यूक्रेन युद्ध में 'बाइडेन चरण' की शुरूआत हो रही है
यूक्रेन में ज़मीनी युद्ध अपनी गति पकड़ चुका है, एक नए चरण की शुरूआत हो रही है। यहां तक कि पश्चिमी मीडिया और थिंक टैंक में मौजूद यूक्रेन के कट्टर समर्थक भी स्वीकार कर रहे हैं कि रूस पर सैन्य जीत असंभव है और रूसी नियंत्रण वाले इलाके को खाली कराना कीव की क्षमता से कहीं परे की बात है।
इसलिए योजना बी को लागू करने के विकल्प के रूप में बाइडेन प्रशासन ने बड़ी चतुराई के साथ कीव को नुकसान हुए इलाकों के बारे में यथार्थवादी होने और मॉस्को के साथ व्यावहारिक रूप से बातचीत करने की सलाह दी है। यह वह कड़वा संदेश था जो अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने हाल ही में व्यक्तिगत रूप से कीव को भेजा था।
लेकिन, द इकोनॉमिस्ट पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की तीखी प्रतिक्रिया ने इस का खुलासा किया है। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि पश्चिमी नेता अभी भी बहुत अच्छी बातें कर रहे हैं, उन्होंने वादा किया था कि वे यूक्रेन के साथ "जब तक जरूरी होगा" (बाइडेन के मंत्र के मुताबिक) खड़े रहेंगे, लेकिन उन्हे यानि ज़ेलेंस्की को, उनके खुद के कुछ सहयोगियों के बीच मूड में बदलाव का अंदाज़ा लग रहा है: "मुझे उनकी आंखों देखकर यह अंतर्ज्ञान हुआ, जिसे मैंने पढ़ा और तब एहसास किया, [जब वे कहते हैं] 'हम हमेशा आपके साथ रहेंगे।' लेकिन मैं देख रहा हूं कि वे यहां नहीं है, हमारे साथ नहीं है।'
ज़ेलेंस्की जानते हैं कि उनके लिए पश्चिमी समर्थन को बरकरार रखना मुश्किल होगा। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि अगर अमेरिकी नहीं, तो यूरोपीयन यूनियन कम से कम मदद और आपूर्ति जारी रखेगी, और संभवतः दिसंबर में अपने शिखर सम्मेलन में यूक्रेन को साथ लेने की चल रही प्रक्रिया पर बातचीत शुरू कर सकती है। लेकिन उन्होंने यूरोप के लिए आतंकवादी खतरे की परोक्ष खतरे की भी चेतावनी दी कि अगर "इन लोगों को [यूक्रेन के लोगों] एक कोने में धकेल दिया गया तो यह यूरोप के लिए" अच्छी कहानी "नहीं होगी। अब तक ऐसे अशुभ खतरों को शांत रखा गया था, जो फासीवादी बैंडेरा फ्रिंज के निम्न श्रेणी के कार्यकर्ताओं से उत्पन्न हुए थे।
लेकिन यूरोप की भी अपनी सीमाएँ हैं। पश्चिमी देशों के हथियारों के भंडार ख़त्म हो गए हैं और यूक्रेन कभी न भरने वाला बड़ा गड्ढा बन गया है। खास बात यह है कि इस विश्वास की भारी कमी है कि क्या इस किस्म की निरंतर आपूर्ति से उस छद्म युद्ध पर कोई फर्क पड़ेगा जिसे जितना कठिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। इसके अलावा, यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं मंदी में जा रही हैं, जर्मनी में मंदी "वि-औद्योगीकरण" के गंभीर परिणामों के साथ अवसाद (इकनॉमिक डिप्रेशन) में भी फिसल सकता है।
यहां इतना कहना काफी होगा कि आने वाले दिनों में ज़ेलेंस्की की व्हाइट हाउस यात्रा एक निर्णायक पल बन जाएगी। बाइडेन प्रशासन इस बात से उदास है कि चीन के खिलाफ यह छद्म युद्ध, पूर्ण-शक्ति वाली इंडो-पैसिफिक रणनीति में बाधा बन रहा है। फिर भी, एबीसी को दिए एक साक्षात्कार के दौरान, ब्लिंकन ने पहली बार स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका रूसी इलाके के अंदर गहराई तक मार करने वाली अमेरिका द्वारा आपूर्ति की गई लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने के मामले में यूक्रेन का विरोध नहीं करेगा, एक ऐसा कदम जिसे मॉस्को ने पहले "लाल रेखा" पार करना कहा था, जो वाशिंगटन को युद्ध में सीधा भागीदार बना देगा।
जाने-माने अमेरिकी सैन्य इतिहासकार, रणनीतिक विचारक और युद्ध के दिग्गज कर्नल (सेवानिवृत्त) डगलस मैकग्रेगर (जिन्होंने ट्रम्प प्रशासन के दौरान पेंटागन के सलाहकार के रूप में काम किया था) तब दूरदर्शिता वाले लगते हैं जब वे कहते हैं कि “बाइडेन युद्ध का एक नया चरण" शुरू होने वाला है। कहने का मतलब यह है कि, जमीनी संघर्ष के बाद, अब ठिकाना लंबी दूरी के हमले वाले हथियारों जैसे स्टॉर्म शैडो, टॉरस, एटीएसीएमएस लंबी दूरी की मिसाइलों आदि पर स्थानांतरित हो जाएगा।
अमेरिका लंबी दूरी की एटीएसीएमएस मिसाइलें भेजने पर विचार कर रहा है, जिसकी मांग यूक्रेन लंबे समय से कर रहा है, जो रूसी इलाके के अंदर तक मार करने की क्षमता रखती है। सबसे उत्तेजक बात यह है कि नाटो टोही प्लेटफार्मों, दोनों मानवयुक्त और मानव रहित, का इस्तेमाल भी ऐसे ऑपरेशनों में किया जाएगा, जिससे अमेरिका एक आभासी सह-लड़ाकू युद्ध लड़ने वाला बन जाएगा।
रूस अपने दुश्मनों की क्षमताओं के ऐसे स्रोतों पर हमला करने में संयम बरत रहा है लेकिन यह संयम कब तक कायम रहेगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। वाशिंगटन अमेरिकी हथियारों और प्रौद्योगिकी के साथ रूसी इलाके पर हमलों को कैसे देखेगा, इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में, ब्लिंकन ने तर्क दिया कि यूक्रेनी ड्रोन के रूसी इलाकों पर बढ़ते हमले "इस बारे में है कि वे कैसे [यूक्रेनी] अपनी रक्षा करने जा रहे हैं" तथा जो इलाके और जो कुछ उनसे जब्त किया गया है उसे वापस लेने के लिए वे कैसे काम कर रहे हैं। हमारी (अमेरिका) भूमिका, दुनिया भर के दर्जनों अन्य देशों की भूमिका जैसी ही है जो उनका समर्थन कर रहे हैं, मक़सद उनकी मदद करना है।
रूस हथियारों की इस तरह की बेशर्म वृद्धि को स्वीकार नहीं करने वाला है, खासकर इसलिए क्योंकि रूस पर हमला करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ये उन्नत हथियार प्रणालियाँ वास्तव में नाटो कर्मियों – उनके ठेकेदारों, प्रशिक्षित पूर्व-सैन्य कर्मियों या यहां तक कि सेवारत अधिकारियों द्वारा संचालित की जाती हैं। राष्ट्रपति पुतिन ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि “हमने युद्ध के मैदान और उन इकाइयों में जहां प्रशिक्षण दिया जाता है, विदेशी भाड़े के सैनिकों और प्रशिक्षकों का पता लगाया है। मुझे लगता है कि कल या उससे पहले किसी न किसी को फिर से पकड़ लिया गया है।”
अमेरिका का मानना यह है कि किसी बिंदु पर, रूस को बातचीत करने पर मजबूर किया जाना जरूरी है ताकि ठहरा हुआ युद्ध, नाटो सहयोगी यूक्रेन की सहायता के लिए सैन्य निर्माण कर सके और उनके सामने अटलांटिक गठबंधन की सदस्यता की प्रक्रिया को जारी रखने का विकल्प भी रहेगा, और बाइडेन प्रशासन इंडो-पैसिफिक पर ध्यान केंद्रित कर पाएगा।
हालाँकि, रूस "युद्ध के ठहराव" पर समझौता नहीं करेगा, क्योंकि रूस को यूक्रेन के विसैन्यीकरण और अस्वीकरण से कुछ भी कम पसंद नहीं होगा जो इसके विशेष सैन्य अभियान के प्रमुख उद्देश्य हैं।
छद्म युद्ध के इस नए चरण का सामना करते हुए, रूसी प्रतिशोध क्या रूप लेगा यह देखना अभी बाकी है। रूस के पास नाटो इलाकों पर सीधे हमला किए बिना या परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए बिना कई तरीके हो सकते हैं (जब तक कि अमेरिका परमाणु हमला नहीं करता - जिसकी संभावना अभी शून्य है।)
अब चूंकि रूस और डीपीआरके (संभवतः आईसीबीएम प्रौद्योगिकी सहित) के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग की संभावना बढ़ी है, और यह सब रूस के खिलाफ अमरीका की अक्रामक नीति और यूक्रेन के प्रति समर्थन स्वाभाविक परिणाम है - जितना कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति इसकी इमीदार है। मुद्दा यह है कि आज यह डीपीआरके के साथ है; कल यह ईरान, क्यूबा या वेनेजुएला के साथ भी जा सकता है - जिसे कर्नल मैकग्रेगर ने मास्को द्वारा "सीधे टकराव में वृद्धि" कहा है। यूक्रेन की स्थिति कुछ हद तक कोरियाई प्रायद्वीप और ताइवान की समस्याओं जैसे जुड़ी लगती हैं।
रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने बुधवार को राज्य टेलीविजन पर कहा कि रूस के पास अपने विशेष सैन्य अभियान में जीत हासिल करने के अलावा "कोई अन्य विकल्प नहीं" है और वे दुश्मन के हथियारों और सैनिकों को तबाह करने के अपने प्रमुख मिशन के साथ काम करते रहेंगे। इससे पता चलता है कि संघर्षात्मक युद्ध और तेज़ होगा जबकि अब पूरी की पूरी रणनीति पूरी सैन्य जीत हासिल करने की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
यूक्रेनी सेना आने सैनिकों के लिए बेताब है। अकेले 15-सप्ताह के "जवाबी हमले" में, 71,000 से अधिक यूक्रेनी सैनिक मारे गए हैं। ऐसी चर्चा है कि कीव यूरोप में गए यूक्रेनी शरणार्थियों में से मिलिटरी उम्र के युवाओं को सेना में वापस लाने की मांग कर रहा है। उधर, लंबे संघर्ष की आशंका में रूस में भी लामबंदी जारी है।
पुतिन ने शुक्रवार को खुलासा किया कि 300,000 युवाओं ने स्वेच्छा से सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं और नई इकाइयां बनाई जा रही हैं, जो उन्नत प्रकार के हथियारों और उपकरणों से लैस हैं, "और उनमें से कुछ पहले से ही 85 प्रतिशत -90 प्रतिशत पूरी तरह से तैयार हैं।"
बड़ी संभावना यह है कि एक बार जब यूक्रेनी "जवाबी हमला" अगले कुछ हफ्तों में भारी विफलता के साथ समाप्त होगा, तो रूसी सेनाएं बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू कर सकती हैं। अनुमानतः, रूसी सेनाएँ नीपर नदी को भी पार कर सकती हैं और ओडेसा और रोमानियाई सीमा तक जाने वाली तटरेखा पर कब्ज़ा कर सकती हैं, जहाँ से नाटो क्रीमिया पर हमले कर रहा है। कोई गलती न हो, एंग्लो-अमेरिकी धुरी के लिए, काला सागर में रूस को घेरना हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता रही है।
नॉर्वे में नॉर्थ-ईस्टर्न विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ग्लेन डिसेन द्वारा लिए गए कर्नल डगलस मैकग्रेगर के बेहतरीन साक्षात्कार यहां देखें।
एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
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