यूक्रेन युद्ध के तेज़ होने की संभावना पर चीन ने शटल-डिप्लोमेसी की फिर से की शुरूआत
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन 25 फरवरी, 2024 को यूक्रेन में सेना भेजने के बारे में की गई टिप्पणी पर कायम हैं।
चीनी विदेश मंत्रालय ने बुधवार को घोषणा की कि यूरेशियन मामलों पर बीजिंग के विशेष प्रतिनिधि ली हुई 2 मार्च को "यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान की तलाश में शटल कूटनीति के दूसरे दौरे" पर जाएंगे जो कदम किसी को भी बुरा लग सकता है।
ठीक दो दिन पहले, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा था कि वे रूसी जीत को रोकने के लिए यूक्रेन में पश्चिमी सैनिकों को जमीन पर उतारने की संभावना से इनकार नहीं करते हैं। इस दौरान ली हुई के रूस, ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ मुख्यालय, पोलैंड, यूक्रेन, जर्मनी और फ्रांस का दौरा करने की उम्मीद है।
चीनी प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि “इसके पीछे, केवल एक ही लक्ष्य है जिसे चीन हासिल करने की उम्मीद करता है, वह है संघर्ष को समाप्त करने के लिए आम सहमति बनाना और शांति वार्ता का मार्ग प्रशस्त करना, यद्यपि इसकी उम्मीद कम है। फिर भी चीन अपनी भूमिका निभाना जारी रखेगा, शटल कूटनीति को आगे बढ़ाएगा, आम सहमति बनाएगा और यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान के लिए चीन के ज्ञान का योगदान देगा।''
मैक्रॉन ने सोमवार को पेरिस में यूरोपीय नेताओं के शिखर सम्मेलन के बाद यह बात कही। लेकिन कूटनीति में हमेशा जो दिखता है उससे कहीं ज्यादा कुछ होता है। मैक्रॉन ने बाद में जोर देकर कहा कि उन्होंने काफी सोच-समझकर बात की है: “ये काफी गंभीर विषय हैं। इस मुद्दे पर मेरे हर शब्द पर विचार किया गया है।” बहरहाल, पेरिस कॉन्क्लेव में भाग लेने वाले 20 देशों में से अधिकांश देशों के प्रतिनिधियों, विशेषकर जर्मनी ने बाद में सार्वजनिक रुख अपनाया कि उनका यूक्रेन में सेना भेजने का कोई इरादा नहीं है और वे रूस के खिलाफ सैन्य अभियानों में भाग लेने के सख्त विरोधी हैं।
फ्रांसीसी विदेश मंत्री स्टीफ़न सेजॉर्न ने बताया कि यूक्रेन में पश्चिमी सेना की उपस्थिति कुछ प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए आवश्यक हो सकती है, जिसमें डी-माइनिंग ऑपरेशन और यूक्रेनी सैनिकों को निर्देश देना शामिल है, लेकिन इसका मतलब संघर्ष में उनकी सीधी भागीदारी नहीं है।
व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया में इस बात की फिर पुष्टि की गई है कि अमेरिका यूक्रेन में सेना नहीं भेजेगा। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की प्रवक्ता एड्रिएन वॉटसन ने एक बयान में कहा कि बाइडेन इस मामले में "स्पष्ट रहे हैं कि अमेरिका यूक्रेन में लड़ने के लिए सेना नहीं भेजेगा।" एनएससी के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने इस बात से भी इनकार किया कि अमेरिकी सैनिकों को डी-माइनिंग, हथियार उत्पादन या साइबर ऑपरेशन के लिए भेजा जा सकता है। हालांकि, किर्बी ने रेखांकित किया कि यह फ्रांस या किसी अन्य नाटो देश के लिए एक "संप्रभु निर्णय" होगा कि यूक्रेन में सेना भेजी जाए या नहीं।
दिलचस्प बात यह है कि व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया के दो दिन बाद, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने हाउस सशस्त्र सेवा समिति में एक सुनवाई के दौरान एक चेतावनी दी कि यदि यूक्रेन हारता है, तो रूस और नाटो सीधे सैन्य संघर्ष में आ सकते हैं, क्योंकि रूसी नेतृत्व "जीत जाता है" और अगर यूक्रेन हार जाता है तो ऐसे में रुकना सही नहीं होगा। ऑस्टिन ने कहा, "स्पष्ट रूप से, यदि यूक्रेन गिरता है, तो मुझे वास्तव में विश्वास है कि नाटो रूस के साथ लड़ाई में शामिल होगा।"
इस शोर-शराबे से जो बात सामने उभर कर आती है वह यह है कि संभवतः यूक्रेन में किसी न किसी रूप में पश्चिमी सैन्य तैनाती के विचार के लिए जमीन तैयार की जा रही है। गुरुवार को ऑस्टिन की गवाही के कुछ ही घंटों के भीतर, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने टेलीग्राम चैनल पर लिखा, “क्या यह रूस के लिए एक खुली धमकी है या ज़ेलेंस्की के लिए कोई बहाना बनाने का प्रयास है? हालांकि, हर कोई देख सकता है कि हमलावर कौन है - यह वाशिंगटन है।
नाटो लगातार संघर्ष की सीढ़ी पर चढ़ रहा है, जबकि रूसी प्रतिक्रिया कुल मिलाकर युद्ध में "मीट ग्राइंडर" को थोड़ा ऊपर उठाने की रही है। लेकिन फिर, यह यूक्रेनी हालात का फायदा उठाया जा रहा है और इससे ब्रितानियों या अमेरिकियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
एक समय था जब क्रीमिया पर हमले को "लाल रेखा" माना जाता था। फिर अक्टूबर 2022 में क्रीमियन ब्रिज पर विस्फोट हुआ- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के 70वें जन्मदिन के अगले दिन यह हुआ था। खैर, रूस ने पुल की सफलतापूर्वक मरम्मत की और इसे यातायात के लिए फिर से खोल दिया। इसके बाद उत्साहित पश्चिम ने रूस के काला सागर बेड़े के खिलाफ हमले शुरू कर दी थी।
रूस ने बार-बार आरोप लगाया कि ब्रिटिश, अमेरिका के साथ मिलकर जासूसी का काम कर रहे हैं, कीव शासन को लक्ष्यों के निर्देश दिए गए और काला सागर बेड़े के खिलाफ हमले वास्तव में ब्रिटिश विशेष सेवाओं के निर्देशन में किए गए थे। रूसी एमएफए प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने कल कहा, "सामान्य तौर पर, जो सवाल पूछा जाना चाहिए वह यूक्रेन में संघर्ष के अलग-अलग प्रकरणों में ब्रिटेन की भागीदारी के बारे में नहीं है, बल्कि रूस विरोधी हाइब्रिड युद्ध में लंदन की भागीदारी के बारे में है।" दरअसल, हालिया रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है कि काला सागर में यूक्रेन की सैन्य रणनीति विकसित करने में किसी और ने नहीं बल्कि ब्रिटेन के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ एडमिरल टोनी रैडाकिन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पीछे मुड़कर देखें तो, रूस में युद्ध छेड़ने का एक नाटो रोडमैप मौजूद है, नवीनतम चरण रूसी तेल और गैस उद्योग के खिलाफ एक नया हवाई हमला अभियान है। इस पैमाने का सोफिस्टीफ़िकेशन और टकराव में वृद्धि केवल नाटो कर्मियों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी और अमेरिकी उपग्रहों या ग्राउंड स्टेशनों द्वारा प्रदान की गई वास्तविक समय की खुफिया जानकारी से ही संभव है। समान रूप से, नाटो देशों द्वारा उपलब्ध कराए गए हथियारों के साथ यूक्रेन क्या कर सकता है, इसके बारे में अब कोई रुकावट नहीं है।
हाल ही में, सीआईए ने भी उस सब के बारे में बेशर्मी से बोलना शुरू कर दिया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने सोमवार को एक विशेष समाचार लेख प्रकाशित किया कि पिछले आठ वर्षों में सीआईए समर्थित जासूसी अड्डों का नेटवर्क 2014 में कीव में तख्तापलट के बाद से बनाया गया है, जिसमें रूसी सीमा के साथ 12 गुप्त स्थान शामिल हैं।
यह कहना काफी होगा कि कूटनीतिक रास्ते पर रहते हुए, रूस द्वारा लड़ाई को रोकने के बार-बार किए गए प्रयासों को पश्चिम द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है - मार्च 2022 के अंत में इस्तांबुल वार्ता; 2022 की शरद ऋतु में और फिर सितंबर 2023 में फ्रंटलाइन आंदोलनों पर रोक और युद्धविराम के पुतिन के प्रस्ताव – लेकिन सीआईए और पेंटागन हर कीमत पर जीत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
सितंबर 2023 के बाद भी, पुतिन ने मौजूदा सीमा रेखा को स्थिर करने और युद्धविराम की ओर बढ़ने की इच्छा का संकेत दिया है और यहां तक कि कई चैनलों के माध्यम से इसे प्रचारित भी किया है, जिसमें विदेशी सरकारें भी शामिल थीं जिनके रूस और अमेरिका दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। लेकिन जो गुट हर कीमत पर रूस को सैन्य रूप से कुचलना चाहता है, वह जीत गया है। शुक्रवार को ऑस्टिन की टिप्पणी से पता चलता है कि यह जुनून ज़मीनी तथ्यों से अछूता प्रतीत होता है।
कोई गलती न हो, 24 फरवरी को, कनाडा और इटली कीव के साथ 10 साल के सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए यूके, जर्मनी, फ्रांस और डेनमार्क शामिल हो गए हैं। ये समझौते यूक्रेन की संप्रभुता और नाटो सैन्य गठबंधन में शामिल होने की उसकी आकांक्षाओं के प्रति सामूहिक प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं, जिसका अर्थ है कि उनका उद्देश्य रूस के साथ दीर्घकालिक टकराव है। और यूरोप अब यूक्रेन में ज़मीन पर सैनिकों की तैनाती पर चर्चा कर रहा है।
इस पूर्वाभास की पृष्ठभूमि में, ऐसा क्या है कि ली हुई 3 मार्च को विभाग के उप प्रमुख मिखाइल गालुज़िन, जो कि विदेश मंत्रालय में एक मध्यम श्रेणी के रूसी राजनयिक हैं, से मुलाकात करके हासिल करने की उम्मीद कर सकते हैं? संक्षेप में कहें तो, जबकि यूक्रेनी संकट को हल करने में चीन की रुचि संदेह में नहीं है, ली हुई की "शटल कूटनीति" को केवल पार्टियों की वर्तमान स्थिति को समझने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि मई 2023 से स्थिति बदल गई है जब उन्होंने आखिरी बार इस मुद्दे पर चर्चा की थी - और तथ्य यह है कि यूक्रेनी जवाबी हमले की विफलता के बाद पश्चिम में संघर्ष के संबंध में आगे के कदमों के बारे में सक्रिय चर्चा हो रही है।
जाहिर तौर पर, पार्टियों की राय के इस विकास के बारे में बीजिंग को अपने कार्यों के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलेगी। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की संभावित यूरोप यात्रा की भी चर्चा हो रही है जिसमें फ्रांस भी शामिल हो सकता है।
चीन कड़ी मेहनत से यूरोपीय शक्तियों के साथ विश्वास का पुनर्निर्माण कर रहा है और दोनों पक्ष भूराजनीतिक मतभेदों के बावजूद व्यावहारिक सहयोग पर नजर रख रहे हैं। यूरोप की "रणनीतिक स्वायत्तता" की मैक्रॉन की वकालत से चीन चिंतित है। इस बीच, डोनाल्ड ट्रम्प का भूत यूरोप और चीन दोनों को परेशान कर रहा है, जिससे उम्मीद है कि यूरोप का विश्वास जीतने में चीन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।
एम॰के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।
सौजन्य: इंडियन पंचलाइन
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