आज संविधान दिवस से शुरू हुआ किसान-मज़दूर महापड़ाव लोकतंत्र की लड़ाई का भी अहम पड़ाव
26—27—28 नवम्बर, 2023 का तीन दिन का किसान महापड़ाव दिल्ली, बेंगलूर, चंडीगढ़, लखनऊ, पटना, देहरादून समेत देश के तमाम राज्यों की राजधानियों में आज शुरू हुआ। इस बार इसमें किसानों के साथ मजदूर संगठन भी शामिल हैं। 24 अक्टूबर 2023 को ताल कटोरा स्टेडियम दिल्ली में हुए किसान-मजदूर कन्वेंशन में इस कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया गया था। महापड़ाव के बाद दिसम्बर 2023, जनवरी 2024 में बड़े विरोध प्रदर्शनों की तैयारी है।
संयुक्त किसान मोर्चा के मीडिया सेल द्वारा जारी बयान में कहा गया है, " मोर्चा सभी किसानों से बड़ी संख्या में प्रदेशों की राजधानियों में महापड़ाव में शामिल होने की जोरदार अपील करता है, ताकि दिसंबर 2021 में भारत के किसानों से किए गए वादों को पूरा करने में केंद्र सरकार के विश्वासघात के विरोध और C2 +50% फार्मूला के आधार पर एमएसपी की गारंटी हासिल करने के संघर्ष को पूरी ताकत से उठाया जा सके। "
" भारत सरकार भारतीय और विदेशी कंपनियों को कृषि और ग्रामीण व्यापार को नियंत्रित करने, महंगे इनपुट बेचने, औने-पौने दाम पर सब फसल खरीदने, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने और खाद्य बाजार पर एकाधिकार जमाने में मदद करने वाली कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों को जारी रखे हुए है। इससे किसान दरिद्र हो रहे हैं, भूमि से बेदखल हो रहे हैं और वे सस्ते श्रम में सिमट गये हैं। "
ऐतिहासिक किसान आंदोलन के शीर्ष नेताओं में रहे जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा है कि आंदोलन के दौरान किसानों पर लादे गए फर्जी मुकदमों की वापसी, सभी शहीद किसान परिवारों को मुआवजा तथा एक परिजन को नौकरी, किसानों की पूर्ण कर्ज़-मुक्ति तथा किसान-पेंशन की माँग भी महापड़ाव में जोरशोर से उठायी जायेगी।
महापड़ाव में लखीमपुर किसान-जनसंहार के दोषियों को सजा दिलाने का मुद्दा फिर पुरजोर ढंग से उठेगा। मोर्चे के बयान में कहा गया है, " मोदी सरकार लखीमपुर में 4 किसानों और एक प्रेस रिपोर्टर के नरसंहार के मुद्दे को हल करने में पूरी तरह से विफल रही है और कानून की प्रक्रिया ने न्याय सुनिश्चित नहीं किया है। हत्या का आरोपी व्यक्ति देश के गृह- राज्यमंत्री के पद पर बना हुआ है। यहां तक कि किसानों पर दर्ज झूठे मुकदमे भी वापस नहीं लिए गए।"
बिजली बिल 2022 को वापस लेने की ऐतिहासिक किसान आंदोलन के समय से जारी मांग को फिर बुलंद करते हुए मोर्चे के बयान में कहा गया है, " भारत सरकार और राज्यों द्वारा बिजली दरों को मौजूदा शुल्क से लगभग दोगुना तक बढ़ाया जा रहा है। ग्रामीण लोगों को प्री-पेड मीटर लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यह लगान की तरह है जिसे अंग्रेजों ने तत्कालीन सामंतों के माध्यम से भारतीय किसानों से वसूला था। ट्यूबवेलों के बिजली कनेक्शन काटे जा रहे हैं और किसानों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। एसकेएम सभी ग्रामीण परिवारों और ग्रामीण व्यापारियों के लिए 300 यूनिट मुफ्त बिजली और ट्यूबवेलों के लिए मुफ्त बिजली की मांग कर रहा है। "
यह स्वागत योग्य है कि एसकेएम ने एमएसपी और सभी फसलों की सुनिश्चित खरीद की अपनी मांग के साथ-साथ सभी लोगों को उचित भोजन की गारंटी की भी मांग को उठाया है, " देश में खाद्य सुरक्षा में लगातार गिरावट हो रही है। भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2014-16 में बच्चों में 14% कुपोषण के शिकार थे, 2022-23 में यह संख्या बढ़कर 5 साल से कम उम्र के बच्चों में 16.6% हो गयी है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत आज 125 देशों में से 111वें स्थान पर है और हर साल स्थिति बदतर होती जा रही है। एसकेएम ने राशन योजना के तहत प्रति व्यक्ति दाल सहित 14.5 किलोग्राम अनाज वितरण की मांग किया है। यह केवल कृषि उत्पादन और सरकारी खरीद में सुधार करके ही किया जा सकता है। "
इसके साथ ही एसकेएम ने बटाईदारों के पंजीकरण के साथ उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ देने की भी मांग भी अपने एजेंडा में शामिल की है।
यह देखना रोचक है कि विधानसभा चुनावों में तमाम राजनीतिक दल फसलों की कीमत और MSP को लेकर किसानों से बड़े बड़े वायदे कर रहे हैं। सुप्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा तंज करते हुए कहते हैं, " मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए राजनीतिक दलों में रेस लगी हुई है कि कौन किसानों को ज्यादा से ज्यादा गेहूं और धान के दाम देगा। भाजपा किसानों को गेहूं में 2700 रुपये प्रति कुंतल देने को तैयार है और धान में 3100 रुपये प्रति कुंतल देने को तैयार है। इसका मतलब यह हुआ कि स्वामीनाथन फॉर्मूले से भी ज्यादा यह पार्टियां किसान को देने के लिए तैयार है यानी की C2+62% ! अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में कौन सी पार्टी C2+100% दाम देने को तैयार है .... वोट के लिए कुछ भी करेगा। "
दरअसल, यह देश में चले ऐतिहासिक किसान-आंदोलन से बढ़ी किसानों की सामाजिक हैसियत और राजनीतिक ताकत का ही प्रतिबिंब है। उनके मुद्दों को ignore करना अब कोई भी दल afford नहीं कर सकता।
मोर्चे के बयान में कहा गया है, " मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना चुनावों में भाजपा और कांग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर किये गए एमएसपी और अन्य वादे यही साबित करते हैं कि कृषि की बढ़ती लागत को सहन करने में असमर्थ किसान आज गहरे संकट में हैं और एसकेएम की मांगें पूरी तरह जायज़ हैं। "
कृषि विशेषज्ञ प्रोफेसर देविंदर शर्मा के अनुसार, OECD (Organisation for Economic Cooperation and Development ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय किसानों को 2022 में कुल 14 लाख करोड़ का घाटा हुआ है। प्रो. शर्मा कहते हैं कि यह खबर Industry के बारे में होती तो मीडिया में अब तक हंगामा मच गया होता। यह कितना बड़ा घाटा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2022-23 में कृषि के लिए कुल बजट आबंटन 1.25 लाख करोड़ था, अर्थात कृषि में हुआ घाटा इससे लगभग 13 गुना अधिक है !
वे कहते हैं, " क्योंकि भारत में किसानों को होने वाले घाटे को पाटने के लिए consumer prices को बढ़ाना समाधान नहीं है, इसका एक ही रास्ता है कि किसानों के घाटे को पूरा करने के लिए उन्हें budgetary support दिया जाय। इसके लिए जरूरी है कि MSP की कानूनी गारंटी दी जाय और इसे उन सभी 23 फसलों पर लागू किया जाय जिनके लिए हर साल समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है। MSP एक benchmark हो जिसके नीचे कोई ट्रेडिंग allowed न हो, दूसरा, PM-किसान योजना के तहत किसानों को मौजूदा 500 रुपये की बजाय 5000 रुपये प्रति किसान, प्रति माह direct income support दिया जाय और इसके दायरे में भूमिहीन किसानों को भी शामिल किया जाय। "
वे कहते हैं, " अगले 5 साल कृषि को समर्पित करिए, उद्योगों को मिलने वाले बजट-समर्थन का कम से कम आधा कृषि में लगाइए और इसे क्रमशः बढ़ाइए। फिर आप देखेंगे कि कैसे कृषि का कायाकल्प होता है।
इस बदलाव की कृषि क्षेत्र को आज सख्त जरूरत है। किसानों के हाथ में अधिक पैसा आने का अर्थ होगा बाजार में अधिक पूंजी का प्रवाह। दूसरे शब्दों में अधिक मांग पैदा होगी और विकास का पहिया तेजी से दौड़ने लगेगा। "
सचमुच आज भारतीय कृषि का पुनर्जीवन हमारी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन की शर्त है।
किसानों को MSP की कानूनी गारंटी समेत अपने तमाम ज्वलंत सवालों को 2024 के आम चुनाव का अहम मुद्दा बना देने के लिए बड़े आंदोलन में उतरना होगा। 26 नवम्बर संविधान दिवस के दिन शुरू किसान-मजदूर महापड़ाव देश में लोकतन्त्र की लड़ाई का भी अहम पड़ाव है।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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