क्या मोदी सरकार गलत दावों के साथ संसद को गुमराह कर रही है?
मॉरीशस और सिंगापुर उन देशों की सूची में सबसे ऊपर हैं जहां से कई वर्षो से एफडीआई भारत में आता है और इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है और दोनों ही देश टैक्स हैवन के रूप में जाने जाते है। परन्तु मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए गये जबाब में उन्होंने सूची से दो टैक्स हैवन देश मॉरीशस और साइप्रस के नाम छुपाने की कोशिश की है इसके बजाय चीन और दक्षिण कोरिया को जोड़ा है|
गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार अपने कार्यकाल के शुरूआती दिनों से ही आंकड़ों में हेराफेरी करने के लिए विख्यात रही है, इस सन्दर्भ में विभिन्न शोधकर्ताओं, अर्थशास्त्रियों और लेखकों ने कई अवसरों पर बहुत से उदाहरण दिए है।जिस तरह से उनकी सरकार ने वाइब्रेंट गुजरात समिट से जुड़े आंकड़ों में हेरफेर किया है वह सुप्रलेखित है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के दौरान विभिन्न शोधकर्ताओं एवं सरकारी आंकड़ों पर शोध करने वाले विश्लेषकों का मानना था की केंद्र में भी आंकड़ों का हेरफेर होगा, उनका यह अनुमान बिलकुल सही साबितभी हुआ| हाल ही में जारी हुए जीडीपी बैक सीरीज़ आंकड़े, रोजगार के आंकड़ो से दुरी, किसान आत्महत्याओं के आंकड़े छिपाना, लाभार्थियों की स्वीकृत संख्या को अंतिम डेटा के रूप में जारी करना, जो उनके सुशासन और उनकी सरकार की सफलता के बारे में प्रचार करने के लिए है| दिलचस्प बात है की मोदी सरकार के मंत्रीयों द्वारा भी जनता को गुमराह करने के लिए आंकड़ो को चुना जा रहा है| इसका नवीनतम उदहारण, राज्यसभा में अतारांकित प्रश्न संख्या1726 का विदेश राज्य मंत्री द्वारा दिया गया उत्तर है|
डॉ. संजय सिंह ने प्रश्न किया कि; क्या विदेश मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि: (क) वर्ष 2009 से 2014 के दौरान तक डॉ. मनमोहन सिंह की तथा वर्ष 2014 से लेकर अब तक श्री नरेंद्र मोदी की अधिकारिक विदेश यात्राओं का ब्यौरा क्या है; (ख) प्रत्येक यात्रा के उद्देश्य, उन पर कुल व्यय तथा अधिकारिक एवं गैर-अधिकारिक व्यक्तियों के नामों और पदनामों का ब्यौरा क्या है जों दोनों प्रधान मंत्रियों के विदेश दौरों के दौरान उनके साथ गये थे; और (ग) वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा दौरा किये गये अन्य देशो से कितना-कितना निवेश प्राप्त हुआ है?
विदेश राज्य मंत्री जनरल (डॉ.) वी.के.सिंह (सेवानिवृति) ने 35 पृष्ठों का एक विस्तृत जबाब दिया है जिसमे 2009 के बाद से दोनों प्रधानमंत्रियों की यात्राएँसम्मलित किया है और दोनों पीएम के साथ यात्रा करने वाले सभी अधिकारीयों और पत्रकारों को भी विस्तार से सम्मलित किया है| साथ ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के बाद उन देशो से भारत को प्राप्त निवेश का ब्यौरा अनुबंध-IV में उपलब्ध कराया है|
इस अनुबंध का शीर्षक “2014 और 2018 के बीच भारतमे एफडीआई से आया कुल धन और एफपीआई/एफआईआई निवेश” है| इसके बाद विवरण दिया गया है: “प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2014 के 30930.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2017 में 43478.27 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया| 2014 और जून 2018 के बीच संचयी एफडीआई धन 136,077.75 मिलियन अमरीकी डॉलर था, जबकि 2011 और 2014 के बीच के वर्षों में संचयी रूप से 81,843.71 मिलियन अमरीकी डॉलर दर्ज किया गया था| नतीजन, देश में पारपत कुल एफडीआई तीन वर्षों की थोड़ी-सी अवधि में 67% बढ़ गया है| धातु उद्योग, उर्जा, बिजली के उपकरण, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, दूरसंचार, सूचना और प्रसारण, ऑटोमोबाइल, रसायन और उर्वरक, ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल, सेवा क्षेत्र (वित्त, बैंकिग, बीमा, गैर वित्त/व्यवसाय, आउटसोर्सिंग, अनुसंधान एवं विकास, कुरियर, प्रौधोगिकी, परीक्षण और विश्लेष्ण आदि सहित), पर्यटन, और निर्माण जैसे क्षेत्रों में अधिकतम एफडीआई अंतर्वाहदर्ज किया गया| 2014 और 2017 के बीच भारत में 496,845 करोड़ रूपये का समग्र एफडीआई इक्विटी निवेश हुआ|
इस जवाब के साथ कुछ समस्याएं हैं। सबसे पहले, मोदी सरकार अपने चार साल 2014-18 के एफडीआई प्रवाह के आंकड़ों की तुलना स्वयं को संख्यात्मक लाभ देने के लिएपिछली यूपीए सरकार के तीन साल 2011-14 के आंकड़ों से कर रही है।
औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (DIPP) एफडीआई पर आवधिक आंकड़ेजारी करता है।डीआईपीपी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2010 मार्च से 2014 मार्च तक भारत में संचयी एफडीआई प्रवाह 103,226 मिलियन अमरीकी डॉलर है। इसलिए सरकार द्वारा एफडीआई प्रवाह के दावे 67% वृधि की वृधि नही हुई बल्कि यह केवल 32% है| आंकड़ो की यह तुलना यह नही दिखाता है कि मोदी सरकार के द्वारा बतायी गयी संख्या यूपीए की तुलना में कम है बल्कि दो आंकड़ो के बीच दिखाया गया अंतर कम है|
यदि हम वर्ष दर वर्ष एफडीआई प्रवाह का अध्ययन करे तो ज्ञात होता है कि सबसे अधिक वृधि 2006-07में 155% हुईजो की पिछले वर्ष 2005-06 से बढ़कर हुई थी| 2007-08 में पिछले वर्ष की तुलना में 53% वृधि दूसरी सबसे अच्छी वृधि रही| तीसरी सबसे अच्छी वृद्धि 2001-02 में वाजपेयी सरकार में हुई थी, जिसमे पिछले वर्ष से एफडीआई प्रवाह 52% बढ़ गया था।यूपीए शासन के दस वर्षों में, एफडीआई प्रवाह औसतन 31.1% बढ़ालेकिन मोदी शासन के पहले चार वर्षों में यह14.75% है।
विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का प्रतिशत 2016 में 2% था जो की 2011 में समान था। बल्कि 2008 में यह अपने उच्त्तम स्तर 3.6% पर पहुंच गया था |
इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (ISID) के एक अध्ययन पत्र के आधार पर इंडिया स्पेंड द्वारा किया गया एक विश्लेषण बताता है कि, अक्टूबर 2014 से मार्च 2016 के बीच एफडीआई के रूप में 51.7 बिलियन अमरीकी डालरभारत में आए और जिसमे से केवल 37% ही विनिर्माण(manufacturing) क्षेत्र में गया। इस विश्लेष्ण में ISID स्टडी पेपर के सह-लेखक और प्रतिष्ठित फैलो केएस चलपति राव के हवाले से बताया है कि “यथार्थवादी एफडीआई पूंजी, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और अन्य कौशल के एक पैक हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करता है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे आंतरिक रूप से होता है। जैसे सुजुकी मोटर्स जो भारत में लगभग 40 वर्षों से है।
इंडिया स्पेंड ने लिखा है:“ अक्टूबर 2014 और मार्च 2016 के बीच, RFDI का हिस्सा 50% से थोड़ा अधिक था। रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2016 तक प्राप्त अंतर्वाह की प्रकृति में बदलाव का संकेत देने के लिए पहले के वर्षों (2004-05 से 2013-14) की तुलना में अंतर्वाह के व्यापक चरित्र में कोई बदलाव नहीं हुआ था। इसलिए एफडीआई में बढ़ोतरी के बारे में दावा करना लोगों को गुमराह करने के लिए सिर्फ एक और चाल है।
राज्यसभा में दिए गए उत्तर में उन देशों की सूची दिखाते हुए यह दावा किया गया है कि यह शीर्ष दस देश हैं जहाँ से एफडीआई भारत में आता है।
लेकिन यह शीर्ष दस देशों की सटीक सूची नहीं है और, इसमेंकुछ छिपाया गया है। तो, आइए,से 31 मार्च 2018 को DIPP द्वारा जारी किये गये आंकड़ोंके अनुसारवास्तविक सूची के शीर्ष दस देशों की जाँच करें जहाँ सेएफडीआईभारत में आता है।
अब हम 31 मार्च 2014 को DIPP द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार सूची की जांच करते हैं।
और मार्च 2009 में जारी किये आंकड़ों के अनुसार यह सूची इस तरह थी |
मॉरीशस और सिंगापुर उन देशों की सूची में सबसे ऊपर हैं जहां से कई वर्षो से एफडीआई भारत में आता है और इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है और दोनों ही देश टैक्स हैवन के रूप में जाने जाते है। परन्तु मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए गये जबाब में उन्होंने सूची से दो टैक्स हैवन देश मॉरीशस और साइप्रस के नाम छुपाने की कोशिश की है इसके बजाय चीन और दक्षिण कोरिया को जोड़ा है| क्या मोदी सरकार यह मानने में शर्म महसूस कर रही है कि अधिकतम एफडीआई देश में टैक्स हैवन देश से आ रहे हैं, खासकर जब उनका एक महत्वपूर्ण चुनावी वादा काले धन का उन्मूलन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने का रहा है?
राज्यसभा में सरकार का जबाब है कि, “धातु उद्योग, उर्जा, बिजली के उपकरण, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, दूरसंचार, सूचना और प्रसारण, ऑटोमोबाइल, रसायन और उर्वरक, ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल, सेवा क्षेत्र (वित्त, बैंकिग, बीमा, गैर वित्त/व्यवसाय, आउटसोर्सिंग, अनुसंधान एवं विकास, कुरियर, प्रौधोगिकी, परीक्षण और विश्लेष्ण आदि सहित), पर्यटन, और निर्माण जैसे क्षेत्रों में अधिकतम एफडीआई अंतर्वाहदर्ज किया गया है| हमें नहीं पता कि यह इस क्रम में क्यों दिया गया है। लेकिन वास्तविक क्षेत्रों का उल्लेख यहां सटीक क्रम में किया गया है।
एक सरल उदाहरण के तौर पर, मोदी सरकार अपना प्रदर्शन पिछली सरकारों से बेहतर दिखाने के लिए आंकड़ो का प्रदर्शन चुनकरकर रही है| जो भी यह दावा कर रहे है यह बिना आंकड़ो में छेड़खानी किये और बिना इनके पक्ष में दिखाई दे रहे आंकड़ो को चुने संभव नही है| और अपनी बात को साबित करने के लिए, मोदी सरकार ने संसद को गुमराह करना शुरू कर दिया।
लेकिन, उनके लिए यह साबित करना असंभव होगा कि फड़ और चेरी बिना डेटा के दावा कर सकते हैं। और अपनी बात को साबित करने के लिए, मोदी सरकार ने अपनी बात को साबित करने के लिए बिना किसी भय के संसद को गुमराह करना शुरू कर दिया।
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