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कम बजट आवंटन बच्चों के साथ घोर अन्याय

भारत युवाओं को उनके दाय से वंचित करने का जोखिम नहीं उठा सकता, खासकर जब कोरोना महामारी उनके परिवारों की आर्थिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनी हुई है। वित्तीय वर्ष 2022 के लिए प्रस्तावित बजट में पिछले दो वर्षों के दौरान युवा मद में खर्च की कटौती में सुधार करना चाहिए। 
Low Budget Allocations Severely Unjust to Children
मध्य प्रदेश के खरगौन जिले में एक बालक। फोटो सौजन्य: अर्जुन कलैरे ईयू/ईएचओ2013 

भारत में किशोर सहित लगभग 55 करोड़ बच्चे हैं, जो देश की सकल आबादी का लगभग 40 फीसदी है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने दुर्भाग्य से इसकी पुष्टि की है कि वे बच्चे एवं किशोर भारत के कुपोषण और अल्पपोषण संकट का खमियाजा भुगत रहे हैं। लड़कियां को भी पर्याप्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रखा जाता है, जैसा कि पढ़ाई छोड़ने की ऊंची दर, लगभग 15 फीसदी, से जाहिर होता है। गरीबी देश के लाखों बच्चों के साथ भेदभाव और उपेक्षा को बढ़ाती है। वैसे तो सरकार के पास युवाओं के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं हैं, लेकिन ये अपर्याप्त रूप से वित्तपोषित हैं। इनके परिणामस्वरूप, ये उपचारात्मक योजनाएं उनकी जरूरत से काफी कम हो जाती हैं। 

राष्ट्रीय कार्य योजना (एनपीएसी) ने 2016 में केंद्रीय बजट का कम से कम 5 फीसदी बाल कल्याण पर खर्च करने की सिफारिश करते हुए बच्चों की समग्र चिंताओं को दूर करने की मांग की थी। यह प्रस्ताव सिर्फ एक शुरुआती बिंदु था और जाहिर तौर पर COVID-19 महामारी के कारण पिछले दो वर्षों के बाधित पोषण कार्यक्रमों का कोई हिसाब नहीं है। यहां तक कि आज भी, गरीब परिवारों की आय में व्यवधान और उसमें गिरावट को देखते हुए बच्चों के कल्याण के लिए कोई योजना नहीं है, जबकि मार्च 2020 से ही उनके स्कूल बंद चल रहे हैं। गरीब परिवारों के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए सहायता देने की आवश्यकता है कि ऑनलाइन कक्षाओं तक उनके बच्चों की पहुंच के लिए भोजन की पर्याप्त व्यवस्था हो सके। ऐसे में यह पूछना लाजिमी है कि इस महत्त्वपूर्ण मोड़ पर क्या सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए 5 फीसदी बजट आवंटन किए जाने की एनपीएसी की सिफारिश को लागू किया है? 

जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चों के लिए बजट कई विभागों और मंत्रालयों से संबद्ध रखा गया है। नवीनतम स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल शिक्षा विभाग के पास बजट का लगभग 62 फीसदी हिस्सा होता है,जबकि महिला और बाल कल्याण मंत्रालय के पास लगभग 24 फीसदी हिस्सा है। बजट का शेष 14 फीसदी भाग अन्य विभागों में फैला हुआ है। इन सभी बजट आवंटनों को जोड़ने पर हमें बच्चों के लिए एक समेकित बजट मिलता है। 2020-21 के बजट में बच्चों के लिए लगभग 95,000 करोड़ रुपये या बजट अनुमान की 3.16 फीसदी राशि आवंटित की गई थी। एनपीएसी की सिफारिश के पांच साल बाद इसे बहुत ही कंजूस आंकड़ा कहा जाएगा।

फिर भी, अगले वर्ष के बजट ने अनुदान को घटा कर 2.46 फीसदी कर दिया। यह कटौती COVID-19 महामारी के ठीक बीच में की गई, जब बच्चे घर पर थे और उनके लाखों परिवार बिना आय के या बहुत कम आय पर उन्हें शिक्षा प्रदान करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। फिर भी, 2021-22 के बजट अनुमान में पिछले वर्ष की तुलना में 11 फीसदी की एक और कटौती की गई और 85,713 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। यह केंद्रीय बजट 2021-22 के वक्तव्य 12 में बाल कल्याण के लिए आवंटन पर केंद्र की घोषणाओं पर आधारित है। 

इससे भी बदतर हुआ जब महामारी ने कहर बरपाना शुरू कर दिया। तब संशोधित अनुमान ने पिछले वर्ष के आवंटन को घटाकर महज 2.33 फीसदी कर दिया, इसलिए 2020-21 की अवधि में खर्च पहले ही कम फंडिंग होने के कारण और भी कम हो गया। यह सब तब हुआ, जब समाचार चैनलों ने भारत के COVID-19 राहत पैकेजों के बारे में अतिरंजित दावे कर रहे थे। परदे के पीछे, सरकार बाल कल्याण के कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में बच्चों के लिए उपलब्ध धन को महत्त्वपूर्ण रूप से घटा रही थी। सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए) ने बजट 2021-22 के मद्देनजर  अपनी रिपोर्ट 'बजट इन द टाइम ऑफ द महामारी' में इन विवरणों को नोट किया है। केंद्र ने इस बजट में चार पोषण योजनाओं को 'सक्षम आंगनवाड़ी/मिशन पोषण 2.0' शीर्षक के तहत जोड़ दिया है। यदि हम इस नई श्रेणी के तहत संयुक्त आवंटन की तुलना इसकी व्यक्तिगत घटक योजनाओं के लिए 2020-21 के आवंटन से करते हैं, तो 2020-21 में 24,557 करोड़ रु के बज़ट अनुमान की तुलना में 2021-22 के बजट अनुमान में 20,105 करोड़ रुपये की कटौती पाते हैं, जो 18 फीसदी की कटौती ठहरती है। 

इसके अलावा, 2021-22 में संशोधित अनुमान में आवंटन को घटा कर 17,917 करोड़ रुपये कर दिया गया। हालांकि हमलोगों को बच्चों के पोषण के लिए एक अतिरिक्त पैकेज देने का शोर सुनाया जाता है जबकि वास्तव में, 2020-21 के वित्तीय वर्ष में बजट में काफी कटौती की गई थी। 

यह कटौती एकमात्र ऐसा उदाहरण नहीं है। समग्र शिक्षा अभियान, पूर्वस्कूली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक स्कूली शिक्षा की मुख्य योजना के लिए 2020-21 के बजट में 38,751 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जबकि संशोधित अनुमान में 27,957 करोड़ रुपये की भारी कटौती की गई, इनमें भी मुख्य योजना में 10,000 करोड़ रुपये की कटौती की गई। अगर यह कटौती नहीं की जाती तो कई बच्चे शिक्षा से वंचित नहीं होते। यह एक पहल को भी वित्तपोषित कर सकता था, जिसकी कई लोगों ने मांग की, प्रवासी श्रमिकों के बच्चों की मदद करने के लिए। 

वित्तीय वर्ष 2021-22 में, समग्र शिक्षा अभियान का बजट अनुमान पिछले वर्ष 31,050 करोड़ रुपये की तुलना में कम था। उसमें फिर से, लगभग 7,500 करोड़ रुपये की कटौती की गई थी, जो बच्चों के प्रति बहुत अनुचित व्यवहार है। जब लाखों बच्चों के स्कूल जाने की संभावना खतरे में थी और निजी स्कूलों से अधिक बच्चों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया था, तो वित्तीय आवंटन में कटौती करने की बजाय उसे बढ़ाया जाना चाहिए था। 

कठिन समय में, लड़कियों की शिक्षा को सबसे गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है क्योंकि तब परिवार बेटों को शिक्षित करने को प्राथमिकता देने लगता है। सीबीजीए के अनुसार माध्यमिक शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना मद में 2020-21 के बजट अनुमान में 110 करोड़ दिए गए थे। यह प्रावधान बढ़ाना चाहिए था। हालांकि, उस वर्ष के लिए संशोधित अनुमान में इसे घटाकर सिर्फ 1 करोड़ रुपये कर दिया गया था। दूसरे शब्दों में, यह योजना कमोबेश तब गायब कर दी गई जबकि लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। अगले वर्ष, और आश्चर्य हुआ जब सरकार ने आवंटन की 1 करोड़ राशि को बरकरार रखा। 

कई रिपोर्टें बताती हैं कि COVID-19 महामारी के दौरान बाल शोषण और तस्करी में तेजी से वृद्धि हुई है। इन्हें रोकने की सख्त जरूरत थी, और इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए समाज के सबसे वंचित परिवारों को अधिक समर्थन देने का तकाजा था। सरकार ने हालांकि 2021-22 में बाल संरक्षण सेवाओं के लिए आवंटन में भारी कमी कर दी। यहां तक कि एकीकृत बाल संरक्षण सेवाओं पर भी 2020-21 में 1,500 करोड़ रुपये के व्यय में 40 फीसदी की कटौती करते हुए उसकी राशि 900 करोड़ कर दी। इस योजना का नाम बदलकर मिशन वात्सल्य कर दिया गया।

जब से एनपीएसी ने बच्चों के लिए 5 फीसदी खर्च की सिफारिश की है, खर्च और आवंटन 2.3 से 3.4 प्रतिशत के बीच रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में वास्तविक खर्च 3.4 फीसदी था, जबकि 2020-21 में संशोधित अनुमान 2.3 फीसदी था। केंद्रीय बजट का 5 फीसदी हिस्सा बच्चों को उपलब्ध कराने की तुलना में, पांच साल में वास्तविक आवंटन से लगभग 3 लाख करोड़ रुपये से बच्चों को वंचित कर दिया गया है। अगर हम सिर्फ वित्तीय वर्ष 2021-22 में 5 फीसदी की बजाय 2.46 फीसदी के आवंटन पर ही बात करें तो बच्चों को लगभग 85,000 करोड़ रुपये से वंचित कर दिया है। यदि हम पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों पर विचार करें और एनपीएसी की सिफारिशों के साथ तुलना करें, तो इस वर्ष भी बच्चे इसी तरह की राशि से वंचित रह गए थे। 

बच्चों के कल्याण के लिए आवंटन में बढ़ोतरी और एनपीएसी की सिफारिश को स्वीकार करने का एक बहुत मजबूत मामला है। आखिरकार, हम यह कहना पसंद करते हैं कि बच्चे हमारा भविष्य हैं। 

(भारत डोगरा टू सेव अर्थ नाउ अभियान के मानद संयोजक हैं। उनकी हालिया किताबों में प्रोटेक्टिंग अर्थ फॉर चिल्ड्रन एंड प्लेनेट इन पेरिल शामिल हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

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