एमपॉक्स लौट आया: वैश्विक तालमेल और टीका समता की ज़रूरत
एमपॉक्स (Mpox), जिसे पहले मंकी पॉक्स के नाम से जाना जाता था (विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022 में इस नाम से जुड़े कलंक से बचने के लिए इसका नाम बदल दिया था) फिर से बढ़ रहा है और खासतौर पर अफ्रीका में बढ़ रहा है।
2024 के 14 अगस्त को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) और उसके पड़ोसी देशों में, जिनमें बुरुंडी, केन्या, रवांडा तथा उगांडा शामिल हैं, इस बीमारी के केसों के तेजी से बढ़ने के चलते, अंतर्राष्ट्रीय चिंता की सार्वजनिक स्वास्थ्य इमरजेंसी (पब्लिक हैल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कन्सर्न--PHEIC) का एलान किया था।
यह इतिहास में दूसरा ही मौका है जब एक डीएनए वायरस के विस्फोट को लेकर, पीएचईआईसी का एलान किया गया है। इससे पहले, 2022 में पहली बार, एमपॉक्स को ही लेकर यह एलान किया गया था। यह वायरस को नियंत्रित करने के लिए, वैश्विक स्तर के तालमेलपूर्ण प्रयासों के तत्काल जरूरी होने को रेखांकित करता है।
वास्तव में मध्य तथा पश्चिमी अफ्रीका में तो एमपॉक्स लंबे समय से चिंता का कारण बना रहा है, लेकिन सारी दुनिया का ध्यान हाल ही में इसकी ओर गया है क्योंकि अब यह बीमारी ऐसे क्षेत्रों में फैल रही है, जहां यह बीमारी पहले नहीं थी।
एमपॉक्स क्या है?
एमपॉक्स एक जूनोटिक (viral zoonotic) यानी जानवरों से मनुष्यों में लगने वाली बीमारी है। यह बीमारी संक्रमित व्यक्तियों, संक्रमित सामग्री और थोड़े से मामलों में संक्रमित जानवरों के निकट संपर्क में आने से फैलती है। इसे यौन संचारी रोग या सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज के रूप में वर्गीकृत तो नहीं किया गया है, फिर भी कुछ आबादियों में यह बीमारी घनिष्ठ शारीरिक तथा यौन संबंधों के चलते फैली जरूर है।
इस रोग के मुख्य लक्षणों में बुखार, शरीर पर चकत्ते पड़ना और लिम्फ नोड्स का सूजना शामिल है और ये लक्षण दो से चार हफ्ते तक चलते हैं। हालांकि, आम तौर पर यह रोग खुद ही चला जाता है, गंभीर रुग्णता के मामले में इससे सेकेंडरी स्किन संक्रमण, सेप्टिसीमिया, एन्सिफेलाइटिस या कार्निया में फोड़े जैसी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
बीमारी का इन्कूबेशन का दौर 5 से 21 दिन का होता है और मरीज से इस बीमारी की छूत बुखार आने से लेकर, खुरंट बनने तथा गिरने तक लग सकती है। हालांकि, पहले इस बीमारी को मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता था, लेकिन संबंधित वायरस स्वाभाविक अवस्था में बंदरों में नहीं पाया जाता है। इसके बजाय ऐसा समझा जाता है कि अफ्रीकी रोडेंट जैसे गाम्बियन पाउच्ड चूहे, डोरमाइस तथा अफ्रीकी गिलहरी, इस वायरस के भंडार होते हैं, हालांकि वायरस का पहला भंडार कौन सा जानवर था, यह अभी तक पता नहीं चल पाया है।
एमपीएक्सवी (MPXV) एक बड़ा, आवृत, द्विसूत्रीय डीएनए वायरस है, जिसके महामारी का रूप लेने की संभावनाएं कोविड-19 के वायरस जैसे आरएनए वायरसों के मुकाबले कम होती है। ऐसा इस वायरस की म्यूटेशन की दर कम होने की वजह से है।
पहली बार इस संक्रमण की निशानदेही 1958 में हुई थी, जब प्रयोगशाला के बंदरों के बीच यह बीमारी फूट पड़ी थी। इस बीमारी को शुरू में ‘‘मंकीपॉक्स’’ कहा जाता था। बाद में, इससे जुड़ा कलंक कम करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022 के नवंबर में इसकी सिफारिश की थी कि इसके लिए ‘‘एमपॉक्स’’ नाम का उपयोग किया जाए। लेकिन, संबंधित वायरस एमपीएक्सवी के लिए मंकीपॉक्स नाम अब भी बना हुआ है। मनुष्यों में इस वायरस के संक्रमण का पहला मामला 1970 में डीआरसी यानी कांगो में सामने आया था।
एमपीएक्सवी के दो जेनेटिक क्लेड या ऐसे ग्रुपिंग होते हैं, जिनके बीच पूर्वज तथा उत्तराधिकारी समान होते हैं। क्लेड 1 (मध्य अफ्रीकी या कांगो बेसिन) और क्लेड 2 (पश्चिम अफ्रीकी)। क्लेड 1 से ऐतिहासिक रूप से ज्यादा गंभीर रुग्णता पैदा होती है और समझा जाता है कि यह ज्यादा तेजी से फैलता है। कैमरून ऐसा अकेला देश है, जहां दोनों क्लेड साथ-साथ पाए जाते हैं।
जिन ऑर्थोपॉक्स वायरसों ने मनुष्यों को संक्रमित किया है, उनमें वैक्सीनिया, मंकीपॉक्स, काउपॉक्स, बफेलोपॉक्स तथा कैमलपॉक्स शामिल हैं। एमपॉक्स का नाता कहीं घातक स्मॉलपॉक्स वायरस से है, जिसने 20वीं सदी में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों की जानें ली थीं। 1980 में इस वायरस के खात्मे की घोषण की गयी थी।
महामारियां
2022 में क्लेड 2 से जुड़ी एमपॉक्स की महामारी फैली थी। यह इस बीमारी का एक बड़ा वैश्विक विस्फोट था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार उस समय दुनिया के 116 देशों में 99,176 केस सामने आए थे और 208 मौतें हुई थीं। इस बीमारी का फैलाव मुख्यत: पुरुष समलैंगिकों, द्विलैंगिकों तथा पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले अन्य पुरुषों के बीच हुआ था। 2022 के मई के महीने में अनेक ऐसे देशों में इस रोग के केस मिले थे, जहां पहले से यह बीमारी नहीं थी। महामारी 2022 की जुलाई में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची और उसके बाद धीरे-धीरे पीछे हटती गयी।
11 मई 2023 को पीएचईआइसी की घोषणा को वापस ले लिया गया। 2022 में भारत सरकार ने इस बीमारी के संबंध में, स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनलों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे और देश भर में इसके लिए टेस्टिंग केंद्र कायम किए गए थे।
एमपॉक्स के 2022 के वैश्विक विस्फोट में केस फेटलिटी रेट करीब 0.03फीसद थी, जिसमें क्षेत्रवार तथा वायरस के स्ट्रेन के हिसाब से भिन्नताएं थीं। रोग मारकता दरों की तुलना करने में सावधानी की जरूरत होती है क्योंकि इन दरों को अन्य कारक भी प्रभावित कर रहे होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अफ्रीका में 3 से 6 फीसद तक फेटलिटी दर रिपोर्ट की थी। मध्य अमेरिका तथा इस रोग के पुराने क्षेत्रों में यह दर ज्यादा थी। 2022 में जनवरी से मई तक कैमरून, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, डीआरसी तथा नाइजीरिया में 1,405 केस पाए गए थे और 62 मौतें हुई थीं यानी 4.4 फीसद की मारकता दर। क्लेड1, जो मध्य अफ्रीका में स्थानिक हो चुका है, ज्यादा गंभीर रुग्णता पैदा करता है, 1 से 10 फीसद तक मारकता दर के साथ। कांगो प्रांत में यह दर करीब 5.5 फीसद थी।
क्लेड 2, जो 2022 में इस बीमारी के दुनिया भर में फैलने के लिए जिम्मेदार था, पश्चिमी अफ्रीका में स्थानिक हो गया है और कहीं कम तीव्र है, जिसकी मारकता 0.1 से 4 फीसद तक पायी गयी। एमपॉक्स का रिप्रोडक्शन नंबर (आर0 या आर-जीरो) करीबी 2.4 है, जो स्मॉलपॉक्स के 3.5 से 6 तक के मुकाबले तो कम है, फिर भी काफी है।
अफ्रीका में तथा खासतौर पर डीआरसी में एमपॉक्स की वर्तमान वापसी, वायरस के आचरण में एक बदलाव प्रदर्शित करती है। इसमें क्लेड 1बी, पहले हावी रहे क्लेड2 के मुकाबले ज्यादा प्रमुख हो गया है। 2023 के आरंभ से लगाकर, डीआरसी में एमपॉक्स के 22,000 से ज्यादा केस आ चुके हैं और 1,200 मौतें अनुमानित हैं। यह क्लेड 1बी का कारनामा है, जो बुरुंडी, केन्या तथा रवांडा में भी फैल गया है। क्लेड2 का फैलना भी जारी है और 2024 के पूर्वाद्ध में अमेरिका में इसके 1,000 से ज्यादा केस पाए गए हैं। भारत में 2024 के मार्च में क्लेड2 का एक केस बाहर से आ गया था।
टीके
पहली पीढ़ी के वैक्सीनिया वायरस पर आधारित, स्मॉलपॉक्स का टीका, एमपॉक्स से बचाव में 85 फीसद कारगर था। 2022 की जनवरी में यूरोपियन मेडीसिन्स एजेंसी ने एमपॉक्स के उपचार के लिए, स्मालपॉक्स में उपयोगी एंटी-वायरल दवा, टेकोविरिमत का अनुमोदन किया था। बहरहाल, एमपॉक्स के विस्फोट के दौरान इन उपचारों के उपयोग का अनुभव सीमित ही रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन एमपॉक्स के लिए एमवीए-बीएन या एलसी16 टीकों के उपयोग की सिफारिश करता है और इन दोनों टीकों के उपलब्ध न होने की सूरत में विकल्प के तौर पर एसीएएम2000 के उपयोग की। एमवीए-बीएन या मॉडीफाइड वैक्सीनिया अंकारा-बेवेरियन नॉर्डिक, हानिरहित कर दिए गए जिंदा आर्थोपॉक्सवायरस, जिसे मोडीफाइड वैक्सीनिया अंकारा (एमवीए) के नाम से जाना जाता है, पर आधारित तीसरी पीढ़ी का टीका है। यह जिंदा वायरस, मनुष्यों में आसानी से खुद को बहुगुणित नहीं करता है और जेवाइएनएनईओएस टीके में, जो एक खास एमवीए-बीएन फार्मुलेशन है, एक परिवर्तित वायरस होता है, जो मानव शरीर में बहुगुणित नहीं हो सकता है।
यह टीका 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को, दो खुराकों में दिया जाता है, जो कम से कम 28 दिन के अंतर पर दी जाती हैं। जैसा कि 2024 के जून में एक अध्ययन में पता चला, एमवीए-बीएन की एकल खुराक की टीका कारगरता (वैक्सीन इफेक्टिवनेस) 76 फीसद थी, जबकि दो खुराकों की टीका कारगरता 82 फीसद थी। एसीएएम2000, जो जिंदा वैक्सीनिया वायरस पर आधारित, दूसरी पीढ़ी का टीका है, मुख्यत: स्मालपॉक्स की रोकथाम के लिए है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों वायरसों के बीच की समानताओं के चलते, यह टीका एमपॉक्स के लिए रोग प्रतिरोधकता भी पैदा कर सकता है। 2022 में एमपॉक्स के लिए अनुमोदन हासिल करने वाले एलसी16 और रूस के ओर्थोपॉक्सवैक का उत्पादन जापान में केएम बॉयलाजिक्स में होता है और इसे बच्चों को भी दिया जा सकता है, हालांकि यह टीका देना अन्य टीकों के मुकाबले कहीं ज्यादा जटिल है।
टीका असमानताएं
टीकों का वितरण धीमा रहा है और खासतौर पर अफ्रीका में उल्लेखनीय असमानताओं से ग्रसित रहा है। टीके की पहली 10,000 खुराकें जो जल्द ही पहुंचने वाली हैं, राजनीतिक कारणों से कांगो में नहीं पहुंचेंगी, जहां उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है बल्कि नाइजीरिया में पहुंचेंगी। और टीके की ये खुराकें भी अमेरिका से दान के रूप में ही आ रही हैं, न कि संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के जरिए। टीके की उपलब्धता में यह देरी, स्वास्थ्य सेवा की वर्तमान वैश्विक असमानताओं को ही दिखाती है और यह कोविड-19 के दौरान देखने को मिलीं असमानताओं की याद दिला देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी हाल में ही इसके लिए प्रक्रियाएं शुरू की हैं कि अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के जरिए, गरीब देशों को बड़े पैमाने पर टीके तक पहुंच हासिल करायी जाए। इसी देरी ने अलग-अलग अफ्रीकी देशों की सरकारों को और अफ्रीका सीडीसी को इसके लिए मजबूर किया है कि अमीर देशों से दान में टीके देने का अनुरोध करें, हालांकि टीके हासिल करने की यह प्रक्रिया अक्सर भरोसेमंद नहीं होती है।
हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन गरीब देशों तक टीकों के पहुंचने के सिलसिले को तेज करने के लिए काम कर रहा है, सीधे टीके खरीदने की कीमत इतनी ज्यादा है कि बहुत से गरीब देश उन्हें खरीद ही नहीं सकते हैं। मिसाल के तौर पर बावेरियन नोर्डिक टीके की एक खुराक 100 डालर की बैठती है, जबकि केएम बॉयोलोजिक्स के टीके के दाम का तो अभी तक पता ही नहीं है। टीकों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी की धीमी प्रक्रिया, एक और उल्लेखनीय बाधा है। जहां उच्च तथा मध्यम आय देशों में टीके 2022 से ही व्यापक रूप से उपलब्ध रहे हैं, अफ्रीका में चिकित्सकीय ट्रायलों के सिवा इन टीकों की उपलब्धता बहुत ही कम बनी रही है।
अफ्रीका सीडीसी का अनुमान है कि पूरे महाद्वीप में एक करोड़ टीका खुराकों की जरूरत है। लेकिन, इन टीकों के भंडारण तथा रख-रखाव में भी काफी चुनौतियां हैं क्योंकि इन टीकों को शून्य से 20 डिग्री नीचे के तापमान पर रखना पड़ता है। चीजों को इसने और मुश्किल बना दिया है कि बावेरियन नॉर्डिक टीके के मामले में सिर्फ वयस्कों के लिए उपयोग की मंजूरी मिली है, जबकि एलसी16 हालांकि बच्चों द्वारा उपयोग के लिए भी मंजूरी हासिल कर चुका है, पर इस टीके को लगाने की प्रक्रिया और भी जटिल है।
जैसे हालात बन रहे हैं, यह अत्यावश्यक हो गया है कि सिर्फ संपन्नतर देशों में ही नहीं बल्कि खासतौर पर कम आय वाले देशों तक, जहां यह बीमारी दशकों से जमी हुई है, एमपॉक्स टीके, निदान व्यवस्था तथा उपचार की पहुंच में सुधार किया जाए। 2022 की महामारी के दौरान, जिसके लिए पीएचईआइसी घोषणा करनी पड़ी थी, टीकों को अमीर देशों ने ही हथिया लिया था और अफ्रीकी महाद्वीप के लिए, जिसे इस टीके की सबसे ज्यादा जरूरत थी, कुछ बचा ही नहीं था। विकसित दुनिया के लालच के नतीजे, अब दो साल बाद पलटकर चोट कर रहे हैं।
खासतौर पर अफ्रीका में एमपॉक्स की वापसी इसके लिए तत्काल वैश्विक कदम उठाए जाने की जरूरत को रेखांकित करती है कि टीका असमानताओं को दूर किया जाए और इस वायरस से प्रभावित सभी क्षेत्रों में रोकथाम और उपचार की कारगर व्यवस्थाओं का उपलब्ध होना सुनिश्चित किया जाए। टीके के वितरण तथा उस तक पहुंंच में, मुख्यत: पेटेंट अधिकारों, आईपीआर के मुद्दों तथा अमीर देशों की निष्ठुरता के चलते जो चुनौतियां इस समय बनी हुई हैं, वैश्विक स्वास्थ्य असमानताओं के वृहत्तर मुद्दे को ही प्रमुखता से सामने लाती हैं। इन असमानताओं को कोविड-19 की महामारी ने और अब 2022 तथा 2024 में एमपॉक्स के विस्फोट ने और तीव्र बना दिया है।
(लेखक मदुरै कामराज विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं। आप ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क से जुड़े हैं। लेख के विचार निजी हैं।)
मूल अंग्रेज़ी में छपे इस आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें–
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।