महिला आरक्षण बिल लागू होने में क्या एक दशक लग जाएगा?
"इस बिल के पारित होने से जहां नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व और मजबूत होगा, वहीं इनके सशक्तिकरण के एक नए युग की शुरुआत होगी।"
ये बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण बिल के राज्यसभा से पास होने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखी। उन्होंने देश की महिलाओं को बधाई देते हुए कहा कि ये सिर्फ एक कानून नहीं है, बल्कि इसके जरिए राष्ट्र निर्माण में भागीदारी निभाने वाली देश की माताओं, बहनों और बेटियों को उनका अधिकार मिला है। हालांकि प्रधानमंत्री ने ये नहीं बताया कि महिलाएं इस अधिकार का उपयोग कब से कर पाएंगी। ये आरक्षण अधिनियम आख़िर अपनी मंजिल तक कब पहुंचेगा।
बता दें कि महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा से पास तो हो गया है। लेकिन इसके हक़ीकत बनने की राह 2024, 2029 तक भी संभव नहीं लगती। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बिल को जनगणना और परिसीमन से जोड़ा गया है। यानी पहले जनगणना होगी फिर परिसीमन होगा और फिर ये आरक्षण लागू होगा। सरकार इसके पीछे पारदर्शिता का कारण बता रही है, लेकिन विपक्ष इस जवाब से संतुष्ट नहीं है। कई दल इसे 'चुनावी स्टंट' भी बता रहे हैं क्योंकि इससे पहले पेश हुए महिला आरक्षण बिलों में ये जनगणना और परिसीमन के प्रावधान नहीं थे।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने भी लोकसभा में ये सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि भारतीय महिलाएं पिछले 13 साल से इस राजनीतिक ज़िम्मेदारी का इंतज़ार कर रही हैं। अब उन्हें कुछ और साल इंतज़ार करने के लिए कहा जा रहा है। कितने साल? दो साल, चार साल, छह साल, या आठ साल। सोनिया गांधी के अलावा अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने भी ये सवाल संसद में चर्चा के दौरान पूछा था, क्योंकि इस कानून को लागू करने के लिए जनगणना और परिसीमन की दोनों शर्तें कब पूरी होंगी, इसकी कोई निश्चित समय सीमा नहीं है। और इसका सटीक जवाब फ़िलहाल सरकार के पास भी नहीं है।
इस बिल को लागू होने में एक दशक का इंतज़ार?
राजनीतिक विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कई ट्वीट्स के जरिए इस आरक्षण की वास्तविकता और परिसीमन के पंच को समझाने की कोशिश की है। उन्होंने अपने विचार जाहिर करते हुए लिखा है कि इस बिल के सपने को पूरा होने में लगभग एक दशक से अधिक समय लगेगा।
Media reports say Women's reservation would happen in 2029. This is misleading. Actually it may not happen till 2039.
Most media reports miss the real significance of the delimitation clause.
Article 82 (amended in 2001) virtually bars delimitation prior to the first census…— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) September 20, 2023
उन्होंने लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 82 में (2001 में किए गए संशोधन के बाद) के अनुसार, 2026 तक जनगणना के पहले आंकड़े आने से पूर्व परिसीमन नहीं कराया जा सकता। इसका मतलब 2031 की जनगणना के बाद ही परिसीमन संभव है।
वो कहते हैं, "परिसीमन आयोग को अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट देने में कम से कम 3 से 4 साल का समय लगता है। पिछले आयोग ने 5 साल में रिपोर्ट दी थी। इनके अलावा आबादी की दर में बदलाव को देखते हुए अगला परिसीमन बहुत विवादित हो सकता है। वर्ष 2037 के आसपास रिपोर्ट मिलेगी और ये 2039 तक ही लागू किया जा सकेगा।"
2031 की जनगणना पूरी होगी, तभी परिसीमन होगा
कांग्रेस के गुरदीप सप्पल ने भी इस बात का जिक्र अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर करते हुए कहा है कि मोदी सरकार ने संविधान की धारा 81(3) और 82 से महिला आरक्षण को जोड़ दिया है। इन धाराओं के अनुसार 2031 की जनगणना पूरी होगी, तभी परिसीमन होगा। जनगणना पूरी होने में दो साल से ज्यादा लगेंगे। यानी 2033 के बाद ही परिसीमन होगा। इसमें भी दो एक साल लग जाएंगे। तब तक 2034 के लोकसभा चुनाव भी निपट जाएंगे। मतलब ये कि महिलाओं का इंतज़ार 2039 के चुनाव तक है। उन्होंने सवाल भी उठाया है कि मोदी सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही है?
महिला आरक्षण होगा।
उससे पहले परिसीमन (Delimitation) होगा।
उससे पहले जनगणना (Census) होगी।
मोदी सरकार/ बीजेपी ने संविधान की धारा 81(3) और 82 से महिला आरक्षण को जोड़ दिया है।
इन धाराओं के अनुसार 2031 की जनगणना पूरी होगी, तभी delimitation होगा।
जनगणना पूरी होने में दो साल से… pic.twitter.com/vTEWJaXQiI
— Gurdeep Singh Sappal (@gurdeepsappal) September 20, 2023
हालांकि कई विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि अगर सरकार चाहे तो जम्मू-कश्मीर की तरह महिला आरक्षण के लिए भी 2026 से पहले की जनगणना को विशेष अधिकार के तहत परिसीमन का आधार बना सकती है। और फिर इसके आधार पर अगले चुनाव यानी 2029 में ये आरक्षण लागू करवा सकती है, लेकिन ये सब आने वाली सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर है।
जनगणना और परिसीमन से जोड़ना गैर-जरूरी
कई दलों के साथ ही राजनीतिक विश्लेषक भी इस बिल को जनगणना और परिसीमन से जोड़ने को गैर जरूरी बताते हैं। उनके मुताबिक इस बिल को जनगणना की जरूरत नहीं थी न ही इसे परिसीमन से जोड़ना सही है। क्योंकि जनगणना और परिसीमन का खास महत्व तब होता है, जब आपको किसी विशेष वर्ग की जनसंख्या के हिसाब से उसके लिए सीटें आरक्षित करनी हो। जैसे हमारे देश में एसटी और एससी के लिए की जाती हैं। लेकिन महिलाओं की आबादी और उनकी सीटों के अनुपात का यहां कोई निर्धारण नहीं होना। बिल में पहले ही स्पष्ट है कि महिलाओं को केवल 33 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा फिर चाहे उनकी आबादी मौजूदा समय में 50 प्रतिशत ही क्यों न हो। ऐसे में साफ है कि इन शर्तों का उद्देश्य केवल बिल को और समय के लिए लटकाना है।
बिल का एक और प्रावधान पुराने बिल से अलग है, जिसमें सीट रोटेशन को लेकर भी परिसीमन का सहारा लिया गया है। पुराने बिल में हर साल में सीट रोटेशन का प्रावधान था, लेकिन नए बिल में ये रोटेशन हर परिसीमन के बाद होगा, जिसमें करीब 10 साल से ज्यादा का समय लग जाता है। जबकि बिल की वैद्यता मात्र 15 साल की है, जो कि पिछले बिल में भी थी। यानी इस बिल के अनुसार लंबे समय तक सीटों का रोटेशन संभव ही नहीं है।
गौरतलब है कि विपक्षी दल पहले ही सरकार पर ये आरोप लगा चुके हैं कि इस आरक्षण को अनिश्चितकाल तक बढ़ाने के पीछे बीजेपी सरकार की राजनीति है और वो आगामी चुनाव में महिला मतदाताओं के वोटों पर नज़र रखते हुए, और आगामी 2024के चुनाव में इसे भुनाने की कोशिश होगी। एक सवाल ये भी है कि अगर आरक्षण को लागू होने में इतना समय ही लगना था तो सरकार इस बिल को पहले क्यों नहीं ले आई, क्योंकि मोदी सरकार के पास प्रचंड बहुमत आज से नहीं 2014 से ही है। और दूसरी ये बात भी निकल कर सामने आ रही है कि अगर वास्तविकता में बीजेपी इसे जनगणना और परिसीमन से जोड़कर पारदर्शी बनाना चाहती थी, और उसे पता था कि ये प्रक्रिया समय लेगी फिर इसे चुनाव से ठीक पहले लाने की क्या जल्दी आन पड़ी थी। ये बिल जनगणना के समय या बाद में भी लाया जा सकता था।
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