मिशन 60: कौन बिहारियों के सपने को तोड़ देना चाहता है?
“जब डॉक्टर 6 साल तक बिना काम किए वेतन उठाते रहे, तब आईएमए या बिहार हेल्थ सर्विस असोसिएशन कहाँ थी? तब क्या उनकी कोई जिम्मेवारी नहीं बनती थी?” यह सवाल है राजद की युवा और तेजा-तर्रार नेता रितु जायसवाल का.
न्यूजक्लिक के इस संवाददाता से बात करते हुए जायसवाल कहती है, “हां, शो कॉज नोटिस जारी कर सस्पेंशन करने की बात सही है लेकिन जब स्थिति बर्दाश्त से बाहर चली जाए तो कड़े कदम उठाने ही पड़ते है. आईएमए को न्यूट्रल संस्था माना जाता है तो यह न्यूट्रालिटी तब भी दिखनी चाहिए थी. जब डॉक्टर काम किए बिना वेतन उठा रहे थे और यह संस्था खामोश थी.” यह अकेला बयान बिहार के हेल्थ सेक्टर की बदहाली और उस बदहाली को सुधारने के संघर्ष में अटकाए जा रहे रोड़े की कहानी को बताने के लिए काफी है.
आखिर ऐसी क्या बात हो गयी कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से तेजस्वी यादव के बयान पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग कर दी. आईएमए को इस बात का भी दुःख है कि तेजस्वी यादव ने एनएमसीएच के सुपरिटेन्डेंट को सस्पेंड करने से पहले कोई कारण बताओ नोटिस नहीं दिया और ना ही स्पष्टीकरण का मौका दिया.
बिहार हेल्थ सर्विस असोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी रंजीत कुमार का मानना है कि सरकार को इस पर गंभीरता से आत्मचिंतन करना चाहिए कि डॉक्टर सरकारी सेवा में रहने के लिए क्यों इच्छुक नहीं हैं? उनका मानना है कि सरकार को डॉक्टरों का वेतन-भत्ता आकर्षक बनाना चाहिए. लेकिन ये लोग भूल जाते है कि एक सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़ कर निकलने वाले डॉक्टर्स को डॉक्टर बनाने पर करोड़ों रूपये खर्च होते है, जिसका बोझ सीधे जनता की जेब पर आता है. यानी आप जनता के टैक्स से पढ़े और जनता की सेवा ही न करना चाहे. औसतन एक लाख रूपये के वेतन के बाद भी और कितना पैसा चाहिए जनता की सेवा करने के लिए, जबकि समाज आपको धरती के भगवान का दर्जा देता है.
मिशन 60
स्वयं तेजस्वी यादव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि 705 सरकारी डॉक्टर बिना ड्यूटी के सरकार से वेतन ले रहे हैं और इनमें कुछ तो 12 साल से अस्पताल नहीं गए हैं. बिहार के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव जब पहली बार अचानक पीएमसीएच पहुंचे थे, तभी लग गया था कि कुछ ऐसा होने वाला है, जिसकी आवाज काफी तेज होगी और दूर तलक जाएगी. मिशन 60 तेजस्वी यादव का ही नहीं, करोड़ों बिहारियों की भी सपना है. उन बिहारियों की भी जो दिल्ली, बनारस जाने वाली ट्रेनों में भर-भर कर जाते है, रोजगार के लिए नहीं, इलाज कराने के लिए. पूरा का पूरा बिहार पटना में दिखेगा या दिल्ली-बनारस में. क्यों? क्योंकि उन्हें अपने जिला अस्पतालों में या यहाँ तक कि निजी अस्पतालों में भी बेहतर इलाज नहीं मिल पाता. इसी को ध्यान में रखते हुए, जिला अस्पतालों को बेहतर बनाने के लिए तेजस्वी यादव ने मिशन 60 की शुरुआत की. अक्टूबर के महीने में शुरू हुआ यह मिशन कितना सफल हो पाएगा, यह तो 60 दिन बाद पता चलेगा लेकिन इसे असफल करने की साजिशें अभी से रची जाने लगी है.
बायोमेट्रिक्स का विरोध क्यों?
पीएमसीएच में जब बायोमेट्रिक्स अटेंडेंस लगाने की बात हुई तब जूनियर डॉक्टर्स हड़ताल पर चले गए. नालंदा मेडिकल कॉलेज, पटना के निदेशक को जब लापरवाही के आरोप में सस्पेंड किया गया तब इंडियन मेडिकल असोसिएशन के साथ साथ बिहार हेल्थ सर्विस असोसिएशन भी तेजस्वी यादव के विरोध में उतर गया. आखिर क्यों? पूर्वी चंपारण जैसे जिले में जब 100 से अधिक अल्ट्रासाउंड सेंटर अनाधिकृत तरीके से चल रहे हो और इसकी खबर जिलाधिकारी से ले कर सिविल सर्जन और जिला स्वास्थ्य समिति तक को हो और कार्रवाई न हो तो इसे क्या कहा जाएगा. जबकि जिलाधिकारी ने महीनों पहले जांच के आदेश दे दिए और जिला स्वास्थ्य समिति का कहना है कि क्या कार्रवाई करनी है, इस पर पटना से मार्गदर्शन माँगा गया है. तो अब तक मार्गदर्शन क्यों नहीं माँगा गया था याकि इसमें मार्गदर्शन माँगने जैसी क्या बात है. जो चीज अवैध तरीके से चलाई जा रही हो, उसे तो तत्काल बंद करना चाहिए था. लेकिन नहीं, यह सब इसलिए चलता रहता है कि इसमें पैसे का भारी खेल घुसा हुआ है. इसके बाद भी बिहारी बिहारी मरीजों का बेहतर इलाज न हो, उन्हें अपनी जमीन बेच कर दिल्ली-बनारस इलाज कराना पड़े तो दोष सरकार का? सरकार का दोष तो है ही, लेकिन जब कोइ स्वास्थ्य मंत्री ईमानदारी से काम करना चाहता हो तब उसके राह में रोड़े अटकाए जाते हो, इसे क्या कहेंगे?
जनता का हित
सवाल है कि आज जो डॉक्टर्स, जो संस्थाएं तेजस्वी यादव का विरोध कर रही है, उनके घर का राशन और, उनके बच्चे की पढाई का खर्च कौन उठाता है? जो डॉक्टर बिना काम किए 6 साल तक वेतन उठाते रहे, उनके वेतन का पैसा कहाँ से आता है? जाहिर है, यह सब जनता के टैक्स के पैसे से आता है? तो क्या इसी आईएमए ने कभी जनता के इस पैसे के दुरुपयोग को ले कर सवाल उठाया, चिंता जाहिर की? जब डॉक्टर्स का वेतन, सारी सुविधाएं जनता के पैसे मिलती है, तो जनता की सेवा सुनिश्चित करने के लिए काम करने वाले स्वास्थ्य मंत्री का विरोध क्या किसी साजिश का हिस्सा नहीं लगती? यह बात किसी से भी छुपी नहीं है कि आज बिहार में निजी अस्पतालों का एक बड़ा नेटवर्क है. यह इतना ताकतवर है जिसके एजेंट गाँव-गाँव तक फैले है, जो मरीजो को एक कमोडिटी की तरह देखते है और उन्हें पटना रेफर करवा कर लाते है और बदले में मोटी रकम कमाते हैं. जाहिर है, जब सरकारी व्यवस्था सुधारी जाएगी तो इसका पहला नुकसान इन्हीं निजी अस्पतालों को पडेगा. शायद, इसलिए भी तेजस्वी यादव के इस कदम का विरोध किया जा रहा है. बिहार में निजी बनाम सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को समझना हो तो यह रिपोर्ट (https://openknowledge.worldbank.org/handle/10986/37126) देखनी चाहिए. वर्ल्ड बैंक की यह रिपोर्ट बताती है कि इन दोनों क्षेत्रों के बीच कितना बड़ा अंतर है? जाहिर हैं, जब सरकारी डॉक्टर्स जनता का पैसा ले कर खुद की प्रैक्टिस करेंगे या ईमानदारी से काम नहीं करेंगे तो यह गहरी खाई और गहरी होती चली जाएगी.
समाधान क्या है?
इन सारी समस्याओं का एकमात्र समाधान है, सुधरो या जगह खाली करो. यानी, स्ट्रिक्ट एक्शन. बिहार के बदहाल सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. बिहार के सरकारी मेडिकल कालेजों से जो पढ़ते है, उन्हें अनिवार्यत: 10 से 15 साल तक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देनी हो. जो इस शर्त को न माने उसे एडमिशन ही न मिले. उनकी जगह वैसे लोग ही मेडिकल की पढाई करने आई जो इन शर्तों को माने. क्योंकि जब आप धरती के भगवान है तो याद रखिये, भगवान कभी व्यापार नहीं करते.
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