COVID-19 से कैसे निपट रहे हैं लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देश
दुनिया भर में COVID-19 के तीन लाख अस्सी हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं। 24 मार्च तक इनमें से 16,585 लोगों की मौत हो चुकी है। इस वैश्विक महामारी का केंद्र बन चुके यूरोप में कोरोना के मामलों में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है। वहाँ सरकारें लगातार इसे रोकने की कोशिश कर रही हैं और अपनी धीमी प्रतिक्रिया को तेज़ कर रही हैं।
इटली, स्पेन और जर्मनी के बाद अमेरिका में भी कोरोना संक्रमण का बड़ा विस्तार हुआ है। वहां 35,000 हज़ार से ज़्यादा पॉजिटिव मामले सामने आ चुके हैं। एशिया में बहुत सारे देश वायरस की गति को धीमा करने में कामयाब रहे हैं, लेकिन अब भी ख़तरा मौजूद है।
फ़िलहाल लातिन अमेरिका और कैरिबियाई देश संक्रमण के शुरुआती चरणों में ही हैं। लेकिन बेलीज़ को छोड़कर इन इलाक़ों के सभी देशों में कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं। ब्राज़ील और चिली में सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं, वहां क्रमश: 1,546 और 632 केस पॉज़िटिव पाए गए हैं।
अनुमानों की मानें तो कोरोना वायरस इन इलाक़ों में बड़ी तबाही फैलाएगा। ऊपर से यहां के कई देशों के सार्वजनिक क्षेत्र, ख़ासकर शिक्षा और स्वास्थ्य, अति दक्षिणपंथियों के नवउदारवादी कार्यक्रमों से ग्रसित हैं और कोरोना के मरीजों की बड़ी संख्या, टेस्टिंग और स्वास्थ्य संकट के प्रबंधों के लिए तैयार नहीं हैं।
नीचे इलाक़ों के हिसाब से कोरोना वायरस के फैलने का विश्लेषण कर, संबंधित देशों द्वारा अपनाए जाने वाले उपायों के बारे में बताया गया है।
दक्षिण अमेरिका
दक्षिण अमेरिका में कोरोना वायरस के सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं। अलग-अलग देशों ने ''संक्रमण के इंकार'' से लेकर ''पूरे देश के क्वारंटाइन और शटडॉउन'' जैसे तरीके अपनाए हैं।
वेनेज़ुएला ने शुरुआत में ही इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए कड़े तरीक़े अपनाने शुरू कर दिए थे। 15 मार्च को कोलंबिया और यूरोप से आने वाली सभी फ्लाइट को रद्द कर दिया गया। ज़मीनी और समुद्री सीमाओं को भी सील कर दिया गया था। स्कूल भी बंद कर दिए गए और सभी ग़ैर ज़रूरी कामग़ारों को घर भेज दिया गया।
महामारी से प्रभावित क्षेत्रों में कड़े तरीके से क्वारंटाइन लागू किए जाने के आदेश जारी कर दिए गए थे। वेनेजुएला के इन क्षेत्रों में काराकस क्षेत्र और एप्योर, कोजेडेस, ला गुएरा, मिरांडा, ताकिरा और जूलिया जैसे प्रदेश शामिल थे। खाद्यान्न, मेडिसिन और दूसरी ज़रूरी आपूर्तियों के लिए सामाजिक मिशन और दूसरे ढांचों को सक्रिय कर दिया गया था। साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र में जांच और इलाज के लिए ज़रूरी संसाधन भी उपलब्ध कराए गए थे।
सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया ज़रूरी थी। खासकर उस वक़्त में जब अमेरिका द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के चलते इस तरह की महामारी को संभालने के लिए देश का स्वास्थ्य ढांचा और इंफ्रास्ट्रक्चर कमज़ोर हो चुका है। वेनेजुएला ने चीन और क्यूबा से राहत कर्मियों और आपूर्ति की मदद मांगी थी। दोनों देश मदद भेज भी चुके हैं। वेनेजुएला ने इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड से लोन भी मांगा था। IMF ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए ''स्पेशल पैकेज'' देने का ऐलान किया है। लेकिन वेनेजुएला को यह पैकेज देने से इंकार कर दिया गया। फ़िलहाल वेनेजुएला में कोरोना वायरस के कुल मामलों की संख्या 77 है।
अर्जेंटीना ने भी ऐसे ही तरीके अपनाए। 19 मार्च को महामारी और उसके फैलाव के बाद ग़रीब तबकों पर पड़ने वाले आर्थिक भार से निपटने के लिए राष्ट्रपति अल्बर्तो फर्नांडेज ने आर्थिक, श्रम और सामाजिक प्रबंधन की घोषणा की। 20 मार्च को अर्जेंटीना के सभी नागरिकों को ज़रूरी तौर पर एकांत में रहने के आदेश दिए गए। यह आदेश इस महीने के अंत तक के लिए लागू किए गए हैं, तब सरकार स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करेगी। अर्जेंटीना ने क्वारंटाइन को लागू करने के लिए संघीय पुलिस और जेंडरमेरी को काम पर लगाया है।
फर्नांडे़ज ने उन उद्योंगों और कामग़ारों को मदद के लिए फंड दिया है, जिनकी गतिविधियां क्वारंटाइन के चलते प्रभावित हुई हैं। साथ ही बेरोज़गारी बीमा भी बढ़ा दिया गया। उन्होंने उधार देने की भी बात कही है, ताकि मूलभूत चीजों का उत्पादन जारी रखा जा सके और बुनियादी आर्थिक गतिविधियां चलती रहें।
दिसंबर में फर्नांडेज के राष्ट्रपति बनने से पहले, अर्जेंटीना पूर्व राष्ट्रपति माउरिसियो मैक्री की नवउदारवादी नीतियों की वजह से अर्जेंटीना इतिहास के सबसे भयावह आर्थिक संकट से गुजर रहा था। ऑफिस संभालने के बाद फर्नांडेज ने सबसे पहले मैक्री द्वारा किए गए नुकसान को ठीक करना शुरू किया और उस चालीस फ़ीसदी आबादी की मदद की, जो गरीबी रेखा से नीचे रह रही थी। मैक्री के कार्यकाल में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा भी पूरी तरह से तहस-नहस हो गया था। अब महामारी के दौर में अर्जेंटीना के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती होगी। फ़िलहाल वहां 266 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं।
वहीं ब्राजील में अर्जेंटीना और वेनेजुएला से ठीक उलटे हालात हैं। वहां कोरोना के 1500 मामले सामने आ चुके हैं और करीब 25 लोगों की मौत हो चुकी है। महामारी के लगातार फैलने के बावजूद केंद्रीय सरकार की प्रतिक्रिया बेहद धीमी रही है। अति दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जॉयर बोलसोनारो लगातार स्थितियों की भयावहता को कम बताते हुए इसे ''मीडिया प्रोपगेंडा'' और एक ''कल्पना'' कह रहे हैं। बोलसोनारो ने WHO की सलाह का भी उल्लंघन किया है। पिछले रविवार, 15 मार्च को अपनी सरकार के पक्ष में अति दक्षिणपंथियों की एक भीड़ में उन्होंने खुद शिरकत की। जबकि WHO ने किसी भी तरह की सभा या भीड़ वाली गतिविधियां न करने की सलाह दी है।
एक मजबूत राष्ट्रीय प्रतिक्रिया के आभाव में कोरोना वायरस के ख़िलाफ़़ जंग लड़ने की ज़िम्मेदारी मुख्यत: राज्य और शहर प्रशासन पर आ गई है। 21 मार्च को साओ पॉउलो राज्य के गवर्नर जोआ डोरिया ने पूरे राज्य में 24 मार्च से 7 अप्रैल तक क्वारंटाइन लागू करने की घोषणा की। संभावना है कि इसे आगे भी बढ़ाया जाएगा। साओ पॉउलो ब्राजील का सबसे बड़ा राज्य है। सभी ग़ैर-ज़रूरी औद्योगिक गतिविधियां और सेवाएं इस दौरान बंद रहेंगी।
''रिओ डि जेनेरो'' राज्य के मुखिया विल्सन विट्जेल ने भी कड़े कदम उठाए हैं। 19 मार्च, गुरूवार को उन्होंने अति प्रभावित इलाक़ों से आने वाली घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने ज़मीनी यातायात पर भी प्रतिबंध लगाया। इसमें अंतर्राज्यीय और अंतर्निगमीय बस सेवाएं शामिल थीं। राज्य में क्वारंटाइन लागू कर दिया गया है, साथ ही सभी ग़ैर ज़रूरी उद्योगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
पिछले दो हफ़्तों से सामाजिक आंदोलनों और ट्रेड यूनियनों ने बोलसोनारो सरकार के नवउदारवादी तरीकों की आलोचना कर रहे हैं, इन नवउदारवादी तरीकों से राष्ट्रीय स्वास्थ्य ढांचा कमज़ोर हो गया है। 17 मार्च के बाद से देश के लोग ''केसेरोलॉजोस'' में हिस्सा ले रहे हैं। केसेरोलॉजोस एक तरीके का विरोध प्रदर्शन है, जिसमें लोग बर्तनों को बजाकर स्वास्थ्य और शिक्षा में कटौती और महामारी पर बोलसोनारो सरकार की कमज़ोर प्रतिक्रिया का विरोध जताते हैं।
कोलंबिया के प्रेसिडेंट इवान डुके ने अब जाकर कड़े कदम उठाए हैं। महामारी से बचने के लिए कोलंबिया की पैट्रन सेंट- ''द वर्जिन ऑफ चिकिनकिरा'' से प्रार्थना करने पर उनकी आलोचना हुई थी। गुरूवार को डुके ने घोषणा में कहा कि 23 मार्च के बाद अगले तीस दिनों के लिए किसी को भी देश में अंदर नहीं आने दिया जाएगा। नागरिकों की आवाजाही को रोकने और ग़ैर ज़रूरी उद्योगों को बंद करने, साथ में कर्फ़्यू से संबंधित घोषणाएं भी की गईं। कोलंबिया में 230 मामले आ चुके हैं। इनमें दो लोगों की मौत हुई है।
कोलंबिया की बंदी आबादी ने पिछले कुछ दिनों से भीड़-भाड़ और जेल की अस्वच्छ स्थितियों, जिसके चलते उनके लिए खतरा बढ़ जाता है, उसके ख़िलाफ़़ विरोध जताया है। कई संगठन मांग कर रहे हैं कि भारी भीड़ के चलते ऐसे लोगों को छोड़ देना चाहिए, जो ग़ैर-हिंसा संबंधी मामलों के दोषी हैं। बोगोटा की लॉ-मोडेला जेल में हुए विरोध प्रदर्शनों को सुरक्षाबलों ने हिंसक तरीके से दबा दिया। मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक गार्ड और एंटी डिस्टर्बेंस स्कवॉ़ड्रन (ESMAD) की इस कार्रवाई में 23 लोगों की जान चली गई।
इक्वॉडोर जैसी छोटे देश में कोरोना के 800 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 14 लोगों की मौत हो चुकी है। इस चिंताजनक महामारी संक्रमण की दर के चलते इक्वॉडोर ने आपातकाल लगाकर कर्फ़्यू लागू कर दिया है। पूरे हफ़्ते के लिए क्वारंटाइन का आदेश भी दे दिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू उड़ानों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
मेसोअमेरिका
मेसोअमेरिका में हालात जटिल हैं। इस इलाक़े में बेहद ज़्यादा आर्थिक असमानता है। पूरा इलाक़ा अमेरिकी साम्राज्यवाद का सबसे ज़्यादा शिकार हुआ है। यहां पिछले दशक से गहरा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकट जारी है। इलाक़े में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी है, मौकों की बहुत कमी है, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश की कमी है, हिंसा की दर भी ज़्यादा है, साथ ही यहां से अमेरिका की तरफ होने वाले प्रवास से भी बहुत सारी समस्याएं जुड़ी हैं।
12 करोड़ 92 लाख की आबादी वाले मेक्सिको में सबसे ज़्यादा मामले (316) सामने आए हैं। इसके बाद चालीख लाख की आबादी वाले पनामा में 313 केस आए हैं। कोस्टारिका में 134, होंडुरास में 26 और ग्वाटेमाला में 19 मामले पॉजिटिव पाए गए हैं। अल सॉल्वाडोर में भी तीन और निकारागुआ में दो मामलो में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है।
अल सॉल्वाडोर ने महामारी के ख़िलाफ़़ कुछ शानदार फैसले लिए हैं। 11 मार्च को किसी भी मामले के सामने आने के पहले प्रेसिडेंट नायिक बुकेले ने सभी विदेशियों की एंट्री पर 16 मार्च तक के लिए बैन लगा दिया था। अल सॉल्वाडोर आने वाली सभी व्यवसायिक उड़ानों पर रोक लगा दी गई थी। 18 मार्च को जब एक ही मामले की पुष्टि हुई थी, तब उन्होंने क्वारंटाइन की घोषणा कर ग़ैर-ज़रूरी औद्योगिक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी।
सेवा और अनौपचारिक क्षेत्रों पर आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए उन्होंने कुछ आर्थिक पहलें भी की हैं। इनमें तीन महीने के लिए उद्योगों के पानी, बिजली, फोन लाइन और इंटरनेट पर बिल को सस्पेंड कर दिया गया है। साथ ही उनका किराया, लोन और गिरवी रखी चीजें भी फ़िलहाल रद्द कर गई हैं।
प्रेसिडेंट ने घोषणा में कहा, ''यह एक अभूतपूर्व घटना है, यह वह वक़्त नहीं है जब हम पैसे की फिक्र करें। आपको अपने परिवार की चिंता होनी चाहिए। कोई भी इस बीमारी से प्रतिरोधित नहीं है। आप भी नहीं। वह बच्चे भी नहीं, जो मां की कोख में हैं।''
होंडुरास लॉकडॉउन कर अपनी सभी सीमाएं बंद कर चुका है। हांलाकि सामाजिक संगठनों ने इस बात की निंदा करते हुए कहा कि सरकार स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए पूरे देश का सैन्यकरण कर रही है। जबकि सबसे ज़्यादा खतरे में रहने वाले लोगों के लिए अभी तक किसी भी तरह के मानवीय कदम नहीं उठाए गए हैं।
होंडुरास में एक एक्टिविस्ट कहते हैं, ''बीमारी से लड़ने के लिए कदम उठाने के बजाए, सरकार ने तानाशाही भरा रवैया अख़्तियार कर लिया है। कर्फ़्यू लगाकर आपातकाल घोषित कर कर दी। मिलिट्री और पुलिस सड़कों पर गश्त कर रही हैं और लोग खाना तक नहीं ख़रीद पा रहे हैं। उन्हें हिरासत में लेकर जेल भेजा जा रहा है। प्रेसिडेंशियल ऑर्डर में कहा गया है कि जो भी बाहर दिखाई देता है, उसे कर्फ़्यू का उल्लंघन करने के जुर्म में 6 महीने से लेकर दो साल तक के लिए जेल भेजा जा सकता है।''
संगठनों का आरोप है कि सरकार संकट का फ़ायदा उठाकर पैसे का गबन कर सकती है। अतीत में भी सरकार ने ऐसा किया है। इसकी एक वजह है। दरअसल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जो पैसा जारी किया गया है, उसमें किसी भी तरह का मॉनिटरिंग मैकेनिज़्म नहीं है। जबकि आमतौर पर निगरानी की कुछ व्यवस्था होती है। ऊपर से इस बजट का प्रबंधन स्वास्थ्य सचिव के बजाए स्पेशल इमरजेंसी सेक्रेटरी के हाथ में है, जो सेना के नियंत्रण में हैं। प्रेसिडेंट ने अपनी घोषणा में कहा था कि आपात निधि का इस्तेमाल देश में दर्जनों अस्पताल बनाने के लिए किया जाएगा। बता दें फ़िलहाल होंडुरास में महज़ 30 सार्वजनिक अस्पताल ही हैं। लेकिन घोषणा के बावजूद अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है। मेडिकल कॉलेज ऑफ होंडुरास के मुताबिक़, सरकार ने जिस सामान की ख़रीददारी की है, वह उनकी ज़रूरतों के हिसाब से नहीं है।
वायरस फैलने की स्थिति में क्या होगा, इसे लेकर लोगों में बहुत डर है। होंडुरास में 60 फ़ीसदी रोज़गार अनौपचारिक क्षेत्र में है। सरकार ने अब तक इस क्षेत्र की मदद के लिए कोई घोषणा नहीं की है।
राष्ट्रपति एंद्रेस मैनुएल लोपेज़ ओब्राडोर के नेतृत्व वाली मेक्सिको सरकार की भी ढीले रवैये को लेकर आलोचना हुई है। सरकार ने अब तक क्वारंटाइन का ऑर्डर जारी नहीं किया है। यात्राओं पर भी बहुत कम प्रतिबंध लगाए गए हैं। राज्य और शहर के स्तर पर कुछ कड़े कदम उठाए गए हैं, लेकिन आने वाले वक़्त में अगर राष्ट्रीय सरकार ने कड़े कदम नहीं उठाए, तो कोरोना की दर मेक्सिको में बढ़ने की संभावना है।
पनामा और कोस्टारिका ने ग़ैर-रहवासी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है और सभी ग़ैर-ज़रूरी उद्योगों को बंद करने का आदेश दिया है।
कैरिबियाई देश
कैरिबियाई क्षेत्र में कोरोना के सबसे ज़्यादा मामलों वाला द्वीप डोमिनिकन रिपब्लिक है, जहां 202 मामले सामने आए हैं। गुआडेलोप में 45 और मार्टिनिक में 32 केस दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़े 19 मार्च तक के हैं। क्यूबा में कोरोना के 35 मामले मिले, लेकिन वहां संक्रमण की दर को धीमा करने में कामयाबी हासिल हुई है।
दूसरे देशों में कोरोना वायरस से संक्रमित मामलों की संख्या कम लग सकती है, पर यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि इनकी आबादी भी बेहद कम है। इस इलाक़े में एक करोड़ बारह लाख की आबादी वाला क्यूबा सबसे बड़ा देश है। उसे छोड़कर हैती, जमैका, डोमिनिकल रिपब्लिक, प्यूरिटो रिको और त्रिनिदाद व टोबैगो की आबादी दस लाख से भी कम है। इस संख्या को देखते हुए कोरोना के मामले चिंताजनक समझ में आते हैं।
ऊपर से मरीज़ों के इलाज के लिए इन द्वीपीय देशों के पास बेहतर स्वास्थ्य ढांचा भी नहीं है। जमैका, ''सेंट किट्स एंड नेविस'', सेंट विंसेंट ने पहले ही क्यूबा सरकार से स्वास्थ्य कर्मियों, इंफ्रास्ट्रक्चर, दवाईयों और इलाज की योजना से संबंधित मदद मांगी है।
हैती में दो मामले सामने आ चुके हैं। यहां लोग संक्रमण फैलने को लेकर चिंतित हैं। हैती में लोगों के नसीब में ठीक-ठाक पानी, स्वास्थ्य और आम स्वच्छता संबंधी सुविधाएं तक नहीं हैं। जोवेनेस मोइज़ के नेतृत्व वाली सरकार पूरी तरह अक्षम है, ऊपर से नवउदारवादी हमलों के चलते वहां का स्वास्थ्य ढांचा भी बेहद कमज़ोर है। लोगों को हैती में कोरोना संक्रमण के बहुत तेजी से फैलने का डर है।
कैरिबियाई द्वीपीय देशों ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए अलग-अलग कदम उठाए हैं। हैती, त्रिनिदाद व टोबेगो ने अपनी सीमाओं को पूरी तरह बंद कर दिया है, तो दूसरे ज़्यादातर देशों ने यात्राओं पर आंशिक प्रतिबंध लगाए हैं। जैसे, यूरोप और पूर्वी एशिया से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध लगाया गया है। वहीं विदेश से आने वाले लोगों को अपने घरों में दो हफ़्तों के लिए क्वारंटाइन में रहने की सलाह दी गई है।
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