चाकू समय में हथेलियां: लोकतांत्रिक स्पेस तलाशती स्त्रियों की कहानियां
“इन कहानियों में एक बेकरार दौर है। बेकरार दिल की बेकरार कहानियां हैं। लोकतांत्रिक स्पेस तलाशने की आकांक्षा है। ये कहानियां रेडिकल डिमोक्रेसी को प्रतिबिंबित करती हैं। इन कहानियों में दलित हैं। आदिवासी हैं। ये राष्ट्रीय परिदृश्य को दर्शाती कहानियां हैं। इनमें पश्चिम बंगाल है, असम है, झारखंड है, बिहार है, उत्तर प्रदेश है, केरल है। इन कहानियों में औपन्यासिक कलेवर निहित है। इन कहानियों के माध्यम से समाज शास्त्रीय अध्ययन भी कर सकते हैं। खास बात यह है कि इनमें दोहराव नहीं है।”
यह बात कवि, लेखक, राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह ने शोभा सिंह के कहानी संग्रह ''चाकू समय में हथेलियां'' पर चर्चा के दौरान कही। उन्होंने सुझाव के तौर पर कहा कि शोभा सिंह को अपनी आने वाली कहानियों में पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री यौनेच्छा की स्वतंत्रता पर भी अपनी कलम चलानी चाहिए।
दिल्ली के पटेल नगर में बुधवार, 28 अगस्त को हुए इस कार्यक्रम के प्रारंभ में कथाकार शोभा सिंह ने अपनी एक कहानी ''रमन्ना, महुआ और गोली' का एक अंश पढ़कर सुनाया।
नाटककार राजेश कुमार ने अपने वॉयस मैसेज में कहा कि आज के दौर में जिस तरह की बंदिशें हैं, उसमें लोग चुप हैं। लोग बोलना नहीं चाहते। अधिकतर लोग समय से टकराव नहीं चाहते हैं। ऐसे समय में शोभा सिंह की कहानियां समय से मुठभेड़ करती हैं। उनकी कहानियों में दृश्यात्मकता है। वे स्त्री विमर्श को लेकर सक्रिय हैं। 'रमन्ना, महुआ और गोली', 'चाकू समय में हथेलियों की छाप', 'कंप्यूटर ट्रेनिंग' और 'एक अधूरी-सी कहानी' स्त्री विमर्श की कहानियां हैं।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि शोभा सिंह एक क्रांतिकारी लेखक हैं। उनकी कहानियों में यह दिख जाता है। उनकी क्रांतिधर्मिता मुझे बहुत पसंद है। उनकी कहानियों में फेमिनिज्म, कम्युनिज्म और डेमोक्रेसी सबका मिलाजुला रूप होता है। हालांकि ऐसा लिखना बहुत कठिन होता है।
कवि और पेशे से चिकित्सक डॉ. जरीन हलीम ने कहा शोभा सिंह की कहानियों में उनका व्यक्तित्व झलकता है। समाज के विभिन्न पहलुओं को उन्होंने अपनी कहानियों में छुआ है। कुछ कहानियों में तो मेरे आसपास का परिवेश दिखता है। इस तरह मैं खुद काे उनकी कहानियों से जुड़ी हुई महसूस करती हूं। 'नाम बदलना जरूरी क्यों', 'कूबड़ वाली लड़की', 'तारा बनी नर्स दीदी' आदि में सजीव चित्रण हुआ है। ये बहुत मार्मिक कहानियां हैं। शोभा सिंह की कहानियां महिला प्रधान है और महिला अभिव्यक्ति की सशक्त कहानियां हैं।
लेखक और पत्रकार स्वदेश कुमार सिन्हा ने कहा कि अच्छी कहानी लिखना बहुत कठिन कार्य है। यथार्थ को रिक्रियेट करना पड़ता है। 'बंद घडि़यां' जैसी जेल जीवन की कहानियां जेल में रहकर ही कोई लिख सकता है। उनकी कहानियां एक आशा एक उम्मीद जगाती हैं।
इंजीनियर आशीष वर्मा ने शोभा सिंह की एक कहानी 'दुल्हिन वचन न निभा पाई' की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसमें लोकगीतों का प्रयोग उन्हें बहुत अच्छा लगा।
रचनाकार और संगठनकर्ता राम प्रताप नीरज ने कहा कि शोभा सिंह की कहानियों में न्याय की गुहार और एक ईमानदारी झलकती है।
साहित्यकार और शिक्षक प्रोफेसर हेमलता महिश्वर द्वारा शोभा सिंह की कहानियों पर लिखी टिप्पणी को छात्रा मोनिका ने पढ़कर सुनाया है। इसमें हेमलता महिश्वर कहती हैं '' छोटी-छोटी कहानियां अपने आप में औपन्यासिक कलेवर को समेटे हुए हैं।...पितृसत्ता और ब्राह्मणवाद के साथ सांप्रदायिकता ने भारत से सामाजिक जीवन को संवदेन शून्य बना दिया है। इसकी गूंज कहानियों में भरपूर है। संग्रह के स्त्री पात्र परिपाटियों को तोड़ने के लिए तत्पर हैं।''
सामाजिक कार्यकर्ता सुलेखा सिंह ने शोभा सिंह की कहानियोंं को संघर्षरत वंचित वर्ग की कहानियां बताया। उन्होंने कहा कि शोभा जी के साथ उनकी कहानियों पर विस्तृत चर्चा होती रही है। उनकी कहानियों के महिला पात्र निरंतर संघर्ष करते मिलते हैं।
छात्रा बरखा और खिलखिल भाषानंदिनी ने कहानियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें ये कहानियां नये पर्स्पेक्टिव की कहानियां लगीं।
ग़ज़लकार और मजदूर संगठन से जुड़े कमलेश कमल ने भी इन कहानियों पर संक्षेप में अपनी बात रखी। उन्होंने शोभा सिंह की कहानियों के शिल्प की प्रशंसा की।
कवि, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता पूनम तुषामड़ की लिखित टिप्पणी को सामाजिक कार्यकर्ता सना सुल्तान ने पढ़कर सुनाया। पूनम ने शोभा सिंह की कहानियों को अन्याय व शोषण के विरूद्ध स्वर बताया है। उन्होंने कहा कि कहानी के शीर्षक ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। इतना ही नहीं कहानीकार की रचनाधर्मिता का अंदाज भी उनके इस शीर्षक से हो जाता है। उन्होंने कहा कि शोभा सिंह आंदोलनकर्मी रही हैं। सामान्यत: कोई भी रचनाकार अपने समय के कड़वे मीठे जीवनानुभवों को अत्यंत संवेदनात्मक रूप में साहित्य में पिरोता है। किंतु जब कोई रचनाकार सामाजिक समानता और न्याय के पक्ष में एक कार्यकर्ता बन विषम परिस्थितियों से लड़ता जूझता तथा संघर्षरत रहा हो तब उसकी प्रत्येक रचना उसके समय के यथार्थ अनुभवों का प्रमाणिक दस्तावेज होती है। यह शोभा सिंह की कहानियों में देखा जा सकता है।
शोभा सिंह जी की कहानियों की यह विशेषता है कि उनकी कहानियों की नायक/नायिकाएं समाज में असमानता और गैर बराबरी के शिकार प्रत्येक वर्ग, धर्म, जाति उत्पीड़न अस्मिता से आती हैं। फिर चाहे वे दलित हों, आदिवासी, अल्पसंख्यक या अन्य स्त्रियां जो अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों से लड़ कर जूझ कर भी अपनी मुक्ति और न्याय के लिए संघर्षरत तथा पूरी उम्मीद दिखाती हैं।
कवि, पत्रकार मुकुल सरल ने कहा कि शोभा सिंह की कहानियां उन्हीं के शब्दों में प्रेम—संगठन—आंदोलन—जेलयात्रा की कहानियां हैं। सभी कहानियों की नायक महिलाएं हैं और ज़्यादातर वंचित वर्ग से आती हैं। वे दलित हैं, आदिवासी हैं, पिछड़े वर्ग से हैं, मुसलमान हैं। मध्यवर्ग की भी महिलाएं हैं और सबमें जबर्दस्त जिजीविषा है और वे अपने रोजमर्रा के जीवन संघर्ष के जरिये बिना भाषण, उपदेश या नारेबाज़ी के अपने किस्म का नारी विमर्श पेश करती हैं। समाज और सियासत के सामने सवाल खड़ा करती हैं। साथ ही हिम्मत देती हैं और उम्मीद जगाती हैं कि बदलाव संभव है। यही संघर्ष और उम्मीद शोभा सिंह की कहानियों की केंद्रीय विषयवस्तु है।
कवि और पत्रकार भाषा सिंह ने कहा शोभा सिंह की कहानियों का कैनवास बहुत बड़ा होता है। वह आंदोलनकर्मी के रूप में जेल भी गई हैं। यही कारण है कि वह 'बंद घडि़यां' जैसी कहानी लिख पाईं। उनकी 'दुल्हिन वचन न निभा पाई' बहुत मुश्किल कहानी है। 'मैडम और बंगाली आंटी' भी इस्मत चुगताई के 'लिहाफ' सरीखी बहुत अच्छी बन पड़ी है। उनकी कहानियां चित्रात्मक हैं। ये नये ढंग की प्रयोगधर्मी कहानियां हैं। हर कहानी में लेखिका मौजूद है। उनकी कहानियां यथास्थति से टकराती हैं। उनकी 'चाकू समय में हथेलियां', 'तारा बनी नर्स दीदी' और 'सार्थकता का द्वन्द्व' बहुत मार्मिक और सकारात्मक संदेश देती कहानियां हैं।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पत्रकार उपेंद्र स्वामी ने कहा कि शोभा सिंह को घुमक्कड़ी का शौक है और यही वजह है कि उनकी कहानियों में अलग-अलग परिवेश की कहानियों का समावेश है। इसके साथ ही वह खबरों से अपने आप को अपडेट रखती हैं जाे उनकी कहानियों में झलकता है।
शोभा सिंह की कहानियों की चर्चा में कई प्रबुद्ध जनों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन कवि और लेखक राज वाल्मीकि ने किया।
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