कटाक्ष: रे दशानन तूने ये क्या किया!
आचार्य नरसिंहानंद समाचार पाने के लिए बहुत व्यग्र थे। पर उनके कान जिस खबर को सुनने के लिए तरस रहे थे, वह आकर ही नहीं दे रही थी। टीवी चैनलों से लेकर, सोशल मीडिया तक, सब खंगाले जा रहे थे। दोपहर से शाम हुई। शाम ढल गयी और झुटपुटा हो गया। बाकायदा अंधेरा घिर आया, पर खबर नहीं आयी। बाकी सब खबरें आयीं। रावण के सबसे ऊंचे पुतले की खबर। प्रधानमंत्री के रावण दहन में राम की मदद करने की खबर। राजधानी की ही एक और रामलीला में श्रीमती सोनिया गांधी के एक और रावण पर तीर चलाने की खबर। राजधानी में ही किसी और रामलीला में मुख्यमंत्री आतिशी के रावण के पुतले को आग के हवाले करने की खबर। मैसूर दशहरे की खबर। कुल्लू दशहरे की खबर। यहां तक कि कहीं-कहीं दशहरे में रावण और मेघनाथ तथा कुंभकर्ण के अलावा कुछ फालतू पुतलों का दहन किए जाने की; कहीं महंगाई का, तो कहीं बेरोजगारी का, कहीं भ्रष्टाचार का तो, कहीं नारी पर अत्याचार का पुतला जलाए जाने की खबर भी। उसी पुतले के जलाए जाने की खबर नहीं थी, जिसका आचार्य जी ने गला फाड़कर आह्वान किया था--परधर्म पूज्यों का पुतला।
आचार्य जी ने इतना बलिदान दिया। गर्जना में गला फाड़ा , दशहरे पर परधर्म-पूज्यों का पुतला जलाने का बाकायदा मुहूर्त घोषित किया, पुलिस हिरासत में जाना-छूटना भी किया, फिर भी नतीजा--सिफर का सिफर। रात होते-होते आचार्य ने एलान कर दिया--जरूर सनातन विरोधियों ने षडयंत्र रचकर, राक्षस दहन पूरा नहीं होने देने के जरिए, हमारी विजय दशमी को पराजय दशमी बनाने का दुस्साहस किया है। हमारी शस्त्र पूजा को चुनौती दी है। इसका प्रतिकार होगा; याचना नहीं अब रण होगा। सुबह से जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन होगा--आमरण विरोध प्रदर्शन।
सरकार तक खबर पहुंची तो उसने जंतर-मंतर पर लाल कालीन बिछवा दिए। आचार्य जी ने मसनद संभालने के साथ ही सरकार को चेतावनी दे दी--सनातन-विरोधी षडयंत्र का पता लगाकर, षडयंत्रकारियों को फौरन सजा दो, वर्ना हम खुद सजा देंगे। संत सम्मेलन शुरू हो गया। संतों की गर्जना से आकाश गूंजने लगा। सरकार के दूत आने लगे। पहले छोटे अफसर आए। फिर बड़े अफसर। फिर और बड़े अफसर। फिर मंत्री आने लगे। अपने जैसे अनेक संतों से घिरे आचार्य जी ने पाप के राज में अन्न-जल ग्रहण नहीं करने का एलान कर दिया। सरकार पहले ही घुटनों के बल थी, अब साष्टांग हो गयी। ब्रह्म-दु:ख का पाप क्यों चढ़ाएंगे। आप तो आदेश करें, क्या करना है?
आचार्य जी अब तक संत समाज बन चुके थे। संत समाज ने मांग की--विजया दशमी को अपवित्र करने के षडयंत्र की उच्चस्तरीय जांच और दोषियों के साथ एन्काउंटर न्याय। मंत्री जी ने कहा, संतों का आदेश शिरोधार्य, बस अब प्रसाद ग्रहण करें और उपवास का त्याग करें। देर शाम सरकार ने विशेष जांच दल के गठन का एलान कर दिया। उधर तिरुपति के लड्डू में मिलावट की जांच और इधर विजया दशमी को अपवित्र करने के षडयंत्र की जांच।
विरोधियों ने विरोध जताया, यह सरकार क्या कर रही है, यह सरकार का काम नहीं है। सरकार हमलावर हो गयी--विपक्ष अपनी वोट बैंक पॉलिटिक्स से बाज आए, हम किसी को भी सनातन का अपमान नहीं करने देंगे। हाँ ! अगर कोई षडयंत्र नहीं है, तो किसी को विरोध करने की क्या जरूरत है, जांच में सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
जांचकर्ताओं ने जांच शुरू की। कुछ नहीं मिला। जांचकर्ताओं ने और दूर तक जांच की, कुछ नहीं मिला। और देर तक जांच की, कुछ नहीं मिला। आचार्य ने संत समाज बनकर फिर जंतर-मंतर पर आकर बैठ जाने की धमकी दी। सरकार ने हिंदू समाज से धीरज बनाए रखने की और सरकार पर भरोसा रखने की अपील की। उधर जांच अधिकारियों ने आचार्य से मुलाकात कर तब तक की जांच की प्रगति की जानकारी दी। बताया कि बताने को कुछ नहीं था। बताया कि रावण के साथ परधर्म पूज्यों के पुतले जलाने के उनके आह्वान को लोगों ने या तो सुना नहीं, सुना तो समझा नहीं और समझा, तो उससे कन्नी काट गए। किसी और ने नहीं, खुद रामलीला आयोजकों ने ही ऐसी रावणलीला करने से इंकार कर दिया। कई ने तो बाकायदा कहा कि हम रामलीला को ऐसे विकृत करने की इजाजत कैसे दे देते! यह तो रामलीला का सांप्रदायीकरण है। रामलीला तो हमारी सांस्कृतिक परंपरा है, संप्रदाय के विभाजन से ऊपर।
आचार्य उखड़ गए। जांच में जरूर गड़बड़ हुई है। उनके आह्वान के बाद भी विजया दशमी पर, लोग शस्त्र पूजन कर के रह जाएं और म्लेच्छों के खिलाफ शस्त्र ही नहीं उठाएं, यह असंभव है। ऊपर की मंजिल पर सरकार तो नहीं, पर नीचे-नीचे से पुलिस जरूर सनातन-विरोधी षडयंत्रकारियों से मिली हुई है। सनातनी हिंदू जाग रहा है, तो इन्हें कानून और व्यवस्था का डर सता रहा है। सनातनी ऐसी चिंताओं से डरने वाला नहीं है। वह विधर्मियों को उनकी औकात बताकर रहेगा। सरकार साथ दे तो भी ठीक, साथ नहीं दे तो भी ठीक।
जांच प्रमुख ने कुछ खीझकर कहा कि यह भी सुन लीजिए कि आप का मंदिर जहां है, उस इलाके की रामलीला में क्या हुआ? अब आचार्य जी के चौंकने की बारी थी। इलाके वालो तुम भी! जांच प्रमुख ने बताया कि रामलीला कमेटी में बाकायदा आचार्य की पुकार पर फालतू पुतले बनवाने, जलवाने पर विचार हुआ भी था। स्थानीय सेठ के समझाने-बुझाने पर कमेटी के बाकी लोग मान भी गए थे कि इस बार यह भी कर के देख लेते हैं। राम जी भी खुश, सरकार भी खुश। बजट भी पास हो गया था। पर ऐन मौके पर रावण अड़ गया। उसने साफ-साफ कह दिया कि अपने साथ ऐसे किसी का भी पुतला नहीं जलाने देगा। ऐसे ही पुतले जलाने हैं, दंगे-वंगे कराने हैं, तो अलग से जाकर कराते रहो, पर रामलीला में यह सब नहीं होगा। रामलीला के नाम पर यही सब करना है तो मेरी क्या जरूरत है, मैं चला!
और रावण अड़ा सो अड़ा, राम-सीता भी उसके साथ हो गए। कहने लगे कि यह तो राम लीला नहीं हुई। यह तो रावणलीला से भी बदतर होगा। रावण में लाख बुराइयां थीं, पर वह किसी दूसरे के धर्म के पूज्यों को अपमानित करने नहीं गया और वह भी जानबूझकर। राम-रावण को एक साथ देखकर, बेचारे रामलीला कमेटी वालों को ही मानना पड़ा कि रावण दहन समेत, रामलीला तो वैसे ही होगी, जैसे हमेशा होती आयी है।
आचार्य का चेहरा लटका देखकर, जांच प्रमुख ने ही धीरज बंधाया; कुछ भी हो, षडयंत्र की जांच चलती रहेगी। अगले महीने ही चुनाव है, उसके चार महीने बाद फिर चुनाव है। काश, एक देश, एक चुनाव हो जाता, तो पांच साल में एक बार ही इस सब का ख्याल रखना पड़ता!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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