राजेंद्र रघुवंशी: नाट्य प्रस्तुतियों से अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद-पूंजीवाद के ख़िलाफ़ जन चेतना जगाने वाले ‘रंगकर्मी’
बीती 21 मई को प्रसिद्ध कलाकार-नाटककार राजेंद्र रघुवंशी का जन्म शताब्दी वर्ष था। नाटककार होने के साथ-साथ राजेंद्र रघुवंशी एक पत्रकार, लेखक एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की आगरा इकाई ने उनकी याद एवं देश की आज़ादी में उनके बेमिसाल काम को ज़िंदा रखने के लिए साल 2019 से उनके जन्मदिवस के मौके पर कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू किया, इसी कड़ी में एक बार फिर इस साल उनकी जन्म शताब्दी पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। 21 मई को आगरा में ही 'राजेंद्र रघुवंशी जन्म शताब्दी समापन समारोह' का भव्य आयोजन किया गया जो सुबह से शुरू होकर देर रात तक चला।
इस समारोह में देश भर से इप्टा से जुड़े रंगकर्मियों, लेखकों और कलाकारों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम दो हिस्सों में बंटा हुआ था। सुबह के सत्र वैचारिक सत्र थे, जो स्थानीय गोवर्धन होटल में आयोजित किए गए। इसमें अलग-अलग विषयों पर दो संगोष्ठियां संपन्न हुईं। पहली संगोष्ठी 'इप्टा इतिहास की प्रतिध्वनियां और भविष्य का रंगमंच' विषय पर थी जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रोफेसर रामवीर सिंह ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर सिंह ने इप्टा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्र रघुवंशी की जिजीविषा का ज़िक्र करते हुए, उनके द्वारा किए गए सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों को याद किया। उन्होंने राजेंद्र रघुवंशी के आगरा के साथियों डॉ. कुंटे, साहित्यकार रांगेय राघव और रामविलास शर्मा के अवदान को भी रेखांकित किया। उनका कहना था, "नाट्य पितामह राजेंद्र रघुवंशी महज़ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि अपने आप में एक संस्थान थे। उन्होंने देश को सैकड़ों रंगकर्मी और कलाकार दिए, जो आज विभिन्न क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं।"
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता, इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध नाटककार राकेश वेदा ने कहा कि "इप्टा के निर्माण के समय हमारे सामने जो चुनौतियां मौजूद थीं, आज वो और उग्र रूप में व्याप्त हैं। हमें राजेंद्र रघुवंशी के सांस्कृतिक प्रतिरोध के तौर-तरीक़ों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि वे किस तरह से आज़ादी से पहले के भारत में इन चुनौतियों से संघर्ष करते थे।"
राकेश वेदा ने राजेंद्र रघुवंशी के रंगमंच और इप्टा के प्रति उनके समर्पण और जुझारूपन के अनेक संस्मरणों को श्रोताओं से साझा करते हुए, उनसे आज की नई पीढ़ी को कुछ सीख लेने की बात भी कही। इसके अलावा इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "हमारे पुरखे कहीं नहीं जाते। हमें जब ज़रूरत होती है, तो वे मशाल के रूप में हमारे साथ होते हैं। राजेंद्र रघुवंशी भी ऐसी ही एक विशाल मशाल हैं, जो हमें अभी तक जहां एक तरफ रौशनी दे रही है, वहीं मुश्किल के वक़्त में नई राह भी दिखलाती है।"
शैलेंद्र ने कहा, "आज के समय की जो चुनौतियां हैं, उनसे हमें और ऊर्जा मिलती है। क्योंकि हमें मनुष्यता को बचाना है। समाज में प्रेम और भाईचारे को सुरक्षित रखना है।" वहीं लेखक एवं रंगकर्मी, प्रोफेसर शंभू गुप्त ने कहा, "इतिहास की प्रतिध्वनियां हमेशा हमारा मार्गदर्शन करती हैं।" उन्होंने अपने वक्तव्य में राजेंद्र रघुवंशी के साथ जुड़ी अपनी यादों को भी साझा किया। संगोष्ठी का संचालन अलवर (राजस्थान) से विशेष तौर पर आईं शिक्षाविद व रंगकर्मी डॉ. सर्वेश जैन ने किया।
संगोष्ठी का दूसरा सत्र, 'राजेंद्र रघुवंशी की सृजनशीलता और उनकी यादें' विषय पर था। इसमें उनकी अलग-अलग विधाओं को केंद्र में रखकर, वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि रंगमंच, फ़िल्म एवं टेलीविजन के मशहूर अभिनेता अंजन श्रीवास्तव, जिनका जुड़ाव आज भी इप्टा से है, ने अपनी बात रखते हुए कहा, "मैं ख़ास तौर पर राजेंद्र रघुवंशी की वजह से इस आयोजन में शामिल हुआ हूं। राजेंद्र रघुवंशी एक जुझारू कलाकार और अद्भुत संगठनकर्ता थे।" वे किस तरह से इप्टा में आए और अपने समय के कई वरिष्ठ साथियों को याद करते हुए अंजन श्रीवास्तव ने राजेंद्र रघुवंशी के साथ जुड़ी अपनी कई यादों को साझा किया। आख़िर में उन्होंने राजेंद्र रघुवंशी की एक कविता 'मिठाइयां' भी बड़े दिलचस्प तरीक़े से सुनाई।
डॉ. श्रीभगवान शर्मा ने कहा, "यह समारोह सही मायने में राजेंद्र रघुवंशी की गरिमा और क़द के अनुरूप ही है जिसमें इतने विद्वान, उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठे हुए हैं।"
राजेंद्र रघुवंशी एक अच्छे कवि भी थे। डॉ. शशि तिवारी ने अपने एक आलेख का ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने राजेंद्र रघुवंशी की कविताओं की विशिष्टताओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "हास्य-व्यंग्य के साथ सूक्ष्म रूप से समाज के प्रत्येक विषय पर राजेंद्र जी की कविताएं बेजोड़ हैं।"
समाजसेवी अरुण डंग ने राजेंद्र रघुवंशी के साथ गुज़ारे अपने पुराने वक़्त को बड़ी ही शिद्दत से याद किया। उन्होंने कहा, "राजेंद्र रघुवंशी एक आंदोलनकारी रंगकर्मी थे जिन्होंने अपने काम से समाज को जगाने का काम किया। राजेंद्र रघुवंशी, अपने जीवन काल में ही इप्टा के रूह-ए-रवां बन गए थे। वे आगरा में होने वाले सभी आयोजनों के केंद्र में रहते थे।"
लेखक-पत्रकार ज़ाहिद खान ने राजेंद्र रघुवंशी पर लिखे अपने लंबे लेख के प्रमुख अंशों को प्रस्तुत करते हुए कहा, "इप्टा की स्थापना से लेकर साल 2003 अपनी ज़िंदगी के आख़िर तक राजेंद्र रघुवंशी इस गौरवशाली संस्था में नेतृत्वकारी भूमिका में रहे। साल 1957 में राजेंद्र रघुवंशी, इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए और आख़िर तक उन्होंने यह महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी संभाली। साल 1985 में इप्टा का जो राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्गठन हुआ, उसमें भी उनकी अहम भूमिका थी। उत्तर भारत में राजेंद्र रघुवंशी के बिना इप्टा का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता।"
ज़ाहिद ने आगे कहा, "राजेंद्र रघुवंशी का आज़ादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान उन्होंने अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और देशी सामंतवाद के ख़िलाफ़ जन चेतना को जगाने का काम किया। उनकी लीडरशिप में ‘आगरा इप्टा’ के कलाकारों ने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।"
ज़ाहिद ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "इप्टा को बनाने, संवारने, संगठित करने और पूरे देश में इसको बढ़ाने-फैलाने में राजेंद्र रघुवंशी का विशेष योगदान है। उन्होंने जितना भी रंगकर्म किया, उनके ज़ेहन में हमेशा इप्टा की यह थीम लाईन रही, ‘पीपुल्स थियेटर, स्टार्स द पीपुल’ यानी ‘इप्टा की नायक जनता है।’ उन्होंने सही मायने में जनता के थियेटर या अवामी थियेटर को विकसित किया। राजेंद्र रघुवंशी के रंगकर्म को जानना, इप्टा की ऐतिहासिक भूमिका को भी जानना-समझना है। किस तरह से इप्टा और उससे जुड़े लोग काम करते थे।"
राजेंद्र रघुवंशी के साथी पूरन सिंह ने उनके व्यक्तित्व को याद करते हुए कहा, "राजेंद्र रघुवंशी के सभी काम, युवाओं को प्रेरित करने वाले थे। आगरा में सांस्कृतिक क्षेत्र में जो भी महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं, उनमें उनका विशेष योगदान है।"
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहीं दयालबाग विश्वविद्यालय की कला संकाय की पूर्व डीन कमलेश नागर ने कहा, "समारोह में उपस्थित सभी जन राजेंद्र रघुवंशी के वृहद परिवार के सदस्य हैं। उनकी लेखनी में वो दम था कि किसी भी विषय पर वे तुरंत गीत या नाटक लिख देते थे। उनकी शख़्सियत के कई पहलू थे। राजेंद्र रघुवंशी के बहुआयामी व्यक्तित्व को हमेशा याद किया जाता रहेगा।"
संगोष्ठी का संचालन कवि हरीश चिमटी ने, तो वहीं समारोह में उपस्थित अतिथियों और श्रोताओं का आभार राजेंद्र रघुवंशी की बेटी रंगकर्मी डॉ. ज्योत्स्ना रघुवंशी ने किया।
इसके बाद समारोह का दूसरा हिस्सा शाम को आगरा के 'सूरसदन' में आयोजित किया गया जिसमें कई कार्यक्रम हुए। कार्यक्रम से पहले सूरसदन में अपने कोलाज और कविता पोस्टर के लिए देश भर में प्रसिद्ध कलाकार पंकज दीक्षित की पोस्टर प्रदर्शनी का औपचारिक उद्घाटन हुआ। उन्होंने अपने ये सारे पोस्टर राजेंद्र रघुवंशी के रचनाकर्म पर केंद्रित किए थे जिन्हें आगरावासियों ने ख़ूब पसंद किया। प्रोग्राम का आगाज़ समूह गीत से हुआ। समूह गीत के उपरांत रंगकर्मी एवं नाटककार दिलीप रघुवंशी ने इस विशेष सत्र का संचालन करते हुए, राजेंद्र रघुवंशी के जीवन और कृतित्व पर प्रकाश डाला। इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा और राष्ट्रीय सचिव शैलेंद्र ने राजेंद्र रघुवंशी के रंगमंच और इप्टा में दिए गए अवदान को याद किया। उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
प्रोग्राम के दौरान राजेंद्र रघुवंशी के गीत और कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति भी की गई थी जिसे आगरा इप्टा के परमानंद शर्मा, भगवान स्वरूप, सुनीता धाकड़, संजय सिंह, अर्चना सारस्वत और असलम खान ने पेश किया। इसके अलावा रुद्रा रघुवंशी और युवा रंगकर्मी जय कुमार ने राजेंद्र रघुवंशी की कविताओं का शानदार पाठ किया जिसे श्रोताओं ने काफ़ी पसंद किया। राजेंद्र रघुवंशी साहित्य, संगीत, कला और रंगमंच की हर विधा में माहिर थे। उन्होंने बृज भाषा में न सिर्फ़ कविताएं व गीत लिखे, बल्कि बृज क्षेत्र में प्रसिद्ध लोकगीत लांगुरिया भी लिखे। ऐसे ही एक लांगुरिया पर भानुप्रिया धाकड़, निहारिका धाकड़ और ग्रेशमा धाकड़ ने मनमोहक नृत्य किया जिसका निर्देशन अलका धाकड़ ने किया था।
इस पूरे कार्यक्रम की विशेष प्रस्तुति, राजेंद्र रघुवंशी के जीवन पर केंद्रित डॉक्यूमेंट्री 'नाटक नहीं रुकेगा' थी। इसका निर्देशन उनके छोटे बेटे दिलीप रघुवंशी ने किया है। इस डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने राजेंद्र रघुवंशी की ज़िंदगी से जुड़े तक़रीबन सभी पक्षों को उभारा है। 'राजेंद्र रघुवंशी जन्म शताब्दी समापन समारोह' का आख़िरी आकर्षण प्रतिभाशाली अभिनेता-निर्देशक लकी गुप्ता अभिनीत के एकल नाटक 'मॉं मुझे टैगोर बना दे' की भावपूर्ण प्रस्तुति थी। लकी गुप्ता अभी तक मोहन भंडारी की कहानी पर आधारित इस नाटक के पूरे देश में 1161 मंचन कर चुके हैं। यह उनका 1162वां मंचन था। लकी गुप्ता का अभिनय इतना प्रभावशाली था कि लोग इस नाटक के आख़िर तक जुड़े रहे। नाटक ख़त्म होते-होते कई दर्शकों की आंखें नम थीं। ख़ास तौर पर बच्चों और महिलाओं को यह नाटक ख़ूब पसंद आया।
इस समारोह का समापन राजेंद्र रघुवंशी के लोकप्रिय जनगीत 'बाधक हो तूफ़ान बवंडर, नाटक नहीं रुकेगा' के समूह गायन से हुआ।
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