Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ट्रेड यूनियनों ने बजट से पहले किए गए परामर्श में वित्त मंत्री को दिए सुझाव

बजट तैयार करने के लिए विचारणीय मुद्दों पर केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू और एआईयूटीयूसी ने अपना दृष्टिकोण वित्त मंत्री निर्मला सितारमण के सामने पेश किया।
defence
फ़ोटो साभार : ट्विटर/X

वर्ष 2024-2025 के लिए बजट तैयार करने हेतु विचारणीय मुद्दों पर केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों जिसमें इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू और एआईयूटीयूसी ने अपना दृष्टिकोण देश की वित्त मंत्री निर्मला सितारमण के सामने पेश किया।

सभी ट्रेड यूनियनों ने मजदूर विरोधी नीतियों को पलटने और मजदूर हितैषी नीतियों को लागू करने की मांग की है। यूनियनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिए गए ज्ञापन/सुझाव में अधिक धनवान लोगों पर टैक्स लगाने और साथ ही कॉर्पोरेट टैक्स, संपत्ति कर और हेरिटेज/विरासत कर बढ़ाकर संसाधन जुटाने की बात कही है। उनका यह भी मानना है कि बढ़ती बेरोजगारी को नियंत्रण में लाने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों और सरकारी महकमों में सभी मौजूदा रिक्तियों को तुरंत भरा जाए, ठेका/अनुबंध और आउटसोर्सिंग की प्रथा को बंद किया जाए और इसके बजाय नियमित रोजगार सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

यूनियनों ने श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी उस अधिसूचना के खिलाफ भी आवाज़ उठाई है जिसमें ईपीएफ में चूक करने वाले मालिकों/नियोक्ताओं के खिलाफ लगाए जाने वाले जुर्माने की दरों में भारी कमी की गई है। यूनियनों ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।

(केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा वित्त मंत्री को सौंपे गए ज्ञापन/सुझाव का पूरा टेक्स्ट नीचे दिया गया है)।

हम, देश के भीतर धन-संपदा पैदा करने वाले, मेहनतकश वर्ग के प्रतिनिधि, देश के लोकतंत्र और संविधान में अपने विश्वास के कारण ही इस बजट-पूर्व परामर्श में भाग ले रहे हैं। हमें यह कहने के लिए इसलिए बाध्य होना पड़ रहा है क्योंकि आपकी पिछली सरकारों ने बजट या किसी भी नीति को तैयार करते समय ट्रेड यूनियनों द्वारा दिए गए एक भी सुझाव पर विचार नहीं किया था।

एनडीए सरकार के तहत सर्वोच्च त्रिपक्षीय मंच, भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) की बैठक को बुलाए हुए एक दशक होने जा रहा है। आपको याद होगा कि एनडीए सरकार के तहत आयोजित एकमात्र भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) की मुख्य सिफारिश पहले की भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) की सिफारिशों को लागू करने की थी, जिस पर फिर से आपकी तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया गया।

इतना ही नहीं, हमारी मांगों और सुझावों को नजरअंदाज किया जा रहा है, बल्कि आपकी सरकारें सभी त्रिपक्षीय लोकतांत्रिक तंत्रों और संस्थाओं को दरकिनार करते हुए, उनके बिल्कुल विपरीत जाकर नीतियों को लागू कर रही हैं। इसका ताजा उदाहरण श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा प्रकाशित अधिसूचना है, जिसमें ईपीएफ में चूक करने वाले मालिकों/नियोक्ताओं के खिलाफ लगाए जाने वाले जुर्माने की दरों में भारी कमी की गई है। ऐसा ईपीएफओ के केंद्रीय न्यास बोर्ड को अंधेरे में रखते हुए और यूनियनों से किसी भी तरह के परामर्श के बिना किया गया है।

हम आशा करते हैं कि नई एनडीए सरकार इस अनुभव से सीख लेगी, जहां ऐसी नीतियों से केवल कुछ कॉरपोरेट्स को ही मदद मिली है और देश भारी असमानताओं और बेरोजगारी, भुखमरी और कुपोषण के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, जो हाल ही में विश्व भूख सूचकांक में भारत के स्थान से स्पष्ट हो जाता है।

लोगों के व्यापक हित और अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद गंभीर चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, हम आपसे अपेक्षा करते हैं कि आप लोगों की क्रय शक्ति यानी ख़रीदने की क्षमता को बढ़ाने के लिए कदम उठाएंगे।

इसलिए केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें, बजट 2024-2025 के लिए निम्न ठोस सुझाव पेश करती हैं।

संसाधन जुटाना: आम जनता पर आवश्यक खाद्य वस्तुओं और दवाओं पर जीएसटी का बोझ डालने के बजाय कॉर्पोरेट टैक्स, संपत्ति कर और हेरिटेज/विरासत कर बढ़ाकर संसाधन जुटाने होंगे। दशकों से, कॉर्पोरेट कर की दरों में अन्यायपूर्ण तरीके से कटौती की गई है और साथ ही आम लोगों पर अप्रत्यक्ष-कर का बोझ बढ़ाने से एक बहुत ही प्रतिगामी कर-संरचना बन गई है। निष्पक्षता, समानता और औचित्य के हित में इसे ठीक किया जाना चाहिए। अति-धनवानों पर एक प्रतिशत हेरिटेज/विरासत-कर की सीमा भी बजट प्राप्तियों में बहुत बड़ी राशि ला सकती है। जिसका इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक क्षेत्रों के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है। इसलिए आवश्यक खाद्य वस्तुओं और दवाओं पर जीएसटी को तुरंत कम किया जाना चाहिए।

वेतनभोगी वर्ग के लिए आयकर में छूट: वेतनभोगी वर्ग के लिए उनके वेतन और ग्रेच्युटी पर आयकर छूट की अधिकतम सीमा को पर्याप्त रूप से बढ़ाया जाना चाहिए।

सामाजिक सुरक्षा कोष: असंगठित श्रमिकों और कृषि श्रमिकों के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित सामाजिक सुरक्षा कोष की स्थापना की जानी चाहिए, ताकि उन्हें न्यूनतम 9000 रुपये प्रति माह पेंशन और अन्य चिकित्सा, शैक्षिक लाभ सहित परिभाषित सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रदान की जा सकें। श्रमिकों, विशेष रूप से अपशिष्ट पुनर्चक्रण करने वालों, बर्तन बनाने वालों, कांच की चूड़ी बनाने वालों आदि जैसे कमजोर व्यवसायों के लिए व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाए।

गर्मी और ठंड की लहरों, बेमौसम बारिश, बाढ़, चक्रवात और ऐसी अन्य प्राकृतिक आपदाओं सहित कम काम के सत्रों के दौरान आय/मजदूरी हानि की भरपाई की जानी चाहिए। जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में विशेष रूप से इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण श्रमिकों को होने वाले नुकसान को कवर करने के लिए जलवायु लचीलापन निधि स्थापित की जाए।

सभी असंगठित श्रमिकों को ई-श्रम पोर्टल पर नामांकित किया जाना चाहिए तथा इन योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। वर्तमान योजनाओं के तहत मौद्रिक लाभ बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि वे अपर्याप्त हैं। जीएसटी लागू करते समय किए गए वादे के अनुसार बीडी सेस अधिनियम को निरस्त करने के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए आवश्यक निधि प्रदान की जानी चाहिए। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को ईएसआई का विस्तार किया जाना चाहिए।

छोटे किसानों/कृषि मजदूरों/बटाईदारों को भी किसान सम्मान योजना के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए। इसी प्रकार, कृषि मजदूरों/बटाईदारों को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए।

राशन कार्ड और अन्य पहचान पत्रों की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी सामंजस्य और अंतरराज्यीय प्रबंधन तंत्र सुनिश्चित करने के लिए बजट आवंटित किया जाना चाहिए। इससे प्रवासी श्रमिकों को उनके स्रोत और गंतव्य पर सामाजिक सुरक्षा लाभ हासिल करने में मदद मिलेगी।

रोजगार पैदा करना: केंद्र सरकार के विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों में सभी मौजूदा रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिए। अनुबंध और आउटसोर्सिंग की प्रथा को बंद किया जाना चाहिए और इसके बजाय नियमित रोजगार सुनिश्चित किया जाना चाहिए। समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित किया जाए। अग्निवीर, आयुधवीर, कोयलावीर और इस तरह के निश्चित अवधि के रोजगार को बंद किया जाना चाहिए और उन सभी क्षेत्रों में नियमित रोजगार द्वारा उन्हें प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। कौशल भारत के नाम पर निजी नियोक्ताओं के लाभ के लिए सरकारी वित्त-पोषित प्रशिक्षुता की योजना को निजी नियोक्ताओं के वैधानिक दायित्व द्वारा पूरी तरह से बदल दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने संबंधित प्रतिष्ठानों में आवश्यक संख्या में प्रशिक्षुओं को नियमित रोजगार में चरणबद्ध तरीके से रखने के स्पष्ट प्रावधान के साथ नियुक्त कर सकें।

न्यूनतम मजदूरी के साथ 200 दिन का काम सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा के लिए आवंटन को बढ़ाया जाए। 43वें भारतीय श्रम आयोग की सर्वसम्मति से की गई सिफारिश के अनुसार इस योजना को शहरी क्षेत्रों में भी लागू किया जाए। सभी लंबित मजदूरी का तत्काल भुगतान किया जाए।

स्ट्रीट वेंडर्स (जीविका संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग विनियमन) अधिनियम 2014 के तहत वेंडिंग लाइसेंस का सर्वेक्षण और जारी करने के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन किया जाना चाहिए और जलवायु अनुकूल बाजार सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

एनपीएस: नई पेंशन योजना को समाप्त किया जाना चाहिए तथा लाभ परिभाषित पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाना चाहिए।

8वें वेतन आयोग का तुरंत गठन किया जाए।

श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाना चाहिए: 29 श्रम कानूनों को निरस्त करने वाले सभी 4 श्रम संहिताओं को निरस्त और समाप्त किया जाना चाहिए। उक्त 29 श्रम कानूनों को बहाल किया जाना चाहिए। भारतीय श्रम सम्मेलन की सर्वसम्मति से की गई संस्तुति के अनुसार न्यूनतम मजदूरी 26000 रुपये प्रति माह से कम नहीं होनी चाहिए, जिसमें भारत सरकार भी एक पक्ष है। आईएलओ कन्वेंशन 144 के अनुसार आईएलसी की बैठक को तुरंत बुलाया जाना चाहिए।

सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण बंद होना चाहिए: सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण और उसका नवीनतम स्वरूप- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन प्रक्रिया को तत्काल रोका जाना चाहिए। रेलवे में उत्पादन और सेवा में विभिन्न तरीकों से निजीकरण, रक्षा क्षेत्र में कंपनियों के गठन और उनके विलय आदि के माध्यम से निजीकरण प्रक्रिया, कोयले में निजीकरण और कोयला ब्लॉकों की नीलामी, बंदरगाह और डॉक्स में बड़े पैमाने पर निजीकरण, बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन आदि में बेलगाम तरीके से निजीकरण चल रहा है। इन सभी को तुरंत रोका जाना चाहिए। बीएसएनएल और आरआईएनएल की संपत्तियों को बेचने की कार्रवाई को तुरंत रोका जाना चाहिए। आरआईएनएल (वैजाग स्टील प्लांट) का निजीकरण बंद किया जाना चाहिए। सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को मजबूत किया जाना चाहिए।

विभिन्न माध्यमों से बिजली का निजीकरण बंद करो। बिजली बिल वापस लो। स्मार्ट प्रीपेड बिजली मीटर योजना को खत्म करो।

डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण प्रणाली का निजीकरण रोका जाना चाहिए तथा पारंपरिक कचरा पुनर्चक्रणकर्ताओं को रोजगार तथा उनकी प्रौद्योगिकी और कौशल उन्नयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और सरकारी खजाने की लूट और बीमा क्षेत्र का निजीकरण बंद किया जाना चाहिए: कॉरपोरेट्स द्वारा कर्ज़ न चुकाए जाने पर उसे बट्टे खाते में डालना और कर्ज़ माफ करना और वह भी दिवालियापन संहिता के रास्ते ऐसा करना, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन, पूंजी निवेश प्रोत्साहन आदि को बंद किया जाना चाहिए क्योंकि वे नियमित रोजगार पैदा करने के मामले में कोई सार्थक परिणाम नहीं दे रहे हैं।

एलआईसी और जीआईसी के निजीकरण को रोका जाए: आम लोगों और राष्ट्र के व्यापक हित में एलआईसी-आईपीओ जैसे विभिन्न कदमों के माध्यम से एलआईसी और जीआईसी के निजीकरण को रोका जाए।

सामाजिक क्षेत्र: खाद्य/पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक और सेवा क्षेत्रों का निजीकरण बंद किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य और शिक्षा में बुनियादी सेवाओं के लिए आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए। पेयजल, स्वच्छता, आवास आदि के लिए पर्याप्त आवंटन किया जाना चाहिए। एससी/एसटी उपयोजना और जेंडर बजट के लिए बजट आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए।

रेलवे में वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों को दी जाने वाली रियायतें को बहाल की जाएं।

महंगाई: पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के कारण शुल्कों और आवश्यक सेवाओं में वृद्धि को तत्काल ठोस सुधारात्मक उपायों के साथ नियंत्रित किया जाना चाहिए। खाद्य पदार्थों की सट्टा वायदा व्यापार और जमाखोरी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए और मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।

योजना कर्मचारी: आंगनवाड़ी, मिड-डे-मील, आशा कर्मी, ब्लॉक सुविधा प्रदाता, पैरा शिक्षक और अन्य योजना कर्मचारियों जैसे योजना कर्मचारियों को आईएलसी की सर्वसम्मति से की गई सिफारिश के अनुसार बढ़ी हुई वैधानिक न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन सहित अन्य लाभों के साथ-साथ कर्मचारियों के रूप में नियमित किया जाना चाहिए। आईसीडीएस, एमडीएमएस, एनएचएम आदि जैसी बुनियादी सेवाएं प्रदान करने वाली सभी केंद्रीय योजनाओं के लिए आवंटन में वृद्धि की जाए। सभी को, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ बाल देखभाल सेवाओं की गुणवत्ता सेवा को सुनिश्चित करने के लिए योजनाओं को मजबूत किया जाए।

ईपीएफ: पीएफ, ईपीएस और ईडीएलआई योजनाओं में अंशदान जमा करने में चूक करने वाले नियोक्ताओं पर दंडात्मक शुल्क में कमी की हाल ही में जारी राजपत्र अधिसूचना को रद्द किया जाए। ईपीएस के तहत न्यूनतम पेंशन 9000 रुपये और उससे अधिक सुनिश्चित की जाए। सभी श्रमिकों को कवर करने के लिए कवरेज को बढ़ाया जाए। ईपीएफओ के न्यासी बोर्ड में भेदभावपूर्ण प्रतिनिधित्व को तुरंत ठीक किया जाना चाहिए।

ईएसआईसी: सभी कार्य क्षेत्रों को कवर करने और कवरेज सीमा बढ़ाने के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए ईएसआईसी सेवाओं को मजबूत करना।

एमएसपी: डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सभी किस्म की कृषि उपज के लिए गारंटीकृत खरीद के साथ वैधानिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित किया जाए।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest