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‘हैरिस और ट्रम्प दोनों ही चाहते हैं कि दुनिया पर अमेरिका का दबदबा बना रहे’

प्रबीर पुरकायस्थ का कहना है कि दोनों प्रमुख डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन उम्मीदवारों का अमेरिकी साम्राज्यवादी हितों को बढ़ावा देने का एजेंडा लगभग एक जैसा है, लेकिन दोनों ही दुनिया की राजनीति में आए महत्वपूर्ण बदलावों को पहचानने में विफल रहे हैं।
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फरवरी 2020 में अहमदाबाद में 'नमस्ते ट्रंप' रैली में डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी। फोटो: नरेंद्र मोदी/एक्स

5 नवंबर को, संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग अपने अगले राष्ट्रपति और सांसदों का चुनाव करने के लिए मतदान करेंगे। राष्ट्रपति पद की दौड़ में दो प्रमुख दावेदार, रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस हैं, अब तक हुए अधिकतर जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि दोनों के बीच कांटे की टक्कर है, जिससे इस बात की अटकलें बढ़ गई हैं या कि विश्लेषण होने लगा है परिणाम क्या होंगे और उनकी नीतियों का दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

जहां तक दक्षिण एशिया का मामला है, ऐतिहासिक रूप से यह बात सच है कि अमेरिका ने इस इलाके के देशों के साथ एक अलग तरह के संबंध बनाए हुए हैं, और इन संबंधों पर शायद ही कभी किसी विशेष चुनावी परिणाम का असर पड़ा हो। फिर भी, इलाके के नेताओं और विश्लेषकों ने यह समझने का प्रयास किया है कि कौन सी ऐसी पार्टी या उम्मीदवार है जो उनकी विदेश नीति के उद्देश्यों के लिए बेहतर होगा।

भारत में, विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। जबकि हैरिस के प्रति भारत के कुछ लोगों के बीच जो बात आकर्षण पैदा करती है वह उनकी जड़ें भारत में होने की वजह से है, भारत में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू वर्चस्ववादी, अति-दक्षिणपंथी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी समान रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण ट्रम्प के साथ अधिक मिलनसार नज़र आती है। 2019 में हुए चुनाव अभियानों के दौरान मोदी पर अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प के लिए प्रचार करने का भी आरोप लगाया था। जब डोनाल्ड ट्रम्प ने 2020 में भारत की ऐतिहासिक यात्रा की थी तो बड़े क्रिकेट स्टेडियम में एक विशाल ‘नमस्ते ट्रम्प’ रैली में उनका स्वागत किया गया था।

फिर भी, दोनों के रूढ़िवादी विश्वास या विचार जरूरी नहीं कि उन नीतियों के मामले में ज़मीन पर सटीक उतरे जो अमेरिका-भारत संबंधों को प्रभावित करती हैं, जैसे व्यापार, आव्रजन और भू-राजनीतिक स्थिति कुछ ऐसे मुद्दे हैं। और ट्रम्प द्वारा एक्स पर एक पोस्ट में यह घोषणा करने के बावजूद कि उनका प्रशासन "भारत के साथ हमारी अधिक साझेदारी को मजबूत करेगा", ट्रम्प की घोषित उच्च टैरिफ नीतियों से भारत को कोई लाभ नहीं होगा, जिसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार संयुक्त राज्य अमेरिका है। इसके अलावा, 2019 में, ट्रम्प ने सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (जीएसपी) कार्यक्रम में भारत का दर्जा हटा दिया, जो कुछ विकासशील देशों से कुछ वस्तुओं के लिए अनुकूल व्यापार की स्थिति प्रदान करता है। जीएसपी कार्यक्रम तब ट्रम्प के तहत 2020 में समाप्त हो गया था। अन्य लोग सहमत दिखते हैं, और उनका दावा है कि यदि ट्रम्प विजयी होते हैं तो यह भारत को भू-राजनीतिक मुद्दों पर अधिक फायदा होगा जबकि हैरिस प्रशासन व्यापार और आव्रजन के मुद्दों पर ज्यादा सहायक होगा।

इलाके के ज़्यादातर दूसरे देशों के साथ भी यही स्थिति है। पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों के विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प का घरेलू राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना और विदेशी टकरावों से दूर रहने का उनका मुखर वादा उनके देशों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है।

पीपल्स डिस्पैच से बात करते हुए, वर्कर्स पार्टी ऑफ बांग्लादेश (डब्ल्यूपीबी) के शरीफ शमशीर ने बाइडेन और हैरिस के नेतृत्व वाले डेमोक्रेटिक प्रशासन ने बांग्लादेश में शासन परिवर्तन ताकतों का समर्थन किया, उन्होंने हाल ही में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम प्रशासन के गठन का जिक्र किया।

शमशीर का दावा है कि यूनुस के डेमोक्रेटिक पार्टी नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जिसने हसीना की तख़्तापल्टी के बाद हुई विपक्ष की हिंसा और उत्पीड़न की आलोचना करने से इनकार कर दिया था। इस बीच, ट्रम्प ने दिवाली पर एक्स पर अपने पोस्ट में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की निंदा की, जो डब्ल्यूपीबी कार्यकर्ता के अनुसार, अमेरिका में हिंदू मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है। भारतीय लोग, अमेरिकी मैक्सिकन अमेरिकियों के बाद दूसरे सबसे बड़े अप्रवासी समुदाय हैं, और मंगलवार के चुनाव में लगभग 26 लाख भारतीय अमेरिकी मतदान करने के पात्र हैं।

शमशीर का मानना है कि, ऐसी संभावना है कि भावी ट्रम्प प्रशासन, मुख्यतः घरेलू मुद्दों पर अपने कथित फोकस के कारण, बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में उतनी दिलचस्पी नहीं ले पाएगा, जितनी बाइडेन प्रशासन ले रहा है।

“अंतर केवल शैली में है”

हालांकि, इस क्षेत्र में वामपंथियों में इस बात पर आम सहमति है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अंततः एक ऐसी दौड़ है जिसका बाकी दुनिया के लिए कोई खास मतलब नहीं है। वे विशेष रूप से अमेरिका में द्विदलीय आम सहमति की कमजोर कड़ी की तरफ इशारा करते हैं जिसके तहत ऐसी नीतियों को जारी रखा जाए जो दुनिया में अपना दबदबा क़ायम रखने के साम्राज्यवादी हितों की सेवा करती हो। उन्होंने कहा है कि ट्रम्प और हैरिस के बीच मतभेद ज़्यादातर सतही हैं।

न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ ने पीपल्स डिस्पैच से बात करते हुई कहा कि चाहे ट्रम्प हों या हैरिस, वे "दुनिया भर में अमेरिका का वर्चस्व को कायम रखना चाहते हैं" और वे पश्चिम एशिया, रूस और चीन में अमेरिकी विदेश नीति के बुनियादी उद्देश्यों से कभी समझौता नहीं करेंगे। वे न तो अपने तथाकथित "नियम आधारित आदेश" को छोड़ेंगे और न ही अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का एकतरफा उल्लंघन और दुरुपयोग जारी रखेंगे।

पाकिस्तान की मजदूर किसान पार्टी के तैमूर रहमान भी इस बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि अमेरिकी चुनावों में दोनों प्रमुख उम्मीदवार, मामूली मतभेदों के बावजूद, विश्व राजनीति की अधिकांश प्रमुख समस्याओं के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हैं। फ़िलिस्तीन पर “द्विपक्षीय सहमति” का उदाहरण देते हुए तैमूर कहते हैं कि, “दुनिया के लोग केवल यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विश्व राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर दोनों उम्मीदवारों के बीच शायद ही कोई सार्थक मतभेद है।”

भारतीय विश्लेषक बप्पा सिन्हा भी प्रबीर की बात से सहमत हैं। "अधिकांश महत्वपूर्ण मुद्दों पर डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन प्रशासन के बीच नीतिगत निरंतरता का स्तर बहुत ऊंचा प्रतीत होता है" जिससे यह संदेह होता है कि दक्षिण एशिया या सामान्य रूप से दुनिया के लिए कोई अंतर होगा, फिर चाहे दोनों में से कोई भी जीत जाए।

प्रबीर कहते हैं कि उनके बीच जो भी छोटे-मोटे अंतर हैं, वे "सिर्फ़ शैलीगत" हैं। "ट्रम्प के लिए, धमकाना ही नई कूटनीति है। उनका मानना है कि धमकाकर और धमकियों के ज़रिए वे अमेरिका के दबदबे को फिर से स्थापित कर सकते हैं। कमला हैरिस का मानना है कि समझाबुझा वाले पुराने तरीके, प्रतिबंधों की धमकी और पुराने ज़माने के अच्छे शासन-परिवर्तन से अपने उद्देश्य को हासिल किया जा सकता है। अंतर सिर्फ़ शैली का है।"

हालांकि, प्रबीर ने सकारात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि वे दोनों एक जैसे हैं, क्योंकि "दोनों को यह समझ नहीं है कि दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है, और किसी भी तरह की धमकी या चतुर कूटनीति से दुनिया पर पश्चिमी दबदबा या अमेरिका का एकमात्र दबदबा चल नहीं पाएगा।"

ाभार: पीपल्स डिस्पैच

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