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यासीन मलिक को मौत की सज़ा की मांग ख़तरनाक है

केंद्र सरकार की यह मांग ख़तरनाक और विध्वंसकारी है। इससे भारत के हिस्से वाले कश्मीर और शेष भारत के बीच अलग़ाव और बढ़ेगा, दरार और चौड़ी होगी।
Yasin

भारत सरकार ने अपनी एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट से मांग की है कि कश्मीरी नेता और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट (जेकेएलएफ़) के संस्थापक यासीन मलिक को मौत की सज़ा दी जानी चाहिए।

केंद्र सरकार की यह मांग ख़तरनाक और विध्वंसकारी है। इससे भारत के हिस्से वाले कश्मीर और शेष भारत के बीच अलग़ाव और बढ़ेगा, दरार और चौड़ी होगी।

पहले से ही मुठभेड़ हत्याओं, ख़ून-ख़राबा और भीषण अशांति की मार झेल रहे कश्मीर में इस मांग से हालात और भी बिगड़ेंगे।

यासीन मलिक को 2019 में गिरफ़्तार किया गया था, और तब से वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। इसके पहले भी उन्हें कई बार गिरफ़्तार किया जा चुका है।

पिछले साल, 25 मई 2022 को, दिल्ली के पटियाला हाउस परिसर में एनआईए की अदालत ने यासीन मलिक को उम्र क़ैद की सज़ा सुनायी। जिस मामले में यह सज़ा सुनायी गयी, वह –एनआईए के मुताबिक—2016 के ‘टेरर फ़ंडिंग’ (आतंक के लिए धन जुटाना) मामले से जुड़ा है। यानी, एनआईए का कहना था कि यासीन मलिक आतंक फैलाने के लिए धन जुटाते रहे हैं।

जब यासीन मलिक को उम्रक़ैद की सज़ा सुनायी गयी थी, तब कश्मीर घाटी के कई राजनीतिक नेताओं ने इस सज़ा की निंदा की थी। उन्होंने कहा था कि यासीन मलिक को उनके राजनीतिक विचार के लिए दंडित किया गया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि जिस तरह का मुक़दमा चला/चलाया गया, उससे पहले ही यह तय हो गया था कि यासीन मलिक को या तो फांसी या उम्रक़ैद की सज़ा मिलेगी। उनका कहना था कि इस सज़ा ने भारतीय लोकतंत्र और न्याय प्रणाली को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

अब, यासीन मलिक को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाये जाने के एक साल बाद, मई 2023 के आखिरी हफ़्ते में एनआईए ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। उसने मांग की है कि जिस मामले में निचली अदालत ने यासीन मलिक को उम्रक़ैद की सज़ा सुनायी थी, उसे फांसी की सज़ा में बदल दिया जाये।

भारत सरकार के वकील (सॉलिसिटर जनरल) तुषार मेहता ने दिल्ली हाईकोर्ट में एनआईए की तरफ़ से इस मामले में पैरवी की। उनका कहना था कि यासीन मलिक के ‘अपराध’ इतने ‘गंभीर’ हैं कि उन्हें उम्रक़ैद नहीं, मौत की सज़ा मिलनी चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई 9 अगस्त 2023 को करेगा।

यह याद रखा जाना चाहिए कि यासीन मलिक राजनीतिक नेता हैं और उनसे राजनीतिक नेता-जैसा सलूक होना चाहिए। यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर उनसे विचार-विमर्श करते रहे हैं।

सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही ‘ख़तरनाक’ रहे हैं, तो उनसे देश के दो-दो प्रधानमंत्री क्यों मिलते रहे?

यासीन मलिक के राजनीतिक विचार आज भी वही हैं, जो पहले थे। उन्हें इन्हीं राजनीतिक विचारों के लिए दंडित किया गया है, और अब उन्हें मौत की सज़ा देने की मांग भारत सरकार कर रही है।

यासीन मलिक भारत से ‘कश्मीर की आज़ादी’ के पक्षधर हैं, ‘कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार’ की वकालत करते हैं, और चाहते हैं कि कश्मीर के मसले पर भारत, पाकिस्तान और कश्मीर की जनता के बीच (त्रिपक्षीय) बातचीत हो। वह अहिंसक तरीक़े से—‘गांधीवादी’ तरीक़े से—शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान चाहते हैं, और चाहते हैं कि भारत की सेना की बंदूक के बल पर नहीं, टेबुल पर आमने-सामने की राजनीतिक बातचीत से कश्मीर का मसला हल किया जाये। वह अपने को (महात्मा) गांधी और (नेल्सन) मंडेला का अनुयायी कहते हैं।

सवाल है, जब उत्तर-पूर्व भारत में केंद्र सरकार नगा विद्रोहियों, मिज़ो विद्रोहियों, कुकी विद्रोहियों, अन्य विद्रोही संगठनों से बीसियों साल से शांति वार्ताएं चलाती चली आ सकती हैं, तो कश्मीर में क्यों नहीं? उत्तर-पूर्व भारत में भी ‘टेरर फ़ंडिंग’/जबरन धन उगाही के मामले रहे हैं। लेकिन वहां तो ऐसी सरकारी ‘सक्रियता’ नहीं रही! क्या इसकी वजह यह है कि कश्मीर मुस्लिम-बहुल इलाक़ा है!

कश्मीर का मसला राजनीतिक समाधान मांगता है। यासीन मलिक को फांसी की सज़ा सुनाना भारत के लिए आत्मघाती क़दम होगा।

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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