यूपी : आवारा पशुओं से कड़ाके की ठंड में रात में फ़सल की रखवाली करते हुए 2 किसानों की मौत
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर ज़िले में इस कड़ाके की ठंड में आवारा पशुओं से अपने फ़सल की रखवाली करने के दौरान खेत में रात गुज़ारने वाले एक 54 वर्षीय किसान की मौत हो गई। संदेह है कि उनकी मौत ठंड लगने से हुई है। हालांकि, सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) ने ठंड को मौत का कारण मानने से इनकार किया है।
मिर्ज़ापुर क्षेत्र के मोहम्मदपुर गुलेरिया में 28 दिसंबर 2022 की बुधवार की रात सत्यपाल कुशवाहा अपने खेत में एक झोपड़ी में चारपाई पर सो रहे थे। देर रात जब वह घर नहीं लौटे तो उनकी पत्नी खेत पर गई और वहां उन्हें बेहोश पाया। उन्हें तत्काल जरीनपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
इस बीच, मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि उन्होंने लेखपाल को सूचित किया था लेकिन ज़िला प्रशासन का कोई अधिकारी उनसे मिलने नहीं आया। इस मामले पर एसडीएम कलान दुर्गेश यादव ने कहा कि उन्हें फ़ोन पर सूचना मिली थी कि एक किसान की मौत ठंड से हुई है। लेकिन नायब तहसीलदार के नेतृत्व में एक टीम ने मामले की जांच की और पाया कि मृतक किसी बीमारी से पीड़ित था और किसी अज्ञात बीमारी के कारण उसकी मौत हुई थी।
एसडीएम ने मीडिया से कहा, "परिवार ने प्रशासन को पोस्टमॉर्टम नहीं करने दिया, जिसके कारण मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है। इसलिए, प्रशासन किसी भी तरह के मुआवज़े के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।"
हालांकि, मृतक परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया कि कुशवाहा को ठंड लग गई थी और प्रशासन आवारा पशुओं के ख़तरे से निपटने में अपनी विफलताओं को छिपाने की कोशिश कर रहा है।
राज्य में आवारा पशुओं का मुद्दा किसानों के लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो रहा है। उनका कहना है कि आवारा पशुओं ने फ़सलों को नुक़सान पहुंचाया और कई लोगों को घायल भी किया था, जिनमें से कुछ की मौत भी हो गई।
ग़ौरतलब है कि इस समस्या के समाधान में अधिकारियों के लचर रवैये को लेकर लोग लंबे समय से नाराज़गी ज़ाहिर करते रहे हैं। हाल ही में हुए राज्य उपचुनावों में भी यह एक प्रमुख मुद्दा था।
उधर मृतक की पत्नी श्यामा देवी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "मैं आवारा मवेशियों के ख़तरे को लेकर शिकायत करती रही हूं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। अगर आवारा मवेशियों की समस्या नहीं होती तो मेरे पति जीवित होते।"
मृतक किसान के परिवार में छह बच्चे हैं जिनमें तीन अविवाहित बेटियों हैं। परिवार उन्हीं पर आश्रित था।
कुशवाहा के परिजनों के अनुसार रात के समय आवारा पशुओं से फ़सल को बचाने के लिए वह अक्सर खेतों में अपना समय बिताते थे।
बुधवार की शाम कुशवाहा खाना खाकर घर आए और तड़के क़रीब तीन बजे वापस खेत में चले गए, उन्हें डर था कि कहीं आवारा मवेशी उनकी गेहूं की फ़सल बर्बाद न कर दें। जब वे सुबह तक नहीं लौटे तो परिजन खेत में पहुंचे जहां वह बेहोशी की हालत में पड़े मिले। दिल्ली में एक दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले उनके बेटे अनुराग ने न्यूज़क्लिक को बताया, "वह कड़ाके की ठंड के कारण बेहोश हो गए। अगर आवारा मवेशियों का ख़तरा नहीं होता, तो मेरे पिता जीवित होते।"
ऐसे ही एक मामले में गुरुवार को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में एक किसान की भी कथित तौर पर ठंड से मौत हो गई। उनके परिवार ने कहा कि उन्नाव तहसील की देवरा कलां पंचायत के ललता खेड़ा माजरा निवासी नन्हा लोधी (52) रोजी-रोटी के लिए खेती पर निर्भर थे। वह कड़ाके की सर्दी में भी मवेशियों से फ़सल बचाने के लिए आधी रात को अपने खेत पर चले गए और वहां उनकी मौत हो गई।
मृतक किसान के परिजनों ने पुलिस को सूचना दी और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। इस घटना के बाद स्थानीय नेताओं ने घटना की जानकारी अधिकारियों को दी और किसान दुर्घटना बीमा योजना के तहत आर्थिक मदद की मांग की। हालांकि, राजस्व विभाग के अधिकारियों ने मौत का कारण ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) बताया।
मृतक के बेटे श्रीकांत ने न्यूज़क्लिक को बताया, "देर रात आवारा पशु हमारी फ़सल चर रहे थे जिसे मेरे पिता भगा रहे थे। उनका पीछा करते हुए, उन्हें नहीं पता था कि वे मौत के पीछे भाग रहे थे। काश वह जानवरों को पूरी फ़सल चरने के लिए छोड़ देते और कड़ाके की ठंड में उनके पीछे नहीं भागते। वह आज हमारे बीच होते।"
उन्होंने कहा कि किसानों को चौबीसों घंटे निगरानी रखनी पड़ती है और आवारा पशुओं को खेतों से खदेड़ने के लिए लाठी डंडे रखने पड़ते हैं।
विडंबना यह है कि दोनों किसानों को दर-दर भटकने के बावजूद प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर नहीं मिला है।
इस बीच सदर की एसडीएम नूपुर गोयल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मौत का कारण सर्दी और टीबी दोनों हो सकते हैं। "चाहे जो भी कारण हो वृद्ध किसान की मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि, मृत किसान के परिवार को प्राकृतिक आपदा के तहत 4 लाख रुपये का मुआवज़ा और मुख्यमंत्री किसान दुर्घटना के तहत एक लाख रुपये और अन्य लाभ दिए जा रहे हैं।"
किसान नेताओं ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इस ठंड के मौसम में, किसानों को आवारा गायों और बैलों के झुंड से अपनी फ़सलों की रक्षा के लिए रातों को अपने खेतों की रखवाली करने के लिए मजबूर होना पड़ा। खेतों में दिन भर की मेहनत के बाद, उन्हें रात भर जागना पड़ता था, जिससे उनके स्वास्थ्य को गंभीर ख़तरा था।
कुछ किसानों ने कहा, "दिन भर खेतों में मेहनत करने के बाद रात को जागकर अपनी फ़सलों की रखवाली करना कैसे संभव है।" इलाक़े से एक किसान ने न्यूज़क्लिक को बताया,"कई कारणों से वर्तमान समय में खेती एक घाटे का सौदा है। आवारा पशुओं के हमले ने हमें एक और झटका दिया है।"
कुछ किसानों ने कहा कि आवारा मवेशियों से नुक़सान ने उन्हें आर्थिक रूप से तोड़ दिया है क्योंकि जंगली जानवर बाड़ को तोड़ देते हैं और फ़सलों को रौंद देते हैं।
ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में मतदाताओं से वादा किया था कि 10 मार्च (चुनाव परिणाम) के बाद आवारा पशुओं के मुद्दे से निपटने के लिए एक नई नीति बनाई जाएगी।
हालांकि, अधिकांश किसानों का मानना है कि गोहत्या पर प्रतिबंध ने समस्या को और बढ़ा दिया है। लोग अपने बेकार हो चुके मवेशियों को गांव में फ़सल चरने के लिए छोड़ देते हैं जिससे किसानों को परेशानी होती है। इन दो मामलों के अलावा, किसानों ने कथित तौर पर सदमे में आत्महत्या भी की है, क्योंकि आवारा मवेशियों ने उनकी तैयार फ़सलों को नष्ट कर दिया था। ऐसी रिपोर्ट को न्यूज़क्लिक ने पहले भी प्रकाशित किया था।
शहरी क्षेत्रों में, यह यात्रियों की सुरक्षा में जोखिम पैदा करता है, विशेष रूप से रात में, जब आवारा मवेशी दिखाई नहीं देते हैं। इसके अलावा, वे बैल जो पहले गाड़ियां खींचने और खेतों में काम करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे, अब बेकार हो गए हैं क्योंकि किसान अब मशीनों पर निर्भर हैं।
मेरठ के एक किसान नेता नरेश तंवर ने कहा, " राज्य सरकार ने जानवरों को खेतों में प्रवेश करने से रोकने के लिए कांटेदार तार की बाड़ लगाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसी परिस्थितियों में कोई किसान अपनी फ़सल की रक्षा कैसे कर सकता है?"
इस क्षेत्र के विभिन्न ज़िलों में अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान इस मुद्दे को उठाने वाले भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने अधिकारियों को चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही समस्या का समाधान नहीं किया गया तो वे इन जानवरों को उनके कार्यालय के परिसर में बांध देंगे।
बांदा में ह्यूमेन एग्रेरियन सेंटर से जुड़े किसान प्रेम सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, "किसानों को उम्मीद नहीं है कि उनकी मांगें पूरी की जाएगी। निराश किसानों ने अब सरकार से मांग करना बंद कर दिया है क्योंकि सात-आठ वर्षों में राज्य और केंद्र दोनों सरकारों द्वारा किया गया कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ है। इस देश के किसानों ने अपनी नियति को स्वीकार कर लिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी यह नहीं देखा गया है कि एक भी राजनीतिक दल किसानों के लिए चिंतित है। सरकार द्वारा कितनी ही नीतियां बनाई गई हों लेकिन उसका फ़ायदा कोई और ही उठा रहा है, असली किसान इससे अब भी वंचित हैं।"
सिंह ने आरोप लगाया, "आवारा मवेशियों से रात में अपनी फ़सलों की रक्षा करते हुए केवल यही दो किसान नहीं मरे हैं बल्कि बुंदेलखंड क्षेत्र में आवारा मवेशियों के ख़तरे के कारण कई किसानों ने आत्महत्या कर ली है।" वे आगे कहते हैं कि सरकार ने कंटीले तार के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन किसान को मरने के लिए छोड़ दिया।
सिंह ने आगे कहा, "हम अपनी फ़सलों को आवारा पशुओं से बचाने के लिए कांटेदार तार का उपयोग नहीं कर सकते हैं और यदि कोई ऐसा करते हुए पाया जाता है, तो उसे सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। अब ठंड में रात की निगरानी ही एकमात्र विकल्प है। यदि कोई अधिकारी एक रात खेत में बिताएगा, तो वो समझेगा कि खेती कैसे की जाती है।"
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
UP: 2 Farmers Die in Biting Cold, Guarding Crops From Stray Cattle at Night, Allege Families
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