कहां तक जाएगा पाकिस्तान का संकट, किसे फ़ायदा-किसे नुक़सान
बीते कुछ दिनों से पाकिस्तान में राजनीतिक संकट हर पल नए मोड़ लेता हुआ दिखाई दे रहा है। इमरान खान की इस्लामाबाद हाई कोर्ट से अचानक गिरफ़्तारी और अगले दिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी त्वरित रिहाई होना। और फिर हाईकोर्ट द्वारा इमरान खान की गिरफ्तारी पर अगले दो हफ्तों के लिए सभी मामलों पर रोक लग जाना। उसके बाद सेना, सरकार और इमरान खान का एक दूसरे पर लगातार बेलगाम आरोप-प्रत्यारोप लगाना। यह सभी घटनाक्रम पाकिस्तान की सियासत को पल-पल एक नए मोड़ देती नज़र आ रही है।
हालांकि पाकिस्तान के लिए राजनीतिक रूप से अस्थिर होना कोई नई बात नहीं है। समय-समय पर यह देश अस्थिर होता रहा है। इस देश की राजनीतिक अस्थिरता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान की स्थापना के 75 वर्षों में लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए किसी भी प्रधानमंत्री ने आज तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
परंतु यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि 2018 में जब इमरान खान की सरकार बनी थी तब तमाम राजनीतिक टीकाकार यह कह रहे रहे थे कि उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन बीते वर्ष उन सबों की भविष्यवाणी भी गलत साबित हो गई जब खान की सरकार सहयोगी दलों द्वारा साथ छोड़ने के कारण सदन में अल्पमत होने के कारण गिर गई।
इमरान खान की सरकार के गिरने के बाद से पाकिस्तान लगातार राजनीतिक रूप से अस्थिरता का सामना कर रहा है। लेकिन खान की गिरफ्तारी के बाद यह अस्थिरता चिंताजनक रूप से बढ़ती नजर आ रही है। गिरफ़्तारी के बाद अचानक से पाकिस्तान में हर ओर अभूतपूर्व रूप से हिंसा और अराजकता देखने को मिलने लगी थी। यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार था जब जनता, सेना मुख्यालय से लेकर सैन्य ठिकानों और सैन्य अफसरों के घरों पर तोड़-फोड़ कर अपना विरोध दर्ज कर रही थी।
हालिया समय में राजनीतिक संकट की शुरुआत कहाँ से हुई?
हालिया समय में राजनीतिक संकट की शुरुआत तब हुई जब इमरान खान को इस्लामाबाद हाईकोर्ट से अचानक नेशनल अकाउंटिबिलिटी ब्यूरो (नैब) द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 9 मई को उनकी गिरफ़्तारी अल क़ादिर ट्रस्ट केस में हुई थी। इस मामले में खान पर आरोप है कि प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने एक रियल एस्टेट कंपनी के 50 अरब रुपये के काले धन को अरबों रुपये की ज़मीन दान के एवज में सफ़ेद किया है। 9 मई को अल क़ादिर ट्रस्ट केस में हुई गिरफ़्तारी के बाद हालिया समय में पाकिस्तान में राजनीतिक संकट की शुरुआत हुई। इमरान खान पर अल क़ादिर ट्रस्ट केस के अलावा 140 से भी अधिक मुकदमे दर्ज हैं।
पाकिस्तान में हर बार राजनीतिक अस्थिरता के पीछे देश पर शासन करने की ज़िद
गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान में राजनीतिक संकट के पीछे हर बार जो वजह सबसे ज़्यादा उभर कर नज़र आती है वह देश पर शासन करने की ज़िद है। पाकिस्तान पर शासन करने की ज़िद ने इस देश को हर बार संकट की ओर धकेला है। हालिया समय में पाकिस्तान में जो राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ है उसके पीछे भी देश पर शासन की ज़िद ही है।
चाहे वह देश की सेना हो या राजनीतिक पार्टियां या विपक्ष सबको एक ही समय पर सत्ता में बैठना है। इन सबमें सबसे ज्यादा ज़िद जिसे सत्ता में बैठने की हमेशा से रही है वह देश की सेना है।
पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के पीछे के कारकों पर बात करते हुए पाकिस्तान और अफगानिस्तान की राजनीति, सुरक्षा और समाज पर काम करने वाले अनुभवी पत्रकार अली मुस्तफा कहते हैं कि “सेना का देश के शासन पर हावी होने की लगातार इच्छा, यहाँ की अस्थिरता की पीछे का सबसे बड़ा कारक है।....पाकिस्तानी सेना किसी भी कीमत पर देश पर शासन करना चाहती है। सेना ने देश की सत्ता से खुद को बाहर रखने से इनकार कर दिया है, भले ही इस कारण क्यों न देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएं”।
इमरान खान की गिरफ़्तारी व उनके ऊपर हुए सैकड़ों मुकदमे देश पर शासन करने की ही ज़िद को दर्शाता है। सेना, इमरान खान व शहबाज़ शरीफ की सरकार की सत्ता में एक ही समय में बने रहने की भूख ने पाकिस्तान को फिर एक ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है जिसका कोई सुखद भविष्य नहीं है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के मौलाना मोहम्मद अली जौहर अकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ विभाग में पाकिस्तान की सुरक्षा और राजनीति पर शोध कर रहे ऋषभ यादव कहते हैं कि “सेना द्वारा देश पर शासन करने कि ज़िद ने देश को हर बार अस्थिर किया है”। हालाँकि वह हालिया संकट पर बात करते हुए कहते हैं कि “यह संकट केवल पाकिस्तान पर शासन करने की सेना की ज़िद से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि यह इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने के बारे में अधिक है”।
इमरान ख़ान के ऊपर शिकंजा कसे जाने की वजह
इमरान खान पर सरकार द्वारा शिकंजा कसने की कई वजहें हैं। सरकार और सेना को लगता है कि अगर उन्हें समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो यह उनके लिए बेहतर नहीं होगा और अगर इमरान खान कि लोकप्रियता इसी तरह बनी रही तो इसका गहरा असर आने वाले चुनाव पर पड़ेगा।
इसके अलावा इमरान खान अपनी सरकार के जाने के बाद से जिस तरह से सेना पर हमले कर रहे हैं, उससे सेना को लगता है कि अगर उन पर शिकंजा नहीं कसा गया तो पाकिस्तानी सेना के लिए यह किसी भी तरह से ठीक नहीं होगा। सेना का यह भी मानना है कि अगर खान की आगामी आम चुनाव में सत्ता में वापसी हो जाती है तो सेना का वर्चस्व खतरे में पड़ जाएगा। पाकिस्तानी सेना किसी भी स्थिति में अपनी वर्चस्व खोना नहीं चाहती है, जिस कारण भी हालिया समय में इमरान खान के ऊपर शिकंजा कसा जाने लगा है।
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि सेना और पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) सरकार इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए जेल में डालने की पूरी कोशिश कर रही है। समीक्षकों के अनुसार, सेना और पीडीएम का ऐसा मानना है कि जेल में डालने के बाद खान की लोकप्रियता कमजोर पड़ने लगेगी। उनकी लोकप्रियता के कमजोर पड़ने के बाद देश में चुनाव कराया जाएगा जिससे इमरान खान की सरकार भी नहीं आ पाएगी और साथ ही सेना का प्रभुत्व भी बना रहेगा।
इमरान खान समर्थित लोगों का ऐसा मानना है कि अगर इमरान खान दोबारा से सत्ता में लौट आते हैं तो उन्हें पाकिस्तान की राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिलने लगेगा। सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन सेना के वर्चस्व से संबंधित है, माना जा रहा है कि जब वह दोबारा सत्ता में आएंगे तो पाकिस्तान में सेना का दबदबा कम कर देंगे। लेकिन ऋषभ यादव इस मसले को दूसरे दृष्टिकोण से देखते हैं। उनका मानना है कि “अगर इमरान खान दोबारा सत्ता में लौटते हैं तो हमें सैन्य-हस्तक्षेप के अंत के बजाए पाकिस्तानी राजनीति में सेना की अधिक प्रत्यक्ष भूमिका देखने को मिलने लगेगी”।
अली मुस्तफा कहते हैं कि इमरान खान अपने भाषणों में कहते हैं कि “मुझे सेना से कोई समस्या नहीं है, बल्कि आर्मी चीफ आसिम मुनिर से समस्या है”। वह खान के इस कथन का जवाब देते हुए कहते हैं कि “अगर आपको केवल आर्मी चीफ से दिक्कत है तो कल अगर आप जब सत्ता में आएंगे तो आप अपने वफादार को आर्मी चीफ बना देंगे। इससे सेना के दबदबे में कोई कमी नहीं आएगी”।
दरअसल, सेना का दखल पाकिस्तान की राजनीति में इस कदर है कि उसके वर्चस्व को इमरान खान क्या देश के किसी भी प्रधानमंत्री के लिए कम कर पाना लगभग नामुमकिन सा है।
हालिया अस्थिरता का किसे फ़ायदा?
इमरान खान की गिरफ़्तारी के बाद से पाकिस्तान में जो राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ है उसका राजनीतिक फायदा फिलहाल इमरान खान को होता हुआ दिख रहा है। अगर यह सरकार इमरान खान को चुनाव लड़ने से रोक पाने में सफल नहीं हो पाती है तो इसका फायदा चुनाव में इमरान खान को जरूर देखने में मिलेगा। हालांकि इस मसले पर अपनी राय रखते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर व लेखक अविनाश पालीवाल कहते हैं कि “इसका फायदा इमरान खान को तब होगा जब उन्हें सेना और हालिया सरकार चुनाव लड़ने का मौका दे”। उनका मानना है कि “मौजूदा सरकार और सेना इमरान खान को चुनाव से लड़ने से रोकने के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं हिचकेगी”.
राजनीतिक अस्थिरता के कारण होने वाले राजनीतिक फायदे पर बात करते हुए अली मुस्तफा कहते हैं कि “इस अस्थिरता का राजनीतिक फायदा इमरान खान को सीधे तौर पर होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है”। उनके अनुसार खान की गिरफ़्तारी के बाद पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता के कारण इमरान खान को कोई राजनीतिक फायदा तो नहीं होगा, परंतु सत्ताधारी पार्टियों ने जो देश में ध्रुवीकरण किया है उसका राजनीतिक रूप से फायदा इमरान खान को जरूर होगा”।
ऋषभ यादव इसी सवाल के जवाब में कहते हैं कि “इमरान खान की लोकप्रियता के कारण देश में शायद ही समय पर चुनाव हो पाएगा। परंतु, अगर इमरान खान को गिरफ्तार कर जेल में बंद करने के बाद देश में चुनाव होते हैं तो पीटीआई सहानुभूति वोटों का लाभ उठा सकती है…..”।
पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक अस्थिरता का वैश्विक स्तर पर प्रभाव
पाकिस्तान में चल रहे राजनीतिक संकट का प्रभाव न केवल पाकिस्तान पर पड़ेगा बल्कि यह उसके पड़ोसी देश भारत और वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिलेगा। अगर वहाँ राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है और अराजकता जैसी स्थिति बन जाती है या सेना का शासन आ जाता है, ऐसी किसी भी स्थिति में भारत देश के लिए खतरा ही रहेगा। राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि यदि सेना ने पाकिस्तान की सत्ता अपने हाथ में ले लेती है तो सेना हमेशा भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करेगी, जिससे भारत-पाकिस्तान सीमा (एलएसी) पर संघर्ष विराम खतरे में पड़ जाएगा, जिस कारण दोनों देशों के देशों में अस्थिरता बढ़ेगी। इसके अलावा अगर यह अस्थिरता आगे भी जारी रहती है तो आतंकवादी संगठन भी सक्रिय हो जाएंगे और इसका असर भी भारत पर अप्रत्यक्ष/प्रत्यक्ष रूप से पड़ेगा। ये सभी घटनाक्रम भारत के अलावा अन्य देशों को भी प्रभावित करेंगे।
इन सबके अलावा हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है और अगर ऐसी स्थिति में अराजकता जैसा माहौल बंता है तो इसके परिणाम भयावह स्तर पर देखने को मिल सकते हैं, जो किसी भी सूरत में विश्व के लिए सही नहीं होगा। न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ न्यूज़क्लिक हिन्दी के समाचार संपादक मुकुल सरल से पाकिस्तान के राजनीतिक संकट के वैश्विक स्तर के प्रभाव पर बात करते हुए कहते हैं कि ‘अगर पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है तो इसका नुकसान हम सबको उठाना पड़ सकता है....पाकिस्तान का जिस तरह का सामरिक महत्व है उस बिना पर यहाँ अराजकता होना किसी भी देश के लिए बेहतर नहीं है....हमें यह नहीं भूलना चाहिए की पाकिस्तान एक परमाणु सम्पन्न देश है....’
इसे देखें: पाकिस्तान में संकट बढ़ा तो नुक़सान सबका, समझिए पूरे हालात को
अब आगे क्या और हालिया अस्थिरता का क्या है समाधान?
गौरतलब हो कि पाकिस्तान की स्थापना से लेकर अब तक पिछले 75 वर्षों में केवल 38 वर्ष सिविलियन सरकार ने इस देश पर शासन किया है। आठ वर्ष राष्ट्रपति शासन रहा है और 32 वर्षों तक सेना ने शासन किया है। अबतक देश ने कुल 23 प्रधानमंत्री देखे हैं। लेकिन सवाल यही उठता है कि आखिर शासन को लेकर इतनी अस्थिरता क्यों? आखिरकार कोई भी प्रधानमंत्री अपना शासन आज तक क्यों नहीं पूरा कर पाया है? और चाहे सत्ता में चुनी हुई सरकार हो या राष्ट्रपति शासन, सत्ता पर पूरी तरह से नियंत्रण सेना का ही क्यों होता है? राजनीतिक अस्थिरता के पीछे समीक्षक पाकिस्तान की सेना को सबसे बड़ा कारक क्यों मानते हैं? पाकिस्तान में अस्थिरता के पीछे के कारणों को सिलसिलेवार तरीके से जानने के लिए मेरे द्वारा लिखा गया यह लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
इसे पढ़ें: पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के पीछे क्या कारण हैं?
पाकिस्तान में हालिया घटनाक्रम में पैदा हुए राजनीतिक हालात हर रोज नई दिशा में जा रहे हैं। यह अस्थिरता आने वाले दिनों में कम होती हुई नज़र नहीं आ रही है। यहाँ उभरी राजनीतिक अस्थिरता को कम करने के संभावित उपायों पर बात करते हुए अविनाश पालीवाल कहते हैं कि “आने वाला समय पाकिस्तान की राजनीति के लिए चुनौती भरा होगा। हालिया समय में राजनीतिक अस्थिरता कम होती हुई नहीं दिख रही है”। उनके अनुसार “पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक अस्थिरता का कोई स्पष्ट समाधान नहीं है”।
दरअसल, पाकिस्तान की राजनीति में शामिल तमाम हितधारक जब तक किसी सर्वसम्मति पर नहीं पहुंचते हैं तब तक हालिया अस्थिरता का का कोई हल नज़र नहीं आ रहा है। ऋषभ यादव भी इस बात पर अपनी सहमति जताते हुए कहते हैं कि इस समस्या का एक जो हल उन्हें नज़र आता है वह है कि “देश के सभी हितधारक जैसे न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और तमाम राजनीतिक दल और नागरिक समाज से जुड़े तमाम लोग एक पटल पर आकर एक सर्वसम्मति पर पहुंचेंगे, तभी इस अस्थिरता का हल निकलेगा”। वह हालिया संकट की गंभीरता को बताते हुए कहते हैं कि “अभी पाकिस्तान की पॉलिटी यानी राजव्यवस्था में संकट नहीं है बल्कि पूरी की पूरी पॉलिटी ही संकट में है।
वहीं हालिया अस्थिरता के समाधान पर बात करते हुए अली मुस्तफा कहते हैं कि इसका केवल एक समाधान जो उन्हें नज़र आता है “वह यह है कि सेना को अपना काम करना चाहिए न कि राजनीति में दखल देना चाहिए। तमाम संस्थानों सैन्य से लेकर राजनीतिक और न्यायिक संस्थानों को एक दूसरे के कामों मे हस्तक्षेप से बचना चाहिए”। उन्होंने इस मसले पर बात करते हुए आगे कहा कि अगर पाकिस्तान कि यही स्थिति बनी रही और एक दूसरे का संस्थानों में हस्तक्षेप खत्म नहीं हुआ तो पाकिस्तान का कोई भविष्य नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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