उत्तराखंड: सरकारी अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं का अभाव, कैसे हो इलाज?
पीनस (डोली) के सहारे गणेश राम को ले जाते गॉंव के युवा | फोटो सत्यम कुमार
उत्तराखंड : पौड़ी जिला मुख्यालय से लगभग 150 किलोमीटर दूर चौथान पट्टी के स्युसाल गांव में सुबह 6 बजे का समय है, गांव के युवा पंचायत घर से पीनस (डोली) निकाल कर लाये हैं हालांकि आमतौर पर इसका इस्तेमाल शादी में दूल्हा और दुल्हन की डोली के लिए किया जाता है लेकिन स्युसाल गांव के रहने वाले गणेश राम की तबीयत रात से ख़राब है और गांव तक आने वाली कच्ची सड़क पर तेज़ बारिश के कारण एक पेड़ गिर गया है जिसके चलते कोई भी वाहन गांव तक नहीं पहुंच सकता, इस लिए आज गांव के युवा गणेश को कंडी में बिठाकर उसे अपने कंधो पर उठाकर मुख्य सड़क तक लेकर जा रहे हैं जो गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर है।
गणेश राम की मां मन्नी देवी हमें बताती हैं कि “3 जुलाई 2023 की रात से मेरे बेटे को उल्टी दस्त हो रहे थे, रात का समय था और ऊपर से बारिश हो रही थी इसलिए घर के लोगों ने तय किया कि कल सुबह हम अपने बेटे को डॉक्टर के पास ले जाएंगे। हमारे गांव के नज़दीक बुंगीधार में अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी है और आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र भी, लेकिन सुबह 8 बजे जब हम अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे तो वहां ताला लगा था। बच्चे की तबीयत बहुत ख़राब थी और बारिश हो रही थी, 108 एम्बुलेंस को आने में समय भी लग सकता था, इसलिए ज़रा भी देर ना करते हुए हमने एक प्राइवेट गाड़ी वाले को फ़ोन किया जो तुरंत ही आ गया और इसमें बैठ हम राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवघाट पहुंचे जो हमारे गांव से लगभग 18 किमी दूर है। यहां मेरे बेटे गणेश राम को भर्ती किया गया। मेरे बेटे को एक ग्लूकोज़ की बोतल और कुछ इंजेक्शन लगाने के बाद राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवघाट के डाक्टरों ने कहां कि हमें अपने मरीज़ को भिक्यासैंण ले जाना चाहिए।
पीनस (डोली) के सहारे गणेश राम को ले जाते गॉंव के युवा | फोटो सत्यम कुमार
मन्नी देवी आगे बताती हैं कि "मेरे बेटे की हालत लगातार ख़राब हो रही थी इसलिए मैं अपने बेटे को लेकर भिक्यासैंण की जगह काशीपुर के सहोता सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल एन्ड न्यूरो ट्रॉमा सेंटर पहुंची जो हमारे गांव से लगभग 150 किलोमीटर दूर है। यहां मेरे बेटे का तीन दिनों तक इलाज चला और मेरे बेटे की हालत में सुधार आने लगा।
सहोता सुपर स्पेस्लिस्ट हॉस्पिटल एन्ड न्यूरो ट्राम सेंटर में भर्ती गणेश राम| फोटो - मन्नी देवी
मन्नी देवी अंत में हमें बताती हैं कि वह एक अनुसूचित जाति से आती हैं और उनकी आय का मुख्य स्त्रोत खेती किसानी है। तीन साल पहले उनके पति की मृत्यु हो चुकी है इसलिए सारे परिवार की ज़िम्मेदारी उन्हीं के ऊपर है और घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है लेकिन फिर भी 6 हज़ार रुपये गाड़ी वाले को देने पड़े, 30 हज़ार से भी अधिक का खर्च अब तक की दवाईओ और हॉस्पिटल के बिल में आ चुका है।
अतरिक्त प्राथमिक स्वास्थय केंद्र बूंगी फोटो -सत्यम कुमार
10 बजे के बाद जब हम अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बूंगी धार पहुंचे तो हमारी मुलाक़ात दिनेश नेगी से हुई जो इस स्वास्थ्य केंद्र वार्ड बॉय के पद पर तैनात हैं। दिनेश नेगी हमें बताते हैं कि "मुख्य डॉक्टर तो छुट्टी पर गए हैं, आज केवल मैं अकेला ही हूं। दिनेश नेगी आगे बताते हैं कि केवल मैं और डॉक्टर इस स्वास्थ्य केंद्र को चलाते हैं। इस स्वास्थ्य केंद्र में बहुत ज़्यादा सुविधाएं नहीं हैं। यहां केवल प्राथमिक उपचार ही दिया जा सकता है। स्वास्थ्य केंद्र में चार बेड और एक एम्बुलेंस भी है लेकिन फ़िलहाल एम्बुलेंस का ड्राइवर नहीं है। यह अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हाल ही में बना है धीरे-धीरे यहां भी सुविधाएं आ जाएंगी।"
बीमार हालत में गणेश राम को पीनस (डोली)में बेठते हुए फोटो - सत्यम कुमार
डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की कमी
उत्तराखंड बजट 2023 -2024 में राजपत्रित और अराजपत्रित पदों के विवरण से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार चिकित्सा तथा लोक स्वास्थ्य विभाग में कुल 9,753 पद स्वीकृत है जिसमें से कुल 5,732 पदों पर नियुक्ति है जबकि 4,021 पद अभी रिक्त हैं जो कुल पदों का लगभग 41 प्रतिशत है। होम्योपैथिक चिकित्सा विभाग में कुल 434 पद स्वीकृत हैं जिसमे से 260 पदों पर नियुक्ति है और 174 पद अभी खाली हैं, चिकित्सा शिक्षा विभाग में कुल 6,061 पद स्वीकृत है और कुल 2,737 पदों पर नियुक्ति है जबकि 3,324 पद अभी रिक्त हैं। इसी प्रकार आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा विभाग में कुल 2,844 पद स्वीकृत हैं और कुल 2,186 पदों पर नियुक्ति है जबकि 658 पद अभी रिक्त हैं और परिवार कल्याण विभाग में कुल 3,821 पद स्वीकृत हैं जिसमे से 1,788 पदों पर नियुक्ति है और 2,033 रिक्त हैं।
अतरिक्त प्राथमिक स्वास्थय केंद्र बूंगी फोटो -सत्यम कुमार
ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2020 -2021 से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र PHC में 245 डॉक्टरों की ज़रूरत है, 416 पद स्वीकृत हैं और 301 पदों पर नियुक्ति है जबकि 115 पद अभी रिक्त हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में स्पेशलिस्ट (बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन, चिकित्सक और गायनोक्लोजिस्ट आदि) के लिए कुल 212 स्पेशलिस्ट की ज़रूरत है, 236 पद स्वीकृत हैं और कुल 52 पदों पर अभी नियुक्ति है जबकि 184 पद अभी खाली हैं और 160 स्पेशलिस्ट की कमी है। भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) के अनुसार प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में चार स्पेशलिस्ट का होना ज़रूरी है।
महिला स्वास्थ्य कर्मियों की बात करें तो उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 2,068 महिला स्वास्थ्य कर्मी या ANM की ज़रूरत है, 2,274 पद स्वीकृत हैं जबकि कुल 1,816 पदों पर नियुक्ति है और 458 पद अभी खाली हैं तथा 252 पदों की कमी चल रही है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में कुल 53 रेडियोलॉजिस्ट की ज़रूरत है और 37 पद स्वीकृत हैं जबकि कुल 16 पदों पर रेडियोलॉजिस्ट कार्यरत हैं, 21 पद अभी खाली हैं तथा 37 पदों की कमी चल रही है। भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) के अनुसार प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक रेडियोलॉजिस्ट होना आवश्यक है।
ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र PHC और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) पर लैब टेक्नीशियन के लिए कुल 298 पदों की ज़रूरत है, 176 पद स्वीकृत हैं और 93 पदों पर लैब टेक्नीशियन कार्यरत हैं जबकि 83 पद अभी खाली हैं और 205 पदों पर लैब टेक्नीशियन की कमी चल रही है। आईपीएचएस के मानक के अनुसार पीएचसी और सीएचसी प्रत्येक पर एक-एक लैब टेक्नीशियन होना अनिवार्य है।
राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 1,823 सब सेंटर हैं जिसमे से 1,340 सब सेंटर सरकारी भवन, 446 सब सेंटर किराये के भवन और 37 सब सेंटर किसी अन्य सरकारी भवन में संचालित हैं जहां पर किराया नहीं दिया जाता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की बात करें तो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 245 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जिसमे से 224 सरकारी भवन में, 9 किराये के भवन में और 12 किसी अन्य सरकारी विभाग के भवन में संचालित हैं। इसी प्रकार राज्य में कुल 53 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) हैं जिसमे से 52 सरकारी भवन और 2 किराये के भवन में संचालित हैं।
बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पलायन के लिए भी ज़िम्मेदार
स्युसाल गांव के रहने वाले भीम सिंह रावत हमें बताते हैं कि "यह घटना हमारे गांव की कोई पहली घटना नहीं है। कुछ साल पहले भी हमारे गांव की राजी देवी पेड़ से पत्ते काटते समय गिर गईं थी जिस कारण राजी देवी के सिर में गहरी चोट आई थी, तब उनको इसी प्रकार स्ट्रेचर पर लेकर गये थे और नज़दीक में उचित उपचार नहीं मिलने के कारण कशीपुर ही ले जाना पड़ा था।
भीम सिंह रावत आगे कहते हैं कि "हमारे पहाड़ में अस्पताल की बिल्डिंग्स तो बनी हैं लेकिन इनमे बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। बड़ी बीमारी तो छोड़िए, छोटी से छोटी बीमारी के लिए भी रेफर ही किया जाता है। हालात ये हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में ख़राब स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए आर्थिक रूप से सक्षम परिवार मैदानी क्षेत्रों में पलायन कर गए हैं।
उत्तराखंड ग्रामीण विकास एवं पलायन निवारण आयोग की रिपोर्ट बताती है कि कुल पलायन करने वाले लोगों में लगभग 9 प्रतिशत लोगों ने ख़राब स्वास्थ्य सुवधाओं के कारण पलायन किया है और स्वास्थ्य सुवधाओं की कमी के कारण सबसे अधिक पलायन पौड़ी गढ़वाल जिले से - 11.26 प्रतिशत - हुआ है।
जन स्वास्थ्य अभियान उत्तराखंड के समन्वयक कमलेश खंतवाल कहते हैं कि "स्वास्थ्य के अधिकार 2013 के अनुसार राजकीय चिकित्सालयों में नि:शुल्क दवा और जांच भारत के प्रत्येक नागरिक का अधिकार है लेकिन उत्तराखंड के अधिकांश राजकीय चिकित्सालयों में ज़रूरी दवाईयां भी उपलब्ध नहीं होती हैं जो स्वास्थ्य के अधिकार कानून का हनन करता है।
कमलेश खंतवाल आगे कहते हैं कि "एक गर्भवती महिला को अपनी गर्भावस्था के प्रत्येक तीन महीने पर अल्ट्रासॉउन्ड जांच करानी होती है लेकिन उत्तराखंड के दुरस्त क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं ये तीनो जांच नहीं करा पाती हैं क्योंकि पर्वती क्षेत्रों के अधिकांश राजकीय चिकत्सालयों में रेडियोलॉजिस्ट की कमी के चलते अल्ट्रासॉउन्ड नहीं हो पाता है। राजकीय अस्पतालों को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड पर दिया जा रहा है जो पूर्ण रूप से फेल है। बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था हमारे पहाड़ की बुनयादी ज़रूरत है, राजनैतिक पार्टियों के द्वारा चुनाव में बड़े-बड़े वादे तो किये जाते हैं लेकिन धरातल पर स्थिति आज भी ज्यों कि त्यों बनी हुई है।
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन (एसडीसी) के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि "एनएफएचएस-4 की तुलना में उत्तराखंड में कई हेल्थ इंडिकेटर्स में सुधार हुआ है लेकिन कई अन्य क्षेत्रों में अब भी सुधार की बेहद ज़रूरत है।" अनूप नौटियाल के अनुसार राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 1067 पद स्वीकृत हैं, लेकिन केवल 436 पदों पर ही नियुक्तियां हुई हैं। यानी मौजूदा कार्यरत पदों की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत विशेषज्ञ कम हैं, अस्पतालों में क्लीनिकल विशेषज्ञों की भारी कमी है। जो डॉक्टर हैं, उनमें से कईयों को प्रशासनिक पदों पर तैनात किया गया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, खाद्य एवं औषधि प्रशासन, राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण और ईएसआई जैसे संस्थान कई ऐसे अधिकारियों को सौंपे गये हैं जिनके पास भारत सरकार द्वारा उन पदों के सापेक्ष निर्धारित डिग्री नहीं है। राज्य में 29 सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, लेकिन उनमें से कोई भी उनकी योग्यता के अनुरूप पद पर तैनात नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा पब्लिक हेल्थ कैडर बनाने के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है, लेकिन उत्तराखंड सरकार अपनी तरफ से संसाधन नहीं जुटा पा रही है। उनका कहना है कि तमिलनाडु जैसे जिन राज्यों ने हेल्थ इंडिकेटर्स में अच्छा सुधार किया है, वहां एक पब्लिक हेल्थ विंग है। कुछ राज्यों में अलग से पब्लिक हेल्थ महानिदेशक भी है।
अनूप नौटियाल आगे कहते हैं कि "पब्लिक हेल्थ कैडर बनने से राज्य में ऐसे डॉक्टर उपलब्ध होंगे जो गुणवत्तापूर्ण सेवाएं दे सकेंगे। इससे राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। गरीबों और ज़रूरतमंदों को इसका लाभ मिल सकेगा। प्राइवेट अस्पतालों पर लोगों की निर्भरता कम होगी।"
उत्तराखंड राज्य गठन को 22 साल से अधिक समय बीत चुका है लेकिन आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों, मुख्यतः पर्वतीय क्षेत्रों में गणेश राम जैसी कहानियां आम बात हैं। आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खस्ता है। आज भी राजकीय चिकत्सालयों में डाक्टरों और ज़रूरी सुविधाओं की कमी के चलते मरीज़ों को सैंकड़ों किलोमीटर दूर मैदानी क्षेत्रों में इलाज के लिए जाना पड़ता है।
(लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं।)
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