तिरछी नज़र: रिश्वतखोरी भी अब देशभक्ति है!
देश में देशभक्ति काल चल रहा है। हर एक व्यक्ति देशभक्त बना घूम रहा है। सरकार जी ने देशभक्ति को सर्वसुलभ बना दिया है। देशभक्ति इतनी आसान पहले कभी नहीं थी जितनी अब सरकार जी के काल में बन गई है।
देशभक्ति ही नहीं देशद्रोही होना भी अब आसान हो गया है। देशद्रोह तो इतना आसान हो गया है कि आप देश का कानून तोड़ने वाले किसी भी व्यक्ति की आलोचना कर दें तो देशद्रोही बन जाते हैं। किसी रिश्वत देने वाले पर ऊँगली उठा दें तो आप देशद्रोही करार दिए जाते हैं।
रिश्वत से याद आया कि अभी कुछ साल पहले तक रिश्वत लेना देना बुरा माना जाता था। हालांकि रिश्वत ली तब भी जाती थी, दी तब भी जाती थी। पर चोरी छुपे ली दी जाती थी। रिश्वत की कमाई को टेबल के नीचे से ली गई कमाई माना जाता था। किसी ने रिश्वत लेने के लिए पार्किंग वाले को फिक्स किया होता था तो किसी ने पान वाले को। जो लोग खुद रिश्वत लेते थे वे भी चोरी छुपे लेते थे। कैंटीन में जा कर ले लेते थे। और वह जमाना तब का था जब जगह जगह कैमरे भी नहीं लगे थे।
जब कैमरे नहीं लगे थे तो रिश्वत चोरी छुपे ली जाती थी और अब जब कैमरे लगे हैं तो खुले आम ली जाती है। यही विकास है। आदमी तो वही है। मतलब रिश्वत लेने वाला और देने वाला तो वही है। आदमी का विकास (evolution) होने में तो हज़ारों लाखों साल लगते हैं पर लगता है रिश्वत का विकास हो गया है। पहले की सम्मान हीन रिश्वत अब सम्मानित होने लगी है।
हाँ, सच में रिश्वत का विकास हुआ है। पहले रिश्वत गुप चुप ली दी जाती थी। कोई लिखित हिसाब नहीं। पर अब रिश्वत पढ़ लिख कर दी और ली जाती है। कोई नौ दस साल पहले एक लाल डायरी का जिक्र आया था। बताते हैं उसमें रिश्वत के लेन देन का हिसाब लिखा हुआ था। पर हमारा देश और उसके सरकार जी इतने न्याय प्रिय हैं कि उसकी कोई जाँच ही नहीं हुई।
अब भी एक रिश्वत कांड हुआ है। पूरे लेखे जोखे के साथ हुआ है। नया जमाना है तो रिश्वत की पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी बनी। व्हाट्सऐप ग्रुप भी बना होगा। मैं तो बस कल्पना ही कर सकता हूँ कि पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में क्या क्या दर्शया गया होगा। बताया होगा कि किस आदमी को कितना पैसा देने से कितना लाभ होगा और हमें उस आदमी से कितना लाभ लेना चाहिए। बताया जाता है कि पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में फोटो के साथ पैसा भी लिखा है।
आज के जमाने में रिश्वत देने वाला देशभक्त होता है। रिश्वत देने वाला देशभक्त है तो रिश्वत लेने वाला उससे भी अधिक देशभक्त हुआ। उसने रिश्वत देने वाले को देशभक्त होने का मौका जो प्रदान किया। सोचो अगर रिश्वत लेने वाला रिश्वत लेने से ही मना कर देता तो! तो रिश्वत देने वाले को देशभक्त बनने का मौका ही कहाँ मिलता। रिश्वत का लेन देन एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे दोनों लोग देशभक्त बनते हैं। रिश्वत देने वाला भी और रिश्वत लेने वाला भी।
मैं देशद्रोही, इतना देशद्रोही बन गया हूँ कि इन देशभक्तों की प्रशंसा करने की बजाय इनकी देशभक्ति पर प्रश्न उठाने लगा हूँ। सरकार जी ने जब इनकी देशभक्ति को मौन स्वीकृति दे ही दी है तो मुझे क्या अधिकार है कि मैं इनकी देशभक्ति पर प्रश्न उठाऊं। पर न जाने क्यों मुझे लगा कि रिश्वत लेना देना देशद्रोह है। मुझे लगा, मैं पुराने जमाने का व्यक्ति जो हूँ, जो रिश्वत लेना देना अपराध मानता हूं। पर देशवासियों, चिंता मत करो, रिश्वतखोरी अब देशभक्ति है।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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