महापड़ाव का संदेश: हिन्दू मुस्लिम में नहीं बंटेंगे मज़दूर-किसान और कर्मचारी
लखनऊ: आम चुनाव 2024 से पहले देश के किसान और मज़दूर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार की किसान-मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ़ लामबंद हो रहे हैं। समाज के इन दोनों प्रमुख वर्गों में नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध ज़बरदस्त असंतोष देखा जा सकता है।
किसान नेताओं का कहना है कि “किसान आंदोलन” की समाप्ति के समय केंद्र सरकार ने जो समझौता किया था, वह अब उस से पीछे हट रही है। मज़दूर और किसान संगठनों का देश भर की तरह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इको गार्डन में भी महापड़ाव 26 नवंबर को शुरू हुआ।
महापड़ाव में शामिल होने आये किसान और मज़दूर नेताओं से न्यूज़क्लिक के लिए उनकी मांगों और समस्याओं पर बात की और यह जानने का प्रयास किया कि किसान और मज़दूर एक साथ प्रदर्शन कर के क्या संदेश देना चाहते हैं?
प्रेम नाथ राय, महासचिव, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू)
सवाल: किसान और मज़दूर एक साथ सारे देश में प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?
उत्तर: सरकार की कॉरपोरेटपरस्त नीतियों का हमला किसानों और मज़दूरों दोनों पर है। इसलिए अब किसान और मज़दूर मिलकर अपने अधिकारों के लिए और नीतियों के बदलने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सवाल: सरकार की कौन से नीतियों से मज़दूरों में असहमति है?
उत्तर: नवउदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण जो 1990 के दशक से शुरू हुआ, मज़दूर वर्ग इसका विरोधी है। अब इसको हर क्षेत्र में लागू किया जा रहा है। जिस से कॉरपोरेट का मुनाफा बढेगा, मज़दूरों का उत्पीड़न होगा और जनता पर महंगाई की मार पड़ेगी। उदाहरण के तौर पर बिजली उत्पादन जब तक सरकार के हाथ में था, तो सरकारी कंपनिया 03 प्रतिशत के मुनाफे पर काम करती थी। लेकिन अब निजी कंपनिया 16 प्रतिशत के मुनाफे पर काम करती हैं और बिजली की कीमतें असमान पर हैं, जिससे आम उपभोक्ता से लेकर किसान तक सभी परेशान हैं। इसके अलावा मौजूदा सरकार द्वारा कॉरपोरेट हितों में चार श्रम संहिताओं को थोपकर मज़दूर वर्ग के अधिकारों को छीनने की साज़िश की जा रही है। हमारा विरोध इसलिए भी है क्योंकि स्थायी सरकारी नौकरियों का ठेकाकरण और निजीकरण किया जा रहा है। नियमित रोज़गार घट रहे हैं तथा वेतन में भी गिरावट आई है।
सवाल: मज़दूर द्वारा चार श्रम संहिताओं विरोध क्यों किया जा रहा है?
उत्तर: दरअसल यह मज़दूरों को गुलाम बनाने की साजिश है। यह चार श्रम संहितायें कॉरपोरेट हित के लिये लाई गई हैं। इसके द्वारा मजदूरों के सभी अधिकारों पर हमला किया जा रहा है। जिस दिन यह संहितायें लागू होंगी, फक्ट्रियां मंजदूरों के लिए जेल में तब्दील हो जाएंगी।
ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, महामंत्री, अखिल भारतीय किसान महासभा
सवाल: जब सरकार ने तीन विवादास्पद कृषि क़ानून वापस ले लिए हैं तो अब आंदोलन क्यों जारी हैं?
उत्तर: मोदी सरकार ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दबाव में आकर विवादास्पद कृषि क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर हुई लेकिन सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी क़ानून बनाने, बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लेने का लिखित वादा किया गया था, जो आज तक पूरा नहीं किया है। हमारी लंबित मांगें जब तक पूरी नहीं होंगी तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।
सवाल: क्या लखीमपुर कांड के बाद सरकार द्वारा की गई कार्रवाई से किसान संतुष्ट हैं?
उत्तर: बिल्कुल नहीं! हम मानते हैं कि लखीमपुर कांड में किसानों की हत्या का षड्यंत्रकारी गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा उर्फ़ टेनी हैं जो आज भी नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा बना हुआ है। हमारी मांग थी कि अजय मिश्रा उर्फ़ टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर के जेल भेजा जाये। क्योंकि मंत्री के ख़िलाफ़ किसानों और पत्रकार की हत्या की साजिश में शामिल होने के पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सवाल: उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की क्या समस्या है?
उत्तर: उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के भारी बकाये का ब्याज सहित भुगतान किया जाना चाहिए है और गन्ने का रेट 500 रुपये प्रति कुन्तल घोषित होना चाहिए है। इसके अतरिक्त हम उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि राज्य में बन्द पड़ी सभी चीनी मिलों को पुनः चालू की जाए।
सवाल: किसानों द्वारा समय-समय पर आवारा पशुओं का मुद्दा क्यों उठाया जाता है?
उत्तर: उत्तर प्रदेश में इस समय आवारा पशु किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं। आवारा पशुओं के कारण पूर्वांचल के किसानों ने मटर और अरहर की खेती करना बंद कर दी है। पशुओं के व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध के कारण आवारा पशुओं की समस्या विकराल हो गई है। छोटे मझोले किसान इनके हमले से बर्बाद हो रहे हैं। किसानों का कहना है कि आवारा पशुओं से किसानों की फसलों की रक्षा की जाए। पशु व्यापार पर लगी रोक को हटाया जाय।
चंद्रशेखर, महासचिव, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक)
सवाल: मौजूदा समय में आप मज़दूरों-किसानों या जन-आंदोलनों को कितना मज़बूत देख रहे हैं?
उत्तर: इस समय संविधान और जनतन्त्र पर हमला हो रहा है। आंदोलन के अधिकार सहित अन्य मूलभूत अधिकारों को छीना जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र को निजी हाथों में बेचा जा रहा है और जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाने के लिए सांप्रदायिक नफ़रत फैलाई जा रही है।
सवाल: इस समय रोज़गार और पुरानी पेंशन (ओपीएस) का सवाल कितना महत्वपूर्ण है?
उत्तर: यह सब जानते हैं कि सरकार निजीकरण के रास्ते पर चल रही है। इस निजीकरण के बाद न्यूनतम वेतन और पेंशन नहीं मिल रही है। युवाओं की बड़ी संख्या बेरोज़गार है और उनके सपने पूरे नहीं हो रहे हैं। सबको नौकरिया नहीं मिल रही है। पुरानी पेंशन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार बन्द कर गई थी। पुरानी पेंशन बहाली के लिए लोग लड़ रहे हैं।
मुकुट सिंह, प्रदेश महामंत्री, अखिल भारतीय किसान सभा
सवाल: उत्तर प्रदेश सरकार से किसानों की प्रमुख समस्याए क्या हैं?
उत्तर: आवारा पशुओं के अलावा खेती में सही दाम नहीं मिल रहा है। खेती घाटे में होने के कारण किसान को कपड़े, इलाज, शिक्षा के लिए क़र्ज़ लेना पड़ रहा है। क़र्ज़ चुकाने के लिए खेत बेचकर प्रवासी मज़दूर बनना पड रहा है। हर बड़े शहर में प्रवासी मज़दूर की बड़ी संख्या कम मज़दूरी में काम करने के लिए तैयार है। इसलिए मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा है और बेरोज़गारी भी बढ़ रही है।
सवाल: आप किसानों से लगातार संपर्क में रहते हैं, एमएसपी क़ानून नहीं होने से उनकी अर्थव्यवस्था पर कैसा असर है?
उत्तर: निःसंदेह खेती अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। एमएसपी न देने से एक एकड़ खेती पर 30 हज़ार रुपये कम दिया जा रहा है। सरकार 6000 रुपये देकर सम्मान की बात कर रही है। किसान को सरकार के सम्मान की राशि नहीं, अपनी मेहनत का सही दाम यानी एमएसपी गारंटी कानून चाहिए। “स्वामीनाथन आयोग” की सिफारिशों के अनुसार सभी फसलों पर सी-2 प्लस 50 प्रतिशत के फार्मूले से एमएसपी की गारंटी होनी चाहिए।
सवाल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि उनकी सरकार “सबका साथ सबके विकास की नीति पर काम कर रही है’, आप की क्या राय है?
उत्तर: बेशक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबका साथ सबका विकास की बात बोल रहे हैं। लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। देश की आबादी के 85 फीसदी किसान-मज़दूर हैं और इनकी जिंदगी में विकास नहीं हो रहा है। पूंजीपतियो का विकास हो रहा है। अदानी अम्बानी का विकास हो रहा है। किसान-मज़दूर की हालात खराब है।
उमा शंकर मिश्रा, महामंत्री, हिन्द मज़दूर सभा (एचएमएस)
सवाल: आगामी लोकसभा चुनाव के बारे में आप क्या सोच रहे हैं?
उत्तर: ऐसा देखा गया है कि इधर कुछ समय से चुनाव आस्था, धर्म और जाति आदि के मुद्दों पर लड़े जा रहे हैं। किसान और मज़दूर यह चाहते हैं उनके मुद्दे जैसे एमएसपी और न्यूनतम वेतन आदि राजनीति के केंद्र में आयें। विपक्ष को यह मुद्दे उठाने चाहिए।
सवाल: न्यूनतम वेतन, निजीकरण और रिक्त पदों जैसे मुद्दों पर आप का क्या कहना है?
उत्तर: भारत ग़रीबी में 111 वें स्थान पर है। न्यूनतम वेतन 26000 रुपये प्रति माह लागू किया जाए। लेकिन न्यूनतम वेतन की जगह चार लेबर कोड लाए गए हैं। जिसमें काम के घण्टे और न्यूनतम वेतन की कोई गारंटी नहीं है। मज़दूरों को हड़ताल करने का अधिकार नहीं है। मज़दूरों के समझौता वार्ता (निगोशीएशन) के अधिकार को समाप्त कर रहा है। जबकि यह दुनिया के हर देश में है। रिक्त पदों पर तुरंत भर्ती हो। निजीकरण की नीति बदली जानी चाहिए।
सवाल: वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में किसान-मज़दूर और आम जनता की चुनावी राजनीति में क्या भूमिका होना चाहिए?
उत्तर: हमें बांटने की कोशिश की जा रही है। लेकिन मज़दूर-किसान, और कर्मचारी, हिन्दू मुस्लिम में नहीं बंटेंगे। हिन्दू-मुस्लिम एकता से अंग्रेजों को देश भगाया था। हम बीजेपी की साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नीतियों के विरुद्ध भी मिलकर लड़ेंगे। “जो मज़दूर किसान की बात करेगा वो देश पर राज करेगा”।
.....
आपको बता दें कि आज 28 नवंबर को महापड़ाव का आखिरी दिन है किसान मज़दूर आज राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को अपनी मांगों से संबंधित मांग पत्र सौंपेंगे।
यह महापड़ाव ऐतिहासिक किसान आंदोलन की वर्षगांठ पर अगली कड़ी के रूप में हो रहा है।
संयुक्त किसान मोर्चा एवं ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर लखनऊ में जारी महापड़ाव में हजारों किसान-मज़दूर ठंड के बावजूद दिन रात इको गार्डन में मौजूद हैं।
हाथों में लाल और हरे आदि झंडे लिए किसानों और मजदूरों का कहना है किसान-मज़दूर विरोधी सरकार की रीढ़ को तोड़ने की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश से किसानों-मज़दूरों को अपने ऊपर लेनी होगी।
किसानों का कहना है कि उनकी मांगों में फसलों के रेट के साथ-साथ क़र्ज़ माफ़ी जैसे महत्वपूर्ण सवाल भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि प्रदूषण के नाम पर किसानों को खलनायक बनाने का प्रयास किया जा रहा है जो स्वीकार नही किया जा सकता।
इसके अलावा महापड़ाव पर आये किसानों और मजदूरों ने कहा कि लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले बन्द होना चाहिए। विरोधियों, पत्रकारों व जन-आन्दोलन को दबाने के लिये प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो सीबीआई तथा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) का दुरुपयोग बन्द होना चाहिए।
किसान मज़दूरों की मांग है कि “स्कीम वर्कर्स” को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।