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कटाक्ष: हिंदू ख़तरे में पड़ता गया, ज्यों-ज्यों रक्षा की उन्होंने!

मोदी जी के देखते-देखते, हिंदू के लिए ख़तरा बहुत बढ़ गया। और यह बात कोई और नहीं ख़ुद मोदी जी कह रहे हैं और छाती ठोक-ठोक कर कह रहे हैं।
Communalism
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार : गूगल

बाकी तो सब ठीक है, पर एक बात समझ में नहीं आयी। मोदी जी खुद ही अपनी सरकार को इतनी निर्दयता से ट्रोल करने में क्यों लगे हुए हैं। बताइए, झारखंड में चुुनाव प्रचार के लिए उतरे तो लगे खतरे  की घंटी बजाने। बोले—ये आपकी रोटी भी छीन रहे हैं। ये आपकी बेटी भी छीन रहे हैं। ये आपकी माटी को भी हड़प रहे हैं। अब ऐसी तमाम छीना-झपटी करने वाले ये लोग कौन हैं, सो तो प्रधानमंत्री जी को अपने मुंंह से बोलने की जरूरत ही क्या थी? कपड़ों से पहचानने वाले, इशारों ही इशारों में सब पहचनवा देते हैं। अलबत्ता ये आप कौन हैं, जिनकी रोटी, बेटी, जमीन, सब कुछ छिनता जा रहा है, इसमें जरूर कुछ दुविधा है। 

छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री ने खतरे की घंटी बजायी थी और वहां आदिवासियों के वोट बहुत हैं, इसलिए हो न हो इसमें आप का कुछ न कुछ कनेक्शन आदिवासियों से निकलेगा। बाकी आप माने हिंदू तो हैं ही क्योंकि खतरे में तो सिर्फ हिंदू ही हो सकता है। हिंदू भारत में खतरे में नहीं होगा तो क्या पाकिस्तान में होगा? 

वैसे सुनते हैं कि हिंदू पिछले कुछ समय में बांग्लादेश में भी खतरे में आ गया है। शेख हसीना के बार्डर टाप कर हिंदुस्तान आ जाने के बाद से। वैसे क्या आपको नहीं लगता कि ये मामला कुछ उलटबांसीनुमा हो गया है। यानी हसीना बार्डर टाप कर पहुंची हिंदुस्तान में और हिंदू खतरे में पड़ गया बांग्लादेश में। पर, अब वहां मुसलमान भी तो खतरे में आ गया है। सच पूछिए तो वहां असली खतरे में तो मुसलमान ही हो सकता है। मुसलमान बांग्लादेश में खतरे में नहीं आएगा, तो क्या हिंदुस्तान में खतरे में आएगा। आखिर, अपना देश तो अपना ही होता है। अपने देश में, अपने ही धर्मवाले खतरे में भी नहीं पड़ सकें, यह तो खतरे का शिखर पर पहुंचना हो जाएगा।

बहरहाल, नुक्ते की बात यह है कि भारत में हिंदू न सिर्फ खतरे में है बल्कि खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। हमारी नहीं मानो तो प्रधानमंत्री जी से ही पूछ लो। मुश्किल से छह-सात महीने पहले क्या सिचुएशन थी। लोकसभा चुनाव के टैम पर खुद प्रधानमंत्री जी खतरा दिखा रहे थे। बता रहे थे कि मंगलसूत्र खतरे में है, दो घर हुए तो एक घर, दो कमरे हुए तो एक कमरा और यहां तक कि दो भैंस हुईं तो एक भैंस तक, खतरे में थे। यानी तब भी खतरा बाकायदा मौजूद था और गंभीर खतरा मौजूद था। फिर भी एक बात तो थी, तब खतरा तो था, मगर एक आशंका के रूप में। सच पूछिए तो तब तक तो छीने जाने का खतरा भी डाइरेक्ट नहीं था। छीनने और पाने वाले के बीच में भी तीसरा कोई और था, जो छीनकर बांट देने वाला था। और यह भी नोट कीजिए--बांट देने वाला था यानी उसने भी तब तक बांटा नहीं था। बल्कि उसके बांटने की गारंटी भी नहीं थी, क्योंकि गारंटी की गारंटी तो सिर्फ मोदी जी के पास थी।

यानी मुश्किल से छह-सात महीने पहले जिस खतरे की महज आशंका थी--वे मंगलसूत्र छीन लेंगे, अपने वोट बैंक में बांट देंगे आदि-- वह खतरा अब बाकायदा एक सचाई में बदल चुका है; वे आपकी रोटी भी छीन रहे हैं, वे आपकी बेटी भी छीन रहे हैं, वगैरह। यानी छह-सात महीने में ही खतरा बहुत बढ़ गया है और पानी सिर से ऊपर निकल गया है। जो तब आशंका थी, वह अब एक सचाई है, वर्तमान यथार्थ। और इसका शोर मचाने में मोदी जी के खुद अपनी सरकार को ही ट्रोल करने की बात यूं हुई कि छह-सात महीने पहले भी देश में मोदी जी की सरकार थी और आज भी मोदी जी की ही सरकार है। यानी मोदी जी की सरकार के रहते-रहते हिंदू न सिर्फ खतरे में पड़ गया बल्कि मोदी जी के देखते-देखते, हिंदू के लिए खतरा बहुत बढ़ गया। और यह बात कोई और नहीं खुद मोदी जी कह रहे हैं और छाती ठोक-ठोक कर कह रहे हैं। यानी मोदी जी के राज में हिंदू वाकई खतरे में हैं। और सिर्फ खतरे में नहीं हैं, बढ़ते हुए खतरे में हैं। बल्कि खुद मोदी ने ही पानी सिर से ऊपर निकल गया बताया है। 

याद रहे कि ईसाई, बुद्ध, जैन, सिख, पारसी, और कोई भी नहीं, और मुसलमानों का तो खैर खतरे में होने का सवाल ही नहीं उठता है, सिर्फ हिंदू खतरे में हैं। मोदी जी, योगी जी आदि, आदि सबसे बड़े धर्मरक्षकों के राज के होते हुए भी हिंदू खतरे में हैं। हिंदू खतरे में पड़ता गया, ज्यों-ज्यों रक्षा की उन्होंने!

हैरानी की बात नहीं है कि लोग अब इसके भी ताने मार रहे हैं कि मुगलों ने पांच सौ साल राज किया, हिंदू खतरे में नहीं पड़े। अंगरेजों ने दो सौ साल राज किया, हिंदू खतरे में नहीं पड़े। आजादी के बाद, दूसरों-दूसरों ने साठ साल से ज्यादा राज किया, हिंदू खतरे में नहीं पड़े। तब भगवा पार्टी के करीब सत्रह बरस के राज में और उसमें भी खासतौर पर मोदी जी के करीब ग्यारह साल के राज में ही हिंदू खतरे में कैसे पड़ गए। और वह भी ऐसे खतरे में जो उनके राज की उम्र के साथ बढ़ता ही जा रहा है। आशंका से सचाई में तब्दील होता जा रहा है। यानी न होता भगवा राज और न होता हिंदू खतरे में।

और सच पूछिए तो अब बात सिर्फ खतरे की भी नहीं रही। राजगद्दी पर मोदी जी की इस तीसरी पारी में तो बात कटने-कटाने तक पहुंच गयी है। योगी जी तो एलानिया धमका रहे हैं--बंटोगे तो कटोगे! और अकेले योगी जी ही नहीं धमका रहे हैं। खुद मोदी जी भी धमका रहे हैं, मगर जरा सा नरमाई से--एक रहोगे, तो सेफ रहोगे! यानी हिंदू, सिर्फ मोदी जी-योगी जी आदि के भरोसे नहीं रहे। हिंदू का बचना आसान नहीं है। वह बचेगा भी तो अपने पुरुषार्थ से बचेगा। बेशक, चुनाव में भगवा राज लाने का पुरुषार्थ भी जरूरी है। लेकिन, सबने देखा ही कि भगवा राज तीसरी बार लाने के बाद खतरा कितना बढ़ गया है। यानी हिंदू सिर्फ मोदी जी-योगी जी आदि के राज से भी नहीं बचेगा। कबीलाई जमाने की तरह उसे खुद हथियार उठाना होगा। यह दूसरी बात है कि कबीलों के जमाने में हिंदू-मुसलमान नहीं होते थे। पर उससे फर्क नहीं पड़ता, मकसद तो दूसरे को मारकर, खुद अपने को बचाने से है। और इसमें आत्मनिर्भरता भी है।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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