स्रोत: इस लेख ग्लोबट्रॉटर द्वारा प्रकाशित किया गया था।
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
https://www.newsclick.in/in-US-foreign-policy-realists-finally-rise
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