यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप
बीजेपी और इसके नेता हमेशा भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा करते रहे हैं। इन दावों के बावजूद उत्तर प्रदेश में पार्टी के ही कई नेता भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी के कई नेता पहले तो सुर्खियों में बने रहे लेकिन इस महीने लगे कई आरोपों ने बीजेपी को परेशानियों में डाल दिया है।
पिछले सप्ताह यूपी में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरों में से एक और राज्य के वरिष्ठ बीजेपी नेता सरधना विधानसभा क्षेत्र के विधायक संगीत सोम पर मेरठ के बीजेपी नेता संजय प्रधान ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था।
प्रधान ने आरोप लगाया था कि सोम ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उन्हें पीडब्ल्यूडी का ठेका दिलाने का वादा करके 46 लाख रूपए लिए थे लेकिन उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया। मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडे को लिखित शिकायत में प्रधान ने सोम के ख़िलाफ़ कार्यवाही की मांग की और मांग की कि उन्हें उनका पैसा वापस दिलाया जाए।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए प्रधान ने आरोप लगाया कि "जब उन्होंने आश्वासन दिया कि वह मुझे दादरी क्षेत्र में डिग्री कॉलेज निर्माण के लिए पीडब्ल्यूडी ठेका दिलाएंगे तो मैंने ठाकुर संगीत सोम को 43 लाख रुपए दिए थे। इस वादे पर मैंने पिछले साल 15 जुलाई को उक्त बीजेपी विधायक के एक सहयोगी शेखर को 15 लाख रुपए दिए। फिर उन्होंने मुझे रॉबिन नाम के एक व्यक्ति को 25 लाख रुपए देने को कहा जो एक होटल का मालिक है। फिर मैंने सोम के भाई सागर सोम को 3 लाख रुपए दिए।" दादरी में ठाकुर समाज की बड़ी आबादी है और संगीत सोम हमेशा खुद को एक बड़े ठाकुर नेता के रूप पेश करते रहे हैं और स्थानीय ठाकुर इलाके में इस प्रभाव का लाभ उठाते हैं।
प्रधान जो कि सरधना के घाट गांव के प्रमुख हैं और बीजेपी की ज़िला कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं उन्होंने कहा कि पुलिस ने अभी तक उनकी शिकायत पर कार्यवाही नहीं की।
यह पहली बार नहीं है जब सोम को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। अप्रैल में एक स्थानीय व्यापारी राहुल सिंह ने आरोप लगाया था कि सोम ने उनसे 53 लाख रुपए का धोखा दिया था। सिंह ने कहा कि सोम ने उन्हें ईंट भट्ठे के व्यवसाय में हिस्सेदार बनाने के वादे पर उन्हें पैसे देने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने कभी उनको मुनाफे का शेयर नहीं दिया।
सिंह ने आरोप लगाया कि सोम ने ईंट भट्ठे के व्यवसाय में साझेदारी के लिए पैसा लिया था लेकिन कभी भी उनके साथ इस व्यवसाय से प्राप्त लाभ साझा नहीं किया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सबूत देने के बावजूद पुलिस ने सोम के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की क्योंकि पुलिस सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक के दबाव में काम कर रही थी।
सिंह ने यह भी दावा किया कि इस मुद्दे को हल करने के लिए गांव पंचायत भी दो बार की गई थी और पंचायत ने सोम से सिंह को उनका पैसा वापस करने के लिए कहा था।
सिंह ने एडीजी मेरठ के कार्यालय में सोम के ख़िलाफ़ भी शिकायत दर्ज कराई है। बुधवार को उन्होंने मीडिया को यह भी बताया कि अगर प्रशासन उनकी शिकायत पर कार्यवाही नहीं करता है तो वह लखनऊ में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के कार्यालय के बाहर आत्महत्या कर लेंगे।
सिंह ने न्यूज़क्लिक से कहा कि "सोम के साथ व्यापार के लिए साझेदारी को लेकर मैंने पिछले साल 50 दुग्ध देने वाले पशु और नौ बीघा ज़मीन बेच दी थी। उन्होंने इस व्यवसाय को स्थापित करने के लिए मेरे पैसे का इस्तेमाल किया लेकिन उन्होंने इस व्यवसाय से प्राप्त हुए लाभ में से कुछ भी नहीं दिया। जब मैंने उनसे लाभ के लिए कहा तो उनके भाई ने मुझे जान लेने की धमकी दी।
सिंह ने आगे कहा, "ग्राम पंचायत के कहने पर उन्होंने राहुल के नाम पर नौ बीघा ज़मीन रजिस्ट्री की और पंचायत को आश्वासन दिया कि वह एक साल में उनका पैसा वापस कर देंगे।"
हालांकि सोम ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया और इसे एक "षड्यंत्र" क़रार देते हुए कहा कि ये बदनाम करने के लिए रचा गया था। उन्होंने न्यूजक्लिक को बताया कि "हर चुनाव से पहले उछाले जाने वाले राजनीतिक रूप से प्रेरित ऐसे आरोपों वाले मामलों" के बारे में उन्होंने पार्टी हाईकमान को एक पत्र लिखा था।
सोम के मामले से पहले योगी आदित्यनाथ के प्रधान सचिव शशि प्रकाश गोयल के ख़िलाफ़ बड़े और गंभीर आरोपों लगाए गए थे। हरदोई में पेट्रोल पंप स्थापित करने को लेकर कथित रूप से 25 लाख रुपए की रिश्वत की मांग करने का उन पर आरोप था। राज्य के राज्यपाल राम नाइक ने एक व्यापारी अभिषेक गुप्ता के ईमेल के माध्यम से उन्हें मिली शिकायत पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को पत्र लिखा था जिसके बाद ये मामला बड़ी शर्मिंदगी का शबब बन गया। गुप्ता ने दावा किया कि गोयल ने कथित तौर पर संकरी सड़क को चौड़ा करने के लिए कहा था जो प्रस्तावित पेट्रोल पंप को मेन रोड से जोड़ता है।
राज्यपाल नाइक ने मुख्यमंत्री से जांच करने और मामले में कार्यवाही करने के लिए कहा था। इसके बजाए आदित्यनाथ सरकार ने अभिषेक गुप्ता को हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ की। एक दिन हिरासत में गुज़ारने के बाद गुप्ता ने लगाए गए आरोपों को वापस ले लिया और कहा कि उन्होंने "मानसिक संतुलन खो दिया" था।
गुप्ता के आरोपों की खबर सामने आने के तुरंत बाद उन्हें लखनऊ पुलिस ने हिरासत में लिया जिसके बाद उन्होंने इस नौकरशाह के ख़िलाफ़ अपने आरोप वापस ले लिए। कुछ घंटों के बाद उन्होंने सभी आरोपों को वापस लेते हुए एक वीडियो स्टेटमेंट जारी किया। ये वीडियो उस वक्त रिकॉर्ड किया गया था जब वह पुलिस हिरासत में थे। गुप्ता ने कहा कि वह लाल फीताशाही के कारण अपने पेट्रोल पंप परियोजना को पूरा करने में देरी से"निराश" था। वह इसे जल्द कराने के लिए गोयल से मिले थे लेकिन उनकी कोशिश बेकार हो गई क्योंकि गोयल ने परियोजना में तेज़ी लाने के उनके प्रयासों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने दावा किया कि चूंकि उन्होंने इस परियोजना के लिए 1 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण लिया था और उन्हें हर महीने 1.10 लाख रुपए का ब्याज देना पड़ता था इसलिए वह "मानसिक तौर पर परेशान" हो गए थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने तनाव के चलते इस नौकरशाह के ख़िलाफ़ आरोप लगाए थे।
भ्रष्टाचार के मामलों में योगी सरकार के ख़िलाफ़ हमला बोलते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इन आरोपों की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। पार्टी के एक प्रवक्ता सुनील साजन ने आरोप लगाया कि गुप्ता को कथित तौर पर लिखित माफी पत्र पर हस्ताक्षर करने और उनके आरोपों को वापस लेने के लिए मजबूर किया गया था।
भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वालों में सोम बीजेपी की यूपी इकाई के एकमात्र सदस्य नहीं थें। पिछले सप्ताह आवास योजना के आवंटन में धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप में मेरठ पुलिस ने बीजेपी एमएलसी सरोजिनी अग्रवाल के पति और उनकी बेटी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था।
मेरठ (नगर) के पुलिस अधीक्षक रणविजय सिंह के मुताबिक़ बीजेपी एमएलसी के पति ओम प्रकाश अग्रवाल और बेटी नीमा अग्रवाल पर कुछ लोगों द्वारा 10 लाख रुपए की धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है।
उन पर शिकायतकर्ता से इस योजना के तहत उन्हें घर दिलाने के नाम पर 10 लाख रुपए लेने का आरोप था।
सिंह ने न्यूज़क्लिक से कहा, "आईपीसी धारा 420 (धोखाधड़ी), 467, 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य के लिए जालसाजी करने) और 421 आदि धारा के तहत उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था।"
शिकायतकर्त्ता इरफान अंसारी ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि स्थानीय अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही एक पुलिस मामला दर्ज किया गया था। इरफान ने प्रतीक डीलकॉम लिमिटेड नामक कंपनी को समाजवादी आवास योजना के तहत आवास निर्माण के लिए अनुबंध प्राप्त करने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करने का सरोजनिजी अग्रवाल पर आरोप लगाया। ओमप्रकाश और नीमा दोनों कंपनी में निदेशक हैं। ज्ञात हो कि ये योजना पिछली अखिलेश यादव सरकार की प्रमुख योजना थी।
इरफान ने कहा कि "स्थानीय पुलिस ने मेरी शिकायत नहीं सुनी जिसके बाद मुझे स्थानीय अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। अदालत ने मेरी शिकायत पर ध्यान दिया और पुलिस से इस मामले की जांच करने को कहा।"
सभी मामलों को देखते हुए कई विपक्षी नेताओं ने कहा कि योगी सरकार के निर्देशों पर काम कर रही पुलिस भ्रष्टाचार के मामलों में सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही नहीं कर सकती है।
मेरठ के समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "पुलिस किसी भी मामले में बीजेपी नेताओं के खिलाफ कभी भी को कार्यवाही नहीं करेगी, चाहे भ्रष्टाचार का ही मामला क्यों न हो। लोग क्यों सोचते हैं कि बीजेपी सरकार अपने नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही करेगी? किसी भी मामले में ऐसा नहीं किया गया है। सरोजिनी अग्रवाल के मामले में पुलिस उनके पति और बेटी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने के लिए भी तैयार नहीं थी।"
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।