UP: आशा वर्कर्स का 31 जनवरी को लखनऊ में महापड़ाव का ऐलान, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप
आशा वर्कर्स यूनियन संबद्ध ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल आफ ट्रेड यूनियंस (एक्टू) के प्रदेशव्यापी आह्वान पर आयोजित प्रदर्शनों में सरकार पर वादाखिलाफी के आरोप लगाए और मांगों के साथ-साथ 31 जनवरी को लखनऊ में होने वाले तीन दिनी महापड़ाव में पहुंचने की अपील की गई। जनचौक की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐक्टू के प्रदेश सचिव अनिल वर्मा ने कहा कि सरकार अपने वायदे से लगातार पीछे हट रही है। आशाओं के सवाल पर बातचीत करने को भी तैयार नहीं है। हमें अपना आंदोलन तेज करते हुए सरकार को मजबूर करना होगा कि हमारी मांगे माने। आशा और संगिनी को मिलने वाली राशि को प्रोत्साहन राशि के बजाय उसे मानदेय के रूप में संबोधित किया जाए और उसके भुगतान की प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन करते हुए स्थाई भुगतान न्यूनतम वेतन के बराबर किया जाए।
गोल्डन आयुष्मान कार्ड और दस्तक, वेलनेस सेंटर में योगदान, टीबी कुष्ठ रोग निरोधक अभियान, पोलियो के विरुद्ध अभियान, हेल्थ प्रमोशन आदि समसामयिक कार्य में योगदान की वर्षों से बकाया अनुलोश राशियों का भुगतान अविलंब किया जाए। यही नहीं, जुलाई 2019 से राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित प्रतिपूर्ति राशि का आंशिक भुगतान नही किया जाता।
सीएमओ कार्यालयों पर आशाओं का प्रदर्शन
कोविड में मार्च 2020 से 31 मार्च 2022 तक योगदान के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित 1000 रुपए मासिक कोविड भत्ता का सिर्फ 5 माह का भुगतान किया गया। शेष कोई 19 माह की प्रोत्साहन राशि का कहीं अता पता नहीं है। यही नहीं, रिपोर्ट के अनुसार राज्य वित से अनुमन्य 1500/ मासिक की प्रतिपूर्ति राशि का भी अधिकांश जनपदों में एक वर्ष से भी ज्यादा समय का बकाया है। इसलिए सभी बकाया राशियों का आकलन कर सभी का भुगतान तत्काल कराए जाने तथा इस पैसे के हेरफेर के जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए।
कहा कि 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुरूप संगिनी और आशा कर्मियों को राज्य स्वास्थ्यकर्मी के रूप में मान्यता देकर उन्हें न्यूनतम वेतन, मातृत्व अवकाश कार्यस्थलों में सुरक्षा की गारंटी की जाए। 46 वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुसार सभी आशा कर्मियों और संगीनियों को कर्मचारी भविष्यनिधि (ईपीएफ) और राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआई) का सदस्य बनाया जाए और बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के भुगतान किसी भी आशा कर्मी को सेवानिवृत न किया जाए। खास है कि हरियाणा में सेवा निवृति पर 2 लाख ग्रेच्युटी के रूप में भुगतान का प्रावधान किया गया है। 2015 से अब तक सेवा के दौरान दुर्घटनाओं में और अन्य कारणों से जान गंवाने वाली आशा और आशा सगीनियों के आश्रित को 20 लाख मुवावजा दिया जाए और अशक्त हो गई आशा और संगीनियों को 10,000 रु मासिक की पेंशन दी जाए। गौरतलब है कि बिहार में दुर्घटना मृत्यु पर मुआवजा भुगतान किया जा रहा है।
इसके साथ ही मारपीट, उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिए राज्य के सभी चिकित्सालयों को सर्कुलर जारी किया जाए और इस तरह की घटनाओं में जिम्मेदार अफसरों पर त्वरित कार्यवाही की गारंटी की जाए। यौन हिंसा रोकने के लिए जिला स्तर पर जेंडर सैसटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएसबैस) का गठन किया जाए। सभी आशा और आशा संगीनियो को रु 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा और रु 50 लाख का जीवन बीमा कवर दिया जाए।
प्रदेश भर में भुगतान के नाम पर सीएचसी/पीएचसी प्रभारियों, बीसीपीएम सहित अन्य कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली वार्षिक 1000 करोड़ रुपये से अधिक की घूसखोरी (भयातंकित कर की जाने वाली लूट) को रोकने के लिए एक निगरानी तंत्र बनाया जाए। साक्ष्यों के साथ दी जाने वाली शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिए स्वतंत्र प्रकोष्ठ गठित किया जाए। जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा कार्य योजना बनाते समय मानव क्षमता के अनुरूप वैज्ञानिक आधार पर कार्य निर्धारण किया जाए।
ये हैं प्रमुख मांगें
आशा वर्करों ने आकस्मिक दुर्घटना मृत्यु पर 10 लाख का बीमा दिया जाने तथा बीमारी अथवा दुर्घटना की वजह से जिन आशा कार्यकर्ता की मौत हो गई है, उनके परिवार को आर्थिक मुआवजा दिया जाए। उनके परिवार में योग्यताधारी व्यक्ति को नियुक्ति में वरीयता दी जाए और उसे आयुष्मान योजना से जोड़ा जाए। साथ ही जिस तरह आंगनबाड़ी की सुपरवाइजर को सम्मानित मानदेय दिया जाता है उसी प्रकार आशा एवं आशा संगिनी को भी सम्मानित वेतन के दायरे में लाया जाए व आशाओं को राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए।
साभार : सबरंग
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