नहीं थम रहे महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध
जैसा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हवाले से पहले ही खबरों में बताया जा चुका है कि 2022 के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुए कुल अपराधों के तहत 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 (4,28,278 मामले) की तुलना में 4 फीसदी की वृद्धि को दर्शाते हैं। लेकिन एनसीआरबी की तालिका 3ए.1 और तालिका 3ए.2 की छानबीन करने से पता चलता है कि हत्या के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार की श्रेणी में 2017 और 2022 के बीच 1,551 मामले दर्ज किए गए। हत्या के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के सबसे अधिक 294 मामले 2018 में और सबसे कम 219 मामले 2020 में दर्ज किए गए थे।
यह रपट कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल आरजी कर में एक डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार-हत्या और अन्य राज्यों में यौन उत्पीड़न के हालिया मामलों पर जारी आक्रोश के बीच आई है जो दर्शाती है कि पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा, हत्या और बलात्कार के मामलों में काफी वृद्धि हुई है।
अगर वर्षवार इसकी व्याख्या करें तो पाएंगे कि 2017 में यह संख्या 223 थी; 2019 में 283; 2021 में 284 और 2022 में 248। छह वर्षों के राज्यवार आंकड़ों से पता चला है कि यूपी में सबसे अधिक मामले (280) दर्ज किए गए, उसके बाद मध्य प्रदेश (207), असम (205), महाराष्ट्र (155) और कर्नाटक में (79) मामले दर्ज किए गए हैं।
गैर-लाभकारी कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा किए गए विश्लेषण में बताया गया है कि कुल 1,551 मामलों को देखें तो यह करीब 258 से थोड़ा अधिक मामलों का वार्षिक औसत बनता है। रिपोर्ट के मुताबिक, "दूसरे शब्दों में कहें तो, 2017-2022 के बीच हर हफ्ते औसतन बलात्कार/सामूहिक बलात्कार और हत्या के लगभग पांच मामले (4.9) सामने आए हैं।" एनसीआरबी ने अपनी वार्षिक 'क्राइम इन इंडिया' रिपोर्ट में बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या के आंकड़ों को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्ष 2017 से रिपोर्ट करना शुरू किया था।
जहां महिलाओं के ऊपर हुए ज़ुल्म के खिलाफ मुकदमें लड़ने और निर्णयों पर पहुँचने का सवाल है, इनमें जिन 308 मामलों में सुनवाई पूरी हुई है उनमें से दो तिहाई से थोड़ा कम (65 फीसदी) मामलों (यानी 200 मामलों) में दोषसिद्धि हुई। एक तिहाई से ज़्यादा जिन मामलों में, या तो आरोपी छूट गए वह 6 फीसदी है और 28 फीसदी ऐसे हैं जिनमें आरोपी बरी हो गए हैं। इसके कुछ भी कारण हो सकते हैं जिसमें पीड़ित की तरफ से मुक़दमा सही तारीके से न लड़ा जाना या फिर आरोपियों के दबाव में आकर मामले को ढीला छोड देना। दोषसिद्धि की दर 2017 में सबसे कम (57.89 फीसदी) और 2021 में सबसे ज़्यादा (75 फीसदी) रही है। 2022 में यह गिरकर 69 फीसदी रह गई थी। यानी जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा और बलात्कार के मामलों में वृद्धि हुई वहीं उनकी दोषसिद्धि की दर में गिरावट आई है जो अपने आप में चिंता की बात है।
एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि ट्रायल कोर्ट में बलात्कार/हत्या के साथ सामूहिक बलात्कार के मामलों की संख्या में साल दर साल वृद्धि हुई है। कुल मामलों की संख्या यानी बैकलॉग और ट्रायल के लिए भेजे गए नए मामले, 2017 में सबसे कम यानी 574 थे जो 2022 तक लगातार बढ़कर 1,333 हो गए, यानी यह 132 फीसदी की वृद्धि है।
एक समाज जिसमें महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है वही समाज उन्हें महिला का दर्जा देने में असमर्थ है और किसी भी समाज के लिए “यह बेहद चिंता की बता होनी चाहिए क्योंकि बड़ी संख्या में मामलों में पुलिस ने जांच पूरी होने के बाद चार्जशीट फाइल करने के बजाय फाइनल रिपोर्ट दाखिल की। इन छह सालों के दौरान बलात्कार/हत्या के साथ सामूहिक बलात्कार के 140 मामलों को फाइनल रिपोर्ट के साथ बंद कर दिया गया, जिनमें से 97 बलात्कार/हत्या के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोपियों पर मुकदमा चलाने के मामले में अपर्याप्त सबूतों के कारण बंद कर दिए गए।" हमारे देश के भीतर महिलाओं के मामले में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की यह हालत है। इसमें कोई शक नहीं कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने की जरूरत है ताकि समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर नकेल कसी जा सके।
ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि एनसीआरबी ने डेटा उन मामलों के संबंध में भी एकत्र किया है, जहां पुलिस अपनी जांच में आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई या जहां आरोपी का पता नहीं चल पाया, या शिकायत झूठी पाई गई या जहां मामला तथ्य या कानून की गलती के कारण निराधार हो गया या मुद्दा सिविल विवाद की प्रकृति का था।
नोट करने वाली बात यह है कि इन छह वर्षों में से चार में, महामारी के वर्षों के दौरान भी चार्जशीट की दर 90 फीसदी से अधिक थी। 2018 में सफलता दर 90 फीसदी से नीचे 87 फीसदी आ गई और हाल ही में 2022 यह गिरकर 85 फीसदी हो गई। हालांकि, कुछ निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि पुलिस इस दौरान हत्या के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के 32-49 फीसदी मामलों में जांच भी पूरी नहीं कर पाई है।
इसलिए सवाल केवल आरजी कर अस्पताल का नहीं है बल्कि पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ दरिंदगी भरे हमले बढ़ रहे हैं। हम जिन आंकड़ों की बात कर रहे हैं वे सब रिपोर्टेड आंकड़े हैं। लेकिन ऐसे भी हजारों मामले में हैं जहां आरोपियों या समाज में बदनामी के डर से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को रिपोर्ट नहीं किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि आरजी कर मामले में उठे देशव्यापी आंदोलन ने के बार फिर से महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की तरफ गौर करने का मौका दिया है। इसलिए यह वक़्त की जरूरत है कि देश की हुकूमत, भारतीय समाज इन अपराधों के खिलाफ एकजुट हो और महिलाओं के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चले। फिर चाहे वह अपराध देश के किसी भी कोने में क्यों न हो और किसी भी महिला के साथ क्यों न हो, फिर चाहे वह किसी भी जातीय या धार्मिक समूह से संबंध रखती हो।
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