असमानता और उदारवादी जनतंत्र : एक अशांत गठजोड़
हम उस वक़्त बुनियादी बदलाव कैसे ला सकते हैं जब उत्तर और दक्षिण दोनों में ही संगठित अल्प्संखयक और असंगठित,मौन बहुमत एक कायदा बन चुका है।
थॉमस पिकेटी, संयुक्त राष्ट्र और अन्य स्रोतों से उभरे सबूतों से निर्णायक तौर पर पता चलता है कि उत्तर में और वैश्विक स्तर पर असमानता अभूतपूर्व रूप में मौजूद है। उत्तर में 1980 के दशक से रिगनिज्म के नाम पर जिन नव-उदारवादी नीतियों को लागू किया गया था और दक्षिण में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा थोपे गए ढांचागत समायोजन एवं विश्व व्यापार संगठन के तहत व्यापार के उदारीकरण करने के नाम पर आज यह स्थिति उत्पन्न हुयी है। अपनी चर्चित किताब 21वीं सदी में पूँजी में पिकेटी कहते हैं कि हालात और ज्यादा खराब होंगें:
अगर उपर बैठे हज़ार लोगों को अपनी दौलत पर 6 प्रतिशत की दर से लाभ मिलता है, जबकि उसके मुकाबले वैश्विक दौलत वर्ष में 2 प्रतिशत की दर से बढ़ती है, तो 30 वर्ष के बाद उपर के हज़ार लोगों की संपत्ति में तीन गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हो जायेगी।
वे समकालीन पूंजी संचय की गतिशीलता पर चेतावनी देते हैं कि, ” पूँजी अत्यधिक और स्थायी एकाग्रता की और बढ़ जायेगी: इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि शुरुवात में धन की असमानता न्यायोचित है या नहीं, संपत्ति बढ़ सकती है और सभी उचित सीमा से परे और सामाजिक उपयोगिता के संदर्भ में किसी भी संभावित तर्कसंगत औचित्य से परे खुद को स्थिर कर सकती हैं।"
पिकेटी के आंकड़े दर्शाते है कि अट्ठारवीं सदी से ही, जब पूँजीवाद का विकास शुरू हुआ, बढ़ती असमानता एक कायदा बन गयी। इसमें 20वीं सदी के पहले सात दशकों में रुकावट आई। 20वीं सदी के मध्य में जो सबूत उभर कर आते हैं उसके तहत साइमन कुजनेत्स अपने एक सिद्धांत के तहत बताते हैं कि पूंजीवाद परिपक्कव हो रहा है, और इसलिए असमानता में कमी आएगी, जिसकी व्याख्या उसने ‘कुजनेत्स कर्व’ के जरिए की।” पिकेटी कहते हैं, हालांकि एक खास समय के बाद कुजनेत्स कर्व एक सिद्धांत की अवैध वाग्विस्तार है: वह उसे "बहिर्जात घटनाओं" का दर्ज़ा देते हैं जिसने दो वैश्विक युद्ध और घरेलू उथल-पुथल को पैदा किया और जिसकी वजह से राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्थाएं बनी और उन्होंने पूंजीवाद के कुदरती गतिशीलता को असमानता में तब्दील कर दिया। जैसा कि वे लिखते हैं, “दुनिया में आमदनी में तेजी से कमी की वजह से आई असमानता मुख्यत: सभी अमीर देशों में 1914 और 1945 के बीच बढ़ी क्योंकि इस दौर में दो विश्व युद्ध और हिंसक आर्थिक व राजनैतिक झटकों को झेलना पड़ा। इसका इंटर सेक्टोरल गतिशीलता की शांत प्रक्रिया के साथ कुछ लेना देना नहीं है।
उदार लोकतंत्र का इम्तिहान
सांसद होने के नाते और लम्बे समय तक जनतंत्र के पक्ष में कार्यकर्ता होने के नाते मुझे पिकेटी की टिप्पणी परेशान करने वाली लगती है। यह इसलिए लगता है क्योंकि वह कहते हैं कि नि:संदेह, लोकतांत्रिक व्यवस्थायें, जिन्हें नागरिकों के बीच समानता को बढ़ावा देना चाहिए, वे यथार्थ रूप से इस तरफ काम नहीं करती हैं जब आर्थिक असमानता को घटाने का सवाल आता है। वे जाहिर है, औपचारिक समानता प्रतिष्ठापित करती हैं, जोकि एक व्यक्ति के सिद्धांत पर चलती है, एक मत, और संस्थागत बहुमत का शासन, लेकिन ये व्यवस्था तब अप्रभावी हो जाती है जब वृहत्तर आर्थिक समानता की बात आती है।
अब मेरी पीढ़ी तीसरी दुनिया में तानाशाही को बेदखल करने के लिए और लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए 1970 से 1990 के दशक में लड़ते हुए उब चुकी है। हम लोग जो तानाशाही के विरुद्ध इन संघर्षों में लडे, हमारा एकाधिकारवाद के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क ये था कि वे तानाशाही गिरोहबंदी और अंतरराष्ट्रीय पूंजी के साथ मिलकर पूँजी का संचयन करवा रहे थे। हमने कहा कि लोकतंत्र दरिद्रता और असमानता की इस प्रक्रिया को पलटेगा। चिली से ब्राज़ील और दक्षिण कोरिया से फिलीपींस तक तानाशाही के विरुद्ध लड़ाई जनतंत्र के लिए इच्छा और वृहत्तर समानता की लड़ाई थी। हालांकि अब सबूतों के आधार पर स्पष्ट लगता है और जैसा कि समुएल हंटिंगटन कहते हैं "तीसरी लहर" जोकि दक्षिण में 1980 और 1990 के दशक में लोकतंत्र के विस्तार के लिए उठी थी उसने बड़ी आसानी से असमानता के संचय की बड़ी और ढांचागत समायोजन की नीति को पैदा किया।
उदार लोकतंत्र असमानता को कैसे बढ़ावा देता है: फिलीपीन का केस
नकारात्मक सामाजिक परिणामों उदार लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा कैसे उत्पन्न किये जाते हैं, यह फिलीपींस में भूमि सुधार संघर्ष से यह साफ होता है, जिसमें मैं एक कार्यकर्ता और एक विधायक दोनों के रूप में एक सक्रिय भागीदार रहा था और हमने फर्डिनेंड मार्कोस की तानाशाही 28 वर्षों में उखाड़ फेंका।
भूमि सुधार, तेजी से विकास की प्रक्रिया के दौरान असमानता को कम करने में शायद सबसे महत्वपूर्ण कारक है, जैसा कि ताइवान, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान और क्यूबा के मामले में देखा गया है। फिलीपींस में, पहली बार, चीजें सही दिशा में आगे बढ़ती दिखाई दी। 1986 में मार्कोस के निष्कासन के साथ, एक संवैधानिक लोकतंत्र स्थापित हुआ, बल्कि लाखों लोगों को ज़मीन देने के लिए व्यापक भूमि सुधार कानून, व्यापक कृषि सुधार कार्यक्रम (कार्प) पारित किया गया और कानून को डिजाइन किया गया ताकि किसानों को उनकी ज़मीन का हक दिया जा सके। यहाँ भूमि का पुनर्वितरण चीन, वियतनाम और क्यूबा में आक्रामक कार्यक्रमों के विपरीत, लोकतांत्रिक शासन के तहत शांतिपूर्ण ढंग से पूरा किया गया।
अगले कुछ वर्षों में, हालांकि, देश, एक ख़ास पश्चिमी शैली के उदार लोकतंत्र के रूप में विकसित होने लगा, जहां प्रतियोगी चुनावों में अभिजात वर्ग के सदस्यों ने एक वर्ग के रूप में राजनीतिक प्रणाली में अपने नियंत्रण को मजबूत बनाने के लिए, सत्तारूढ़ के विशेषाधिकार के लिए एक दूसरे के साथ चुनाव लड़ने का तंत्र बनाया। इस वर्ग के सत्ता में जमने का सबसे पहला शिकार व्यापक कृषि सुधार कार्यक्रम (कार्प) हुआ। दबाव के संयोजन के साथ, कानूनी अवरोधों, वाणिज्यिक और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कृषि भूमि के अनुमेय रूपांतरण से, कृषि सुधार प्रक्रिया ठप्प हो गयी, 20 वर्ष से इस कार्यक्रम के शुर होने के बाद वास्तव में 2008 तक किसानों को वितरित करने के लिए जो भूमि नामित की गयी वह मूलरूप से 10 लाख हेक्टेयर थी और उसका आधा ही वितरण किया गया, वास्तव में, सामाजिक सेवाओं के मामले में से थोड़ा समर्थन के चलते, कई किसानों ने जमींदारों को अनौपचारिक रूप से उनकी भूमि को बेचना बंद कर दिया, जबकि अन्य लाभार्थियों को जमींदारों द्वारा आक्रामक कानूनी कार्रवाई के करने से, अधिग्रहीत भूमि से हाँथ धोना पड़ा। इसलिए मैंने और कई अन्य सांसदों व्यापक कृषि सुधार कार्यक्रम सुधार कानून, को प्रायोजित करने के लिए एक साथ आये। इसे पारित कराने के लिए जैसे हम नरक का सामना कर रहे थे, लेकिन हमने यह अगस्त 2009 में किया। फर्क यह था कि इस बार किसानों ने संघर्ष में साथ दिया, और मनीला में दक्षिण द्वीप के मिंदानाओ से राष्ट्रपति के महल तक 1700 कि.मी. का मार्च निकाला और यहाँ तक की वहां की संसद में भी विघ्न डालने की कोशिश की।
कारपर ने कार्प के मूल में व्याप्त कई खामियों को दूर किया, और, भूमि पुनर्वितरण को अच्छी तरह से लागू करने के लिए समर्थन सेवाओं का समर्थन करने के लिए P150 अरब डॉलर (कुछ $ 3300000000) आवंटित किये। कृषि विस्तार सेवाओं के लिए जैसे की बीजों और खाद के लिए सब्सिडी दी गयी। कार्प के तहत समर्थन सेवाओं के मूल में कमी की गई थी। सबसे महत्वपूर्ण है कि कारपर के तहत बाकी की ज़मीन को 30 जून 2014 तक वितरण कर दिया जाएगा।
मेरी पार्टी अक्बायन (सिटिजन एक्शन पार्टी) ने मई 2010 के चुनावों के बाद अकुइनो प्रशासन के सत्ता में सहयोगी पार्टी की तरह आये, क्योंकि हमने सोचा था कि यह प्रशासन कारपर के तहत भूमि सुधार करेगा। हमारी देख-रेख के बावजूद और लगातार दबाव बनाने के बावजूद भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया काफी सुस्त तरीके से चल रही थी। कृषि सुधार कानून और अन्य कानूनी तंत्र में खामियों का उपयोग कर मकान मालिक के प्रतिरोध, कृषि सुधार विभाग की ओर से नौकरशाही में व्याप्त जड़ता, और राष्ट्रपति की ओर से लापरवाही जिससे कि संयुक्त रूप से ऐसी स्थिति पैदा गयी, कि समय से भूमि अधिग्रहण और वितरण के लिए अनिवार्य अवधि, इस वर्ष 30 जून को समाप्त हो गयी। जिसकी वजह से देश की 550,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि अवितरित रह गयी। इसमें 450000 हेक्टेयर निजी भूमि है जी निश्चित तौर पर देश प्राइम भूमि है। अभिजात वर्ग के इस हिस्से को सरकार ने नहीं छुआ और न ही भूमि को वितरित किया गया क्योंकि निजी भूमि के अधिकांश हिस्से को अनिवार्य अधिग्रहण के अधीन नहीं लाया गया था। कृषि सुधार सचिव ने पिछले साल की सुनवाई में यह तथ्य स्वीकार किया कि पिछले 25 वर्षों में कृषि सुधार में वे इससे कड़ी परीक्षा से नहीं गुज़रे।
कानून के भयंकर कार्यान्वयन के साथ जिसमें मैं एक प्रायोजकों में से एक था, मैंने राष्ट्रपति से मिलकर लोगों की तकलीफ को कम करने के लिए कृषि सुधार के बारे में उनके डरपोक सचिव को खारिज करने की कुछ हफ्ते पहले एक आखिरी बार कोशिश की। पर उसने मना कर दिया। राष्ट्रपति, बेनिग्नो एक्विनो तृतीय, देश के सबसे अमीर कुलों के एक वंशज है और विशाल भूमि के मालिक हैं।
अब, यहाँ तक कि भूमि से जुड़ा कुलीन तबका उदारवादी लोकतंत्र की खामियों पर विश्वास कर रहा था ताकि वह उसे कैसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करे। यह भी केवल उदार लोकतंत्र के जरिए ही संभव था कि अमरिका, आई.एम्.ऍफ़. और विश्व बैंक जैसी विदेशी ताक़तें, नव-उदारवाद के जरिए हमारी अर्थव्यवस्था को उभारना चाहती थी। यह कोई तानाशाह तंत्र नहीं था बल्कि जनवादी तरीके से एक चुनी हुयी सरकार थी जिसने विदेशी लेनदारों के लिए स्वत: विनियोग कानून के तहत सरकार के बजट की पहली कट करने की अनुमति दी है। यह कोई तानाशाह तंत्र नहीं था बल्कि जनवादी तरीके से एक चुनी हुयी सरकार ही थी जिसने इस प्रकार हमारे विनिर्माण क्षमता को तबाह किया और कम से कम पांच प्रतिशत करने के लिए हमारे टैरिफ नीचे लाया गया। यह कोई तानाशाह तंत्र नहीं था बल्कि जनवादी तरीके से एक चुनी हुयी सरकार थी जिसने हमें विश्व व्यापार संगठन का हिस्सा बनाया और हमारी खाद्य सुरक्षा का क्षरण करने के लिए प्रेरित किया ताकि विदेशी वस्तुओं की अनर्गल प्रविष्टि के लिए हमारे कृषि बाजार को खोला जा सके। आज, एक संपन्न चुनावी राजनीति जिसे कि कुलीन वर्ग पैसे और अन्य संसाधनों के बल पर लड़ता है, यहाँ आज भी सन् 1990 के शुरुवात से गरीबी की दर 27.9 फीसदी बनी हुई है और इसमें कोई सुधार नहीं है। यह सच है कि सकल घरेलू उत्पाद के विकास दर 5-7.5 फीसदी है, पिछले तीन वर्षों से जो अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर है, लेकिन सभी अध्ययनों से पता चलता है कि, फिलीपींस में असमानता की दर एशिया में सबसे ऊंची बनी हुई है, तथ्य यह रेखांकित करता है कि विकास का फल आबादी की ऊपरी सतह के लोगों को मिल रहा है।
उदार लोकतंत्र: नव-उदारवाद पूंजीवाद की प्राकृतिक राजनीतिक व्यवस्था?
फिलीपींस का अनुभव भी वैसा ही है जैसा कि पिछले 30 वर्षों में अन्य विकासशील देशों का रहा है, इसलिए विडंबना यह है की कुल मिलाकर उदार लोकतंत्र के लिए लड़ी गई लड़ाई आज स्थानीय कुलीन वर्ग और विदेशी शक्तियों के लिए हमारी अधीनता का एक सिस्टम बन गई है। अर्जेंटीना, पेरू, जमैका, मेक्सिको, घाना, ब्राजील में लोकतांत्रिक राजनिति के तहत इन असमानताओं को पैदा करने के लिए संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों को लागू किया गया। तानाशाही से भी अधिक, वाशिंगटन- या वेस्टमिंस्टर जैसे लोकतंत्र में हमें मानने पर मजबूर किया गया कि, नव-उदारवाद पूंजीवादपरस्त सह जमींदारी के शासन की प्राकृतिक प्रणाली है, जो असमानता और गरीबी को अधिक से अधिक बढाने और पूंजी संचय की बर्बर ताकतों को नियंत्रित करने के बजाय बढ़ावा देने के काम करती है। वास्तव में, लिबरल डेमोक्रेटिक सिस्टम आर्थिक कुलीन तबके के लिए आदर्श व्यवस्था हैं, समानता के भ्रम को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर वे चुनावी समर में कूदते हें, इस प्रकार वे इस शोषणकारी व्यवस्था को वैधता की एक चमक देते हैं, जबकि व्यवहार में वे समानता का दोहन करते हैं, पैसे और राजनीति के माध्यम से, कानून और बाजार के कामकाज के जरिए। पुराना मार्क्सवादी टर्म "बुर्जुआ लोकतंत्र" अभी भी इस लोकतांत्रिक शासन के लिए सबसे अच्छा वर्णन है।
इस प्रक्रिया को उल्टा करने के लिए न्याय, समानता, और पारिस्थितिक स्थिरता के आधार पर सिर्फ एक वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम की आवश्यकता नहीं है बल्कि एक नए लोकतांत्रिक शासन की जरुरत है जो अभिजात वर्ग और विदेशी कब्जा हटाकर लिबरल डेमोक्रेटिक शासन को बदलकर एक नयी व्यवस्था ला सके। जहाँ तक लोकतंत्र की सोशल डेमोक्रेटिक या कल्याणकारी राज्य संस्करण की बात है, एक मॉडल के रूप में यह कैसे उपयोगी है जब यह विशाल असमानता को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अधिकांश देशों में नव उदारवादी प्रति क्रांति के साथ लाया है।
एक नये लोकतंत्र की ओर
इस नए लोकतंत्र की क्या मुख्य बातें हो सकती है?
सबसे पहली, प्रतिनिधि संस्थाओं को प्रत्यक्ष लोकतंत्र की संस्थाओं के गठन से संतुलित किया जाना चाहिए।
दूसरा, नागरिक समाज अपने आपको प्रमुख राज्य संस्थाओं के काउंटर के रूप में कार्य को जांच करने के लिए राजनीतिक रूप से खुद को व्यवस्थित करना होगा।
तीसरा, नागरिकों को तत्परता से सड़कों की एक संसद को जारी रखना चाहिए या, महत्वपूर्ण बिंदुओं पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में "लोगों की ताक़त" को लाना होगा: एक प्रणाली, जिसमें आप समानांतर सत्ता का हिस्सा होंगें। समय-समय पर हस्तक्षेप के लिए लोगों की सत्ता संस्थागत किया जाना चाहिए जब विद्रोह के द्वारा पुराने शासन को बेदखल कर दिया जाता है।
चौथा, नागरिक समाजीकरण, लिबरल डेमोक्रेटिक रूपों के आदर्शीकरण के लिए और नयी व्यवस्था के निर्माण में भाग लेने के लिए लोगों को लाने की ओर कदम बढ़ाना होगा, अधिक भागीदारी वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ। इसी तरह, समानता को फ्रांसीसी क्रांति के कट्टरपंथी अर्थ में लाना होगा, न कि अवसर की समानता की पूंजीपति धारणा के संदर्भ में, सही धारणा को वापस केंद्र स्तर के लिए लाया जाना चाहिए।
पांचवां, उदार लोकतंत्र के विपरीत, जहाँ ज्यादातर लोग, केवल चुनाव के दौरान निर्णय लेने की प्रणाली में भाग लेते हैं, राजनीतिक भागीदारी, एक निरंतर गतिविधि बननी चाहिए, इसके साथ ही जहाँ लोगों को प्रक्रिया में निष्क्रिय राजनीतिक अभिनेताओं के रूप में शामिल करने के बजाय नागरिकों को संगठित किया जाये।
“बहिर्जात” घटनाक्रम जो बदलाव लायेगा
सवाल यह है कि हम उस वक़्त बुनियादी बदलाव कैसे ला सकते हैं जब उत्तर और दक्षिण दोनों में ही संगठित अल्प्संखयक और असंगठित व मौन बहुमत एक कायदा बन चुका है। मेरे द्वारा गिनाये गए लोकतांत्रिक सुधारों को पिकेटी के आह्वाहन पर "बहिर्जात घटनाओं" के आधार पर "ट्रिगर" होंगें? यह देखते हुए कि धन वितरण की दीर्घकालिक गतिशीलता संभावित तौर पर भयानक हैं", वह पूछता है कि क्या इसका एकमात्र समाधान हिंसक प्रतिक्रिया या कट्टरपंथी झटके है, जैसा कि 20 वीं सदी की पहली छमाही के दौरान युद्धों और सामाजिक क्रांतियों में शुरू हो हुआ था।
शायद हम उन कट्टरपंथी झटके के बींच में हैं। शायद इराक और सीरिया में मौजूदा घटनाक्रम कोई सामान्य घटनाएं नहीं हैं बल्कि यह अन्य क्षेत्रों में घटित होगा, शायद उत्तर में भी। असमानता की वजह से जब राजनीतिक विस्फोट होता है और पहचान की खोज, जलवायु सर्वनाश के अशांत सामाजिक परिणाम के रूप में संयुक्त रूप से आती है, तो शायद हम 1914-45 के उस समय से दूर नहीं हैं। २०वीं सदी का सबसे प्रसिद्द कथन है कि बदलाव कोई कोकटेल पार्टी नहीं है। यह एक चीन की दुकान में एक उग्र बैल है।
टेलीसुर स्तंभकार वाल्डेन बेल्लो फ़िलीपीन्स केव गणराज्य में हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव में प्रतिनिधि हैं।
(अनुवाद:महेश कुमार)
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