Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

महंगाई में थाली खाली: जयंत सिन्हा ने ग़रीबों की नहीं भाजपा सांसदों के घर की भरी थाली देखी होगी!

भाजपा के सांसद और पूर्व वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि देश में महंगाई ढूढने की कोशिश की जा रही है लेकिन कहीं भी महंगाई नहीं है।
kirana

भारत का आम आदमी महंगाई तले दबता जा रहा है। वह 90% आबादी जो महीने में 25 हजार रुपये से कम कमा पाती हैउसकी जिंदगी में महंगाई की मार इतनी ज्यादा है कि उसे पैसा खर्च करने के लिए सौ-सौ बार सोचना पड़ता है। उस देश की संसद में खुलेआम कहा जाता है कि महंगाई नहीं है। सरकार की तरफ से कहा जाता है कि आम जनता के नजरिए से देखें तो दिखेगा की जनता की खाने की थाली को सरकार ने भर दिया है। पता नहीं सरकार ने कौन सी जनता और कौन सी थाली देख ली हैइस वक्तव्य से तो ऐसा लगता है कि सरकार जनता की तरफ देखती ही नहीं है।

भाजपा के सांसद और पूर्व वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि देश में महंगाई ढूढने की कोशिश की जा रही है लेकिन कहीं भी महंगाई नहीं है। आप किसी गरीब की थाली को देखिए। वह बताएगा कि चावल आज मुफ्त मिल रहा है। दाल भी आपको बहुत कम दाम मिल रही है। साल पहले जो सब्जी 10-15 रुपए किलो मिला करती थी वह ज्यादा से ज्यादा 15 से 20 रुपये किलो मिल रही है। आटा अंडा दूध के दाम उठाकर देख लीजिए। हर वस्तु में सरकार का नियंत्रण जबरदस्त रहा है। वास्तविकता यह है कि  आम जनता की थाली आंकड़ों से नहीं बल्कि वस्तुओं से भरी हुई है।

आइए हकीकत का एक मोटा अंदाजा लगा लेते हैं कि महंगाई की स्थिति क्या है। दैनिक भास्कर में थोक विक्रेता सूचकांक को आधार बनाकर मेट्रो शहरों की औसत कीमत पर किए गए विश्लेषण के मुताबिक साल 2012 में दर्जन केले का दाम ₹66 हुआ करता था। साल 2022 में यह बढ़कर के ₹97 तक पहुंच गया है।

साल 2012 में एक दर्जन अंडे का दाम ₹38 के आसपास हुआ करता था अब यह बढ़कर के ₹62 के आसपास पहुंच गया है।

किलो मसूर की दाल साल 2012 में  ₹100 में मिला करता था अब यह बढ़कर के ₹192 प्रति किलो हो गया है।

लीटर दूध साल 2012 में ₹292 में मिलता थासाल 2022 में इसकी कीमत बढ़ कर के 464 रुपए हो गई है। 2012 में किलो प्याज ₹52 में मिलता था अब यह बढ़कर के तकरीबन ₹120 पर पहुंच गया है। साल 2012 में आधा किलो नमक की थैली ₹7 मिला करती थी अब इसकी कीमत ₹10 के आसपास पहुंच गई है।

किलो की गेहूं की बोरी साल 2012 में ₹173 की मिला करती थी। साल 2022 में इसकी कीमत बढ़ कर 256 रूपये तक पहुंच गई है। उपभोक्ता की वेबसाइट बताती है कि केवल साल 2022 में गेहूं की दामों में 18% की बढ़ोतरी हुई है।

एक परिवार को हफ्ते भर में जितने खाने की सामानों की जरूरत होती है अगर उसे आधार बनाकर थोक विक्रेता मूल्य सूचकांक के आधार पर देखा जाए तो साल 2012 के बाद कीमतों में तकरीबन 68% की वृद्धि हुई है। और कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर देखा जाए तो कीमतों में तकरीबन 70% की वृद्धि हुई है।

लोकसभा में मोदी सरकार द्वारा दिए गए जवाबों को आधार बनाकर देखें तो साल 2016 में आलू का दाम ₹19 प्रति किलो के आसपास हुआ करता था, 2022 में यह बढ़कर के 27 रुपए प्रति किलो के आसपास पहुंच गया है। यानी तकरीबन 39% के आसपास की बढ़ोतरी। साल 2016 में टमाटर का दाम ₹26 प्रति किलो के आसपास था। अब यह बढ़कर ₹33 प्रति किलो के आसपास पहुंच गया है। यानी तकरीबन 30% के आसपास की बढ़ोतरी। साल 2016 में प्याज ₹16 प्रति किलो के भाव से बिक रहा था। अब यह ₹25 प्रति किलो के भाव से बिक रहा है। यानी कीमतों में 51% की बढ़ोतरी।साल 2016 से लेकर अब तक खाने के तेलों की कीमतों में 108% की बढ़ोतरी हुई है।

जयंत सिन्हा ऐसे वैसे सामान्य सांसद नहीं है। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के बेटे हैं। और खुद भी वित्त राज्यमंत्री रहे हैं। बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल की हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी दिल्ली से पढ़ाई की है। विश्व के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हावर्ड से एमबीए की पढ़ाई की है। जो कहते हैं कि संसद में पढ़े लिखे लोग होने चाहिए उनकी पढ़े लिखे होने की चाहतों को पूरा करने वाले नेता हैं। लेकिन पढ़ा लिखा होने से ज्यादा जरूरी है नैतिक और ईमानदार होना है। जनता के प्रति जवाबदेह और संवेदनशील होना। जब सरकार को लगने लगता है कि वह झूठ बोलकर जनता को बरगला देगी तब वह नैतिक नहीं होती बल्कि अपना जमीर मार चुकी होती है।

जयंत सिन्हा का कहना है कि महंगाई विपक्ष के राज्य में है। लेकिन हकीकत यह है कि भारत का ऐसा कोई भी राज्य नहीं  हैं जहां पर महंगाई, महंगाई की सहनशील सीमा 6% से कम हो। मध्य प्रदेश गुजरात और हरियाणा में भाजपा की सरकार है और यहां पर महंगाई से 8% के दर पर बनी हुई है।

जिन घरों में साल पहले ₹5000 का राशन आता था। अब वह बढ़कर 8000 से ₹9000 के पास पहुंच गया है।  सरकारी नौकरी करने वालों को तो महंगाई भत्ता मिलता है। उन के महंगाई भत्ते में तकरीबन 34% की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन सरकारी नौकरी करने वालों की संख्या भारत की तकरीबन 135 करोड़ की आबादी में करोड़ भी पार नहीं कर पाती है। कामकाज की बहुत बड़ी आबादी प्राइवेट सेक्टर में काम करती। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती है।

यहां की हालत यह है कि कमाई कम होती है। नौकरी चली जाती है। महंगाई की दर और इनकी कमाई के बीच जमीन और आसमान का अंतर होता है। बेरोजगारी अपने चरम पर है। साल 2004 से लेकर 2014 के बीच हर साल तकरीबन 75 लाख गैर कृषि क्षेत्र की नौकरियों का निर्माण हुआ करता था। 2016 से लेकर 2019 की हालत यह है कि हर साल गैर कृषि क्षेत्र में महज 29 लाख नौकरियां मिली है। जबकि भारत जैसी आबादी में अगर हर साल करोड़ लोगों को नौकरियां नहीं मिल रही है तो इसका मतलब है कि ढेर सारे लोग गरीबी की मार सहने  के लिए मजबूर हैं।

इन पर महंगाई कहर बनकर टूटती है। यही वह आम जनता है जिसके लिए जयंत सिन्हा के शब्द हैं कि उसकी थाली भरी हुई है। बाकी आप समझते रहिए...।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest