छात्रों के लिए अनुशासन का नया मैनुअल लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाने वाला है : JNUSU
नई दिल्ली: छात्रों के भीतर अनुशासन और उचित आचरण के लिए नियमों की नई मैनुअल/नियमावली लाई गई है, जो विश्वविधालय परिसर में विरोध प्रदर्शन करने, पोस्टर चिपकाने, दीवार पर भित्तिचित्र बनाने जैसी गतिविधियों पर जुर्माना लगाने और विश्वविधालय से निष्कासन का प्रावधान करती है, जिसके खिलाफ जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
चीफ प्रॉक्टर कार्यालय द्वारा 11 दिसंबर को सार्वजनिक किए गए नए मैनुअल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, जेएनयूएसयू ने कहा है कि यह परिसर के भीतर लोकतांत्रिक आवाजों पर अंकुश लगाने जैसा है जो लगातार छात्र संघ चुनाव कराने और प्रशासनिक मामलों में जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।
नए मैनुअल के अनुसार, छात्रों को 20,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, यदि वे भूख हड़ताल, धरना, समूह सौदेबाजी और किसी भी शैक्षणिक और प्रशासनिक परिसर के 100 मीटर के दायरे में और/या प्रवेश द्वार को अवरुद्ध करने या या किसी भी शैक्षणिक और प्रशासनिक परिसर को अवरुद्ध करने तथा किसी अन्य प्रकार के विरोध प्रदर्शन करते हैं और इसके लिए छात्रावास से दो सेमेस्टर तक का निलंबन भी किया जा सकता है।
मैनुअल के प्रावधान के तहत अपराधों की श्रेणी-III में गंभीर सजा का प्रावधान है, जिसमें विश्वविद्यालय समुदाय के किसी भी सदस्य के निवास के आसपास घेरा डालना, घेराबंदी करना या प्रदर्शन करना या किसी अन्य प्रकार की जबरदस्ती, धमकी या निवासियों की निजता के अधिकार में गड़बड़ी करना शामिल है। परिसर में 20,000 रुपये तक का जुर्माना, छात्रावास सुविधा वापस लेना, प्रवेश रद्द करना या डिग्री वापस लेना या एक तय अवधि के लिए पंजीकरण से इनकार करना, पूरे जेएनयू परिसर से चार सेमेस्टर तक निष्कासन और विश्वविद्यालय की सीमा से बाहर घोषित करना इसका हिस्सा है।
जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 28 नवंबर को कार्यकारी परिषद की बैठक में नए मैनुअल पर कोई चर्चा नहीं हुई है।
आइशी ने कहा कि, “मैनुअल परिसर में जीवंत जनवादी संस्कृति पर हमला करता है जहां छात्र संगठन धरना देते हैं और अगर उन्हें लगता है कि उनकी आवाज नहीं सुनी गई है तो जवाबदेही की मांग करते हुए प्रदर्शन करते हैं। विश्वविद्यालय ने दिशानिर्देशों के नए सेट पर छात्रों और शिक्षकों के निकायों से परामर्श नहीं किया है। परेशान करने वाली बात यह है कि छात्र संघ कार्यालय का इस्तेमाल करने के लिए छात्रों के प्रतिनिधियों को नए मैनुअल के तहत नोटिस दिया गया और उन पर जुर्माना लगाया गया है। प्रॉक्टोरियल सुनवाई के तहत क्रॉस-चेकिंग की प्रथा, जहां छात्र अपना पक्ष रख सकते हैं, को सिरे से हटा दिया गया है। परिसर में विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबंध के अलावा, जुर्माना लगाना एक पैसा कमाने का एक साधन है जिसके तहत छात्रों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा।
कुलपति शांताश्री पंडित के हालिया बयान पर टिप्पणी करते हुए घोष ने कहा कि, "यह देखना दिलचस्प है कि हमारे कुलपति ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रवक्ता बताया है, जबकि परिसर में वह लोकतंत्र को खत्म करने पर अड़ी हुई हैं।"
जेएनयूएसयू अध्यक्ष ने कहा कि, "हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय सीखने, पढ़ने और बहस तथा असहमति के केंद्र हैं और छात्र संगठनों को धरने, विरोध प्रदर्शन आदि के रूप में लोकतांत्रिक विकल्पों का प्रयोग करने का पूरा अधिकार है।"
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर कटाक्ष करते हुए घोष ने कहा कि, “यह भी विडंबनापूर्ण है कि एनईपी शिक्षा क्षेत्र में क्रांति लाने की बात करती है, जबकि सरकार देश भर के परिसरों में यूनियनों को खत्म करने के लिए उसी दस्तावेज़ का इस्तेमाल कर रही है।” हम अभी भी विश्वविद्यालय में यूनियन चुनाव का इंतजार कर रहे हैं जिसे प्रशासन अब तक टालता रहा है।''
एक बयान में, जेएनयूएसयू ने कहा है कि, “पिछले कुछ महीनों में, विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र समुदाय के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने वाले छात्र कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध लेने के लिए चीफ प्रॉक्टर के कार्यालय का इस्तेमाल किया है। इसने चीफ प्रॉक्टर (सीपीओ) के कार्यालय को राजनीतिक जांच के केंद्र में बदल दिया है, और एक निष्पक्ष निकाय होने का सारा दिखावा छोड़ दिया है और बेशर्मी और पक्षपात की सभी सीमाएं पार कर दी हैं।
इसमें कहा गया है कि, “अकेले इस सेमेस्टर में, हमने देखा है कि कैसे चीफ प्रॉक्टर कार्यालय ने छात्र समुदाय की चिंताओं को उठाने वाले कई छात्र कार्यकर्ताओं के खिलाफ लक्षित कार्रवाई की है। शिप्रा हॉस्टल के कई छात्रों पर अन्यायपूर्ण हॉस्टल चेकिंग का विरोध करने के लिए वार्डन और प्रॉक्टर ने दोगुना जुर्माना लगाया गया था, प्रवेश प्रक्रिया के दौरान एबीवीपी कार्यकर्ताओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले गार्डों से पूछताछ करने के लिए पूर्व जेएनयूएसयू पार्षद स्वाति को निष्कासित कर दिया गया था, विश्वविद्यालय में पानी के अधिकार की मांग को लेकर कुलपति आवास तक मार्च करने के लिए हॉस्टल अध्यक्षों और छात्र कार्यकर्ताओं पर जुर्माना लगाया गया था। जहां अधिकारों के संबंध में सवाल उठाने पर छात्रों पर हमला किया जा रहा है, वहीं बार-बार हिंसा में शामिल होने वाले एबीवीपी के गुंडों के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने के बावजूद किसी जांच या कार्रवाई का सामना किए बिना वे खुलेआम घूम रहे हैं।
जेएनयू की कार्यकारी परिषद के सदस्य ब्रह्म प्रकाश ने न्यूज़क्लिक को फ़ोन पर बताया कि दस्तावेज़ में कई विसंगतियाँ थीं। “कार्यकारी परिषद की बैठकें अभी भी ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं जहां हमारे जैसे सदस्यों को बोलने का समय बहुत कम दिया जाता है। इससे भी अधिक समस्याग्रस्त बात यह है कि बैठक के मिनट्स पर टिप्पणियाँ करने का आज आखिरी दिन है और कोई भी अंतिम निर्णय इसे प्रस्तुत करने के बाद ही लिया जाएगा। मैं यह समझने में असफल हूं कि आप यह कहते हुए वेबसाइट पर दस्तावेज़ कैसे अपलोड कर सकते हैं कि इसे कार्यकारी परिषद की मंजूरी हासिल है, जबकि नियत प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है।''
प्रकाश ने बताया कि प्रशासन ने सदस्यों को बताया कि दस्तावेज़ में पिछले संस्करण से कोई बदलाव नहीं हुआ है और इसे कानूनी मान्यता देने के लिए ही ईसी में लाया गया था, जबकि हम देख रहे हैं कि दस्तावेज़ में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
Clampdown on Democratic Voices, Says JNUSU on new Manual of Discipline for Students
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