केरल में पूर्ण ग़रीबी उन्मूलन की प्रस्तावित योजना लागू होना तय
राज्य में पिछली वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के पांच वर्षों के दौरान, केरल ने समाजिक सुरक्षा जाल के चौड़ीकरण करने और भूख एवं बेघरबार होने जैसी समस्याओं को दूर करने के क्षेत्र में खूब वाहवाही बटोरी थी। इस साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनावों के लिए एलडीएफ घोषणापत्र में भी पूर्ण निर्धनता के उन्मूलन समेत कई महत्वाकांक्षी वादे किये गये थे; और यही वजह है कि वे एक बार फिर से ऐतिहासिक जनादेश जीतने में कामयाब रहे।
ऐसे में फिर यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि वर्तमान सरकार द्वारा शपथ ग्रहण के फौरन बाद मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की पहली ही बैठक में लिए गये फैसलों में सबसे पहली घोषणा यह ली गई कि घोर निर्धनता को उत्पन्न करने वाले प्रमुख संकट कारकों का गहन विश्लेषण संचालित किया जायेगा और उससे उबरने के लिए ठोस उपायों को सुझाया जायेगा।
15 जुलाई को स्थानीय स्व-शासन मंत्री एमवी गोविंदन ने घोषणा की कि मंत्रिपरिषद द्वारा योजना के अनुमोदन के पश्चात ग्रामीण विकास के लिए अतिरिक्त आयुक्त संतोषकुमार को इस प्रोजेक्ट के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। गोविंदन के मुताबिक एक पायलट सर्वेक्षण किया जाएगा जिसके बाद नोडल अधिकारी की अध्यक्षता वाली एक समिति के द्वारा गहन सर्वेक्षण किया जायेगा। यह सर्वेक्षण इस वर्ष दिसंबर के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।
केरल में पूर्ण ग़रीबी का स्तर
पिछले 40 वर्षों के दौरान, केरल में भूमि सुधारों, सार्वजनिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा, एक मजबूत सार्वजनिक वितरण प्रणाली, स्थानीय स्व-शासन के जरिये शक्तियों के विकेंद्रीकरण, सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी योजनायें एवं कुदुम्बश्री कार्यक्रमों जैसे कई प्रावधानों के नतीजे के तौर पर पूर्ण गरीबी में तेजी से गिरावट आई है।
केंद्र सरकार के योजना आयोग के आंकड़ों के अनुसार, केरल में 1973-74 में पूर्ण गरीबी की घटना 59.79% थी, जो 2011-12 में घटकर 7.05% रह गई थी। यह अखिल भारतीय स्तर के पूर्ण गरीबी के अनुपात में तुलनात्मक रूप से काफी अच्छी रही, जो 1973-74 में (केरल की तुलना में उस समय कम) 54.88% थी, और 2011-12 में घटकर 21.92% तक हो पाई थी।
हालांकि जैसा कि केरल आर्थिक समीक्षा 2020 ने पाया गया है कि भले ही केरल औसत गरीबी के अनुमानों के मामले में भारत के अधिकांश अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर स्थिति में है, लेकिन इसके बावजूद राज्य में कई हिस्सों में वंचितों की मौजूदगी बनी हुई है। केरल में पूर्ण गरीबी मुख्यतया अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन-जातियों, मछुआरा समूहों, कुम्हारों और कारीगरों के बीच में केंद्रित है।
पूर्ण ग़रीबी के उन्मूलन की योजना
2021 के एलडीएफ घोषणापत्र में पूर्ण गरीबी के उन्मूलन कार्यक्रम की रुपरेखा पहली बार इस साल जनवरी में पूर्व वित्त मंत्री थॉमस इसाक द्वारा पेश किये गए बजट में रखी गई थी। राज्य में पहले से ही कुदुम्बश्री कार्यक्रम मौजूद है, जिसे अगथिरहिथा केरलम कहा जाता है, जिसने आश्रय प्रोजेक्ट को विस्तारित कर निराश्रित परिवारों के 1.6 लाख लाभार्थियों को पुनर्वास मुहैय्या कराया है।
प्रस्तावित सर्वेक्षण उन सभी की पहचान करेगा जो वर्तमान कार्यक्रम में आने से वंचित रह गये थे, जिनके बारे में अनुमान है कि इसमें करीब 4.5 लाख परिवार हैं। उन परिवारों को जो वृद्ध हैं, मानसिक या शारीरिक अक्षमताओं का सामना कर रहे हैं, जो लोग अशक्त कर देने वाले रोगों से जूझ रहे हैं, वे बच्चे जो अनाथ हैं, बेघरबार लोग और लंबे समय से प्रवासियों के परिवार जो अब बेरोजगार हैं, इत्यादि को इसमें प्राथमिकता दी जायेगी।
प्रस्ताव है कि ऐसे प्रत्येक परिवार की जरूरतों और समस्याओं की पहचान करने और उन्हें पूर्ण गरीबी से बाहर निकालने के लिए अलप्पुझा में पीके कलां योजना के तहत उल्लादर समुदाय के परिवारों के लिए तैयार की गई सफल योजनाओं पर आधारित सफल योजनाओं के आधार पर उन्हें पूर्ण गरीबी से बाहर निकालने के लिए सूक्ष्म योजनायें तैयार किये जाने का प्रस्ताव है। इन योजनाओं और आजीविका कार्यक्रमों को तैयार करने के लिए स्थानीय स्व-शासनों से प्रशिक्षित कर्मियों को उपयोग में लाया जायेगा और आवास, पोषण, स्वास्थ्य इत्यादि के लिए मौजूदा योजनाओं के साथ इसे तैयार किया जायेगा।
घोषणापत्र में यह भी वादा किया गया था कि स्थानीय स्व-शासन के साथ राज्य सरकार जहाँ कहीं भी बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित करने की जरूरत पड़ेगी, वहां पर मासिक आधार पर आर्थिक सहायता प्रदान करेगी।
एक जन विकल्प
कई हाल की रिपोर्टों ने महामारी की शुरुआत और उसके बाद लागू किये गए लॉकडाउन प्रतिबंधों के कारण भारत में भूख और खाद्य असुरक्षा के मामलों में ख्त्रांक वृद्धि का हवाला दिया है। अज़ीमजी प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट द्वारा प्रकाशित स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2020 में प्रकोप की शुरुआत के समय भारत में 5 डॉलर से कम की दैनिक आय में गुजर-बसर करने वाले घरों में रहने वालों की संख्या जहाँ 29.86 करोड़ थी, जो अक्टूबर के अंत तक बढ़कर 52.9 करोड़ हो गई थी।
प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन के मुताबिक ऋणग्रस्तता में इजाफा हुआ है और करीब 7.5 करोड़ अतिरिक्त भारतीय गरीबी की जद में (2 डॉलर या उससे कम की दैनिक आय के रूप में परिभाषित, जैसा कि विश्व बैंक ने पूर्ण गरीबी को मापने के तौर पर निर्धारित किया है) धकेल दिया गया है।
केरल में सामाजिक सुरक्षा जाल और बड़े पैमाने पर सामुदायिक रसोई की स्थापना, मासिक राशन और किराने की किट्स का प्रावधान और जन भोजनालय जिन्हें (जनकीय होटल कहा जाता है) जैसे माध्यमों के जरिये सस्ते दरों पर भोजन उपलब्ध कराने के परिणामस्वरूप राज्य उस प्रकार के हादसे से खुद को बचा पाने में सफल रहा है। हालांकि, अर्थव्यवस्था अभी भी कमजोर स्थिति में है और राज्य सामान्य होने की स्थिति में धीरे-धीरे पहुँच रहा है। लेकिन फिर भी लोगों को उन सभी समर्थन की दरकार है जो उन्हें मिल सकते हैं और उनमें से जो सबसे अधिक गरीब हैं उन्हें इसकी और भी अधिक आवश्यकता है।
स्थानीय स्वशासन मंत्री एमवी गोविंदन ने विश्वास व्यक्त किया है कि जिस प्रकार के कार्यक्रम की परिकल्पना की गई है, वह एक सच्चे जन विकास के विकल्प की दिशा में एक और कदम साबित होगा।
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