सदा याद रहेंगे डेनियल एल्सबर्ग
डेनियल एल्सबर्ग पेन्क्रियाटिक केंसर के कारण 92 वर्ष आयु में इस दुनिया से विदा हो गए। वे पेंटागन पेपर्स को लीक करने के लिए साठ और सत्तर के दशकों की वियतनाम युद्घ के दौर की पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्रोत रहे थे। अंतिम दिनों में उन्होंने दवाएं लेना बंद कर दिया था क्योंकि उन्हें पता था कि ये दवाएं उनके जीवन को चंद महीने और खींचने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थीं। इसके बजाए उन्होंने अपने परिवारजनों और मित्रों के बीच अंतिम समय बिताना ही बेहतर समझा। 1971 में जब उन्होंने पेंटागन पेपर्स के 7,000 पृष्ठ सार्वजनिक कर दिए थे तो हेनरी केसिंगर ने उन्हें यह कहकर एक प्रकार से सर्वोच्च ‘सम्मान’ दिया था कि वह, ‘अमेरिका के सबसे खतरनाक व्यक्ति हैं, जिन्हें किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।’
पेंटागन पेपर्स, वास्तव में रेंड कार्पोरेशन द्वारा कराया गया एक अध्ययन था, जो अमेरिका के तत्कालीन रक्षा सचिव, रॉबर्ट मैक्रमरा द्वारा कराया गया था और इस अध्ययन की रिपोर्ट 1968 में अमेरिकी सरकार को दी गयी थी। यह रिपोर्ट दिखाती थी कि अमेरिका, वियतनाम युद्घ में जीत ही नहीं सकता था। यह जानते हुए भी, अमेरिका ने अपने इस निरर्थक युद्घ को जारी रखा था। इसके लिए, उसने दक्षिण वियतनाम में दसियों हजार लोगों की जानें ली थीं और वास्तव में इस लड़ाई को और बढ़ाकर, उत्तरी वियतनाम तथा कंबोडिया के खिलाफ हवाई युद्घ तक फैला दिया था।
सेम्युअर हर्ष ने 1969 के नवंबर में माई लाई नरसंहार की खबर छापी थी। एल्सबर्ग, जो लगभग इसी समय में पेंटागन पेपर्स के 7,000 पृष्ठों की फोटोकॉपी करने में जुटे हुए थे, दो साल तक इसकी कोशिश में लगे रहे थे कि अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के जरिए इस मुद्दे को उठावाया जाए। लेकिन, वह अपनी कोशिशों में नाकाम रहे। उन्होंने इसे प्रेस को देने का रास्ता अपनाया, हालांकि वह बखूबी जानते थे कि इसके प्रकाशन के बाद उन्हें अगर अपना बाकी का सारा जीवन जेल में नहीं भी बिताना पड़ा तब भी, उसका खासा बड़ा हिस्सा तो जेल में बिताना ही पड़ेगा।
एल्सबर्ग तब चालीस साल से कुछ ही ज्यादा थे। उनके सामने एक शानदार कैरियर पड़ा था और उन्हें किसी भी असैनिक को प्राप्त सर्वोच्च स्तर का सुरक्षा क्लीअरेंस हासिल था। अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान के हिसाब से उनके, सुरक्षा-राज्य के साथ इस तरह से ‘दगा’ करने का तो कोई कारण ही नहीं बनता था। वह तो वास्तव में ऐसी यात्रा पर थे, जो उन्हें सुरक्षा-राज्य के अंदर जिन अतल गहराइयों तक वह जाना चाहते, ले जा सकती थी-सैन्य, असैनिक तथा सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ की संधि तक--जो सब अमेरिकी राज्य का अधिग्रहण करता जा रहा था। इस दर्जे का कोई भी भीतरी व्यक्ति, सुरक्षा राज्य का साथ छोड़ कर दूसरे पाले में न तो उससे पहले कभी गया था और न उसके बाद।
एल्सबर्ग, सरकारी राज उजागर करने की सजा पाने से अगर बच गए, तो इसलिए नहीं कि तब न्यायपालिका, छुपी सच्चाई सामने लाने वाले भेदियों (व्हिसलब्लोअर्स) के प्रति कृपालु थी। राष्ट्रपति निक्सन को इसकी चिंता थी कि एल्सबर्ग, उत्तरी वियतनाम के खिलाफ नाभिकीय बमों का इस्तेमाल करने की उनकी और हैनरी किसिंगर की धमकियों के संबंध में, कहीं और ज्यादा नुकसानदेह जानकारियां न निकाल दें। निक्सन ने आधिकारिक रूप से एक गैर-कानूनी टीम बनायी थी, जिसे व्हाइट हाउस प्लम्बर्स के नाम से जाना गया। यह व्हाइट हाउस की विशेष जांच टीम थी। इस टीम को यह काम सौंपा गया था कि एल्सबर्ग का उपचार कर रहे मनोचिकित्सक के कार्यालय में सेंध लगाएं और कुछ ऐसा निकालकर लाएं, जिससे एल्सबर्ग की विश्वसनीयता को खत्म किया जा सके। पर यह टीम काम का कुछ खास नहीं निकाल पायी।
इस व्हाइट हाउस प्लम्बर्स नाम की टीम ने ही वाटरगेट के समय, डैमोक्रेेटिक पार्टी के मुख्यालय में भी सेंधमारी की थी और इस मामले के बेनकाब होने के चलते ही, आखिरकार राष्ट्रपति निक्सन से सत्ता छिनी थी। इससे, एल्सबर्ग के खिलाफ अमेरिकी सरकार के मुकद्दमे पर भी भारी चोट पड़ी और अंतत: उन्हें छोड़ दिया गया। वियतनाम युद्घ भी आखिरकार तब खत्म हो गया, जब वियतनामी मुक्ति सैनिकों ने सैगोन पर कब्जा कर लिया और अमेरिकी दूतावास की छत से और अन्य सुरक्षित अड्डों से, हैलीकोप्टरों से अमेरिकी अधिकारियों को उड़ाकर ले जाया गया। तब की तस्वीरें अगर बदतर नहीं भी हों तब भी वैसी जरूर हैं, जैसी कुछ ही पहले काबुल से अमेरिकियों के निकलने के समय देखने को मिली थीं।
पेंटागन पेपर्स के बेनकाब होने ने एल्सबर्ग को प्रसिद्घ या कहें कि अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान की नजरों में कुख्यात तो बना दिया था, लेकिन उनके पास और ज्यादा दहशतजदा करने वाले दस्तावेज भी थे, जिनके संबंध में उन्हें एकदम पक्का था कि उन्हें उजागर करने पर उन्हें बाकी सारी जिंदगी जेल में काटनी ही काटनी पड़ेगी। उनके हाथ ऐसे दस्तावेज लग गए थे जो दिखाते थे कि अमेरिका ने एक ऐसी ‘‘महाप्रलय मशीन’’ (डूम्स डे मशीन) बनायी थी, जो एक इंसानी गलती या तकनीकी चूक से ही, समूची दुनिया का विनाश करने में समर्थ थी। एल्सबर्ग ने तय किया था कि वह इन दस्तावेजों को सुरक्षित रखेंगे और पहले वियतनाम संबंधी दस्तावेजों को प्रकाशित करेंगे क्योंकि युद्घ-विरोधी लहर उस समय जोर पकड़ रही थी। वह बाद में महाप्रलय मशीन के विवरणों के दस्तावेज प्रकाशित करने जा रहे थे। उनके दुर्भाग्य से ये कागजात, जो उनके भाई के पास थे, एक दुर्घटना में नष्ट हो गए। इसके बाद भी वह, इस मशीन के संबंध में लिखते रहे, लेकिन अब उनके पास अपनी बातों को सही साबित करने वाले साक्ष्य ही नहीं थे। बहरहाल, पिछले पचास साल में इनमें से ज्यादातर दस्तावेज, अब सार्वजनिक जानकारी में आ चुके हैं।
वियतनाम युद्घ के चलते एल्सबर्ग ने अमेरिकी सुरक्षा प्रतिष्ठान के अभिजात हलकों से नाता तोडक़र, पहले एक व्हिसलब्लोअर की भूमिका संभाली थी और बाद में जीवन भर के लिए एक शांति-कार्यकर्ता की। वह अमेरिकी सुरक्षा राज्य का पाला छोडक़र, वैश्विक युद्घविरोधी आंदोलन की कतारों में आए थे। तब हमारे जैसे नौजवान, वियतनामी जनता के समर्थन में हर जगह, अमेरिकी दूतावासों पर तथा अन्य अमेरिकी प्रतिष्ठानों पर, प्रदर्शन किया करते थे। (मेरे लिए प्रदर्शनों का मुकाम, कोलकाता में यूएसआइएस भवन था।) जब दुनिया में कहीं भी मैं उस पीढ़ी के लोगों से मिलता हूं और उनसे पूछता हूं कि वे वामपंथी आंदोलन में कैसे आए थे तो ज्यादातर यही जवाब सुनने को मिलता है कि वियतनाम युद्घ विरोधी आंदोलन ने ही उन्हें वामपंथ के साथ जोड़ा था। हमारी पीढ़ी, वियतनामी पीढ़ी थी! बहरहाल, एल्सबर्ग के मामले में यह रूपांतरण और भी क्रांतिकारी था: वह तो सुरक्षा राज्य की रीढ़ से निकलकर, यहां तक आए थे!
हमारे सामने एल्सबर्ग जैसा दूसरा कोई उदाहरण नहीं है यानी कोई और ऐसा शख्स जो सुरक्षा प्रतिष्ठान में शीर्ष हलकों तक पहुंच गया हो और वहां से गहरे छुपाकर रखे जाते राज़ साथ में लेकर जनता के पाले में कूद गया हो। फिर भी, सुरक्षा प्रतिष्ठान के राज रिस-रिसकर बाहर आने का सिलसिला तो चलता ही रहा है। अमेरिकी सुरक्षा राज्य की जानकारियां जमा करने तथा उनका केंद्रीयकरण करने की बेपनाह जुस्तजू के साथ, इन जानकारियों को जमा कर के रखने के लिए डिजिटल बुनियादी सुविधाओं की जरूरत बेहद बढ़ गयी है। और उसी हिसाब से इस पूरे तंत्र की वेध्यताएं बढ़ गयी हैं। अब ऐसे लोगों की संख्या काफी बढ़ चुकी है, जिनकी इन जानकारियों तक पहुंच है। और इन जानकारियों तक उनकी पहुंच कोई इसलिए नहीं है कि वे सुरक्षा राज्य की रीढ़ का हिस्सा हैं बल्कि यह पहुंच इसलिए है कि इस तरह की प्रणालियों को चलाते रहने के लिए, बड़ी संख्या में साधारण दर्जे के तकनीक के जानकारों की जरूरत होती है। इसके चलते, इन लोगों को ऐसी अतिगोपनीय जानकारियों तक पहुंच हासिल होती है, जो सुरक्षा राज्य द्वारा नेटवर्क से जुड़ी दुनिया भर में फैली सुविधाओं में जमा कर के रखी जाती हैं। इनमें फाइव आईज़--अमेरिका, यूके, कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड-से लेकर, यूरोप में नाटो तथा यूरोपीय यूनियन देशों में स्थित व्यवस्थाएं शामिल हैं। ऐसा लगता है कि अकेले अमेरिका में ही 13 लाख लोगों को इस ‘‘अति गोपनीय’’ (अल्ट्रा सीके्रेट) डेटा तक पहुंच हासिल है। यह सुरक्षा राज्य की कमजोर नस है। इसीलिए तो चेल्सिया मेनिंग, स्नोडेन और अब टैक्सिएरा के लिए ऐसी गोपनीय जानकारियां बेपर्दा करना संभव हुआ है, जो अमेरिकी सरकार के शीर्ष हलकों तक ही सीमित रहनी चाहिए थीं।
जूलियन असांजे का खास योगदान यही है। उन्होंने आधुनिक प्रौद्योगिकी की प्रकृति को पहचाना था। उन्होंने इस सच्चाई को पहचाना था कि इन गुप्त जानकारियों तक और बहुत सारे लोगों को पहुंच हासिल है और सुरक्षा राज्य की नालियों से उल्टा छानने की प्रक्रिया के जरिए, जानकारियों को बटोरा जा सकता है। और एक बार जब इन जानकारियों को उल्टा छानकर निकाल लिया जाता है, अगर इन जानकारियों को साझा करने के लिए कोई तंत्र और मिल जाए, तो इससे सारी दुनिया में जबर्दस्त हलचल पैदा हो सकती है। वियतनाम युद्घ की निरर्थकता के पेंटागन पेपर्स के नतीजों तक हाथ पहुंचने के बाद, इस जानकारी को सार्वजनिक करने में एल्सबर्ग को दो साल लग गए थे। लेकिन, विकीलीक्स के तंत्र की मौजूदगी के चलते अब, ऐसी किसी भी जानकारी को हाथ के हाथ सार्वजनिक किया जा सकता है। इसी तरह तो हमारे लिए कोलेटरल हत्या का वीडियो देखना संभव हुआ था, जिसमें अमेरिकी हेलीकोप्टरों को बगदाद में रॉयटर्स के दो रिपोर्टरों को गोली मारते देखा जा सकता है। यह वीडियो, चेल्सिया मेनिंग ने विकीलीक्स को उपलब्ध कराया था।
विकीलीक्स ने, अमेरिकी सरकार की वैश्विक नवउदारवादी करतूतों को जिस तरह बेनकाब किया है और अब भी करना जारी रखे हुए है, उसे अमेरिकी सरकार कभी माफ नहीं कर सकती है। इसीलिए, वे असांजे के मामले को एक मिसाल बनाना चाहते हैं।
यूक्रेन युद्घ ने एल्सबर्ग की एक और चिंता को सामने लाकर रख दिया है। अमेरिकी सेना के पास एक सारत: महाप्रलयकारी मशीन आ चुकी है। वह इसके लिए तैयार लगता है कि ‘शत्रु’ पर पहला प्रहार करे और यह उम्मीद करके चले कि इस प्रहार के बाद, दूसरी ओर से जो कमजोर जवाबी प्रहार होगा, उसकी काट उसकी मिसाइली सुरक्षा ढाल कर लेगी। यह नाभिकीय विनाश को टालने वाली, सुनिश्चित पारस्परिक विनाश (म्युचुअली एश्योर्ड डैस्ट्रक्शन) की धारणा के बजाए, एक जीते जा सकने वाले नाभिकीय युद्घ की संकल्पना का खाका है। 1961 में एल्सबर्ग द्वारा प्रेरित एक सवाल के जवाब में, ज्वाइंट चीफ्स की गणना के अनुसार, सोवियत संघ, उसके वार्सा संधि सहयोगियों, चीन तथा दूसरे देशों को निशाने पर लेकर, अमेरिका के प्रथम प्रहार से आहतों की संख्या आंकी गयी थी: ‘मोटे तौर पर 60 करोड़ मौतें।’ यह तब की सारी दुनिया की आबादी के पांचवे हिस्से के बराबर बैठता था। और यह अनुमान 1961 का है, जब नाभिकीय शस्त्रागार काफी सीमित थे और नाभिकीय बम भी अपेक्षाकृत कम विध्वंसक थे। किसी भ्रम में न रहें, आज ऐसा हुआ तो जिस दुनिया को हम जानते हैं, वह तो खत्म ही हो जाएगी।
यूक्रेन युद्घ, रूस और नाटो के बीच हो रहा है। इस युद्घ में सैनिक तो यूक्रेन के हैं, लेकिन उन्हें हथियार, गोला-बारूद, आर्मर, मिसाइलें, सब नाटो मुहैया करा रहा है; यहां तक युद्घ के मैदान में संचालन के लिए हर प्रकार की मदद भी। दुनिया आज रूस और नाटो के बीच नाभिकीय प्रहार-प्रतिप्रहार के कगार पर है और इसे कोई गलतफहमी, कोई मामूली सी घटना; कुछ भी भडक़ा सकता है। पहले भी, कलहंसों की कतार या पूर्ण चंद्र जैसी चीजों से, मिसाइल एलर्ट जारी हो चुके हैं। इसीलिए, हमें एल्सबर्ग और शांति आंदोलन के लिए उनकी वचनबद्घता को, एक बार फिर याद करने की जरूरत है। विश्व शांति के लिए संघर्ष को समर्पित जीवन पूरा करने के बाद, वह हमारे बीच से विदा हो चुके हैं। लेकिन, वह भले ही हमारे बीच नहीं हैं, आज यह लक्ष्य और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
Daniel Ellsberg, Dead at 92, Matters More Than Ever to Global Peace Movements
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