यूपी चुनाव : छात्र संगठनों का आरोप, कॉलेज यूनियन चुनाव में देरी के पीछे योगी सरकार का 'दबाव'
3 जनवरी को, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (MGKVP), वाराणसी का 43 वां दीक्षांत समारोह था, जिसमें उत्तर प्रदेश (यूपी) की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भाग लिया था। उसी दिन, एमजीकेवीपी के छात्र संघ चुनाव में भाग लेने वाले कई छात्रों को नजरबंद कर दिया गया था। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्र चुनाव कराने में "अनुचित" देरी के खिलाफ वे पिछले साल के अंत से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
समाजवादी पार्टी की छात्र इकाई समाजवादी छात्र सभा (एससीएस) से महामंत्री पद के लिए चुनाव लड़ रहे अभिषेक सोनकर ने कहा कि उनके साथ और अन्य उम्मीदवारों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया है।
“कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विरोध करने के कारण हमें कई दिनों तक नजरबंद रखा गया। हम अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए राज्यपाल से मिलना चाहते थे। सोनकर ने बताया कि, हमें सिगरा पुलिस चौकी में ऐसे गिरफ्तार कर लिया गया जैसे हम अपराधी हों।”
कांग्रेस समर्थित भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) के उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे संजय यादव ने आरोप लगाया कि उन्हें भी नजरबंद रखा गया था, और पुलिस उनके माता-पिता को चेतावनी देने के लिए चंदौली में उनके घर भी गई थी।
“मैं विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहता हूं, लेकिन पुलिस मेरे घर जाकर मेरे माता-पिता से विरोध में न शामिल होने के लिए कहा। पुलिस ने कई अन्य उम्मीदवारों को परिसर के आसपास नहीं जाने या लाखों रुपये का जुर्माना लगाने की धमकी दी थी। उन्होंने कहा कि, ये सभी उपाय प्रशासन के खिलाफ हमारे विरोध को रोकने लिए हैं।”
यूपी में डिग्री कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हर साल सितंबर और दिसंबर के बीच छात्र संघ के चुनाव होते हैं। एमजीकेवीपी, जोकि एक प्रदेश सरकार का विश्वविद्यालय है, में कई उम्मीदवार चुनाव जल्द होने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन प्रक्रिया में देरी कर दी गई।
“महीनों बीत गए, और यह नवंबर का महीना था, लेकिन चुनाव के संबंध में प्रशासन से कोई बातचीत नहीं हो रही थी। हम इस बात को लेकर असमंजस में थे कि इतनी देरी क्यों हो रही है, यादव ने बताया कि" हम अपना नामांकन दाखिल करने का इंतज़ार कर रहे थे और आखिरकार 17 दिसंबर को ऐसा करने की अनुमति दी गई। नामांकन भी बिना किसी परेशानी के हुआ।"
लेकिन नामांकन के पहले चरण के बाद छात्र एक दिन के चुनाव में देरी के प्रशासन के "बहाने" के बारे में बता रहे थे।
“विश्वविद्यालय चुनाव कराने के मूड में नहीं है। हम जानते हैं कि सरकार प्रशासन पर चुनाव न कराने का दबाव बना रही है।
सोनभद्र जिले के ओबरा स्थित सरकारी पीजी कॉलेज की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। नामांकन दाखिल करने के बाद, कॉलेज में एससीएस के अध्यक्ष पद का पर्चा भरने के बाद उम्मीदवार प्रशांत यादव प्रचार के लिए तैयार थे, लेकिन उन्होंने अपने साथी छात्रों के साथ मिलकर चुनाव स्थगन के खिलाफ कॉलेज प्रशासन का विरोध करना पड़ा।
”प्रशांत यादव ने बताया कि “हमने स्थगन के खिलाफ अनशन किया। चुनाव जनवरी की शुरुआत में होने वाले थे, लेकिन प्रशासन ने कोरोना के बहाने इसे स्थगित कर दिया। उन्हें और उनके दोस्तों को धरना प्रदर्शन में भाग लेने के आरोप में गिरफ्तार लकार लिया गया।
“हमें पुलिस चौकी ले जाया गया और रात भर वहीं रखा गया। वे छात्रों को डराने की कोशिश करते रहे, लेकिन हम लड़ते रहे हैं और लड़ते रहेंगे।"
प्रशांत यादव ने आरोप लगया कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा अध्यक्ष पद पर उम्मीदवार न उतारने के कारण राज्य सरकार के इशारे पर चुनाव स्थगित कर दिया गया।
“उन्हें डर है कि अगर वे हार जाएंगे या पद पर लड़ने के लिए एबीवीपी उम्मीदवार नहीं मिलता है, तो यह युवाओं में एक बुरा संदेश जाएगा और उन्हें एबीवीपी और सत्तारूढ़ भाजपा से दूर कर सकता है। आगामी विधानसभा चुनाव निश्चित रूप से इससे प्रभावित होंगे,” प्रशांत यादव ने यह भी आरोप लगाया कि “हमारे चुनाव रद्द करने के लिए जिलाधिकारी बहुत राजनीतिक दबाव में हैं।”
दोनों कॉलेजों में पिछले पांच साल में छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी कोई पद नहीं जीत पाई है. उनकी हार का सिलसिला 2017 में शुरू हुआ था। मुख्य रूप से एनएसयूआई और एससीएस के बीच टक्कर रही है, जिसमें अधिकांश कॉलेजों में एससीएस का गढ़ है। ये दो प्रमुख छात्र संगठन हैं जो यूपी में सबसे अधिक छात्र संघ पदों पर जीत हासिल करते हैं। संजय यादव और अन्य छात्रों ने भी प्रशासन पर "अपना चेहरा बचाने" के लिए विश्वविधालय में कथित सरकारी हस्तक्षेप के बारे में आरोप लगाया है।
“एबीवीपी बहुत कमजोर रही है। यह साल उनके लिए सबसे खराब रहा है। संजय यादव ने कहा कि किसी भी पद पर चुनाव लड़ने के लिए वे कोई भी उम्मीदवार नहीं उतार पाए हैं।”
इसी तरह के कई अन्य कॉलेजों में नामांकन दाखिल करने के बाद चुनाव स्थगित करने या रद्द करने की खबरें आई हैं।
चंदौली जिले में स्थित सकलडीहा पीजी कॉलेज, मुगलसराय में लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज, जो एमजीकेवीपी, वाराणसी से संबद्ध है, में छात्र संघ चुनाव स्थगित कर दिए गए हैं। बलिया के कॉलेजों में भी इसी तरह का रुझान देखा गया है। वाराणसी के हरिश्चंद्र पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में भी इसी तरह के मुद्दों के खिलाफ छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया है। वाराणसी का एक अन्य प्रमुख विश्वविद्यालय संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय (एसएसयू) में फरवरी के बाद ही चुनाव होने संभावना है। पिछले साल, एसएसयू छात्र संघ चुनावों में एनएसयूआई ने जीत हासिल की थी, जिसने सभी सात सीटों पर जीत हासिल की थी और एबीवीपी की सभी सीटों पर अपमानजनक हार हुई थी।
विभिन्न कॉलेजों के कई छात्र नेताओं के मुताबिक राज्य सरकार का कॉलेज प्रशासन पर चुनाव न कराने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया हैं। कुछ छात्रों ने छात्रों और छात्र नेताओं को विरोध करने से रोकने के लिए उनके खिलाफ "बल का प्रयोग" करने का भी आरोप लगाया है। छात्रों के विरोध को रोकने के लिए एमजीकेवीपी परिसर में यूपी की प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) की भारी तैनाती देखी गई है।
एससीएस के जिला अध्यक्ष अभिषेक मिश्रा ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने अपने "भयावह मक़सद" के लिए चुनाव स्थगित कर दिया है, मिश्रा ने सुरक्षा बलों की तैनाती और शिक्षा की जगह को 'बैरक' में बदलने के लिए निंदा की है।
उनका कहना है कि "विश्वविद्यालय को अध्ययन का केंद्र होना चाहिए। लेकिन एमजीकेवीपी प्रशासन ने पीएसी सुरक्षा बलों को तैनात कर कैंपस में घुसने की इजाजत दे दी है। संपूर्णानंद छात्र आवास, जो शोध छात्रों का छात्रावास है, को पीएसी के बैरक में बदल दिया गया है। मिश्रा ने बताया कि, लगभग 500 पीएसी कर्मी अभी छात्रावास में रह रहे हैं।” इस तैनाती को इस बात के आलोक में देखा जाना चाहिए कि कॉलेज प्रशासन चुनाव स्थगित करने के उन कारणों में देखा जाना चाहिए जो प्रशासन कह रहा है।
चुनाव स्थगित होने की सूचना देने वाले छात्रों को उक्त नोटिस जारी किया गया
17 दिसंबर को एमजीकेवीपी में नामांकन दाखिल होने के बाद चुनाव की तारीख 24 दिसंबर तय की गई थी। लेकिन 23 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी यात्रा के लिए शहर का दौरा किया, इसलिए प्रशासन ने चुनाव स्थगित कर दिया था। अधिकारियों ने दावा किया कि पूरे दिसंबर और जनवरी की शुरुआत में शहर में 'वीआईपी का आवागमन रहेगा। इसलिए, एक दिवसीय चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से कराने के लिए परिसर में पर्याप्त सुरक्षा बलों को तैनात करना संभव नहीं था।
हालांकि छात्र नेताओं ने कैंपस में भारी संख्या में पीएसी की तैनाती को देखकर सरकार के पाखंड को नकार दिया है.
मिश्रा ने कहा, "हमारे विरोध को रोकने के लिए उन्होंने हमारे कॉलेज में जितने सुरक्षाकर्मी तैनात किए हैं, उनका इस्तेमाल आसानी से चुनाव कराने के किया जा सकता था।" चुनाव की नई तारीख 13 जनवरी घोषित की गई थी। कुलपति आनंद कुमार त्यागी ने चुनाव कराने का आश्वासन दिया था। 13 जनवरी को प्रशासन ने शहर में बढ़ते कोविड-19 मामलों का हवाला देते हुए एक बार फिर से चुनाव स्थगित कर दिए।
राज्य चुनावों को ध्यान में रखते हुए छात्र संघ चुनावों को स्थगित या रद्द करना अभूतपूर्व नहीं है। नवंबर 2017 में भी, यूपी सरकार ने 'शांति भंग' का हवाला देते हुए, और निकाय चुनावों के कारण छात्र संघ चुनावों को आधिकारिक तौर पर स्थगित कर दिया था। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वर्तमान राज्य सरकार की कार्रवाइयों को विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में राजनीतिक दबाव बनाने और आगामी विधानसभा चुनावों से पहले "अनौपचारिक रूप से" तोड़फोड़ के रूप में देखा जा रहा है।
एमजीकेवीपी के वर्तमान अध्यक्ष, विमलेश यादव ने बताया कि एमजीकेवीपी में चुनाव स्थगित होने से राज्य भर के कॉलेजों पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने बताया कि पूरे राज्य में हमारे विश्वविद्यालय से 200 से अधिक कॉलेज संबद्ध हैं। अगर यहां चुनाव नहीं कराए जाते हैं, तो अन्य कॉलेज भी नहीं होंगे, क्योंकि यह सभी संबद्ध कॉलेजों का केंद्र है।"
यूपी में अन्य प्रमुख विश्वविद्यालय, जैसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), इलाहाबाद विश्वविद्यालय (एयू) और लखनऊ विश्वविद्यालय (एलयू), सभी में छात्र संघों के संदर्भ में अतीत परेशान करने वाला रहा है, और उनमें किसे में भी छात्र संघ चुनाव नहीं होता है। बीएचयू में 1997 से चुनाव पर रोक लगा दी गई है। एयू में 2019 में छात्र संघ की जगह छात्र परिषद बना दी गई थी। एलयू के छात्र पिछले एक साल से छात्र संघ के दोबारा बनाने की मांग कर रहे हैं। एमजीकेवीपी राज्य के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक अपवाद है जहां छात्र संघ चुनाव होते हैं।
स्थिति की गंभीरता भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की बेचैनी और राज्य में उसके प्रति बढ़ते असंतोष के चलते अपना "चेहरा बचाने" के प्रयासों की ओर इशारा करती है, फिर चाहे वह कॉलेजों में निचले स्तर का असंतोष हो या फिर युवाओं में, या विधानसभा की लोकप्रिय राजनीति में हो, लेकिन सरकार के प्रति असंतोष बढ़ रहा है। यह दर्शाता है कि युवाओं पर उनकी पकड़ अपनी ढीली हो रही है और इसलिए राज्य सरकार हताशापूर्ण कोशिश कर रही है।
दोनों लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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