औद्योगिक संगठन एफ़सीआईके ने कश्मीर को ज़ोन-बी घोषित करने की मांग की
श्रीनगर: कश्मीर स्थित समूह फेडरेशन चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज कश्मीर (एफ़सीआईके) ने क्षेत्रीय औद्योगिक इकाइयों के सामने आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए अधिकारियों से इस घाटी को इंडस्ट्रियल लैंड ज़ोनेशन सिस्टम के ज़ोन बी के तहत घोषित करने का आग्रह किया है।
सरकार ने 31 अक्टूबर 2022 के आदेश संख्या DI&C/Dev/522/2022/2302-13 के अनुसार कश्मीर डिवीज़नों के ज़ोनेशन की जांच करने के लिए एक समिति बनाई है। कश्मीर घाटी के भौगोलिक क्षेत्रों को ज़ोन-ए और ज़ोन-बी में विभाजित किया गया है। ये विभाजन औद्योगिक भूमि आवंटन नीति के अनुसार भूमि मूल्य के उद्देश्य एवं राज्य एवं केन्द्रीय औद्योगिक नीतियों के अनुसार प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए किया गया है।
सोमवार को हुई बैठक के बाद जारी एक बयान में इस औद्योगिक संगठन ने कहा कि इसने विभिन्न उच्च स्तरों पर इन क्षेत्रों में व्याप्त असमानता का मामला उठाया है, जिसमें संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सम्मानित सदस्य, भारत के गृह मंत्री, केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री, केंद्रीय राज्य वाणिज्य मंत्री और जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर शामिल हैं। उन्होंने इसे प्रशासनिक स्तर पर भी उठाया है जिसमें संयुक्त सचिव डीपीआईआईटी, जम्मू-कश्मीर यूटी के मुख्य सचिव समेत अन्य लोग शामिल हैं।
एफ़सीआईके के महासचिव ओवेस क़ादिर जामी ने कहा कि कश्मीर स्थित इकाइयां "सबसे प्रतिकूल वातावरण में काम करती हैं। यहां उन्हें सड़कों पर रूकावट, कठोर जलवायु परिस्थितियों और कई अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन सबके चलते उन्हें ज़ीरो इन्वेंट्री सिस्टम और सस्ते श्रम वाले सबसे विकसित राज्यों में काम करने वाले अपने समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है।”
उन्होंने कहा, "केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई औद्योगिक नीतियां और योजनाएं, विशेष रूप से पिछले तीन दशकों के दौरान, मौजूदा उद्यमों की बढ़ती समस्याओं को कम करने या क्षेत्र में संभावित निवेश को आकर्षित करने में बुरी तरह विफल रही हैं।"
एफ़सीआईके के सचिव दानियाल कुरैशी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "ज़ोन-ए को ज़मीन की अधिक क़ीमत वाला क्षेत्र माना जाता है, लेकिन ज़ोन-बी की तुलना में कम प्रोत्साहन दी जाती है, जिसके ज़मीन की क़ीमत कम है, लेकिन अधिक प्रोत्साहन दी जाती है।"
महत्वपूर्ण प्रोत्साहनों को 2021 की वर्तमान औद्योगिक नीति से बाहर कर दिया गया है। इन प्रोत्साहनों ने लागत को बराबर करने वाले उपायों और प्रोत्साहन के रूप में काम किया। इनमें मूल्य प्राथमिकता, ख़रीद की प्राथमिकता, निविदा दस्तावेज़ की लागत, बयाना राशि और ज़मानत राशि, माल ढुलाई सब्सिडी, आयकर छूट और कर छूट शामिल हैं।
जामी ने कहा “पहले की औद्योगिक नीतियों ने तत्कालीन राज्य के 22 ज़िलों में औद्योगिक विकास में असमानताओं को जन्म दिया था क्योंकि इस पैकेज के परिणामस्वरूप जो भी नया निवेश हुआ था, वह केवल जम्मू के 3 ज़िलों में किया गया था जबकि 19 अन्य ज़िलों में कुछ भी नहीं हुआ था। और इस तरह अधिकांश प्रोत्साहन जम्मू के 3 ज़िलों में दिए गए।”
एफ़सीआईके ने उन नीतियों में कमी पाई है जो लक्ष्य को पूरा करने में बाधा बन सकती हैं यदि इन्हें समय पर निपटाया नहीं गया। इनमें से एक मुद्दा कश्मीर घाटी को जोन-ए और ज़ोन-बी में घोषित करना है।
इस औद्योगिक संगठन के अनुसार, विभिन्न रुकावटों के कारण लगातार होने वाले बड़े व्यापारिक नुक़सान ने न केवल उद्यमों के विकास को बाधित किया है बल्कि बड़ी संख्या में उन्हें अपने संचालन को बंद करने के लिए मजबूर किया है।
संगठन ने कहा, "इस तरह के किसी भी नुक़सान के लिए उद्योग को मुआवज़ा नहीं दिया गया था, इन उद्योगों को बैंक के ब्याज, व्यर्थ मज़दूरी और वेतन, वैधानिक कर और अन्य ख़र्चों का भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया था।"
एफ़सीआईके ने यह भी मांग की कि सरकार को उन बाधाओं को दूर करना चाहिए जो कश्मीर घाटी में औद्योगिक समाज को ज़ोन घोषित करते समय सामना करना पड़ रहा है और भेदभाव के बिना पूरी घाटी को ज़ोन-बी घोषित किया जाना चाहिए।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने भी एफ़सीआईके की मांगों को दोहराई है। उन्होंने कहा कि पूरे कश्मीर घाटी को जोन-बी घोषित करने की ज़रूरत है।
तारिगामी ने कहा, “कश्मीर में औद्योगिक विकास वर्षों से अभूतपूर्व अनिश्चितताओं से प्रभावित रहा है। औद्योगिक भूमि का दो अलग-अलग क्षेत्रों में वर्गीकरण औद्योगिक क्षेत्र के विकास में रूकावट डाल रहा है।”
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट के पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
‘Difficult Atmosphere’: Industrial Body FCIK Demands Kashmir be Declared Zone B due to Disadvantages
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